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लूका

Chapter 1

1 बहुत से लोगों ने पहले से ही उन बातों के विषय में लिख दिया है जो हमारे मध्य में घटित हुई थीं। 2 वे उन बातों का संकलन कर रहे हैं जिनके विषय में हमें उन लोगों ने बताया था जिन्होंने इन बातों को घटित होते हुए देखा था। वे लोग उस समय से ही वहाँ पर थे जब सब कुछ होना सर्वप्रथम आरम्भ हुआ, और तब से ही वे उस घटना का प्रचार कर रहे हैं। 3 मैंने स्वयं ही हर उस बात की सावधानीपूर्वक जाँच की है जो आरम्भ ही से घटित हुई थीं। अतः मैंने यह निर्णय लिया कि मुझे तेरे लिए लिए भी एक सटीक ब्यौरा लिखना चाहिए। हे महामहिम, थियुफिलुस, 4 मैं चाहता हूँ कि तू जान ले कि जो बातें लोगों ने तुझे यीशु के विषय में बताई हैं वे सत्य हैं। 5 जिस समय हेरोदेस यहूदिया का शासक था, वहाँ पर जकर्याह नाम का एक यहूदी याजक था। वह अबिय्याह का वंशज था, और इसी कारण से वह मंदिर में उन अन्य याजकों के साथ सेवा करने की अपनी बारी लिया करता था जो कि अबिय्याह के ही वंशज थे। उसकी पत्नी का नाम एलीशिबा था। वह हारून की वंशज थी {और इसलिए वह भी याजकीय वंश से सम्बन्धित थी}। 6 परमेश्वर यह विचार रखता था कि वे दोनों धर्मी थे क्योंकि उन्होंने सर्वदा हर उस बात का आज्ञापालन किया था जिसका परमेश्वर ने आदेश दिया था। 7 परन्तु उनके कोई सन्तान नहीं थी, क्योंकि एलीशिबा सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ थी। और अब वह और उसका पति सन्तान उत्पन्न करने के लिए बहुत वृद्ध थे। 8 जकर्याह के याजकीय समूह का अपनी बारी लेने {यरूशलेम में सेवा करने} का समय आ पहुँचा। इसलिए परमेश्वर के लिए याजक के रूप में कार्य करने हेतु जकर्याह वहाँ पर उपस्थित हुआ। 9 याजकों ने प्रभु के मंदिर में जाने और वहाँ पर धूप जलाने के लिए जकर्याह का चुनाव किया। उन्होंने उसका चुनाव अपनी सामान्य रीति, अर्थात् चिट्ठियाँ डालने के द्वारा किया {अर्थात् यह निर्धारित करना कि किसी विशेष कार्य को करने हेतु परमेश्वर किसे चाहता था}। 10 जब धूप जलाने का समय आया, तो बहुत से लोग {मंदिर के} बाहर {आँगन में} प्रार्थना कर रहे थे। 11 उसी समय पर, जकर्याह के पास परमेश्वर का स्वर्गदूत आ पहुँचा। वह वेदी के दाहिनी ओर खड़ा हो गया जहाँ पर वह धूप जला रहा था। 12 जब जकर्याह ने स्वर्गदूत को देखा, तो वह घबरा गया और भयभीत हो गया। 13 परन्तु उस स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, {मुझ से} डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। तू प्रार्थना कर रहा था, और परमेश्वर तेरी प्रार्थना का उत्तर देने जा रहा है। तेरी पत्नी एलीशिबा तेरे लिए एक पुत्र को जन्म देगी। उसका नाम यूहन्ना रखना। 14 तू अत्यन्त प्रसन्न होगा, और बहुत से अन्य लोग भी प्रसन्न होंगे जब वह जन्म लेगा। 15 तू और वे इसलिए प्रसन्न होंगे क्योंकि तेरा पुत्र परमेश्वर के लिए अत्यन्त प्रभावशाली होगा। वह कभी भी दाखरस या किसी अन्य मादक पेय को न पीए। उसके जन्म लेने से पहले से ही पवित्र आत्मा उसे प्रभावित करना आरम्भ कर देगा। 16 तेरा पुत्र बहुत से इस्राएलियों को पाप करने से रुक जाने के लिए और फिर से प्रभु उनके परमेश्वर की आज्ञा मानना आरम्भ करने के लिए सहमत कर लेगा। 17 तेरा पुत्र प्रभु के आगे आगे जाएगा, और वह अपनी आत्मा में सामर्थी होगा जिस तरह एलिय्याह भविष्यद्वक्ता था। वह माता-पिता को अपने बच्चों को पुनः प्रेम करने के लिए प्रेरित करेगा। वह बहुत से लोगों को जो परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते, उसकी आज्ञा का पालन करने और बुद्धिमानी और धार्मिकता से जीने के लिए प्रेरित करेगा। वह ऐसा इसलिए करेगा कि प्रभु के लोग उसके आने पर उसके लिए तैयार रहें।” 18 तब जकर्याह ने स्वर्गदूत से कहा, “मैं कैसे सुनिश्चित होऊँ कि जो बातें तूने कही हैं सचमुच घटित होंगी? मैं तो बहुत वृद्ध हूँ, और मेरी पत्नी भी बहुत वृद्ध है, {इसलिए मेरे लिए यह विश्वास करना कठिन है कि ये बातें घटित होंगी}।” 19 फिर स्वर्गदूत ने उसको उत्तर देते हुए कहा, “मैं जिब्राएल हूँ! मैं परमेश्वर की उपस्थिति में खड़ा रहता हूँ! परमेश्वर ने मुझे तुझे यह शुभ सन्देश बताने के लिए भेजा है कि तेरे साथ क्या घटित होगा। 20 अब सुन! जो मैंने तुझे बताया है वह निश्चित रूप से उस समय पर घटित होगा जो परमेश्वर ने निश्चित किया है। परन्तु क्योंकि तूने मेरे सन्देश पर विश्वास नहीं किया, इसलिए परमेश्वर तुझे बोलने से रोक देगा। तेरे पुत्र के जन्म लेने के दिन तक तू बोलने में सक्षम नहीं होगा!” 21 {जिस समय जकर्याह और स्वर्गदूत मंदिर में बातें कर रहे थे,} लोग आँगन में जकर्याह के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने आश्चर्य किया कि वह मंदिर में इतने लम्बे समय तक क्यों ठहरा हुआ था। 22 तब वह मंदिर से बाहर निकला, परन्तु वह उनसे बात करने में सक्षम नहीं था। क्योंकि वह बोल नहीं सकता था, उसने अपने हाथों से संकेत करके यह समझाने का प्रयास किया कि क्या हुआ था। इससे लोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि जिस समय पर वह मंदिर के भीतर था उसने परमेश्वर की ओर से कोई दर्शन देखा है। 23 जब जकर्याह ने उस समय को समाप्त कर लिया जिसमें उसे मंदिर में याजक के रूप में कार्य करना आवश्यक था, उसने यरूशलेम को छोड़ दिया और अपने घर को वापस लौट गया। 24 इसके कुछ समय के पश्चात, उसकी पत्नी, एलीशिबा, गर्भवती हो गई, और वह पाँच महीने तक बाहर लोगों में नहीं गई। उसने स्वयं से कहा, 25 “प्रभु ने मुझे गर्भवती होने के लिए सक्षम किया है। इस रीति से, उसने अपनी अनुकम्पा को मुझ पर प्रकट किया है। उसका धन्यवाद हो, अब मुझे अन्य लोगों के सामने और अधिक लज्जित नहीं होना पड़ेगा।” 26 जब एलीशिबा छः महीने की गर्भवती थी, परमेश्वर ने जिब्राएल स्वर्गदूत को गलील प्रान्त के नासरत नाम के एक नगर में भेजा। 27 परमेश्वर ने उसे वहाँ एक कुँवारी से बात करने के लिए भेजा जिसका नाम मरियम था। {उसके माता-पिता ने यह वायदा किया हुआ था कि} वह यूसुफ नाम के एक पुरुष से विवाह करेगी, जो कि राजा दाऊद का वंशज था। 28 जहाँ पर मरियम थी स्वर्गदूत आया और उससे कहा, “नमस्कार, हे आशीषित! तू परमेश्वर के लिए अत्यन्त विशिष्ट है!” 29 परन्तु जब उसने यह कहा, तो वह असमंजस में पड़ गई। उसे यह समझने का प्रयास करना पड़ा कि इस अभिवादन का क्या अर्थ हो सकता है। 30 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम, परमेश्वर तुझे आशीषित करने की इच्छा रखता है, इसलिए भयभीत न हो! 31 अब सुन। तू गर्भवती होगी, और तू एक पुत्र को जन्म देगी। उसका नाम यीशु रखना। 32 वह महान होगा, और वह परम प्रधान परमेश्वर का पुत्र होगा। परमेश्वर प्रभु उसे अपने लोगों पर राजा बनाएगा, जैसे उसका पूर्वज दाऊद था। 33 वह इस्राएल के लोगों पर सदैव राजा बना रहेगा। वह उन पर सर्वदा शासन करेगा!” 34 तब मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “परन्तु मैं एक कुँवारी हूँ। तो यह कैसे हो सकता है?” 35 स्वर्गदूत ने उत्तर देकर कहा, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा। परम प्रधान परमेश्वर की सामर्थ तुझ पर पड़ने वाली छाया के समान होगी। इसलिए जिस बालक को तू जन्म देगी वह पवित्र होगा। वह परमेश्वर का पुत्र होगा। 36 यह भी सुन ले। तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा भी गर्भवती है, और वह एक पुत्र को प्राप्त करने वाली है। क्योंकि वह बहुत वृद्ध है, लोगों ने सोचा था कि वह सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकती है। परन्तु इस समय पर वह लगभग छः महीने की गर्भवती है। 37 इसलिए तू देख, कि परमेश्वर कुछ भी कर सकता है!" 38 तब मरियम ने कहा, “ठीक है। मैं प्रभु की आज्ञा का पालन करने की इच्छुक हूँ। परमेश्वर उन बातों को कर सकता है जिनका मेरे साथ घटित होने का वर्णन तूने किया है।” तब वह स्वर्गदूत उसके पास से चला गया। 39 इसके तुरन्त पश्चात ही, मरियम तैयार हो गई और जितना शीघ्र उससे हो सका उस नगर के लिए यात्रा की जो यहूदिया के पहाड़ी इलाकों में था, जहाँ पर जकर्याह रहता था। 40 उसने जकर्याह के घर में प्रवेश किया और उसकी पत्नी, एलीशिबा को नमस्कार किया। 41 जैसे ही एलीशिबा ने मरियम को नमस्कार करते सुना, तो एलीशिबा के अंदर के बालक ने अचानक हलचल की।उसी क्षण पवित्र आत्मा ने इलीशिबा को बोलने के लिए प्रेरित किया। 42 उसने ऊँचे स्वर से पुकारकर मरियम से कहा, “परमेश्वर ने तुझे आशीषित किया है किसी अन्य स्त्री से बढ़कर आशीषित किया है, और उसने उस बालक को भी आशीषित किया है जिसे तू उत्पन्न करेगी! 43 मैं इस योग्य नहीं, कि तू, मेरे प्रभु की माता, मुझ से मिलने के लिए आए! 44 मैं यह सब इसलिए जानती हूँ क्योंकि जैसे ही मैंने सुना कि तू मुझे नमस्कार करती है, तो मेरे गर्भ के शिशु ने हिलना-डुलना आरम्भ कर दिया क्योंकि वह बहुत उत्साहित था! 45 तू धन्य है क्योंकि तूने विश्वास किया था कि जो प्रभु ने तुझ से कहा था कि पूरा होगा।” 46 फिर मरियम ने यह कहने के द्वारा परमेश्वर की स्तुति कीः “आह, मैं कैसे प्रभु की स्तुति करती हूँ 47 और मैं परमेश्वर के विषय में अत्यन्त आनन्दित अनुभव करती हूँ, वही जो मुझे बचाता है! 48 मैं आनंदित हूँ क्योंकि वह मेरे प्रति अनुग्रहकारी रहा, भले ही मैं अधिक महत्व नहीं रखती थी। इसकी कल्पना तो करो—कि अब से, भविष्य के आने वाले दिनों में रहने वाले सब लोग कहा करेंगे कि परमेश्वर ने मुझे आशीषित किया है। 49 वे ऐसा इसलिए कहेंगे क्योंकि परमेश्वर ने, जो सामर्थी और पवित्र है, मेरे लिए बड़े-बड़े काम किए हैं। 50 वह हर जगह सभी समयकालों में उन लोगों के प्रति बड़े ही दयापूर्ण भाव से व्यवहार करता है जो उसका भय मानते हैं। 51 उसने लोगों पर यह प्रकट किया है कि वह अत्यन्त सामर्थी है। उसने उन लोगों को भगा दिया है जो अपने आप में घमण्ड करते हैं। 52 उसने शासकों को शासन करने से रोक दिया है, परन्तु जो दीन हैं उसने उन लोगों का सम्मान किया है। 53 उसने लोगों को जो भूखे थे उनके तृप्त होने तक अच्छा भोजन खिलाया है, परन्तु उसने धनवानों को बिना कुछ दिए ही निकाल बाहर किया है। 54 उसने इस्राएल की, अर्थात् उन लोगों की सहायता की है जो उसकी सेवा करते हैं। बहुत समय पहले उसने हमारे पूर्वजों से यह प्रतिज्ञा की थी कि वह उन पर दयावन्त रहेगा। उसने उस प्रतिज्ञा को पूरा किया और उसने अब्राहम और उससे उत्पन्न हुए वंशजों के प्रति सदा ही दयापूर्ण रीति से व्यवहार किया है। 55-56 मरियम लगभग तीन महीने तक एलीशिबा के साथ रही। उसके पश्चात, वह घर वापस चली गई। 57 जब एलीशिबा के अपने बच्चे को जन्म देने का समय आया, तो उसने एक पुत्र को जन्म दिया। 58 जब उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने इस विषय में सुना कि उसे एक पुत्र देने के द्वारा किस प्रकार से परमेश्वर उस पर कृपालु हुआ है, तो वे एलीशिबा के साथ अत्यन्त प्रसन्न हुए। 59 आठ दिनों के पश्चात, बालक का खतना करने के लिए लोग एक साथ इकट्ठा हुए {यह प्रकट करने के लिए कि वह परमेश्वर को समर्पित है}। {इसी के साथ-साथ यह उस बालक का नाम रखने का भी समय था।} लोग उस बालक का नाम जकर्याह रखना चाहते थे क्योंकि वह उसके पिता का नाम था। 60 परन्तु उसकी माता ने कहा, “नहीं, {उसका नाम जकर्याह नहीं रखा जाएगा।} उसका नाम यूहन्ना रखा जाएगा!” 61 अतः उन्होंने उस से कहा, “परन्तु यूहन्ना नाम तो तेरे कुटुम्बियों में से किसी का भी नहीं है!” 62 फिर उन्होंने उसके पिता को उससे यह पूछने के लिए अपने हाथों से चिन्ह दिखाए कि वह संकेत करे कि वह अपने पुत्र का क्या नाम रखना चाहता है। 63 अतः उसने संकेत किया कि वे उसे लिखने के लिए एक पटिया उपलब्ध करवाएँ। {जब उन्होंने उसे वह उपलब्ध करवाई,} तो उसने उस पर लिखा, “उसका नाम यूहन्ना है।” इस बात ने उन सब लोगों को स्तब्ध कर दिया जो वहाँ पर उपस्थित थे! 64 तुरन्त ही, जकर्याह फिर से बोलने में सक्षम हो गया, और उसने परमेश्वर की स्तुति करना आरम्भ कर दिया। 65 {जब} आसपास रहने वाले लोगों ने {इन बातों के विषय में सुना, तो उन्होंने} परमेश्वर के लिए बड़ी ऋद्धा का अनुभव किया। {जो घटित हुआ था उन्होंने उसके विषय में बहुत से लोगों को बताया,} और यह बात यहूदिया के सम्पूर्ण पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों में फैल गई। 66 इन बातों के विषय में जिसने सुना हर कोई उनके विषय में विचार करता रहा। उन्होंने सोचा, “निश्चित रूप से यह बालक बड़ा होकर कोई अति विशिष्ट जन बनेगा!” {उन्होंने ऐसा इसलिए सोचा} क्योंकि {वे देख पा रहे थे कि} परमेश्वर सामर्थी रूप से उसके जीवन में उपस्थित था। 67 उस बालक के पिता, जकर्याह, के फिर से बोलने में सक्षम होने के पश्चात, पवित्र आत्मा ने जकर्याह को प्रेरित किया और वह परमेश्वर की ओर से इन बातों को बोलने लगाः 68 “प्रभु की स्तुति करो, परमेश्वर की जिसकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, क्योंकि वह हमें, जो उसके लोग हैं, स्वतंत्र करने के लिए आ गया है। 69 उसने एक ऐसे जन को भेजा है जो हमें सामर्थी रूप से बचाएगा, एक ऐसा जन जो दाऊद का वंशज है, जिसे उसने राजा होने के लिए चुन लिया है। 70 (बहुत समय पहले परमेश्वर ने अपने भविष्यद्वक्ताओं को यह कहने के लिए प्रेरित किया था कि वह इन कामों को करेगा।) 71 {परमेश्वर इस छुड़ाने वाले को इसलिए भेज रहा है} कि हमें हमारे शत्रुओं से सुरक्षित करे, और हर उस जन की सामर्थ से {वह हमें छुड़ा लेगा} जो हम से द्वेष रखते हैं। 72 परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि वह हमारे पूर्वजों के प्रति विश्वासयोग्य रहा है और इसी कारण से पवित्र प्रतिज्ञा को पूरा कर रहा है जो उसने उनसे की थी। 73 यह वह शपथ है जो उसने हमारे पूर्वज अब्राहम के साथ सत्यनिष्ठा से इस विषय में शपथ खाई थी कि वह हमारे साथ क्या करेगा। 74 उसने शपथ खाई थी कि वह हमारे शत्रुओं की सामर्थ से हमें छुड़ाएगा ताकि उनसे भयभीत हुए बिना हम उसकी सेवा कर सकें। 75 इसके परिणामस्वरूप, जब तक हम जीवित हैं, तब तक हम सही रीति से जीवन को ऐसे लोगों के रूप में जीएँ जो पूर्णरूप से उसके हैं।” 76 {फिर जकर्याह ने अपने शिशु पुत्र से कहा,} “और जैसा कि तेरे लिए, हे मेरे बच्चे, तू परम प्रधान परमेश्वर का एक भविष्यद्वक्ता होगा। तू प्रभु के आगमन से पूर्व ही अपने कार्य को आरम्भ करेगा ताकि तू लोगों को उसके लिए तत्पर रहने के लिए तैयार कर सके। 77 तू परमेश्वर के लोगों को बताएगा कि वह उनके पापों को क्षमा करने के द्वारा उनको बचाना चाहता है। 78 परमेश्वर हमें इसलिए बचाना चाहता है क्योंकि वह तरस खाने वाला और दयावान है। इसी कारण से हमारी सहायता करने के लिए वह स्वर्ग से इस उद्धारकर्ता को भेज रहा है। 79 यह उद्धारकर्ता उन लोगों पर सत्य को प्रकट करेगा जो उसे नहीं जानते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों पर भी जो उसे बिलकुल भी नहीं जानते हैं। वह हमें दिखाएगा कि परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले तरीके से कैसे जियें। 80 समय बीतने के साथ-साथ, जकर्याह और एलीशिबा का शिशु बालक बढ़ता गया और आत्मिक रूप से बलवन्त होता गया। फिर वह एक निर्जन क्षेत्र में रहने के लिए चला गया। वह उस समय भी वहीं पर रह रहा था जब उसने सार्वजनिक रूप से परमेश्वर की प्रजा, इस्राएलियों पर प्रचार करना आरम्भ किया था।

Chapter 2

1 साथ ही उस समय के दौरान, कैसर औगस्तुस ने, {जो सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य पर शासन करता था,} आदेश निकाला कि उसके साम्राज्य में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपना पंजीकरण करवाना होगा {अर्थात उसका नाम वहाँ रहने वाले लोगों की एक आधिकारिक सूची में होना आवश्यक है}। 2 यह पहली बार था जब रोमियों ने उनके साम्राज्य में रहने वाले हर एक जन के नामों का संकलन किया था। यह उन्होंने उस समय के दौरान किया था जब क्विरिनियुस सीरिया प्रान्त का राज्यपाल था। 3 इसलिए हर एक जन को पंजीकरण करवाने के लिए अपने घराने के गृहनगर में जाना ही था। 4 यूसुफ ने भी, मरियम के संग, जिसकी उससे मंगनी हो चुकी थी और वह गर्भवती थी, अपने घराने के गृहनगर को जाने के लिए यात्रा की। क्योंकि यूसुफ दाऊद का वंशज था, इसलिए गलील प्रदेश के नासरत नगर को छोड़कर उन्होंने यहूदिया प्रदेश के, बैतलहम नगर के लिए यात्रा की, जिसे दाऊद के नगर के रूप में भी जाना जाता था। यूसुफ और मरियम वहाँ सार्वजनिक अभिलेख में पंजीकृत होने के लिए गए। 5-6 जब वे बैतलहम पहुँचे, तो जहाँ पर सामान्यतः आगंतुक ठहरा करते थे उस स्थान में उनके ठहरने के लिए कोई जगह उपलब्ध नहीं थी। इसलिए उनको एक ऐसे स्थान में ठहरना पड़ा जहाँ पर रात में पशु सोया करते थे। जिस समय पर वे वहाँ थे तभी मरियम का जन्म देने का समय आ गया और उसने अपनी प्रथम सन्तान, एक पुत्र को जन्म दिया। उसने उसे कपड़े की चौड़ी लीरों में लपेटकर वहाँ पर लिटा दिया जहाँ पर खलिहान के अंदर पशुओं के लिए चारा रखा जाता था। 7-8 उस रात कुछ चरवाहे बैतलहम के पास खुले मैदान में डेरा डाले हुए थे। वे वहाँ पर अपनी भेड़ों की देखभाल कर रहे थे। 9 अचानक से उन्होंने प्रभु की ओर से आए हुए एक स्वर्गदूत को अपने सामने खड़े हुए देखा। प्रभु की ओर से एक अनुग्रहकारी प्रकाश उनके चारों ओर चमक उठा। वे अत्यन्त भयभीत हो गए। 10 परन्तु स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “भयभीत न हो! ध्यानपूर्वक सुनो, क्योंकि मैं तुम को बड़ा शुभ सन्देश बताने के लिए आया हूँ! यह सन्देश सभी लोगों के लिए है, और हर एक को आनन्दित होना चाहिए! 11 वे आनन्दित होंगे क्योंकि आज, राजा दाऊद के गृहनगर, बैतलहम में, वह व्यक्ति उत्पन्न हुआ है जो तुम को {तुम्हारे पापों से} बचाएगा! वही मसीह, प्रभु है! 12 और वहाँ तुम्हारे लिए एक चिन्ह है। {यदि तुम बैतलहम जाओ,} तो वहाँ तुम एक शिशु को कपड़े की पट्टियों में लिपटा हुआ और पशुओं के चारा खाने के स्थान में लेटा हुआ पाओगे।” 13 अचानक से स्वर्गदूतों का एक विशाल समूह दूसरे स्वर्गदूत के साथ स्वर्ग से प्रकट हुआ। वे सब के सब यह कहते हुए परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे, 14 “सारे स्वर्गदूत सबसे ऊँचे स्वर्ग पर परमेश्वर की स्तुति करो! और पृथ्वी पर उन सारे लोगों में {परमेश्वर के और एक दूसरे के साथ} शान्ति स्थापित हो जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं!” 15 जब स्वर्गदूत उनको छोड़कर और स्वर्ग को लौट गए, तो चरवाहों ने एक दूसरे से कहा, “हमें इसी समय बैतलहम को जाना चाहिए और इस आश्चर्यजनक बात को देखना चाहिए जो घटित हुई है, जिसके विषय में प्रभु ने हम को बताया है!” 16 अतः वे शीघ्रता से गए, और जब उनको {वह स्थान जहाँ} मरियम और यूसुफ {ठहरे हुए थे} मिल गया, तो उन्होंने शिशु को पशुओं के चारा खाने के स्थान में लेटा हुआ देखा। 17 उसको देख लेने के पश्चात, जो परमेश्वर ने उस शिशु के विषय में उन पर प्रकट किया था उन्होंने सब को बता दिया। 18 सभी लोग जो सुन रहे थे सोचने लगे कि जो चरवाहों ने उन्हें बताया वह अद्भुत था। 19 परन्तु मरियम ने इन सब बातों को ध्यानपूर्वक स्मरण किया और उनके विषय में लगातार विचार करती रही। 20 वे चरवाहे {जहाँ पर उनकी भेड़ें थीं उन मैदानों को} लौट गए। वे इस विषय में बातें करते रहे कि परमेश्वर कितना महान है और उन सब बातों के लिए उसकी स्तुति करते रहे जो उन्होंने सुनीं और देखी थीं। सारी बातें ठीक उसी प्रकार से हुईं जैसे कि उस स्वर्गदूत ने उनके होने के लिए बताया था। 21 उस शिशु के जन्म लेने के पश्चात आठवें दिन, उन्होंने उसका खतना किया और उसका नाम यीशु रखा। यह वही नाम था जो उस स्वर्गदूत ने मरियम के उसका गर्भ धारण करने से पूर्व ही उसे देने के लिए उनको बोला था। 22 मरियम और यूसुफ ने उतने दिनों तक प्रतीक्षा की जितने संस्कारिक रीति से शिशु को जन्म देने के उपरान्त उसके फिर से शुद्ध होने के लिए मूसा की व्यवस्था में आवश्यक थे। फिर वे उसे लेकर यरूशलेम को आए ताकि वे उसे प्रभु के लिए {मंदिर में} समर्पित करें। 23 उन्होंने यह प्रभु की व्यवस्था का आज्ञापालन करने के लिये किया, जो कहता है, कि जितने पहिलौठे नर संतान उत्पन्न हों, तू उन सभी को प्रभु के लिए पृथक करना।" 24 वहाँ उन्होंने बलिदान चढ़ाया जिसे नए जन्मे पुत्र के माता-पिता को चढ़ाने के लिए प्रभु की व्यवस्था कहती है, “दो पण्‍डुक, या कबूतर के दो बच्चे।” 25 उस समय पर वहां यरूशलेम में एक व्यक्ति था जिसका नाम शमौन था। वह वही करता था जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता था और परमेश्वर की व्यवस्था का पालन किया करता था। वह इस्राएल के लोगों को प्रोत्साहित करने हेतु परमेश्वर द्वारा मसीह को भेजने की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहा था। पवित्र आत्मा उसे निर्देशित कर रहा था। 26 पवित्र आत्मा ने पहले से ही उस पर यह प्रकट किया हुआ था कि उसके मरने से पूर्व, प्रभु अपने मसीह को भेजेगा और वह उसे देखने पाएगा। 27 अतः पवित्र आत्मा ने शमौन की मंदिर के आँगन में जाने के लिए अगुवाई की। उस समय पर वह वहीं पर उपस्थित था जब यूसुफ और मरियम शिशु यीशु को लेकर आए ताकि वे उसके लिए उस संस्कार को कर सकें जिसकी आज्ञा परमेश्वर ने व्यवस्था में दी हुई है। 28 {जब शमौन ने यीशु को देखा तो,} उसने उसे अपनी गोद में उठाया और परमेश्वर का धन्यवाद दिया, और फिर उसने कहा, 29 “हे प्रभु, तूने मेरे साथ किए हुए अपने वायदे को पूरा किया है, और अब मैं तुझ से संतुष्ट हूँ कि मुझे मरने दे। 30 क्योंकि मैंने उस जन को देख लिया है जिसे तूने लोगों को बचाने के लिए भेजा है, 31 वह जन जिसे तू ने सब लोगों के देखने के लिए तैयार किया है। 32 वह एक ऐसे उजियाले के समान होगा जो तेरे सत्य को दूसरी जातियों पर उजागर करेगा। वह यह प्रकट करेगा कि तेरी प्रजा, इस्राएल के लिए तेरी योजना कितनी महिमामय है।” 33 जो बातें शमौन ने यीशु के विषय में कहीं उन पर उसके माता और पिता विस्मित हो गए। 34 फिर शमौन ने उनको आशीषित किया, और यीशु की माता, मरियम से कहा, “जो मैं कहता हूँ उस पर अच्छे से ध्यान देः परमेश्वर ने यह निर्धारित किया है कि, इस बालक के कारण, इस्राएल में रहने वाले बहुत से लोग परमेश्वर को अस्वीकार कर देंगे और बहुत से स्वयं को परमेश्वर के अधीन कर देंगे। वह {परमेश्वर की ओर से} एक ऐसा चिन्ह ठहरेगा जिसका बहुत से लोग विरोध करेंगे। 35 जहाँ तक तुम्हारी बात है, {लोग उसके साथ जिन क्रूर कामों को करेंगे वह तुम को इतना दुःखी कर देगा कि} यह ऐसा लगेगा कि जैसे कोई तलवार तुम्हारी अन्तरात्मा को छेद रही है। {परन्तु यह इसलिए आवश्यक है} ताकि वह बहुत से लोगों के गुप्त विचारों को उजागर कर सके।” 36 वहाँ {मंदिर के आँगन में} हन्नाह नाम की एक भविष्यद्वक्तिनी भी उपस्थित थी। वह बहुत वृद्ध थी। वह फनूएल की पुत्री थी, जो आशेर के गोत्र का था। एक युवती के रूप में, वह विवाह में सात वर्ष तक रही थी, {और फिर उसके पति की मृत्यु हो गई थी}। 37 उसके पश्चात, वह 84 वर्षों से अधिक से विधवा के रूप में रह रही थी। ऐसा लगता था कि जैसे वह सर्वदा मंदिर में ही रहा करती थी, और रात और दिन {हर समय} उपवास और प्रार्थना करते हुए परमेश्वर की आराधना किया करती थी। 38 उसी समय पर, हन्नाह {यूसुफ और मरियम और शिशु के पास} पहुँची। हन्नाह {उस शिशु के लिए} परमेश्वर का धन्यवाद देने लगी। तत्पश्चात, वह कई अन्य लोगों से यीशु के विषय में बातें करती रही जो साथ ही उस मसीहा की {परमेश्वर के द्वारा भेजने की} प्रतीक्षा कर रहे थे जो इस्राएल के लोगों को स्वतंत्र करेगा। 39 यूसुफ और मरियम के उन सब कामों को समाप्त कर लेने के पश्चात जो प्रभु की व्यवस्था के अनुसार {प्रथम पुत्र के माता-पिता के लिए} आवश्यक थे, वे गलील प्रान्त में स्थित अपने नगर, नासरत को लौट गए। 40 जैसे-जैसे वह बालक बढ़ता गया, वह बलवन्त और अत्यन्त बुद्धिमान होता गया, और परमेश्वर उसके जीवन में उपस्थित था। 41 प्रत्येक वर्ष यीशु के माता-पिता फसह का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम की यात्रा किया करते थे। 42 अतः जब यीशु 12 वर्ष की आयु का था, तब उन सब ने इकट्ठे होकर यरूशलेम की यात्रा की जब {फसह के} पर्व का समय था। 43 जब पर्व को मनाने के दिन समाप्त हो गए, तो यीशु के माता-पिता घर लौटने लगे, परन्तु उनका पुत्र, यीशु, पीछे यरूशलेम में ही रह गया। उसके माता-पिता यह नहीं जानते थे {कि वह अभी भी वहीं पर था}। 44 उन्होंने सोचा कि वह उन अन्य लोगों के साथ होगा जो उनके साथ यात्रा कर रहे थे। परन्तु एक दिन चलने के पश्चात, उन्होंने उसे अपने कुटुम्बियों और मित्रों के मध्य में खोजना आरम्भ किया। 45 जब वह उनको नहीं मिला, तो वे उसे ढूँढ़ने के लिए यरूशलेम को लौट गए। 46 {मरियम और यूसुफ के यरूशलेम से निकल जाने के} तीन दिनों के पश्चात, यीशु उनको मंदिर में मिला। वह यहूदी धार्मिक शिक्षकों के मध्य में बैठा हुआ था। वह उनको शिक्षा देते हुए सुन रहा था और वह उनसे प्रश्न भी पूछ रहा था। 47 सभी लोग जिन्होंने उसकी बातें सुनीं, जो उसने कही थीं वे इस बात से अचम्भित थे कि उसने कितनी अच्छी तरह से समझ लिया और उसने कितनी अच्छी तरह {शिक्षकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों} का उत्तर दिया। 48 जब उसके माता-पिता ने उसे देखा, तो वे बहुत चकित हुए। उसकी माता ने उससे कहा, “हे मेरे पुत्र, तुझे हमारे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। मेरे बात सुन! तेरी खोज करते हुए तेरा पिता और मैं बहुत चिन्तित थे!” 49 उसने उनसे कहा, "मैं अचम्भित हूँ कि तुम्हें मेरी खोज करने की आवश्यकता पड़ी। मैंने सोचा था कि तुम जानते होंगे कि मुझे {उसके विषय में जानने के लिए} अपने पिता के घर पर रहना आवश्यक है।” 50 परन्तु जो कुछ उसने उनसे कहा उसका अर्थ वे नहीं समझ पाए। 51 फिर वह उनके साथ नासरत को लौट गया, और वह सर्वदा उनकी बातों को मानता रहा। जो घटित हुआ था, उन सब बातों के विषय में उसकी माता गहराई से सोचती रही। 52 जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए, यीशु समझदार होता गया, और वह कद में भी बढ़ता गया। परमेश्वर और लोग भी उसको अधिकाधिक पसंद करने लगे।

Chapter 3

1 {इतिहास का यह अगला भाग उस समय घटित हुआ} जब तिबिरियुस कैसर को {रोमी साम्राज्य} पर शासन करते हुए लगभग पन्द्रह वर्ष हो गए थे। उस समय पर, पुन्तियुस पिलातुस यहूदिया प्रान्त का राज्यपाल था, और हेरोदेस अन्तिपास गलील जिले पर शासन कर रहा था, और उसका भाई फिलिप्पुस इतूरैया और त्रखोनीतिस के क्षेत्रों पर शासन कर रहा था, और अबिलेने क्षेत्र पर लिसानियास शासन कर रहा था। 2 {यरूशलेम के मंदिर में} हन्ना और कैफा महायाजक थे। उस समय के दौरान, परमेश्वर ने जकर्याह के पुत्र यूहन्ना से निर्जन क्षेत्र में बात की {उस समय वह वहीं रहा करता था}। 3 यूहन्ना ने यरदन नदी के आसपास के सम्पूर्ण इलाके में यात्रा की। {जो लोग उसकी सुनने के लिए उसके पास आए उन पर} वह घोषणा करता गया, “यदि तुम चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करे, तो तुम को जीवन जीने की अनुचित रीतियों को अस्वीकार करना होगा। तब मैं तुम को बपतिस्मा दूँगा!” 4 {जब यूहन्ना ने इस प्रकार से प्रचार किया तो,} वह बातें सच हो गईं जो यशायाह भविष्यद्वक्ता ने बहुत समय पहले एक पुस्तक में लिखी थींः “निर्जन क्षेत्र में, कोई जन {लोगों को} पुकार रहा होगा: ‘प्रभु को स्वीकार करने के लिए स्वयं को तैयार करो! उसके आगमन के समय के लिए स्वयं को तैयार करो!’ 5 {जब कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति किसी विशेष सड़क से होकर आने वाला हो तो,} लोग सब गड्ढों को भर देते हैं और सब उभरे हुए स्थानों को समतल कर देते हैं। वे उस सड़क को सीधी कर देते हैं जो कहीं से भी टेढ़ी-मेढ़ी हो, और वे सब बाधाओं को चिकना कर देते हैं। {इसी प्रकार से, परमेश्वर यह सुनिश्चित करेगा कि कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो मसीह के लिए तैयार हैं।} 6 तब हर एक जन लोगों को बचाने के परमेश्वर के मार्ग को जान लेगा।” 7 लोगों के बड़े समूह निकल कर {उस निर्जन स्थान पर जहाँ यूहन्ना था} आ रहे थे ताकि वह उनको बपतिस्मा दे। अतः यूहन्ना ने उनसे कहा, “तुम लोग विषैले साँपों के समान डरपोक और खतरनाक हो! तुम ऐसा विचार रखते हो कि यदि मैं तुम को बपतिस्मा दे दूँ, तो जब परमेश्वर पापियों को दण्ड देगा तब वह तुम को छोड़ देगा। {परन्तु मैंने ऐसा नहीं कहा!} 8 तुम को उन कामों को करने की आवश्यकता है जिससे प्रकट हो कि तुम ने अपने पिछले पापपूर्ण जीवन जीने के तरीके को वास्तव में अस्वीकार कर दिया है! और स्वयं से यह कहना भी आरम्भ न करो कि, ‘{निश्चित रूप से परमेश्वर हमें इसलिए दण्ड नहीं देगा, क्योंकि} हम अब्राहम के वंशज हैं!’ {यह परमेश्वर को प्रभावित नहीं करता है।} मैं तुम को आश्वस्त करता हूँ, कि परमेश्वर इन पत्थरों को अब्राहम के वंशजों में परिवर्तित कर सकता है! 9 तुम ऐसे फल वाले वृक्षों के समान हो जो अच्छा फल उत्पन्न नहीं करते। परमेश्वर उस मनुष्य के समान है जो अपनी कुल्हाड़ी का मुँह उन पेड़ों की जड़ पर रखता है, और उन्हें काटकर आग में फेंकने के लिए तैयार है। यदि तुम लगातार पाप करते रहे तो परमेश्वर भी तुम को इस रीति से दण्ड देने के लिए तैयार है।” 10 तब भीड़ {में से कई लोगों} ने उससे पूछा, “तो परमेश्वर किस प्रकार के कामों को चाहता है कि हम करें?” 11 उसने उनको उत्तर दिया, “यदि तुम में से किसी के पास दो कुरते हों, तो तुम को उनमें से एक उसे दे देना चाहिए जिसके पास एक भी कुरता नहीं है। यदि तुम में से किसी के पास बहुतायत से भोजन है, तो जिनके पास नहीं है तुम को उन्हें कुछ भोजन दे देना चाहिए।” 12 कुछ चुंगी लेने वाले भी आए, जो चाहते थे कि यूहन्ना उनको बपतिस्मा दे। उन्होंने उससे पूछा, “हे गुरु, क्या करें {जो परमेश्वर हम से चाहता है}?” 13 उसने उनसे कहा, “जितना धन रोमी सरकार {लोगों से} वसूलने के लिए तुम से कहती है उससे ज्यादा अधिक मत वसूलो!” 14 वहाँ कुछ ऐसे पुरुष भी थे जो सैनिक थे। यहाँ तक कि वे उससे पूछने लगे, “और हमारे विषय में क्या? परमेश्वर क्या चाहता है कि हम करें?” उसने उनसे कहा, "लोगों को हानि पहुँचाने की धमकी देकर या उन पर {कुछ अनुचित करने का} झूठा आरोप लगाकर तुम्हें धन देने के लिए विवश मत करो। एक सैनिक के रूप में तुम जितना धन कमाते हो उससे संतुष्ट रहो।” 15 लोग प्रतीक्षा कर रहे थे {बहुत लम्बे समय से मसीह के आने की। परन्तु अब वे यूहन्ना को लेकर काफी आशान्वित हो रहे थे}। उन्हें लगता था कि वह मसीह हो सकता है। 16 परन्तु उन सब से यूहन्ना ने कहा, “{मैं मसीह नहीं हूँ।} वह आ रहा है, और वह मुझ से बहुत बढ़कर है। वह इतना महान है कि मैं उस दास की तरह बनने के योग्य भी नहीं हूँ कि {जब वह घर में आए तो} उसके जूतों के फीते खोल पाए! जब मैंने तुम्हें बपतिस्मा दिया, तो मैंने केवल पानी का उपयोग किया। परन्तु {जब मसीह आएगा तो,} वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा, जो तुम्हारा न्याय करेगा और तुम्हें शुद्ध करेगा। 17 {मसीह इसे उसी प्रकार से करने के लिए तैयार है, जिस प्रकार से} एक किसान अपने सूप का उपयोग करने के लिए तैयार होता है। किसान अच्छे गेहूँ को अनुपयोगी भूसे से अलग करता है। वह गेहूँ को सावधानीपूर्वक भण्डार में रखता है, परन्तु भूसे को वह उसके भस्म हो जाने तक जलाता है। {यह दर्शाता है कि कैसे मसीह उन लोगों को इकट्ठा करेगा जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, और वह उन लोगों को दण्ड देगा जो परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं।}” 18 इस प्रकार के बहुत से विभिन्न तरीकों के द्वारा, यूहन्ना ने लोगों से {पाप करना बंद कर देने और स्वयं को परमेश्वर के अधीन करने के लिए} आग्रह किया, जब वह उन्हें {परमेश्वर की ओर से} शुभ सन्देश सुनाए जा रहा था। 19 यहाँ तक कि यूहन्ना ने राजा हेरोदेस को बहुत सारे दुष्ट कामों के लिए फटकार भी लगाई जो हेरोदेस ने किए थे। परन्तु जब यूहन्ना ने हेरोदेस को अपने भाई की पत्नी हेरोदियास से विवाह करने के लिये फटकार लगाई, जबकि उसका भाई जीवित ही था, 20 तो हेरोदेस ने एक और दुष्ट काम किया। उसने अपने सैनिकों से कहकर यूहन्ना को बंदीगृह में डाल दिया। 21 परन्तु हेरोदेस के ऐसा करने से पूर्व ही, जब यूहन्ना बहुत से लोगों को बपतिस्मा दे ही रहा था, तब यूहन्ना ने यीशु को भी बपतिस्मा दिया। तत्पश्चात, जब यीशु प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया। 22 तब पवित्र आत्मा, एक कबूतर के रूप में उतरा और यीशु पर ठहर गया। तब परमेश्वर ने स्वर्ग से {यीशु से} बात की। उसने कहा, “तू मेरा एकलौता पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रेम करता हूँ। मैं तुझ से अति प्रसन्न हूँ!" 23 उसी समय पर यीशु ने परमेश्वर के लिए अपने कार्य को आरम्भ किया। वह लगभग 30 वर्ष की आयु का था। यह यीशु की वंशावली हैः लोग यीशु को यूसुफ का पुत्र समझते थे। यूसुफ एली का पुत्र था। 24 एली मत्तात का पुत्र था। मत्तात लेवी का पुत्र था। लेवी मलकी का पुत्र था। मलकी यन्ना का पुत्र था। यन्ना यूसुफ का पुत्र था। 25 यूसुफ मत्तित्याह का पुत्र था। मत्तित्याह आमोस का पुत्र था। आमोस नहूम का पुत्र था। नहूम असल्याह का पुत्र था। असल्याह नग्‍गई का पुत्र था। 26 नग्‍गई मात का पुत्र था। मात मत्तित्याह का पुत्र था। मत्तित्याह शिमी का पुत्र था। शिमी योसेख का पुत्र था। योसेख योदाह का पुत्र था। 27 योदाह यूहन्ना का पुत्र था। यूहन्ना रेसा का पुत्र था। रेसा जरुब्बाबेल का पुत्र था। जरुब्बाबेल शालतीएल का पुत्र था। शालतीएल नेरी का पुत्र था। 28 नेरी मलकी का पुत्र था। मलकी अद्दी का पुत्र था। अद्दी कोसाम का पुत्र था। कोसाम एल्‍मदाम का पुत्र था। एल्‍मदाम एर का पुत्र था। 29 एर येशू का पुत्र था। येशू एलीएजेर का पुत्र था। एलीएजेर योरीम का पुत्र था। योरीम मत्तात का पुत्र था। मत्तात लेवी का पुत्र था। 30 लेवी शमौन का पुत्र था। शमौन यहूदा का पुत्र था। यहूदा यूसुफ का पुत्र था। यूसुफ योनान का पुत्र था। योनान एलयाकीम का पुत्र था। 31 एलयाकीम मलेआह का पुत्र था। मलेआह मिन्नाह का पुत्र था। मिन्नाह मत्तता का पुत्र था। मत्तता नातान का पुत्र था। नातान दाऊद का पुत्र था। 32 दाऊद यिशै का पुत्र था। यिशै ओबेद का पुत्र था। ओबेद बोअज का पुत्र था। बोअज सलमोन का पुत्र था। सलमोन नहशोन का पुत्र था। 33 नहशोन अम्मीनादाब का पुत्र था। अम्मीनादाब अदमीन का पुत्र था। अदमीन अरनी का पुत्र था। अरनी हेस्रोन का पुत्र था। हेस्रोन पेरेस का पुत्र था। पेरेस यहूदा का पुत्र था। 34 यहूदा याकूब का पुत्र था। याकूब इसहाक का पुत्र था। इसहाक अब्राहम का पुत्र था। अब्राहम तेरह का पुत्र था। तेरह नाहोर का पुत्र था। 35 नाहोर सरूग का पुत्र था। सरूग रऊ का पुत्र था। रऊ पेलेग का पुत्र था। पेलेग एबेर का पुत्र था। एबेर शिलह का पुत्र था। 36 शिलह केनान का पुत्र था। केनान अरफक्षद का पुत्र था। अरफक्षद शेम का पुत्र था। शेम नूह का पुत्र था। नूह लेमेक का पुत्र था। 37 लेमेक मथूशिलह का पुत्र था। मथूशिलह हनोक का पुत्र था। हनोक यिरिद का पुत्र था। यिरिद महललेल का पुत्र था। महललेल केनान का पुत्र था। 38 केनान एनोश का पुत्र था। एनोश शेत का पुत्र था। शेत आदम का पुत्र था। आदम परमेश्वर से उत्पन्न हुआ था।

Chapter 4

1 यूहन्ना के उसे बपतिस्मा देने के पश्चात, यीशु यरदन नदी से बाहर निकल कर वापस आया। पवित्र आत्मा उसे पूर्णरूप से सशक्त कर रहा था। फिर पवित्र आत्मा उसे जंगल में ले गया। 2 यीशु 40 दिनों तक जंगल में रहा। वह जिस समय पर वहाँ पर था, शैतान लगातार उसकी परीक्षा करता रहा। उस सम्पूर्ण समय के दौरान, यीशु ने कुछ भी नहीं खाया। अतः जब 40 दिन बीत गए, तो उसे बहुत भूख लगी। 3 तब शैतान ने यीशु से कहा, “यदि तू सच में परमेश्वर का पुत्र है, तो इस पत्थर को आदेश दे कि रोटी बन जाए {तेरे खाने के लिए}!” 4 यीशु ने उत्तर दिया, “{नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि} पवित्रशास्त्र कहता है, ‘मनुष्यों को जीवित रहने के लिए केवल रोटी से भी बढ़कर कुछ और चाहिए।’” 5 फिर शैतान यीशु को {एक ऊँचे पर्वत के शिखर पर} ऊपर ले गया और पल भर में उसे संसार के सारे देश दिखा दिए। 6 तब शैतान ने यीशु से कहा, “मैं तुझे इन सारे देशों पर शासक बना दूँगा और तू उनकी सारी सम्पदा का अधिकारी होगा। मैं ऐसा कर सकता हूँ क्योंकि परमेश्वर ने मुझे इन सब को नियंत्रित करने की अनुमति प्रदान की है, और इसलिए मैं जिस किसी को भी चाहूँ उसे मैं दे सकता हूँ। 7 तुझे केवल इतना ही करना है कि झुककर मुझे दंडवत कर। फिर मैं तुझे उन सब पर शासन करने दूँगा!” 8 परन्तु यीशु ने उत्तर दिया, “{नहीं, मैं तुझे दंडवत नहीं करूँगा, क्योंकि} पवित्रशास्त्र कहता है, ‘तू केवल प्रभु अपने परमेश्वर को दंडवत करना। केवल वही एकमात्र है जिसकी तुझे सेवा करनी है!’” 9 फिर शैतान यीशु को यरूशलेम ले गया। उसने उसे मंदिर के सबसे ऊँचे भाग पर बैठा दिया और उससे कहा, “यदि तू सच में परमेश्वर का पुत्र है, तो यहाँ से नीचे कूद जा। 10 तुझे चोट नहीं लगेगी, क्योंकि पवित्रशास्त्र कहता है, ‘परमेश्वर तेरी रक्षा करने के लिए अपने स्वर्गदूतों को आदेश देगा।’ 11 और पवित्रशास्त्र यह भी कहता है, ‘जब तू गिरेगा स्वर्गदूत तुझे अपने हाथों में उठा लेंगे, ताकि तुझे चोट न लगे।’” 12 परन्तु यीशु ने उत्तर दिया, “{नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि} पवित्रशास्त्र यह भी कहता है: ‘प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न लेना’।” 13 अतः शैतान ने इन सभी तरीकों के द्वारा यीशु की परीक्षा करने का प्रयास करना समाप्त कर लिया, तो उसके पश्चात, शैतान किसी अन्य समय की प्रतीक्षा करने के लिए यीशु के पास से चला गया {जब वह फिर से यीशु की परीक्षा करने का प्रयास कर पाए}। 14 इसके पश्चात, यीशु {उस निर्जन इलाके को छोड़कर और} गलील जिले में लौट आया। पवित्र आत्मा उसे सशक्त कर रहा था। उस सम्पूर्ण प्रदेश में, लोगों ने यीशु के विषय में सुना और उसके विषय में अन्यों को भी बताया। 15 वह लोगों को उनके यहूदी सभास्थलों में शिक्षा दिया करता था। {जिसके परिणामस्वरूप,} सभी लोग उसकी प्रशंसा किया करते थे। 16 फिर यीशु नासरत नगर को गया, जहाँ पर वह पला-बढ़ा था। जैसा कि वह आमतौर पर यहूदियों के विश्रामदिन पर किया करता था, वह यहूदियों के सभास्थल पर गया। {उचित समय पर,} वह {शास्त्रों में से कुछ ऊँचे स्वर से} पढ़ने के लिए खड़ा हुआ। 17 {यीशु उन कुछ वचनों को पढ़ना चाहता था जो} यशायाह भविष्यवक्ता {ने बहुत पहले बोले थे। इसलिए उसने} उस पुस्तक को माँगा जिसमें ये वचन लिखे हुए थे, और एक आराधनालय के सेवक ने उसे वह थमा दी। यीशु ने उस पुस्तक को खोला और उस स्थान पर गया जहाँ से वह पढ़ना चाहता था। {और उसने ये वचन पढ़े:} 18 “प्रभु का आत्मा मुझे सशक्त कर रहा है, क्योंकि उसने विशेष रूप से मुझे उन लोगों पर परमेश्वर के शुभ सन्देश की घोषणा करने के लिए नियुक्त किया है जो दीन हैं। उसने मुझे इसलिए भेजा है कि जो बंदीगृह में हैं उन लोगों पर घोषणा करूँ कि वे स्वतंत्र किए जाएँगे, और जो अंधे हैं उनको बताऊँ कि वे फिर से देखने पाएँगे। उसने मुझे इसलिए भेजा है कि उन लोगों को छुड़ाऊँ जिनको अन्य लोग कुचल रहे हैं, 19 और घोषणा करूँ कि यह वह समय है जब परमेश्वर लोगों के प्रति कृपालु रूप से व्यवहार करेगा। 20 तब उसने पुस्तक को बंद कर दिया और सेवक को वापस दे दिया, और वह {लोगों को शिक्षा देने के लिए} बैठ गया। यहूदी सभास्थल में उपस्थित हर एक जन उसे बड़े ध्यानपूर्वक देख रहा था। 21 उसने उनको यह कहकर शिक्षा देना आरम्भ किया, “मैंने पवित्रशास्त्र के इस अनुच्छेद को अभी सच कर दिया है, जब तुम ने मुझे इसे पढ़ते हुए सुना।” 22 वहाँ पर उपस्थित सभी लोगों ने उसका अनुमोदन किया और वे उन अद्भुत बातों पर चकित हुए जो उसने कही थीं। उनमें से बहुतों ने एक दूसरे से कहा, "{यह आश्चर्य की बात है कि वह इस प्रकार से बोल सकता है!} यह व्यक्ति केवल यूसुफ का पुत्र ही तो है!" 23 उसने उनसे कहा, “निश्चित रूप से तुम में से कुछ लोग मुझ पर वह कहावत उद्धृत करेंगे जो कहती है, ‘हे वैद्य, स्वयं को चंगा कर!’ {इस बात से तुम्हारा अर्थ यह होगा कि, ‘लोगों ने हम से कहा है कि} तूने कफरनहूम नगर में चमत्कार किए थे। {यदि तू चाहता है कि हम विश्वास करें कि तू एक भविष्यद्वक्ता है, तो} उसी प्रकार के चमत्कारों को यहाँ अपने गृहनगर में भी कर!’” 24 फिर उसने कहा, “यह निश्चित रूप से सत्य है कि भविष्यद्वक्ता के स्वयं के गृहनगर में रहने वाले लोग यह स्वीकार नहीं करते कि वह एक भविष्यद्वक्ता है। 25 इस विषय में विचार करो: जब एलिय्याह भविष्यद्वक्ता जीवित था वहां उस समय के दौरान इस्राएल में बहुत सी विधवाएँ थीं। उस समय वहां तीन वर्ष और छः महीने तक वर्षा नहीं हुई। इससे पूरे देश में चारों ओर भयंकर अकाल पड़ा। 26 तौभी परमेश्वर ने एलिय्याह को इस्राएल में रहने वाली किसी विधवा की सहायता करने के लिए नहीं भेजा। बजाए इसके, परमेश्वर ने उसे सीदोन नगर के निकट के कस्बे सारपत में भेजा, कि वहाँ एक {गैर-इस्राएली} विधवा की सहायता करे। 27 जब एलीशा भविष्यद्वक्ता जीवित था वहाँ उस समय पर भी इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे। परन्तु एलीशा ने उनमें से किसी को भी चंगा नहीं किया। बजाए इसके, उसने केवल नामान को चंगा किया, जो सीरिया देश का रहने वाला {एक गैर-इस्राएली व्यक्ति} था।” 28 जब यहूदी सभास्थल में उपस्थित सब लोगों ने उसे इन बातों को कहते हुए सुना, तो वे अत्यन्त क्रोधित हो गए। 29 इसलिए उन्होंने खड़े होकर यीशु को पकड़ लिया, और उसे घसीटते हुए नगर से बाहर ले गए। वे उसे उनके नगर के बाहर की चट्टान के छोर पर लेकर गए ताकि उसे चट्टान पर से फेंक दें और उसे मार डालें। 30 परन्तु यीशु भीड़ में से होकर सरलता से निकल गया और दूर चला गया। 31 वहाँ से यीशु कफरनहूम को चला गया, जो गलील जिले के एक नगर था। प्रत्येक यहूदी विश्रामदिन पर, वह {वहाँ के यहूदी सभास्थल में} लोगों को शिक्षा दिया करता था। 32 जिन बातों की शिक्षा यीशु ने लोगों को दी उन्होंने उनको विस्मित कर दिया, क्योंकि वह ऐसे व्यक्ति के समान बोला करता था जो जानता हो कि वह किस विषय में बोल रहा था। 33 उस समय वहां उस यहूदी सभास्थल में एक पुरुष था जिसे एक दुष्टात्मा नियंत्रित किया करती थी। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया, 34 “आह! हे नासरत के रहने वाले यीशु! तू हम से क्या चाहता है? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं जानता हूँ कि तू कौन है! तू परमेश्वर की ओर से आया पवित्र जन है!” 35 परन्तु यीशु ने उस दुष्टात्मा से कठोरतापूर्वक बात की। उसने कहा, “चुप रह और उसमें से बाहर निकल!” उस दुष्टात्मा से उस पुरुष को लोगों के मध्य में भूमि पर गिरा दिया। परन्तु फिर बिना उसे हानि पहुँचाए, वह उस पुरुष में से निकल गई। 36 {यहूदी सभास्थल में उपस्थित} सभी लोग विस्मित हो गए। उनमें से बहुतों ने एक दूसरे से कहा, "हम ने कभी भी ऐसा कुछ नहीं देखा! उसके शब्द बहुत सामर्थी हैं! वह दुष्टात्माओं को ऐसे आदेश देता है जैसे कि उन्हें उसकी आज्ञा माननी पड़ेगी, और {जब वह उन्हें आज्ञा देता है तो,} वे {लोगों में से} निकल जाती हैं!" 37 आसपास के सम्पूर्ण क्षेत्र में हर जगह, लोग यीशु के किए हुए कार्यों की चर्चा करते रहे। 38 तब यीशु यहूदियों के सभास्थल से निकल गया और शमौन नाम के एक मनुष्य के घर गया। वहाँ पर उसकी सास थी वह बीमार थी और उसे बहुत तेज बुखार था। वहाँ पर लोगों ने यीशु से उसे चंगा करने के लिए कहा। 39 अतः जहाँ वह थी, यीशु उस स्थान पर जाकर उसके पास खड़ा हो गया। उसने बुखार को उसे छोड़ देने की आज्ञा दी, और उसने ऐसा किया! वह तुरन्त उठ खड़ी हुई और उन्हें कुछ खाना परोसा। 40 जब सूर्य ढलने लगा, {जिससे यहूदियों का विश्रामदिन समाप्त हो गया}, तो बहुत से लोग जिनके मित्र और कुटुम्बी विभिन्न रोगों से बीमार थे उनको यीशु के पास लेकर आए। उसने अपने हाथों को उनमें से प्रत्येक पर रखकर उनको चंगा किया। 41 {जब यीशु ने अपने हाथों को उन बीमार लोगों पर रखा तो,} उनमें से बहुतों में से दुष्टात्माएँ भी निकल गईं। {जब दुष्टात्माएँ निकलीं तो,} वे {यीशु पर} चिल्लाईं, “तू परमेश्वर का पुत्र है!” परन्तु उसने उन दुष्टात्माओं को लोगों को उसके विषय में न बताने के लिए आदेश दिया, क्योंकि वे जानती थीं कि वही मसीह था। 42 अगली सुबह बड़ी भोर में, यीशु निकल कर एक निर्जन स्थान पर चला गया। लोगों की भीड़ भी उसे ढूँढ़ने के लिए निकल पड़ी। जब वे वहाँ पहुँचे जहाँ पर वह था, तो उन्होंने उसे उनके पास से जाने से रोकने का प्रयास किया। 43 परन्तु यीशु ने उनसे कहा, “मुझे दूसरे नगरों में रहने वाले लोगों को भी यह शुभ सन्देश बताने जाना चाहिए कि उनके जीवन पर शासन करने के लिए वे परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने मुझे यहाँ ऐसा ही करने के लिए भेजा है। 44 अतः वह सम्पूर्ण यहूदिया प्रान्त के यहूदी सभास्थलों में प्रचार करता गया।

Chapter 5

1 एक दिन जब यीशु के आसपास बहुत से लोगों की भीड़ इकट्ठा थी और उसे परमेश्वर के सन्देश की शिक्षा देते हुए सुन रही थी, उस समय वह गन्नेसरत की झील के किनारे पर खड़ा हुआ था। 2 उसने वहाँ झील के छोर पर मछली पकड़ने की दो नावों को देखा। मछुवारे उन नावों को छोड़कर अपने मछली पकड़ने के जालों को धो रहे थे। 3 उन दो नावों में से एक पर यीशु चढ़ गया, जो कि शमौन की थी। यीशु ने उससे नाव को तट से थोड़ा दूर हटा लेने का निवेदन किया। फिर यीशु नाव पर बैठ गया और वहाँ से उस भीड़ को शिक्षा देने लगा। 4 जब उसने शिक्षा देना समाप्त कर लिया, तो उसके पश्चात उसने शमौन से कहा, “अपनी नाव को गहरे पानी में ले चल और मछली पकड़ने के लिए अपने जालों को पानी में डाल।” 5 शमौन ने उत्तर दिया, “हे स्वामी, हम ने पूरी रातभर कठिन परिश्रम किया और तब पर भी हम ने कोई भी मछली नहीं पकड़ी। परन्तु मैं फिर से अपने जालों को डालूँगा क्योंकि तूने मुझ से ऐसा करने को कहा है।” 6 अतः शमौन और उसके साथियों ने अपने जालों को डाला और उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में मछलियाँ पकड़ीं कि उनके जाल फटने लगे। 7 उन्होंने दूसरी नाव में सवार अपने मछली पकड़ने वाले भागीदारों को संकेत किया कि आकर उनकी सहायता करें। अतः उन्होंने आकर दोनों नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने लगीं। 8 यह देखकर, शमौन पतरस ने यीशु के सम्मुख घुटने टिकाकर कहा, “कृपया मेरे पास से चला जा, क्योंकि हे प्रभु, मैं एक पापी मनुष्य हूँ।” 9 {उसने ऐसा इसलिए कहा} क्योंकि बड़ी संख्या में जो मछलियाँ उन्होंने पकड़ी थीं वह उन पर अचम्भित हुआ। बाकी सब पुरुष जो उसके साथ थे वे भी अचम्भित हुए। 10 जब्दी के दोनों पुत्र, याकूब और यूहन्ना, जो शमौन के भागीदार थे, अत्यन्त विस्मित हुए। परन्तु यीशु ने शमौन से कहा, “भयभीत मत हो! {अब तक तूने मछलियों को इकट्ठा किया है, परन्तु} अब से मेरे चेले होने के लिए तू लोगों को इकट्ठा किया करेगा।” 11 अतः जब वे पुरुष नावों को तट पर ले आए, तो उसके पश्चात उन्होंने अपने मछली पकड़ने के व्यवसाय को और बाकी सब कुछ को त्याग दिया और यीशु के साथ हो लिए। 12 यीशु पास के नगरों में से एक में गया। वहाँ एक व्यक्ति था जो एक चमड़ी की बीमारी से ढँपा हुआ था। जब उसने यीशु को देखा, तो उसने उसके सम्मुख भूमि पर घुटने टिकाकर उसे दंडवत किया। उसने उससे याचना की, “हे प्रभु, {कृपा करके मुझे चंगा कर!} मैं जानता हूँ कि यदि तू इच्छुक हो तो तू मुझे चंगा करने में सक्षम है!” 13 फिर यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर उस व्यक्ति को छू लिया। उसने कहा, “मैं तुझे चंगा करने के लिए इच्छुक हूँ, और मैं अभी तुझे चंगा करता हूँ!” तुरन्त ही वह व्यक्ति चंगा हो गया। अब उसे कोढ़ नहीं रहा।! 14 तब यीशु ने उससे कहा, “किसी से भी न कहना कि मैंने तुझे चंगा किया है। सबसे पहले, जाकर स्वयं को किसी याजक को दिखा ताकि वह तेरी जाँच करे और देखे कि अब तुझे कोढ़ नहीं है। संस्कारिक रूप से फिर से शुद्ध होने के लिए वह बलिदान लेकर आ जिसे चढ़ाने की आज्ञा मूसा ने तुम्हें दी है।” 15 परन्तु बजाए इसके {यीशु ने उस पुरुष को कैसे चंगा किया था इसके विषय में} और अधिक लोगों ने सुन लिया। इसके परिणामस्वरूप, बहुत बड़ी भीड़ इसलिए आई कि {यीशु को शिक्षा देते हुए} सुने और वह उनको उनके रोगों से चंगा करे। 16 परन्तु वह अक्सर उनके पास से दूर निर्जन स्थानों में चला जाता और प्रार्थना करता था। 17 एक दिन जब यीशु शिक्षा दे रहा था, तो फरीसी पंथ में से कुछ पुरुष और यहूदी व्यवस्था के कुछ विशेषज्ञ शिक्षक पास में बैठे हुए थे। वे गलील जिले के बहुत से गाँवों से और यरूशलेम से और यहूदिया प्रान्त के अन्य नगरों से आए थे। उसी समय पर, प्रभु लोगों को चंगा करने की सामर्थ यीशु को प्रदान कर रहे थे। 18 जिस समय यीशु वहाँ पर था, कुछ लोग एक मनुष्य को लेकर आए जो लकवाग्रस्त था। एक बिछौने पर {वे उस मनुष्य को उठाए हुए थे} और उसे उस घर में ले जाकर यीशु के आगे लिटाने का प्रयास कर रहे थे। 19 परन्तु क्योंकि वहाँ पर घर में लोगों की इतनी बड़ी भीड़ थी, कि वे उसे भीतर लेकर जाने में समर्थ नहीं थे। इसलिए वे {बाहर की सीढ़ियों से} ऊपर समतल छत पर चढ़ गए। {उन्होंने एक छेद बनाने के लिए छत की कुछ खपरैलों को हटा दिया।} फिर उन्होंने उस मनुष्य को उसके बिछौने पर लेटे हुए ही उस छेद के माध्यम से {भीड़ के} बीच में उतार दिया। वह ठीक यीशु के सामने नीचे उतर गया। 20 जब यीशु ने यह जान लिया कि उन्होंने यह विश्वास किया है कि वह उस मनुष्य को चंगा कर सकता है, तो उसने उससे कहा, “हे मित्र, मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ!” 21 व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी आपस में विचार करने लगे, “ऐसा कहने के द्वारा यह मनुष्य परमेश्वर का तिरस्कार करता है! परमेश्वर के अलावा कोई भी पापों को क्षमा नहीं कर सकता है!” 22 यीशु जानता था कि वे क्या विचार कर रहे थे। इसलिए उसने उनसे कहा, “मैंने जो कहा है उस पर तुम को आपस में प्रश्न नहीं करना चाहिए! 23 यहाँ पर कुछ ऐसा हुआ है जिसके विषय में मैं चाहता हूँ कि तुम ध्यानपूर्वक विचार करो। क्या कहना सरल है, ‘मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ,’ या, ‘उठ जा और चल-फिर’? {तुम सोचोगे कि यह कहना ‘मैं तेरे पापों को क्षमा करता हूँ’ सरल है क्योंकि इसमें किसी दृश्यमान प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।} 24 परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि परमेश्वर ने मुझे, मनुष्य के पुत्र को, पृथ्वी पर लोगों को उनके पापों को क्षमा करने का अधिकार प्रदान किया है। {इसे प्रदर्शित करने के लिए, मैं इस मनुष्य को उठने के लिए भी कहूँगा।}" फिर उसने उस व्यक्ति से जो लकवाग्रस्त था कहा, "मैं तुझ से कहता हूँ, उठ जा, अपना बिछौना उठा ले, और घर चला जा!" 25 तुरन्त ही {वह मनुष्य चंगा हो गया!} वह उन सब के सामने ही उठ खड़ा हुआ। उसने उस बिछौने को उठाया जिस पर वह लेटा हुआ था, और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ, वह घर चला गया। 26 वहाँ उपस्थित सभी लोग स्तब्ध रह गए! उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और {जो उन्होंने यीशु को करते हुए देखा था उस पर} वे पूर्ण रूप से अचम्भित थे। वे कहते रहे, “हम ने आज अद्भुत बातें देखी हैं!” 27 फिर यीशु ने उस स्थान को छोड़ दिया और उसने लेवी नाम के एक मनुष्य को देखा जो {रोमी सरकार के लिए} चुंगी वसूला करता था। वह चौकी पर बैठा हुआ था {जहाँ सरकार को आवश्यक करों का भुगतान करने के लिए लोग आया करते थे}। यीशु ने उससे कहा, “मेरे साथ आ और मेरा चेला हो जा!” 28 अतः लेवी अपने काम को छोड़ कर यीशु के साथ हो लिया। 29 बाद में लेवी ने अपने घर में यीशु {और उसके चेलों} के लिए एक बड़ा भोज तैयार किया। वहाँ पर चुंगी लेने वाले और अन्य लोगों का एक बड़ा समूह था जो उनके साथ भोजन कर रहा था। 30 तब कुछ लोगों ने जो फरीसी पंथ के थे, और उनमें कुछ यहूदी व्यवस्था के सिखाने वाले भी सम्मिलित थे, यीशु के चेलों से शिकायत की। उन्होंने कहा, “तुम को चुंगी लेने वालों और {अन्य} पापियों के साथ खाना-पीना नहीं चाहिए।” 31 तब यीशु ने उनसे कहा, “जो लोग स्वस्थ हैं उनको वैद्य की आवश्यकता नहीं है। जो लोग बीमार हैं उनको वैद्य की आवश्यकता है। 32 उसी प्रकार से, मैं स्वर्ग से उन लोगों को आमंत्रित करने के लिए नहीं आया हूँ जो समझते हैं कि वे मेरे पास आने के लिए धर्मी हैं। इसके विपरीत, मैं उन लोगों को आमंत्रित करने के लिए आया हूँ जो जानते हैं कि वे पापी हैं और वे अपने पापी व्यवहार से फिर कर मेरे पास आते हैं।” 33 उन यहूदी अगुवों ने यीशु को प्रत्युत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के चेले अक्सर भोजन से दूर रहते हैं और प्रार्थना करते हैं। फरीसियों के चेले भी ऐसा ही करते हैं। परन्तु तेरे चेले खाते और पीते रहते हैं! वे दूसरों की तरह उपवास क्यों नहीं करते?” 34 यीशु ने उत्तर दिया, "कोई भी दूल्हे के मित्रों को उस समय उपवास करने के लिए नहीं कहता है जब शादी का जश्न अभी चल ही रहा हो! 35 लेकिन किसी दिन दूल्हा अपने मित्रों के साथ नहीं रहेगा। तब, उस समय पर, वे भोजन से दूर रहेंगे।” 36 फिर यीशु ने समझाने के लिए दूसरे उदाहरण भी दिए कि उसका अर्थ क्या है। उसने कहा, “लोग कभी भी नए वस्त्र में से कपड़े का एक टुकड़ा फाड़कर उसे पुराने वस्त्र में नहीं जोड़ते हैं कि उसे ठीक करें। यदि उन्होंने ऐसा किया, तो वे नए वस्त्र को फाड़ने के द्वारा उसे नष्ट कर देंगे, और नए वस्त्र से निकला कपड़े का टुकड़ा पुराने वस्त्र से मेल नहीं खाएगा। 37 और कोई भी नई निचोड़ी हुई मदिरा को {उसका भण्डारण करने के लिए} पुरानी चमड़े की थैलियों में नहीं भरता। यदि किसी ने ऐसा किया, तो चमड़े की थैलियाँ फट जाएँगी {क्योंकि जब नई मदिरा उफनेगी और फैलेगी तो उनमें खिंचाव नहीं होगा}। तब वे चमड़े की थैलियाँ बेकार हो जाएँगी, और मदिरा {भी बेकार हो जाएगी क्योंकि वह} बह जाएगी। 38 इसके विपरीत, नई मदिरा को नई चमड़े की थैलियों में भरना चाहिए। 39 वे जिन्होंने केवल पुरानी मदिरा को पिया है वे नई मदिरा को नहीं चखना चाहते, क्योंकि वे सोचते हैं कि, ‘पुरानी मदिरा ही काफी अच्छी है!’”

Chapter 6

1 एक सब्त के दिन, जब यीशु और उसके चेले गेहूँ के खेतों में से होकर जा रहे थे, तो उसके चेलों ने कुछ गेहूँ की बालें तोड़ लीं। उन्होंने उनको अपने हाथों से मल लिया कि गेहूँ को भूसी से अलग करें। फिर उन्होंने गेहूँ को खा लिया। 2 कुछ फरीसी {यह देख रहे थे। वे} {उनसे} बोले, “तुम को इस प्रकार का काम नहीं करना चाहिए! हमारी व्यवस्था हमें सब्त के दिन काम करने से मना करती है!” 3 यीशु ने उन फरीसियों को प्रत्युत्तर दिया, “ध्यान दो कि पवित्रशास्त्र उस विषय में क्या कहता है जो दाऊद ने किया था जब वह और जो पुरुष उसके साथ थे भूखे थे। 4 जैसा कि तुम जानते हो, दाऊद ने तम्बू में प्रवेश किया {और कुछ खाना माँगा}। याजक ने उसे वह रोटी दी जो परमेश्वर के सामने रखी गई थी। दाऊद ने कुछ खाई, और उसने कुछ उन पुरुषों को भी दी जो उसके साथ थे, यद्यपि व्यवस्था कहती थी कि वे ऐसा नहीं कर सकते थे। केवल याजक ही उस रोटी को खा सकते थे।” 5 यीशु ने उनसे यह भी कहा, "मुझ, मनुष्य के पुत्र, के पास सब्त के दिन {लोगों के लिए क्या करना सही है यह निर्धारित करने का} अधिकार है!" 6 एक अन्य सब्त के दिन पर यीशु आराधनालय में गया और {लोगों को} शिक्षा देने लगा। वहाँ पर एक मनुष्य था जो अपने दाहिने हाथ को हिला नहीं सकता था। 7 यहूदी व्यवस्था के कुछ शिक्षक और कुछ फरीसी {वहाँ उपस्थित थे। वे} यीशु को ध्यानपूर्वक देख रहे थे। वे देखना चाहते थे कि क्या वह उस व्यक्ति को चंगा करेगा या नहीं। यदि उसने किया, तो वे उस पर {सब्त के दिन काम न करने के विषय में उनकी व्यवस्था की अवहेलना करने का} आरोप लगाते। 8 परन्तु जो वे सोच रहे थे वह यीशु जानता था। इसलिए उसने सूखे हाथ वाले व्यक्ति से कहा, “आ और यहाँ सब के सामने खड़ा हो जा!” अतः वह व्यक्ति उठ कर वहाँ खड़ा हो गया। 9 तब यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। जो व्यवस्था परमेश्वर ने मूसा को दी है क्या वह सब्त के दिन लोगों का भला करने की आज्ञा देती है, या हानि करने की? क्या वह लोगों को सब्त के दिन किसी जीवन को बचाने की आज्ञा देती है, या उसका नाश करने की?” 10 {किसी ने उसे उत्तर नहीं दिया, इसलिए} उसने चारों ओर उन सब को देखा और फिर उस व्यक्ति से कहा, “अपने सूखे हाथ को बढ़ा!” उस व्यक्ति ने वैसा ही किया, और उसका हाथ फिर से पूरी तरह से ठीक हो गया! 11 परन्तु धार्मिक अगुवे बहुत क्रोधित हो गए, और वे एक दूसरे से इस विषय में चर्चा करने लगे कि वे यीशु {से छुटकारा पाने} के लिए क्या करें। 12 उसी समय के आसपास, यीशु प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ पूरी रात उसने परमेश्वर से प्रार्थना की। 13 अगले दिन उसने अपने सारे चेलों को अपने पास बुलाया। उनमें से उसने 12 को चुना और उन्हें प्रेरित बना दिया। 14 {उनके नाम ये हैं:} शमौन, जिसका नया नाम यीशु ने पतरस रखा था; पतरस का भाई, अन्द्रियास; याकूब और उसका भाई, यूहन्ना; फिलिप्पुस; बरतुल्मै; 15 मत्ती, {जिसका दूसरा नाम लेवी थी}; थोमा; याकूब नाम का दूसरा व्यक्ति जिसके पिता का नाम हलफई था; शमौन जेलोतेस; 16 यहूदा, जो याकूब नाम के एक अलग व्यक्ति का पुत्र था; और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में यीशु को धोखा दिया था। 17 यीशु अपने चेलों के साथ पहाड़ पर से उतर आया और एक समतल क्षेत्र में खड़ा हो गया। वहाँ पर उसके चेलों की एक बहुत बड़ी भीड़ थी। वहाँ पर ऐसे लोगों का भी एक बहुत बड़ा समूह था जो यरूशलेम से और यहूदिया क्षेत्र में स्थित बहुत से अन्य स्थानों से, और सोर और सीदोन नगरों के पास के समुद्रीतट वाले क्षेत्रों से आए थे। 18 वे यीशु को {उन्हें शिक्षा देते हुए} सुनने और उनको उनकी बीमारियों से चंगा कर देने के लिए आए थे। उसने उन लोगों को भी चंगा किया जिनको दुष्टात्माओं ने परेशान किया हुआ था। 19 भीड़ में उपस्थित हर एक जन ने उसे छू लेने का प्रयास किया, क्योंकि वह अपनी सामर्थ से हर एक जन को चंगा कर रहा था। 20 फिर उसने अपने चेलों की ओर देखा और कहा, “यह तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है जो दीन हो, क्योंकि तुम पर परमेश्वर शासन करता है। 21 यह तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है जो अभी भूखे हैं, क्योंकि परमेश्वर तुम्हें वह सब कुछ देगा जिसकी तुम्हें आवश्यकता है। यह तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है जो अभी शोक कर रहे हैं, क्योंकि परमेश्वर किसी दिन तुम्हें आनन्द से हँसाएँगे। 22 यह बहुत अच्छा है जब दूसरे लोग तुम से द्वेष करते हैं, जब वे तुम को अस्वीकार करते हैं और तुम्हारा तिरस्कार करते हैं और कहते हैं कि तुम इसलिए बुरे हो क्योंकि तुम मेरे, अर्थात मनुष्य के पुत्र के पीछे चलते हो। 23 जब ऐसा घटित हो, तो आनन्दित होना! ऊपर और नीचे इसलिए कूदना क्योंकि तुम बहुत प्रसन्न हो! ध्यान रखो कि परमेश्वर तुम को स्वर्ग में एक बड़ा पुरस्कार देने जा रहा है! यह मत भूलो कि जो लोग तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, उनके पूर्वजों ने {बहुत पहले} परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं के साथ ऐसे ही काम किए थे। 24 परन्तु जो धनवान हैं तुम्हारे लिए यह कितना दुःखद है। तुम को वह सारी सुविधा {पहले ही} {तुम्हारे धन से} मिल चुकी है जो तुम को मिलने वाली है। 25 तुम्हारे लिए यह कितना दुःखद है जो इस समय पर स्वयं को भोजन से परिपूर्ण कर सकते हैं। बाद में तुम भूखे ही रह जाओगे। धिक्कार है उन पर जो इस समय पर हँस रहे हैं। बाद में तुम बहुत ही अप्रसन्न रहोगे। 26 तुम्हारे लिए यह कितना दुःखद है कि जब हर एक जन तुम्हारे विषय में भली बातें कहता है। इसी रीति से, उनके पूर्वज भी उन लोगों के बारे में भली बातें कहा करते थे जो परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता होने का झूठा दावा करते थे। 27 परन्तु मैं तुम में से प्रत्येक से यह कहता हूँ जो मेरी बात सुन रहे हैं: अपने शत्रुओं से प्रेम करो, {केवल अपने मित्रों से ही नहीं}! जो तुम से द्वेष रखते हैं उनके लिए भले काम करो! 28 जो लोग तुम को शाप देते हैं, उन्हें आशीष देने के लिए परमेश्वर से विनती करो! जो तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं उनके लिए प्रार्थना करो! 29 यदि कोई जन तुम्हारे एक गाल पर मारे {या ऐसा करके तुम्हारा तिरस्कार करे}, तो अपना मुँह घुमा लो ताकि वह दूसरे गाल पर भी मार सके। यदि कोई तुम्हारा कोट छीनना चाहता हो, तो उसे तुम्हारी कमीज भी लेने दो। 30 उन सब को कुछ न कुछ दो जो तुम से माँगते हैं। यदि कोई तुम्हारी वस्तुएँ ले लेता है, तो उसे उन्हें वापस करने के लिए न बोलना। 31 जिस प्रकार से तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे प्रति व्यवहार करें, उसी प्रकार से तुम को भी उनके प्रति व्यवहार करना चाहिए। 32 यदि तुम {केवल} उनसे प्रेम करते हो जो तुम से प्रेम करते हैं, तो ऐसा करने के लिए परमेश्वर से अपेक्षा मत करना कि तुम को पुरस्कार देगा। यहाँ तक कि पापी लोग भी उनसे ही प्रेम करते हैं जो उनसे प्रेम करते हैं। 33 परमेश्वर से अपेक्षा मत करना कि तुम को इसलिए पुरस्कार देगा क्योंकि तुम उन लोगों के लिए अच्छे काम करते हो जो तुम्हारे लिए अच्छे काम करते हैं। अन्ततः, पापी लोग भी ऐसा करते हैं। 34 यदि तुम केवल उन्हीं को {धन या सम्पत्ति} उधार देते हो जो उसे तुम को वापस कर देंगे, तो ऐसा करने के लिए परमेश्वर से अपेक्षा मत करना कि तुम को पुरस्कार देगा। यहाँ तक कि पापी लोग भी उन दूसरे पापियों को उधार देते हैं जो उन्हें सब कुछ वापस कर देंगे। 35 बजाए इसके, अपने शत्रुओं से प्रेम करो! उनके लिए भले काम करो! उन्हें उधार दो, और उनसे कुछ भी वापस भुगतान करने की अपेक्षा न करो! तब परमेश्वर तुम को बहुत बड़ा पुरस्कार देगा। और तुम परम प्रधान परमेश्वर की सन्तान ठहरोगे, क्योंकि परमेश्वर उन लोगों पर भी दया करता है जो कृतघ्न और दुष्ट हैं। 36 इसलिए तुम को दूसरे लोगों के प्रति वैसे ही दयापूर्ण रीति से व्यवहार करना चाहिए, जिस प्रकार से परमेश्वर, तुम्हारा पिता, लोगों के प्रति दयापूर्ण रीति से व्यवहार करता है। 37 {अन्य लोगों की} कड़ी आलोचना न करो। तब परमेश्वर भी तुम्हारी कड़ी आलोचना नहीं करेगा। {अन्य लोगों पर} दोष न लगाओ। तब परमेश्वर भी तुम पर दोष नहीं लगाएगा। {जो अनुचित काम दूसरों ने तुम्हारे साथ किए हैं उनके लिए उनको} क्षमा करो। तब परमेश्वर भी तुम को क्षमा करेगा। 38 {दूसरों को} दिया करो। तब परमेश्वर भी तुम को देगा। यह कुछ ऐसा होगा जैसे कि तुम्हारे पास जो बरतन है उसमें जितना सम्भव हो उतना अनाज वह तुम को देने का प्रयास कर रहा है। वह अनाज को नीचे दबाएगा। वह इसे एक साथ हिलाएगा। वह उस बरतन को तब तक भरता रहेगा जब तक कि वह उमड़ने न लग जाए। इसलिए जब तुम दूसरों को देते हो, तो वह ऐसा होना चाहिए जैसे कि तुम एक बड़े करछे का उपयोग कर रहे हो, क्योंकि परमेश्वर भी तुम को देने के लिए उसी आकार के करछे का उपयोग करेगा।” 39 उसने अपने चेलों को यह उदाहरण भी दिया: “एक अंधे व्यक्ति को {सड़क पर} दूसरे अंधे व्यक्ति की अगुवाई करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यदि उसने की, तो वे दोनों ही {सड़क के किनारे के} गड्ढे में गिर पड़ेंगे! 40 कोई चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं होता। परन्तु एक बार जब गुरु ने उसे प्रशिक्षण देना समाप्त कर दिया, तो वह अपने गुरु के समान हो जाएगा। 41 {तुम में से किसी को भी दूसरे व्यक्ति की छोटी-छोटी त्रुटियों के विषय में चिंतित नहीं होना चाहिए। तुम को अपनी स्वयं की गम्भीर त्रुटियों के विषय में चिंतित होना चाहिए।} अन्यथा, यह उस व्यक्ति की आँख में पड़े एक तिनके पर ध्यान देने जैसा होगा, जबकि अपनी स्वयं की आँख में पड़े लकड़ी के एक बड़े लट्ठे पर ध्यान नहीं देते हो। 42 तुम्हें किसी दूसरे विश्वासी से यह नहीं कहना चाहिए, ‘हे मित्र, आओ मैं तुम्हारी त्रुटियों को सुधारने में तुम्हारी सहायता करूँ’, जबकि तुम ने अभी तक अपनी त्रुटियों का समाधान नहीं किया है। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम एक पाखण्डी हो! तुम को पहले {स्वयं के अपने पापों को करना बंद कर देना चाहिए। यह ऐसा होगा जैसे} अपनी ही स्वयं की आँख से एक बड़ा लट्ठा निकाल देना। तब, इसके परिणामस्वरूप, तुम्हारे पास वह आत्मिक अंतर्दृष्टि होगी जिसकी तुम को दूसरों की आँखों की {छोटी-छोटी त्रुटियाँ जो ऐसी हैं जो} छोटे-छोटे तिनकों से उनको छुटकारा पाने में सहायता करने के लिए आवश्यकता है। 43 हर एक व्यक्ति जानता है कि स्वस्थ पेड़ बुरा फल उत्पन्न नहीं करते हैं और अस्वस्थ पेड़ अच्छा फल उत्पन्न नहीं करते हैं। 44 उन कामों के द्वारा जो वे करते हैं तुम यह बता सकते हो कि कोई व्यक्ति भीतर से कैसा है। {तब तुम जानते हो कि उनसे क्या अपेक्षा करनी है। तुम किसी ऐसे व्यक्ति से दयाभाव की या अच्छी सलाह की खोज नहीं करोगे जो बुरे काम करता है।} यह एक कंटीली झाड़ी पर अंजीर की खोज करने या एक झड़बेरी पर अंगूर की खोज करने के समान होगा। 45 भले लोग इसलिए भले काम करते हैं क्योंकि वे भली बातें सोचते हैं। दुष्ट लोग इसलिए दुष्ट काम करते हैं क्योंकि वे दुष्ट बातें सोचते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग उसके आधार पर बोलते और व्यवहार करते हैं जिस विषय में वे सोच रहे होते हैं।” 46 {यीशु ने लोगों से कहा,} “जो मैं तुम को करने के लिए कहता हूँ जब तुम उसका आज्ञापालन नहीं करते हो तो तुम मुझे ‘प्रभु’ क्यों कहते हो? 47 मैं तुम को बताता हूँ कि जो लोग मेरे पास आते हैं, मेरी शिक्षाओं को सुनते हैं, और उनका पालन करते हैं, वे किसके समान हैं। 48 ऐसे लोग उस व्यक्ति के समान हैं जिसने अपना घर बनाने की तैयारी में भूमि में गहरी खुदाई की। उसने ठोस चट्टान पर (घर के लिए) नींव बनाना सुनिश्चित किया। तब वहां बाढ़ आई। पानी की धार उस घर पर लगी। परन्तु वह उसे नाश नहीं कर पाई, क्योंकि उस व्यक्ति ने उस घर को ठोस चट्टान पर बनाया था। 49 परन्तु कुछ लोग जो मेरी शिक्षाओं को सुन कर उनका पालन नहीं करते हैं। वे उस व्यक्ति के समान हैं जो सर्वप्रथम नींव की खुदाई किए बिना भूमि के ऊपर घर को बनाता है। जब बाढ़ का पानी आया, तो वह तुरन्त ही गिर पड़ा। पानी ने उस घर को पूर्ण रूप से नाश कर दिया।”

Chapter 7

1 जब यीशु ने इन सब बातों को उन लोगों से कहना समाप्त कर लिया जो सुन रहे थे, उसके पश्चात वह कफरनहूम नगर को चला गया। 2 उस नगर में रोमी सेना में नियुक्त एक सूबेदार था जिसका एक दास था जो उसे प्रिय था। वह दास इतना बीमार था कि वह बस मरने पर ही था। 3 जब उस सूबेदार ने यीशु के विषय में सुना, तो उसने कुछ यहूदी पुरनियों को यीशु के पास भेजा कि आकर उसके दास को चंगा करने के लिए उससे विनती करें। 4 जब वे यीशु के पास पहुँचे, तो उन्होंने आग्रहपूर्वक {सूबेदार के दास की सहायता करने के लिए} यीशु से विनती की। उन्होंने कहा, “वह इस योग्य है कि तू उसके लिए ऐसा करे, 5 क्योंकि वह हमारे लोगों से प्रेम करता है और उसने हमारे लिए हमारे आराधनालय का निर्माण भी करवाया है।” 6 अतः यीशु उनके साथ {उस अधिकारी के घर} चला गया। जब वह लगभग वहाँ पहुँच ही गया था, तब उस अधिकारी ने कुछ मित्रों को यीशु के पास यह सन्देश देने के लिए भेजा: “हे प्रभु, {यहाँ आने के लिए} परेशान मत हो, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि तुझे अपने घर में बुलाऊँ। 7 इसी कारण से मुझे नहीं लगा कि मैं व्यक्तिगत रूप से तेरे पास आने के योग्य भी हूँ। मैं जानता हूँ कि तू मेरे प्रिय दास को केवल बोलने {आदेश देने} के द्वारा भी चंगा कर सकता है। 8 {मैं जानता हूँ कि तू ऐसा कर सकता है} क्योंकि मैं स्वयं एक ऐसा मनुष्य हूँ जिसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का पालन करना पड़ता है। मेरे पास भी सैनिक हैं जिनको मेरे आदेशों का पालन करना पड़ता है। जब मैं उनमें से एक से कहता हूँ कि, ‘चला जा!’ तो वह जाता है। जब मैं किसी दूसरे से कहता हूँ कि, ‘आ जा!’ तो वह आ जाता है। जब मैं अपने दास से कहता हूँ कि, ‘यह कर!’ तो वह उसे करता है।” 9 उस अधिकारी ने जो कहा था जब यीशु ने वह सुना, तो वह उस पर अचम्भित हुआ। तब जो भीड़ उसके साथ थी उसने उनकी ओर घूम कर कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैं किसी ऐसे इस्राएली से नहीं मिला जो मुझ पर इतना भरोसा करता हो जितना कि यह अन्यजाति व्यक्ति करता है!” 10 जो मित्र सूबेदार के पास से आए थे जब वे उसके घर लौटे, तो उन्होंने पाया कि वह दास फिर से पूर्णरूप से स्वस्थ है। 11 इसके तुरन्त बाद यीशु ने नाईन नगर की यात्रा की। उसके चेले और एक बड़ी भीड़ उसके साथ गई। 12 जब यीशु नगर के द्वार के पास पहुँचा, तो उसने नगर में से एक बड़ी भीड़ को बाहर निकलते हुए देखा। एक व्यक्ति की अभी-अभी मृत्यु हुई थी, और वे उसे उठाकर गाड़ने के लिए बाहर ले जा रहे थे। भीड़ में उसकी माता भी थी। वह एक विधवा थी, और वह उसका एकलौता पुत्र था। {जब वह जीवित था तो वही उसकी देखभाल करता था।} 13 जब यीशु ने उसे देखा, तो उसने उस पर तरस खाकर और उससे कहा, “मत रो!” 14 तब वह {उनके पास} आया और उस अर्थी को छुआ {जिस पर वह शव रखा हुआ था}। जो पुरुष उसे उठाए हुए थे वे ठहर कर खड़े हो गए। उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ जा!” 15 तब वह व्यक्ति जो मर गया था उठ बैठा और बोलने लगा, और यीशु उसे उसकी माँ के पास ले गया। 16 वहाँ उपस्थित सब लोग अवाक रह गए। उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की और {एक दूसरे से} कहा, “हमारे मध्य में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता आया है!” और “परमेश्वर अपने लोगों की चिन्ता करने के लिए आया है!” 17 तब {जो} यीशु {ने किया था} के विषय में यह समाचार सम्पूर्ण यहूदिया क्षेत्र में और आसपास के अन्य सब इलाकों में फैल गया। 18 यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के चेलों ने इन सब बातों के विषय में उसे बताया। इसलिए यूहन्ना ने अपने दो चेलों को बुलाया और उनको प्रभु के पास जाने के लिए कहा कि उससे पूछें: "क्या तू वही है जिसके लिए परमेश्वर ने वादा किया था कि वह आएगा, या हम किसी अन्य की अपेक्षा करें?” 19-20 जब वे दोनों पुरुष यीशु के पास आए, तो उन्होंने उसे बताया, “यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने हमें तुझ से पूछने के लिए भेजा है कि, ‘क्या तू वही है जिसके लिए परमेश्वर ने वादा किया था कि वह आएगा? या हम किसी अन्य की प्रतीक्षा करें?’” 21 उसी समय पर यीशु बहुत से लोगों को उनके रोगों और गम्भीर बीमारियों से चंगा कर रहा था, और वह उनको दुष्टात्माओं से छुटकारा प्रदान कर रहा था। उसने बहुत से अंधे लोगों को भी फिर से देखने की क्षमता प्रदान की। 22 अतः उसने उन दोनों पुरुषों को उत्तर दिया, “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है और वापस जाकर यूहन्ना को सूचित करो। जो लोग अंधे थे वे अब देख पा रहे हैं। जो लोग लंगड़े थे वे अब चल-फिर रहे हैं। जिन लोगों को चमड़ी की बीमारियाँ थीं वह अब उनमें नहीं रहीं। जो लोग बहरे थे वे अब सुन पा रहे हैं। जो लोग मर गए थे वे जीवित हो गए हैं। मैं कंगालों पर शुभ सन्देश की घोषणा कर रहा हूँ।” 23 {और उससे यह भी कहो,} “परमेश्वर हर उस जन को आशीष देगा जो {वह देखता है जो मैं करता हूँ और वह सुनता है जो मैं सिखाता हूँ और} मुझ पर विश्वास करना जारी रखता है।” 24 जिनको यूहन्ना ने भेजा था जब वे पुरुष चले गए, तो यीशु लोगों की भीड़ से यूहन्ना के विषय में बात करने लगा। उसने कहा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए किसी पौधे के पतले डंठल को? 25 परन्तु तुम बाहर क्या देखने गए थे? क्या मनोहर वस्त्र पहने हुए किसी मनुष्य को? सुनो, वे जो उत्कृष्ट वस्त्र धारण करते हैं और जिनके पास सब कुछ उत्तम है वे राजाओं के महलों में रहते हैं। 26 फिर तुम वहाँ बाहर क्या देखने गए थे? किसी भविष्यद्वक्ता को? हाँ, {यूहन्ना वही है}! परन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि यूहन्ना किसी साधारण भविष्यद्वक्ता से भी अधिक महत्वपूर्ण है। 27 यह वही है जिसके विषय में भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले यह लिखा था, ‘देख, मैं अपने सन्देशवाहक को तेरे आगे-आगे भेजता हूँ। वह तेरे आगमन के लिए लोगों को तैयार करेगा।’ 28 मैं तुम से कहता हूँ कि जितने लोग अब तक जीवित रहे, उनमें से यूहन्ना से अधिक बढ़कर कोई भी नहीं है। तौभी सबसे तुच्छ लोग जिनके जीवन में परमेश्वर शासन करता है वे यूहन्ना से अधिक बढ़कर हैं।” 29 जब उन सभी लोगों ने जिन्हें यूहन्ना ने बपतिस्मा दिया था, जो यीशु ने कहा था उसे सुना—चुंगी लेने वालों समेत—तो वे सहमत हुए कि परमेश्वर ने {यूहन्ना को भेजकर} सही काम किया है। 30 परन्तु फरीसियों और यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञों ने, जिन्हें यूहन्ना ने बपतिस्मा नहीं दिया था, उनके लिए परमेश्वर की इच्छा को अस्वीकार कर दिया। 31 {तब यीशु ने यह भी कहा, “मैं तुम को बताऊँगा कि} इस समयकाल में रहने वाले तुम लोग किसके समान हो। 32 तुम खुले मैदान में खेल खेलने वाले बच्चों के समान हो। वे यह कहकर एक दूसरे को पुकारते हैं, ‘हम ने तुम्हारे लिए बाँसुरी पर आनन्द का संगीत बजाया, परन्तु तुम नाचे नहीं! फिर हम ने तुम्हारे लिए अंतिम संस्कार के दुःखद गीत गाए, परन्तु तुम रोए नहीं!’ 33 इसी प्रकार से, जब यूहन्ना तुम्हारे पास आया और सामान्य भोजन नहीं खाया या दाखरस पिया, तो तुम ने {उसे अस्वीकार कर दिया और} कहा, 'उस पर एक दुष्टात्मा का नियंत्रण है!' 34 परन्तु जब मनुष्य का पुत्र तुम्हारे पास आया और उसने {साधारण भोजन} खाया और {दूसरों के समान ही दाखरस को} पिया, तो तुम ने {उसे अस्वीकार कर दिया और} कहा, 'देखो! यह मनुष्य बहुत अधिक भोजन खाता है और बहुत अधिक दाखरस पीता है, और वह चुंगी लेने वालों और अन्य पापियों के साथ मिलता-जुलता है!' 35 लेकिन जो लोग बुद्धिमान हैं वे स्वयं पहचानते हैं कि यूहन्ना और मैं जो करते हैं वह भी बुद्धिमानी है।” 36 एक दिन शमौन नाम के किसी एक फरीसी ने यीशु को अपने साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। अतः यीशु उस व्यक्ति के घर में गया और भोजन करने के लिए मेज़ पर बैठ गया। 37 वहां उस नगर में एक स्त्री भी थी जिसकी प्रतिष्ठा बुरी थी। जब उसने सुना कि यीशु उस फरीसी के घर में भोजन कर रहा है, तो एक पत्थर का पात्र जिसमें इत्र भरा था लेकर {वह वहाँ गई}। 38 {जब यीशु भोजन करने के लिए बैठा हुआ था, तो वह स्त्री उसके पीछे उसके पाँवों के पास खड़ी हो गई।} वह रो रही थी, और उसके आँसू यीशु के पाँवों पर गिर गए। वह लगातार अपने बालों से उसके पाँवों को पोंछती रही। वह उन्हें चूमती रही और इत्र से उनका अभिषेक करती रही। 39 जब उस फरीसी ने जिसने यीशु को आमंत्रित किया था यह देखा {जो वह स्त्री कर रही थी}, तो उसने सोचा, “यदि यह मनुष्य वास्तव में कोई भविष्यद्वक्ता होता, तो वह जानता होता कि यह स्त्री कौन है जो उसे छू रही है। वह जानता होता कि वह किस प्रकार की स्त्री है, क्योंकि वह तो एक पापिनी है।” 40 प्रत्युत्तर में, यीशु ने उस से कहा, “हे शमौन, एक बात है जो मैं तुझ से कहना चाहता हूँ।” उसने उत्तर दिया, "हे गुरु, वह क्या है?” 41 {यीशु ने उसे यह कहानी बताई:} “दो लोगों ने किसी मनुष्य से धन उधार लिया जिसका धन ब्याज पर देने का व्यवसाय था। उन लोगों में से एक पर उसके 500 चांदी के सिक्के उधार थे। दूसरे वाले पर उसके 50 चांदी के सिक्के उधार थे। 42 उन दोनों में से कोई भी अपना लिया हुआ उधार चुकाने में सक्षम नहीं था, इसलिए उस मनुष्य ने बहुत दयालुता से कहा कि उन दोनों को कुछ भी वापस नहीं करना है। इसलिए, उन दोनों पुरुषों में से कौन उस मनुष्य से अधिक प्रेम करेगा?” 43 शमौन ने उत्तर दिया, “मैं मानता हूँ कि जिसने उससे बड़ी रकम उधार ली थी वह उससे अधिक प्रेम करेगा।” यीशु ने उससे कहा, “तू सही है।” 44 तब उसने उस स्त्री की ओर घूम कर शमौन से कहा, “जो इस स्त्री ने किया है उसके विषय में विचार करो! जब मैंने तेरे घर में प्रवेश किया, {तो तूने वह नहीं किया जो मेजबान सामान्य रूप से पर अपने मेहमानों का स्वागत करने के लिए करते हैं।} तूने मुझे मेरे पाँवों को धोने के लिए थोडा-सा पानी तक नहीं दिया। परन्तु इस स्त्री ने अपने आँसुओं से मेरे पाँवों को धोया और अपने बालों से उनको पोंछा! 45 तूने चुम्बन से मुझे नमस्कार नहीं किया। परन्तु जिस क्षण से मैं भीतर आया हूँ, उसने मेरे पाँवों को चूमना बंद नहीं किया! 46 तूने जैतून के तेल से मेरे सिर का अभिषेक नहीं किया, परन्तु उसने सुगन्धित इत्र से मेरे पाँवों का अभिषेक किया है। 47 इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ कि परमेश्वर ने उसके बहुत से पाप क्षमा कर दिए हैं, और इसी कारण से वह मुझ से बहुत प्रेम करती है। परन्तु एक व्यक्ति जो सोचता है कि परमेश्वर को केवल कुछ पापों के लिए उसे क्षमा करना पड़ा है, तो वह मुझ से केवल थोड़ा ही प्रेम करेगा।” 48 तब यीशु ने उस स्त्री से कहा, “मैंने तेरे पापों को क्षमा कर दिया है।” 49 तब जो उसके साथ भोजन कर रहे थे, वे स्वयं आपस में कहने लगे, “यह मनुष्य कौन है, जो कहता है कि वह पापों को भी क्षमा कर सकता है?” 50 परन्तु यीशु ने उस स्त्री से कहा, “क्योंकि तूने मुझ पर विश्वास किया है, इसलिये परमेश्वर ने तुझे बचाया है। जब तू जाए तो परमेश्वर तुझे शान्ति प्रदान करे!”

Chapter 8

1 इसके पश्चात, यीशु और उसके बारह चेलों ने आसपास के विभिन्न नगरों और गाँवों में होकर यात्रा की। जब वे गए, तो यीशु ने लोगों पर प्रचार किया, और उनको यह शुभ सन्देश बताया कि उनके जीवनों पर शासन करने के लिए वे परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। 2 {उनके साथ यात्रा करती हुईं} कुछ ऐसी स्त्रियाँ भी थीं जिनको उसने दुष्टात्माओं से छुटकारा दिया था और बीमारियों से चंगा किया था। इनमें मरियम भी सम्मिलित थी जो मगदला गाँव की रहने वाली थी। यीशु ने सात दुष्टात्माओं को उसमें से निकल जाने के लिए विवश किया था। 3 {इन्हीं में से एक अन्य स्त्री} योअन्ना थी। वह खुज़ा की पत्नी थी, जो राजा हेरोदेस का एक भण्डारी था। सूसन्नाह और बहुत सी अन्य भी {इन्हीं स्त्रियों में सम्मिलित थीं}। वे यीशु और उसके चेलों का सहयोग करने के लिए अपने स्वयं के धन का उपयोग कर रही थीं। 4 एक दिन एक बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठा हो गई। यीशु को देखने के लिए लोग बहुत से अलग-अलग नगरों से यात्रा कर रहे थे। उसने उनको यह कहानी बताई: 5 “एक किसान कुछ गेहूँ के बीजों को बोने के लिए निकला। जब वह उनको मिट्टी पर छितरा रहा था, तो कुछ बीज कठोर मार्ग पर गिर गए। उन बीजों पर लोग चढ़ गए, और चिड़ियों ने उनको खा लिया। 6 कुछ बीज पत्थरों {की एक परत के ऊपर की उथली मिट्टी} पर गिरे। जब वे बीज बढ़े, तो पौधे इसलिए सूख गए क्योंकि उनकी जड़ें पत्थरों को पार करके नमी तक नहीं पहुँच पाईं। 7 कुछ बीज ऐसी भूमि पर गिरे जहाँ कंटीले पौधों ने अपने बीजों को छोड़ा हुआ था। वे नए कंटीले पौधे भी उन नन्हे गेहूँ के पौधों के साथ-साथ बढ़े। उन {बलवंत} कंटीले पौधों ने गेहूँ के पौधों को घेर लिया, इस कारण से गेहूँ सही से बढ़ नहीं पाया। 8 परन्तु कुछ गेहूँ के बीज उपजाऊ मिट्टी पर गिरे। वे इतने अच्छे से बढ़े कि उन्होंने एक ऐसी फसल उत्पन्न की जिसमें सौ गुना अधिक बीज थे।” इन बातों को कहने के पश्चात, यीशु ने भीड़ को पुकार कर कहा, “जो तुम ने मुझे अभी कहते हुए सुना है उसके विषय में तुम को बड़े ध्यान से विचार करना चाहिए!” 9 फिर यीशु के चेलों ने उससे पूछा, “उस कहानी का क्या अर्थ है?” 10 और उसने कहा, “परमेश्वर ने तुम को उस विषय में छिपी हुई बातों को जानने का सौभाग्य प्रदान किया है कि राजा के रूप में परमेश्वर किस प्रकार से शासन करेगा। परन्तु बाकी सब के लिए मैं केवल दृष्टान्तों में {बोलता हूँ}, ताकि, 'यद्यपि वे देखते हैं, तौभी वे न समझें, और यद्यपि वे सुनते हैं, तौभी वे न बूझें।' 11 अब, उस कहानी का अर्थ यह हैः वे बीज उन बातों को दर्शाते हैं जो परमेश्वर लोगों को समझाना चाहता है। 12 जो बीज मार्ग पर गिरे {यह दर्शाता है कि क्या होता है जब} परमेश्वर की ओर से आए सन्देश को लोग केवल सतही रूप से समझते हैं। इससे शैतान के लिए यह सरल हो जाता है कि वह आये और उस सन्देश को उनके मनों से निकाल ले जाए। इसके परिणामस्वरूप, वे उस पर विश्वास नहीं करते, और इसलिए परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता। 13 वह बीज जो पत्थर वाली भूमि पर गिरे {यह दर्शाता है कि क्या होता है जब} परमेश्वर की ओर से आए सन्देश को लोग सुनकर आनन्द के साथ ग्रहण तो कर लेते हैं, परन्तु वे स्वयं को गम्भीरतापूर्वक समर्पित नहीं करते हैं। वे केवल थोड़े समय के लिए विश्वास करते हैं। जैसे ही उन पर कठिन समय आता है, वे परमेश्वर पर भरोसा करना बन्द कर देते हैं। 14 वह बीज जो कंटीले पौधों के मध्य में गिरे {यह दर्शाता है कि उन कुछ अन्य लोगों के साथ क्या होता है} जो परमेश्वर की ओर से आए सन्देश को सुनते हैं। जब वे अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं, तो वे चिन्ताओं को, धन को, और इस जीवन के सुखों को उनके सम्पूर्ण ध्यान पर कब्जा करने की अनुमति दे देते हैं। जिसके परिणामस्वरूप, वे आत्मिक रूप से परिपक्व नहीं होते हैं। 15 परन्तु वह बीज जो उपजाऊ भूमि पर गिरे {यह दर्शाता है कि क्या होता है जब} परमेश्वर के विषय में सन्देश को लोग सुनते हैं और अत्यन्त निष्ठा से उसे ग्रहण करते हैं। वे एक दृढ़ समर्पण को करते हैं और क्योंकि वे उस समर्पण का पालन करते हैं इसलिए वे आत्मिक रूप से परिपक्व हो जाते हैं। 16 इस विषय में सोचो। जब लोग कोई दीया जलाते हैं, तो वे उसे टोकरी से नहीं ढाँप देते हैं। वे उसे खाट के नीचे नहीं रख देते हैं। बजाए इसके, वे उसे दीवट पर रखते हैं। इस प्रकार से हर एक जन जो कमरे में प्रवेश करते हुए उसके उजियाले से देख सकता है। 17 यह प्रदर्शित करता है कि किसी दिन हर एक जन वह सब कुछ देखने में सक्षम होगा जो अभी छिपा हुआ है। और किसी दिन हर एक जन वह सब कुछ खुले में देखने पाएगा जो अभी गुप्त में है। 18 इसलिए सुनिश्चित करो कि {जो मैं तुम को बताता हूँ} उसे तुम ध्यानपूर्वक सुन रहे हो, क्योंकि यदि कोई परमेश्वर के सत्य पर विश्वास करता है, तो परमेश्वर उसे और भी अधिक समझने में सक्षम करेगा। परन्तु यदि कोई परमेश्वर के सत्य पर विश्वास नहीं करता है, तो परमेश्वर उसे उन {छोटी-छोटी} बातों को भी नहीं समझने देगा जिनके लिए उसे लगता है कि वह समझ गया है।” 19 एक दिन यीशु की माता और उसके भाई उससे मिलने के लिए आए, परन्तु वे उसके निकट नहीं जा पाए क्योंकि {जिस घर में वह था उसके आसपास} वहाँ {बहुत} {बड़ी} भीड़ थी। 20 तब लोगों ने उससे कहा, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए हैं, तुझ से मिलना चाहते हैं।” 21 परन्तु उसने उनको प्रत्युत्तर दिया, “जो लोग परमेश्वर की ओर से आए हुए सन्देश को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं, वे ही मेरी माता और मेरे भाइयों के समान मुझे प्रिय हैं।” 22 किसी अन्य दिन पर यीशु अपने चेलों के साथ एक नाव पर चढ़ गया। उसने उनसे कहा, “मैं चाहता हूँ कि हम झील को पार करके दूसरी ओर जाएँ।” अतः उन्होंने झील के पार जाने के लिए जलयात्रा को आरम्भ किया। 23 परन्तु जब वे जलयात्रा कर रहे थे, तो यीशु को नींद आ गई। उसके पश्चात झील में एक प्रचण्ड आँधी उठी। शीघ्र ही वह नाव पानी से भर गई, और वे लोग जोखिम में थे। 24 अतः यीशु के चेले उसे जगाने के लिए उसके पास पहुँचे। उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी! हे स्वामी! हम सब के सब मरने पर हैं!” वह जाग उठा और उसने हवा को और हिंसक लहरों को डाँटा। हवा बहना बन्द हो गई, लहरें नाव से टकराना बन्द हो गईं और सब कुछ शान्त हो गया। 25 तब उसने उनसे कहा, “तुम लोगों ने तो ऐसे व्यवहार किया जैसे कि तुम्हारे पास विश्वास ही नहीं है!” {जो अभी-अभी हुआ था उसके कारण} चेले शंकित और विस्मित हो गए थे। वे एक दूसरे से पूछते रहे, “यीशु कौन हो सकता है? यहाँ तक कि वह हवाओं को और लहरों को भी नियंत्रित करने में सक्षम है, और वे उसकी आज्ञा मानते हैं।” 26 यीशु और उसके चेलों ने जलयात्रा को जारी रखा और वे उस क्षेत्र में आए जहाँ गिरासेनी लोग रहते थे। यह गलील जिले से झील के विपरीत दिशा पर स्थित था। 27 जब यीशु नाव से उतरकर भूमि पर आया, तो उस क्षेत्र के नगर का कोई एक मनुष्य उससे मिला। इस मनुष्य में दुष्टात्माएँ थीं। बहुत लम्बे समय से इस मनुष्य ने कपड़े नहीं पहने थे और वह घर में नहीं रहता था। बजाए इसके, वह कब्रों में रहता था। 28 जब उस मनुष्य ने यीशु को देखा, तो वह चिल्लाकर उसके सामने मुँह के बल लेट गया। वह चीखकर बोला, “हे यीशु, परम प्रधान परमेश्वर के पुत्र, तू मुझ से क्या चाहता है? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे पीड़ा न दे!” 29 {उस मनुष्य ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि} यीशु ने अभी-अभी उस दुष्टात्मा को उसमें से बाहर निकलने की आज्ञा दी थी। अतीत में, लोग उसे जंजीरों और बेड़ियों से बाँधकर उस पर कड़ा पहरा रखते थे। फिर भी, कई बार दुष्टात्मा अचानक उसे बलपूर्वक पकड़ लिया करता था। तब वह मनुष्य बंधनों को तोड़कर स्वतंत्र हो जाता, और वह दुष्टात्मा उसे जंगली स्थानों में भेज दिया करता था। 30 तब यीशु ने उससे पूछा, "तेरा नाम क्या है?" उस दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, "{मेरा नाम है} सेना।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कई दुष्टात्माओं ने उस मनुष्य में प्रवेश किया हुआ था। 31 वे दुष्टात्माएँ यीशु से विनती करती रहीं कि वह उन्हें उस गहरे गड्ढे में जाने की आज्ञा न दे जहाँ परमेश्वर दुष्टात्माओं को दण्ड देता है। 32 वहाँ पास की पहाड़ी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। दुष्टात्माओं ने यीशु से विनती की कि वह उन्हें सूअरों में प्रवेश करने की अनुमति दे, और उसने उन्हें अनुमति दे दी। 33 तब दुष्टात्माओं ने उस मनुष्य को छोड़ दिया और सूअरों में प्रवेश कर गईं, और सूअरों का वह झुण्ड खड़े किनारे पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब गया। 34 जो घटित हुआ था जब वह उन लोगों ने देखा जो सूअरों की देखरेख कर रहे थे, तो वे भाग खड़े हुए! उन्होंने अपने आसपास रहने वाले सब लोगों को जो कुछ उन्होंने देखा था उसकी सूचना दी। 35 तब जो घटित हुआ था उसे देखने के लिए लोग निकल कर आए। जब वे वहाँ पहुँचे जहाँ यीशु था, तो उन्होंने उस मनुष्य को यीशु के पाँवों के पास बैठे हुए देखा कि जिसमें से दुष्टात्माएँ निकल गई थीं। उन्होंने देखा कि उसने कपड़े पहने हुए थे और उसका मन फिर से सामान्य हो गया था। {उन्होंने जान लिया कि यीशु कितना सामर्थी है,} और वे भयभीत हो गए। 36 जो घटित हुआ था जिन्होंने वह देखा था, उन्होंने अभी-अभी पहुँचे लोगों को बताया कि कैसे यीशु ने उस मनुष्य को बचाया था जो दुष्टात्माओं के नियंत्रण में था। 37 तब जहाँ गिरासेनी रहते थे, उस स्थान के बहुत से लोगों ने यीशु को उनका क्षेत्र छोड़कर चले जाने के लिए कहा, क्योंकि वे बहुत भयभीत हो गए थे। इसलिए यीशु और उसके चेले झील के उस पार जाने के लिए नाव पर चढ़ गए। 38 उनके चले जाने से पहले, जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं, उसने यीशु से यह कहकर विनती की, “कृपया मुझे तेरे साथ हो लेने दे!” परन्तु बजाए इसके, यीशु ने उसे यह कहकर विदा कर दिया, 39 “नहीं, अपने घर को वापस जा और {हर एक जन को} बता कि परमेश्वर ने तेरे लिए कितना कुछ किया है!” तब वह व्यक्ति चला गया और सम्पूर्ण नगर में हर जगह पर लोगों को बता दिया कि यीशु ने उसके लिए कितना कुछ किया है। 40 और जब यीशु और उसके चेले झील के पार कफरनहूम को वापस लौटे, तो लोगों की भीड़ ने उनका स्वागत किया। वे सभी वहाँ पर उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। 41 उसी समय याईर नाम का एक व्यक्ति, जो वहाँ के आराधनालय के प्रधानों में से एक था, यीशु के निकट आया, और वह उसके सामने मुँह के बल लेट गया। उसने यीशु से अपने घर आने की याचना की। 42 उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसकी एक इकलौती बेटी थी, जो लगभग 12 वर्ष की आयु की थी, और वह मर रही थी। {वह चाहता था कि यीशु उसे चंगा करे।} अब जब यीशु {उसके साथ} गया, तो बहुत से लोग उसके चारों ओर भीड़ लगा रहे थे। 43 उस समय वहां पर भीड़ में एक स्त्री थी जो 12 वर्ष से निरन्तर लहू बहने वाली बीमारी से पीड़ित थी। उसने अपना सारा धन उसकी सहायता करने के लिए वैद्यों को भुगतान करने में खर्च कर दिया था, परन्तु उनमें से कोई भी उसे चंगा करने में सक्षम नहीं था। 44 वह यीशु के पीछे-पीछे आई और उसके परिधान के सिरे को छू लिया। एक बार में ही उसका लहू बहना बन्द हो गया। 45 यीशु ने कहा, “किसने मुझे छुआ?” {यीशु के आस-पास के} हर एक जन ने कहा कि उन्होंने उसे नहीं छुआ है। पतरस ने कहा, “हे स्वामी, यहाँ बहुत से लोग हैं जिन्होंने तेरे चारों ओर भीड़ लगाई हुई है और तुझ पर दबाव डाल रहे हैं। {इसलिए उनमें से किसी ने तुझे छू लिया होगा!}” 46 परन्तु यीशु ने कहा, “मैं जानता हूँ कि किसी ने मुझे {सोच-समझकर} छुआ है, क्योंकि मुझ में से {उस व्यक्ति को चंगा करने के लिए} सामर्थ निकली है।” 47 तब उस स्त्री ने यह जान लिया कि वह छिप नहीं सकती है। इसलिए वह काँपती हुई यीशु के पास आई और {सम्मानपूर्वक} उसके सामने भूमि पर मुँह के बल लेट गई। जब अन्य लोग सुन रहे थे, तो उसने बताया कि उसने यीशु को क्यों छुआ था और कैसे वह तुरन्त ही चंगी हो गई। 48 और यीशु ने उससे कहा, “हे प्रिय स्त्री, क्योंकि तूने विश्वास किया था {कि मैं तुझे चंगा कर सकता हूँ}, इसलिए अब तू ठीक हो गई है। अब अपने मार्ग पर चली जा, और परमेश्वर की शान्ति तुझ पर बनी रहे।” 49 जबकि यीशु {उस स्त्री से} अब तक बात कर ही रहा था, तो याईर के घर से एक पुरुष आया और याईर से बोला, “तेरी बेटी मर गई है। इसलिए गुरु का अधिक समय व्यर्थ न कर।” 50 परन्तु जब यीशु ने यह सुना, तो उसने याईर से कहा, “भयभीत न हो। बस {मुझ पर} विश्वास कर, और वह फिर से जीवित हो जाएगी।” 51 जब वह घर के बाहर पहुँचा, तो यीशु ने पतरस, यूहन्ना, और याकूब, तथा लड़की के पिता और माता के अलावा किसी को भी अपने साथ घर के भीतर जाने की अनुमति नहीं दी। 52 और वहाँ पर उपस्थित सभी लोग ऊँचे स्वर में यह दर्शा रहे थे कि वे कितने दुःखी हैं क्योंकि उस लड़की की मृत्यु हो गई है। परन्तु यीशु ने उनसे कहा, “रोना बन्द करो! वह मरी नहीं है! वह केवल सो रही है!” 53 और वे लोग उस पर हँसने लगे क्योंकि वे जानते थे कि वह लड़की मर गई है। 54 परन्तु यीशु ने उसके हाथ को थाम लिया और {उसे} पुकार कर कहा, “हे बच्ची, उठ जा!” 55 और तुरन्त ही वह जीवित हो गई और वह उठ बैठी। यीशु ने उनसे कहा कि उसे कुछ खाने के लिए दो। 56 और उसके माता-पिता चकित हो गए, परन्तु यीशु ने उनसे कहा कि जो कुछ घटित हुआ था {अभी} वह अन्य किसी को भी न बताना।

Chapter 9

1 फिर यीशु ने अपने बारह चेलों को एक साथ बुलाया और उनको सब प्रकार की दुष्टात्माओं को निकालने और {लोगों की} बीमारियों को चंगा करने का अधिकार दिया और सामर्थ प्रदान की। 2 उसने उनको {इस विषय में शुभ सन्देश की} घोषणा करने के लिए भेजा कि राजा के रूप में परमेश्वर कैसे शासन करेगा। उसने उनको ऐसे लोगों को चंगा करने के लिए भी बोला जो बीमार थे। 3 {उनके जाने से पूर्व ही,} उसने उनसे कहा, “अपनी यात्रा के लिए अपने साथ कुछ भी नहीं लेना। अपने साथ न चलने की लाठी, न यात्रियों वाला कोई थैला, न भोजन, न धन लेना। न ही एक और कुरता लेना। 4 जिस किसी घर में तुम प्रवेश करो, उस क्षेत्र को छोड़ देने तक तुम उस घर में ही ठहरना। 5 यदि किसी नगर के लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते हैं, तो तुम को वहाँ नहीं ठहरना चाहिए। बजाए इसके, उस नगर से निकल जाओ और, जब तुम निकलो, अपने पाँवों से उसकी धूल को झाड़ देना। यह {तुम को अस्वीकार करने के लिए} उनके लिए एक चेतावनी होगी।” 6 तब यीशु के चेले चले गए और उन्होंने बहुत से गाँवों से होकर यात्रा की। जहाँ कहीं भी वे गए, उन्होंने लोगों से परमेश्वर की ओर से आए शुभ सन्देश के विषय में बात की, और उन्होंने बीमार लोगों को चंगा किया। 7 गलील जिले के शासक, हेरोदेस ने उन सब बातों के विषय में सुना जो घट रही थीं, और वह घबरा गया। कुछ लोग कह रहे थे कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला फिर से जी उठा है। 8 अन्य लोग कह रहे थे कि एलिय्याह भविष्यद्वक्ता फिर से प्रकट हुआ है। तब भी अन्य लोग कह रहे थे कि प्राचीन समय के अन्य भविष्यद्वक्ताओं में से कोई फिर से जी उठा है। 9 परन्तु हेरोदेस ने कहा, “वह यूहन्ना नहीं हो सकता, क्योंकि उसका सिर तो मैंने ही कटवाया था। तो फिर यह मनुष्य कौन है? मैं उसके विषय में ऐसी अद्भुत बातों को निरन्तर सुन रहा हूँ!” और वह यीशु से मिलने के लिए किसी मार्ग की खोज करता रहा। 10 जब वे प्रेरित अपनी यात्रा पर से लौट आए, तो उन्होंने यीशु को वह सब कुछ बताया जो उन्होंने किया था। तब वह उन्हें अलग ले गया कि वे उसके साथ बैतसैदा नगर को जाएँ। 11 परन्तु जब भीड़ को पता चला कि यीशु कहाँ गया है, तो वे उसके पीछे-पीछे वहाँ चले गए। उसने उनका स्वागत किया और उनसे इस बारे में बात की कि राजा के रूप में परमेश्वर कैसे शासन करने जा रहा है। उसने उन लोगों को भी चंगा किया जो बीमार थे। 12 अब दिन का अन्त होने लगा था, इसलिए बारह चेले उसके पास आये और कहा, “कृपया लोगों की इस बड़ी भीड़ को विदा कर, ताकि वे आसपास के गाँवों और खेतों में जाकर कुछ भोजन ले सकें और ठहरने के लिए स्थानों को ढूँढ़ सकें, क्योंकि हम यहाँ इस निर्जन स्थान पर हैं।” 13 परन्‍तु उसने उनसे कहा, “तुम को उन्‍हें कुछ खाने के लिए देना चाहिए!” उन्होंने उत्तर दिया, “जो कुछ हमारे पास है वह पाँच छोटी रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ हैं। हम कभी भी जाकर इन सभी लोगों के लिए पर्याप्त भोजन खरीद नहीं सकते!” 14 {उन्होंने ऐसा इसलिए कहा} क्योंकि उस स्थान पर वहां लगभग 5000 पुरुष थे। तब यीशु ने चेलों से कहा, “लोगों को समूहों में बैठाओ। प्रत्येक समूह में लगभग 50 लोगों को रखो।” 15 अतः चेलों ने ऐसा ही किया, और सारे लोग बैठ गए। 16 तब यीशु ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया। उसने ऊपर स्वर्ग की ओर देखा और उनके लिए परमेश्वर की स्तुति की। फिर उसने रोटी और मछली को टुकड़ों में तोड़-तोड़कर और उन्हें चेलों को दिया कि वे लोगों में उनको बाँट दें। 17 उन सब ने खाया, और हर एक जन खाने के लिए पर्याप्त मिला। उसके बाद चेलों ने भोजन के बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा किया, जिनसे 12 टोकरियाँ भर गईं। 18 एक दिन जब यीशु अपने चेलों को साथ लेकर, अकेले में प्रार्थना कर रहा था, और उसने उनसे पूछा, “यह भीड़ क्या कहती है कि मैं कौन हूँ?” 19 उन्होंने उत्तर दिया, “{कुछ लोग कहते हैं कि तू है} यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, परन्तु अन्य लोग कहते हैं कि तू एलिय्याह भविष्यद्वक्ता है, और तब भी अन्य लोग कहते हैं कि तू प्राचीन समय के अन्य भविष्यद्वक्ताओं में से कोई है जो फिर से जी उठा है।” 20 उसने उनसे पूछा, “तुम्हारे विषय में क्या है? तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” पतरस ने उत्तर दिया, “तू मसीह है जो परमेश्वर की ओर से आया है।” 21 तब यीशु ने उनको कड़ी चेतावनी दी कि अभी यह किसी से न कहना। 22 फिर उसने कहा, “मुझ, मनुष्य के पुत्र, को बहुत सी बातों में दुःख उठाना आवश्यक हैः पुरनिए, और प्रधान याजक, और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक मुझे अस्वीकार कर देंगे, और मुझे मार डालेंगे। तब, उसके पश्चात तीसरे दिन, मैं फिर से जी उठूँगा।” 23 फिर उसने उन सब से कहा, “यदि तुममें से कोई मेरे चेला होना चाहता है, तो तुम को केवल वही नहीं करना चाहिए जो तुम करना चाहते हो। बजाए इसके, यहाँ तक कि जीवन को त्याग देने के बिन्दु तक तुम को प्रतिदिन दुःख उठाने का इच्छुक होना है। मेरा चेला हो जाना ऐसा ही है। 24 {तुम को ऐसा इसलिए करना है} क्योंकि जो लोग अपने स्वयं के प्राणों को बचाने का प्रयास करते हैं वे उसे अनन्तकाल के लिए खो देंगे, परन्तु जो लोग मेरा चेला हो जाने की खातिर अपने प्राणों को त्याग देंगे, वे अनन्तकाल के लिए अपने प्राणों को बचा लेंगे। 25 अन्ततः, यदि तुम इस संसार में सब कुछ प्राप्त कर लेते हो, परन्तु फिर अन्त में तुम अपने आपको खो देते हो, या नष्ट भी कर देते हो, तो इससे तुम्हारा क्या लाभ होता है? 26 मान लो कि कोई यह कहने में डरता है कि वे मुझ पर विश्वास करते हैं और यह कि वे मेरी शिक्षा का अनुसरण करते हैं। तब, मैं, मनुष्य का पुत्र, कहूँगा कि ऐसा व्यक्ति मेरा नहीं है। यह तब घटित होगा जब मैं अपनी महिमा में और परमेश्वर पिता और पवित्र स्वर्गदूतों की महिमा में वापस आऊँगा। 27 परन्तु तुम इस बात के लिए निश्चित हो सकते हो: तुम में से कुछ जो अभी यहाँ खड़े हैं, जब तक तुम राजा के रूप में परमेश्वर को शासन करते हुए नहीं देखोगे तब तक नहीं मरोगे!” 28 यीशु के उन बातों को कहने के लगभग आठ दिनों के पश्चात, उसने पतरस, यूहन्ना, और याकूब को अपने साथ लिया और एक पहाड़ ऊपर {वहाँ} प्रार्थना करने के लिए चला गया। 29 जिस समय पर वह प्रार्थना कर रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बहुत अलग हो गया, और उसके वस्त्र उज्ज्वल रूप से चमकने लगे। 30 एक ही समय पर, दो {प्राचीन समय के भविष्यवक्ता} यीशु के साथ वहाँ बातें कर रहे थे। वे मूसा और एलिय्याह थे। 31 ये पुरुष महिमा में घिरे हुए दिखाई दिए। उन्होंने यीशु के साथ इस विषय में बात की कि वह कैसे मरने वाला था। यह कुछ ऐसा था जो शीघ्र ही यरूशलेम में घटित होने वाला था। 32 पतरस और अन्य चेले जो उसके साथ थे वे बहुत नींद से भरे हुए थे। परन्तु जब वे पूर्ण रूप से जाग गए, तो उन्होंने देखा कि यीशु कितने उज्ज्वल रूप से चमक रहा था। उन्होंने मूसा और एलिय्याह को भी उसके साथ खड़े हुए देखा। 33 जब मूसा और एलिय्याह यीशु के पास से जाने लगे, तो पतरस ने उससे कहा, “हे स्वामी, हमारे लिए यहाँ रहना अच्छा है! हमें तीन मण्डप बनाने चाहिए, एक तेरे लिये, और एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये!” (परन्तु वह वास्तव में नहीं जानता था कि वह क्या कह रहा है।) 34 जब वह इन बातों को कह रहा था, तो एक बादल उठा और उनको ढाँप लिया। जब उस बादल ने उनको घेर लिया तो चेले भयभीत हो गए। 35 बादल में से परमेश्वर की वाणी ने उनसे यह कहकर बात की, “यह मेरा पुत्र है, जिसे मैंने चुना है; उसकी सुनो!” 36 जब उस वाणी ने बोलना समाप्त कर लिया, {तो उन तीन चेलों ने देखा कि} वहाँ केवल यीशु उपस्थित था। यह सब बातें उन्होंने अपने में ही रखीं। जो उन्होंने देखा था एक लम्बे समय तक उन्होंने वह किसी को भी नहीं बताया। 37 अगले दिन, जब वे पहाड़ से उतर आए, तो लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु से मिली। 38 अचानक से भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्लाया, “हे गुरु, मैं तुझ से याचना करता हूँ, मेरे पुत्र की सहायता के लिए कुछ कर! वह मेरी एकलौती सन्तान है। 39 जो हो रहा है, वह यहाँ है। एक दुष्टात्मा अचानक से उसे पकड़ती है और उसे चिल्लाने के लिए विवश करती है। वह उसे हिंसक रूप से झिंझोड़ती है और उसे मुँह में झाग भरने के लिए विवश करती है। यह दुष्टात्मा बड़ी कठिनाई से कभी-कभार ही मेरी सन्तान को छोड़ती है और, जब वह ऐसा करती है, तो वह उसे गम्भीर रूप से चोट पहुँचाती है। 40 उस दुष्टात्मा को उसमें से निकल जाने का आदेश देने के लिए मैंने तेरे चेलों से याचना की थी, परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ थे!” 41 इसके उत्तर में, यीशु ने कहा, “इस पीढ़ी के लोग विश्वास नहीं करते, और इसलिए उनकी सोच विकृत हो गई है! तुम्हारे विश्वास करने से पहले मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा?” {फिर उसने उस लड़के के पिता से कहा,} “तेरे पुत्र को मेरे पास यहाँ लेकर आ!” 42 जिस समय वे उस लड़के को लेकर आ रहे थे, तो उस दुष्टात्मा ने उस लड़के को भूमि पर पटक दिया और उसे बुरी तरह से झिंझोड़ दिया। परन्तु यीशु ने उस दुष्टात्मा को फटकारा और उस लड़के को चंगा कर दिया। फिर उसने उसे उसके पिता को सौंप दिया। 43 उसके पश्चात वहाँ उपस्थित सारे लोग उस महान सामर्थ पर पूर्ण रूप से विस्मित हो गए जो परमेश्वर ने प्रकट की थी। जिस समय पर वे सब उन सारे चमत्कारों पर चकित हो ही रहे थे जो यीशु कर रहा था, उसने अपने चेलों से कहा, 44 “जो मैं तुम से कहने पर हूँ उसे बड़े ध्यान से सुनो, क्योंकि कोई जन मुझ, मनुष्य के पुत्र, को मेरे शत्रुओं के हाथों में शीघ्र ही सौंप देगा।” 45 परन्तु चेले यह समझ नहीं पाए कि उसका इससे क्या अर्थ है। परमेश्वर ने उन्हें इसे समझने से रोक दिया ताकि वे अभी यह न जान पाएँ कि उसका क्या अर्थ है, और जो कुछ उसने कहा था उसके विषय में वे उससे पूछने से डरते थे। 46 कुछ समय पश्चात, चेले आपस में इस विषय पर विवाद करने लगे कि उनमें से कौन सबसे महत्वपूर्ण होगा। 47 परन्तु यीशु जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं, इसलिए वह एक बालक को अपने पास लेकर आया, और उस बालक को अपने पास खड़ा किया। 48 उसने उनसे कहा, “यदि कोई मेरे कारण इसके जैसे छोटे बालक का स्वागत करता है, तो यह मेरा स्वागत करने के समान है। और यदि कोई मेरा स्वागत करता है, तो यह उस परमेश्वर का स्वागत करने के समान है, जिसने मुझे भेजा है। स्मरण रखो कि तुम में से जो सबसे कम महत्वपूर्ण लगते हैं, वे वही हैं जिन्हें परमेश्वर सबसे महत्वपूर्ण मानता है।” 49 यूहन्ना ने यीशु को उत्तर दिया, “हे स्वामी, हम ने एक व्यक्ति को देखा जो लोगों में से दुष्टात्माओं को निकल जाने का आदेश देने के लिए तेरे नाम का उपयोग कर रहा था। परन्तु हम ने उससे ऐसा करने से रुक जाने के लिए कहा, क्योंकि वह तेरे समीप रहकर वैसे काम नहीं कर रहा था जिस रीति से हम करते हैं।” 50 परन्तु यीशु ने यूहन्ना से कहा, “उसे ऐसा करने से मत रोको! यदि कोई कुछ ऐसा नहीं कर रहा है जो तुम्हारे लिए हानिकारक है, तब जो वह कर रहा है वह तुम्हारे लिए लाभदायक है!” 51 जब वह समय निकट आ रहा था जब परमेश्वर उसे वापस स्वर्ग में उठा लेगा, तब यीशु ने दृढ़तापूर्वक यरूशलेम को जाने का निश्चय किया। 52 उसने अपने आगे कुछ दूतों को भेजा। उन्होंने यात्रा की और सामरिया क्षेत्र के एक गाँव में गए ताकि वहाँ उसके ठहरने की व्यवस्था करने का प्रयास करें। 53 परन्तु सामरियों ने यीशु को अपने गाँव में ठहरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था। 54 उसके दो चेले, याकूब और यूहन्ना {क्रोधित हो गए जब उन्होंने} यह देखा {कि सामरिया के लोग उनका स्वागत नहीं करने वाले थे}। तब उन्होंने यीशु से पूछा, “हे प्रभु, क्या तू चाहता है कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरे, और इन लोगों का नाश कर दे?” 55 परन्तु यीशु ने {उनकी ओर} घूम कर कठोरतापूर्वक उनसे कहा कि उनका ऐसा कहना अनुचित है। 56 इसलिए वे किसी दूसरे गाँव को चले गए। 57 जब यीशु और उसके चेले सड़क पर चल रहे थे, तो किसी ने उससे कहा, “जहाँ कहीं तू जाएगा, मैं तेरे संग चलूँगा!” 58 यीशु ने उत्तर दिया, “लोमड़ियों के पास रहने के लिये भूमि में छेद होते हैं, और पक्षियों के पास घोंसले होते हैं, परन्तु मुझ, मनुष्य के पुत्र, के पास सोने के लिये कोई घर नहीं है!” 59 यीशु ने किसी दूसरे व्यक्ति से कहा, “मेरे साथ आ!” परन्तु उस व्यक्ति ने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले घर जाकर अपने पिता को गाड़ लेने दे।” 60 परन्तु यीशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दे गाड़ने दे। मैं चाहता हूँ कि तू सब जगह जाकर लोगों को बताए कि उनके जीवनों पर शासन करने के लिए वे परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।” 61 किसी और ने कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे साथ चलूँगा और तेरा चेला बनूँगा, परन्तु पहले मुझे अपने परिवार को अलविदा कहने के लिए घर जाने दे।” 62 यीशु ने उससे कहा, “कोई भी जन जो किसी ऐसे किसान के समान है जो पीछे देखते हुए अपने खेत को जोतने का प्रयत्न करता है, वह उसके शासक के रूप में परमेश्वर की सेवा करने के योग्य नहीं है।”

Chapter 10

1 इसके पश्चात, यीशु ने अन्य 72 चेलों को नियुक्त किया {कि वे जाकर लोगों को उसकी बात सुनने के लिए तैयार करें}। उसने उनको अपने आगे-आगे उस प्रत्येक नगर और गाँव में दो-दो करके भेजा जहाँ वह स्वयं जाने की मनसा रखता था। 2 उसने उनसे कहा, “बहुत से लोग मुझ पर विश्वास करने के लिए तैयार हैं, परन्तु तुम में से ऐसे थोड़े ही हैं जिनको मैं उनकी सहायता करने के लिए भेज सकता हूँ। इसलिए परमेश्वर से प्रार्थना करो, {जो चाहता है कि वे सब के सब लोग विश्वास करें,} और उससे और भी चेलों के लिए प्रार्थना करो जो जाकर उनकी सहायता कर सकें। 3 अब जाओ, परन्तु स्मरण रखो कि मैं तुम को ऐसे लोगों को मेरा सन्देश बताने के लिए भेज रहा हूँ जो तुम से द्वेषपूर्ण व्यवहार करेंगे। 4 अपने साथ कोई धन नहीं रखना। अपने साथ कोई {बहुत सारे सामान से भरा हुआ} थैला नहीं लेना। {एक और जोड़ी जूता} अपने साथ न लेना। मार्ग में {रुककर} लोगों के साथ बात मत करना। 5 जब भी तुम किसी घर में प्रवेश करो, तो सर्वप्रथम वहाँ रहने वाले लोगों से कहो, ‘परमेश्वर इस घर में रहने वाले हर एक व्यक्ति को शान्ति प्रदान करे!’ 6 यदि वहाँ रहने वाले लोग परमेश्वर की शान्ति के इच्छुक होंगे, तब ही वे उस शान्ति का अनुभव कर पाएँगे जो तुम उनको प्रदान कर रहे हो। परन्तु यदि वहाँ वे परमेश्वर की शान्ति के इच्छुक नहीं होंगे, तब उस शान्ति का अनुभव तुम स्वयं ही करने पाओगे। 7 उसी घर में तब तक ठहरे रहो जब तक उस गाँव को नहीं छोड़ देते। आसपास में एक घर से दूसरे घर में न फिरते रहना। वही खाओ और पीयो जो वे तुम को उपलब्ध करवाते हैं, क्योंकि एक मजदूर अपने काम के लिए भुगतान प्राप्त करने का हकदार है। 8 यदि तुम किसी नगर में प्रवेश करो और वहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो वही खाओ जो खाना वे तुम को उपलब्ध करवाते हैं। 9 उस नगर में रहने वाले ऐसे लोगों को चंगा करो जो बीमार हैं। हर एक जन से कहो, ‘तुम उसे समीपता से देख रहे हो कि जब हर जगह राजा के रूप में परमेश्वर शासन करता है तो यह किसके समान होगा।’ 10 परन्तु यदि तुम किसी नगर में प्रवेश करो और वहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत न करें, तो उसकी प्रमुख सड़कों पर जाकर कहो, 11 ‘तुम्हारे विरोध में {चेतावनी के रूप में}, {जबकि हम तुम्हारे नगर से निकल कर जाते हुए} हम उस धूल को भी झाड़ देंगे जो हमारे पाँवों में चिपकी हुई है। परन्तु तुम यह जान लो कि तुम ने उसे समीपता से देखा है कि जब हर जगह राजा के रूप में परमेश्वर शासन करता है तो यह किसके समान होगा!’ 12 मैं चाहता हूँ तुम जान लो कि जब परमेश्वर सब का न्याय करेगा, तो उस समय पर परमेश्वर उस नगर के लोगों को उन दुष्ट लोगों से भी अधिक कठोरतापूर्वक दण्ड देगा जो प्राचीन समय में सदोम नगर में रहते थे! 13 हे खुराजीन और बैतसैदा के नगरों में रहने वाले लोगों, तुम्हारे लिए यह कितना भयंकर होगा! मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि जिस समय मैं तुम्हारे नगरों में था तब मैंने बड़े-बड़े चमत्कार किए। यदि मैंने उन्हीं चमत्कारों को सोर और सीदोन {के प्राचीन नगरों} में किया होता, तो वहाँ रहने वाले {दुष्ट} लोग अपने पापों के लिए अत्यन्त खेदित होते। खुरदुरा वस्त्र पहनकर और अपने सिरों पर राख डालकर भूमि पर बैठने के द्वारा उन्होंने इसका प्रदर्शन भी किया होता। 14 अतः जब परमेश्वर सब का न्याय करेगा, तो वह तुम को उन दुष्ट लोगों की तुलना में अधिक कठोरतापूर्वक दण्ड देगा जो सोर और सीदोन में रहते थे! 15 मेरे पास तुम लोगों से कहने के लिए भी कुछ है जो कफरनहूम नगर में रहते हैं। तुम सोचते होगे कि परमेश्वर तुम को बड़ा प्रतिफल देने वाला है। नहीं, परमेश्वर तुम को कोई भी प्रतिफल नहीं देने वाला है!” 16 {यीशु ने चेलों से भी कहा,} “जो कोई भी तुम्हारा सन्देश सुनता है वह {वास्तव में,} मुझे सुनता है। जो कोई भी तुम्हारे सन्देश को अस्वीकार करता है वह {वास्तव में,} मुझे अस्वीकार करता है। और जो कोई भी मुझे अस्वीकार करता है वह {वास्तव में,} परमेश्वर को अस्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।” 17 जिन 72 लोगों को यीशु ने नियुक्त किया था {उन्होंने जाकर वह किया जो उसने उनको करने के लिए कहा था।} जब वे लौट आए, तो वे बहुत ही आनन्दित थे। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, यहाँ तक कि दुष्टात्माओं ने हमारी आज्ञा का पालन किया जब, तेरे द्वारा प्रदान किए गए अधिकार से, हम ने उनको लोगों में से निकल जाने का आदेश दिया!” 18 यीशु ने उनसे कहा, “{जिस समय पर तुम वहाँ दूर ऐसा कर रहे थे,} जैसे अचानक से और शीघ्रता से बिजली गिरती है, वैसे ही मैंने शैतान को लाभ की स्थिति को खोते हुए देखा! 19 सुनो! मैंने तुम को दुष्टात्माओं को पराजित करने की सामर्थ प्रदान की है। मैंने तुम को हमारे शत्रु, शैतान को पराजित करने की पर्याप्त सामर्थ भी प्रदान की है। किसी भी वस्तु से तुम्हारी कुछ भी हानि नहीं होगी। 20 परन्तु {केवल} इसलिए आनन्दित मत होना कि दुष्टात्माओं को तुम्हारी आज्ञा का पालन करना पड़ेगा। तुम को {और भी बढ़कर} आनन्दित इसलिए होना चाहिए कि परमेश्वर ने तुम्हारे नामों को स्वर्ग में लिख दिया है, {क्योंकि इसका अर्थ है कि तुम सदा के लिए परमेश्वर के साथ रहोगे}।” 21 ठीक उसी समय पर, पवित्र आत्मा ने यीशु को बड़ा आनन्द प्रदान किया। उसने कहा, “हे मेरे परमेश्वर पिता, तू स्वर्ग की और पृथ्वी पर की सब वस्तुओं पर प्रभु है। मैं तेरी स्तुति करता हूँ कि तूने उन लोगों को बातों को समझने से रोक दिया है जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं। बजाए इसके, तूने उनको ऐसे लोगों पर प्रकट किया है जिन्होंने तेरे सत्य को छोटे बालकों के समान सहजता से स्वीकार कर लिया है। हाँ, हे पिता, तूने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि ऐसा करना तुझे प्रसन्न करता है। 22 परमेश्वर, मेरे पिता ने, सब कुछ मुझे दे दिया है। केवल मेरा पिता मुझे, उसके पुत्र को, वास्तव में जानता है। और केवल मैं, उसका पुत्र, वास्तव में अपने पिता को जानता हूँ। परन्तु मैं कुछ लोगों को यह दिखाने का चुनाव करता हूँ कि वह कौन है।” 23 फिर यीशु ने, केवल अपने चेलों से कहा, “जो मैं कर रहा हूँ उन कामों को देखने में सक्षम करने के द्वारा परमेश्वर ने तुम को बहुत बड़ा उपहार दिया है! 24 मैं चाहता हूँ तुम जान लो कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने उन बातों को देखने की इच्छा की थी जिनको मुझे करते हुए तुम देख रहे हो। परन्तु वे उनको देखने नहीं पाए, {क्योंकि वे प्राचीन समय में रहते थे}। उन्होंने उन बातों को सुनने की इच्छा की थी जिनको मुझे कहते हुए तुम सुन रहे हो। परन्तु वे उनको सुनने नहीं पाए, {क्योंकि वे प्राचीन समय में रहते थे}।” 25 वहाँ पर एक मनुष्य था जो यहूदी व्यवस्था का शिक्षक था। वह यीशु की {उससे एक कठिन प्रश्न पूछने के द्वारा} परीक्षा करना चाहता था। अतः उसने खड़े होकर उससे पूछा, “हे गुरु, परमेश्वर के साथ सदा के लिए जीवित रहने की खातिर मुझे क्या करना चाहिए?” 26 यीशु ने उससे कहा, “परमेश्वर द्वारा दी गई व्यवस्था में मूसा ने जो लिखा है क्या उसे तूने पढ़ा है। वह व्यवस्था क्या कहती है?” 27 उस मनुष्य ने प्रत्युत्तर दिया, “प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे हृदय, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी शक्ति से, और अपनी सारी समझ के साथ प्रेम रख। और अपने पड़ोसी से उतना ही प्रेम रख, जितना प्रेम तू स्वयं से रखता है।” 28 यीशु ने उससे कहा, “तूने ठीक-ठीक उत्तर दिया है। यदि तू यह सब करे, तो तू {परमेश्वर के साथ सदा के लिए} जीवित रहेगा।” 29 परन्तु वह मनुष्य यह दर्शाना चाहता था कि परमेश्वर उसका अनुमोदन करेगा। इसलिए उसने यीशु से कहा, “मेरे पड़ोसी कौन से लोग हैं {जिनसे मुझे प्रेम करना चाहिए}?” 30 यीशु ने प्रत्युत्तर दिया, “एक दिन, एक यहूदी पुरुष यरूशलेम से यरीहो जाने वाले मार्ग पर यात्रा कर रहा था। कुछ डाकुओं ने उस पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने उस पुरुष के सारे कपड़े और बाकी जो कुछ भी उसके पास था छीन लिया। उन्होंने उसे तब तक पीटा जब तक कि वह लगभग मरने पर न हो गया। फिर वे उसे वहाँ छोड़कर चले गए। 31 ऐसा हुआ कि एक {यहूदी} याजक उस मार्ग से होकर जा रहा था। जब उसने उस मनुष्य को देखा, तो {उसकी सहायता करने के बजाए,} मार्ग की दूसरी ओर से आगे बढ़ गया। 32 उसी प्रकार से, एक लेवी भी {जो परमेश्वर के मंदिर में काम किया करता था} उस स्थान पर आया और उस मनुष्य को देखा। परन्तु वह भी मार्ग की दूसरी ओर से आगे बढ़ गया। 33 उसके पश्चात सामरिया क्षेत्र का रहने वाला एक मनुष्य उस मार्ग पर आया जहाँ वह मनुष्य पड़ा हुआ था। जब उसने उस मनुष्य को देखा तो उसे उस पर तरस आ गया। 34 उसने उसके पास पहुँच कर उसके घावों पर {उनके ठीक होने में सहायता के लिए} थोड़ा जैतून का तेल और दाखरस डाला। उसने घावों पर कपड़े की पट्टियों को लपेट दिया। फिर उसने उस मनुष्य को अपने गधे पर चढ़ाया और उसे सराय में लेकर गया और उसकी देखभाल की। 35 अगली सुबह उसने सराय के मालिक को चांदी के दो सिक्के दिए और कहा, ‘इस मनुष्य की देखभाल कर। यदि तुझे इसकी देखभाल करने के लिए इस धन से अधिक खर्च करने की आवश्यकता पड़े, तो जब मैं वापस लौटूँ वह मैं तुझे चुका दूँगा।’” 36 {उसके पश्चात यीशु ने पूछा,} “जिस मनुष्य पर डाकुओं ने आक्रमण किया था वह तीन लोगों को मिला। उनमें से तुम किसे कहोगे कि वह उस मनुष्य का सच्चा पड़ोसी था?” 37 उस व्यवस्था के शिक्षक ने प्रत्युत्तर में कहा, “वही जिसने उसके प्रति दयापूर्ण रूप से व्यवहार किया।” यीशु ने उससे कहा, “{यह ठीक बात है।} इसलिए तुझे भी जाना और उन लोगों के प्रति ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए जिनको तेरी सहायता की आवश्यकता है।” 38 जब यीशु और उसके चेलों ने यात्रा को जारी रखा, तो उन्होंने एक गाँव में प्रवेश किया। वहाँ मार्था नाम की एक स्त्री थी जिसने उनको अपने घर में आने के लिए आमंत्रित किया। 39 उसकी बहन, जिसका नाम मरियम था, वह यीशु के पाँवों के पास बैठ गई और जो शिक्षा वह दे रहा था उसे सुनने लगी। 40 परन्तु मार्था उन सब के लिए भोजन तैयार करने के विषय में चिन्तित हो रही थी। उसने यीशु के पास जाकर कहा, “हे प्रभु, मेरी बहन ने मुझे सब कुछ तैयार करने के लिए अकेला ही छोड़ दिया है। तू जान ले कि यह उचित नहीं है। कृपया उससे मेरी सहायता करने के लिए कह दे!” 41 परन्तु यीशु ने उसे प्रत्युत्तर में कहा, “हे मार्था, हे मार्था, तू बहुत सी बातों के लिए बहुत चिंता करती है। 42 परन्तु एक बात जो वास्तव में महत्वपूर्ण है {वह उस शिक्षा को सुनना है जो मैं दे रहा हूँ}। क्योंकि मरियम ने करने के लिए उत्तम बात को चुन लिया है, इसलिए मैं उसे बाकी और कुछ भी करने के लिए नहीं कहूँगा।”

Chapter 11

1 एक दिन यीशु किसी स्थान पर प्रार्थना कर रहा था। जब वह समाप्त कर चुका, तो उसके एक चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, हमें सिखा दे कि प्रार्थना कैसे करते हैं। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने अपने चेलों के साथ ऐसा ही किया है, और हम चाहते हैं कि तू भी हमारे साथ ऐसा ही करे।” 2 उसने उनसे कहा, “जब तुम प्रार्थना करो, तो {इस प्रकार की बातों को} बोलो: ‘हे पिता, सब लोग पवित्र मान कर तेरे नाम का सम्मान करें। शीघ्र ही तू हर जगह सब लोगों पर शासन करे। 3 प्रतिदिन हम को जिस भोजन की आवश्यकता है कृपया वह हमें प्रदान कर। 4 कृपया हमें उन अनुचित कामों के लिए क्षमा कर जो हम ने किए हैं। हम स्वयं भी उन लोगों को उन अनुचित कामों के लिए क्षमा कर देंगे जो उन्होंने हमारे साथ किए हैं। जब किसी बात में हमारी परीक्षा हो तो हमारी सहायता करना कि हम पाप न करें।’” 5 फिर उसने उनसे कहा, “मान लो कि तुम में से कोई जन मध्यरात्रि में किसी मित्र के घर पर जाता है। तुम {बाहर खड़े होकर} उसे पुकारते हो, ‘हे मेरे मित्र, कृपया मुझे तीन रोटियाँ उधार दे! 6 मेरा एक अन्य मित्र जो यात्रा करते हुए अभी-अभी मेरे घर पर पहुँचा है। परन्तु मेरे पास उसे परोसने के लिए कोई तैयार भोजन नहीं है!’ 7 और मान लो कि वह घर के भीतर से ही प्रत्युत्तर दे, ‘मुझे परेशान मत कर! मैंने पहले ही द्वार को बन्द कर लिया है, और मेरा पूरा परिवार बिछौने पर है। यह मेरे लिए अत्यन्त कठिन होगा कि मैं उठकर तुझे कुछ दूँ!’ 8 मैं तुम से कहता हूँ कि भले ही वह उठकर अपने मित्र को कुछ भोजन इसलिए देना न चाहता हो क्योंकि वह उसका मित्र है। परन्तु यदि वह माँगता ही रहे, तो जो व्यक्ति भीतर है वह निश्चित रूप से उठकर उसे वह सब कुछ देगा जिसकी उसे आवश्यकता है। 9 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ: जिन वस्तुओं की तुम को आवश्यकता है उनके लिए परमेश्वर से माँगते रहो, और वह तुम को उन्हें देगा। परमेश्वर की ओर से उन वस्तुओं की खोज में रहो, और तुम उनको प्राप्त करोगे। परमेश्वर से तुम्हारे लिए कामों को सम्भव बनाने के लिए कहो, और वह तुम्हारी ओर से कार्य करेगा। 10 तुम को यह इसलिए करना चाहिए क्योंकि जो कोई भी परमेश्वर से उन वस्तुओं को माँगता रहता है जिनकी उसे आवश्यकता है तो वह उनको प्राप्त करेगा। जो कोई भी परमेश्वर की ओर से उन वस्तुओं की खोज में रहता है वह उनको प्राप्त करेगा। यदि कोई परमेश्वर से उसके लिए कामों को सम्भव करने के लिए कहता है, तो परमेश्वर उसकी ओर से कार्य करेगा। 11 मान लो कि तुम पिताओं में से किसी का एक पुत्र है जिसने तुम से खाने के लिए मछली माँगी। तो निश्चय ही तुम उसके बजाए उसे कोई विषैला साँप नहीं दोगे! 12 मान लो कि वह तुम से एक अण्डा माँगे। तो निश्चय ही तुम उसके बजाए उसे कोई बिच्छू नहीं दोगे! 13 यद्यपि तुम लोग पापी हो, तौभी तुम जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छे उपहार कैसे दें। इसलिए यह तो और भी निश्चित है कि तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में विराजमान है वह उनको पवित्र आत्मा देगा जो उससे माँगते हैं। 14 एक दिन यीशु एक ऐसी दुष्टात्मा को विवश करके निकाल रहा था जिसने उस मनुष्य को बोलने से रोक रखा था। यीशु के उस दुष्टात्मा को निकाल बाहर करने के पश्चात, वह मनुष्य बोलने लग गया। इस बात ने वहाँ पर उपस्थित लोगों की भीड़ को चकित कर दिया। 15 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “वह दुष्टात्माओं का शासक बालजबूल ही तो है, जो दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करने में इस मनुष्य को सक्षम करता है!” 16 वहाँ उपस्थित अन्य लोगों ने उसके अधिकार पर प्रश्न किया। उन्होंने उससे यह साबित करने के लिए एक चमत्कार दिखाने की माँग की कि परमेश्वर ने उसे भेजा था। 17 परन्तु वह जानता था कि वे क्या सोच रहे थे। इसलिए उसने उनसे कहा, “यदि एक ही देश के लोग एक दूसरे के विरोध में लड़ने लगें, तो वे अपने देश का नाश कर देंगे। यदि एक ही घराने के लोग एक दूसरे के विरोधी हो जाएँ, तो वे अपने परिवार का नाश कर देंगे। 18 उसी प्रकार से, यदि शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ एक दूसरे के विरोध में लड़ने लग जाएँ, तो निश्चित रूप से उन पर उसका शासन बना नहीं रहेगा! मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि तुम कह रहे हो कि मैं दुष्टात्माओं के शासक की सामर्थ से दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करता हूँ! 19 यदि यह सत्य है कि बालजबूल दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करने के लिए मुझे सक्षम कर रहा है, तो यह भी सत्य होगा कि वह तुम्हारे चेलों को भी दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करने के लिए सक्षम कर रहा है। {परन्तु तुम जानते हो कि यह सत्य नहीं है।} इसलिए तुम्हारे चेले ही साबित करते हैं कि तुम गलत हो। 20 मुझे वास्तव में परमेश्वर की सामर्थ के द्वारा ही दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करना है। इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने तुम पर शासन करना आरम्भ कर दिया है।” 21 {यीशु ने जारी रखा,} “जब कोई ऐसा बलवंत पुरुष जिसके पास बहुत से हथियार हैं अपने घर की सुरक्षा करता है, तो कोई भी भीतर रखी वस्तुओं को चुरा नहीं सकता है। 22 परन्तु जब कोई और उससे भी बढ़कर बलवंत उस पुरुष पर आक्रमण करता है और उसे वश में कर लेता है, तो वह उसके हथियारों को भी छीन लेता है जिन पर वह पुरुष निर्भर करता था। उसके पश्चात वह उस पुरुष के घर में से जो कुछ भी वह चाहे उसे चुरा सकता है। 23 कोई भी व्यक्ति जो मेरा सहयोग नहीं कर रहा है वह मेरा विरोध कर रहा है। कोई भी जो लोगों को मेरे पास लेकर नहीं आ रहा है वह उनको मुझ से दूर भेज रहा है।” 24 {तब यीशु ने कहा,} “एक दुष्टात्मा किसी व्यक्ति में से निकल कर किसी अन्य के भीतर वास करने की खोज में उजाड़ क्षेत्रों में भटकती है। यदि उसे वहाँ कोई नहीं मिलता, तो वह कहेगी, ‘मैं उस व्यक्ति के पास वापस जा रही हूँ जिसमें मैं रहा करती थी!’ 25 इसलिए वह वापस जाती है और पाती है कि वह व्यक्ति एक ऐसे घर के समान है जिसे किसी ने साफ-सुथरा करके सजा-सँवार दिया है, {परन्तु जिसमें कोई नहीं रहता है}। 26 तब वह दुष्टात्मा जाती है और ऐसी सात अन्य आत्माओं को ले आती है जो उससे भी अधिक ज्यादा दुष्ट हैं। वे सभी उस व्यक्ति में प्रवेश करती हैं और उसमें रहने लगती हैं। पहले उस व्यक्ति की दशा बुरी थी, और अब यह और भी बुरी हो जाती है।” 27 जब यीशु ने यह कहा, तो भीड़ में से एक स्त्री ने {जो सुन रही थी} उसे पुकार कर ऊँचे स्वर से कहा, “परमेश्वर उस स्त्री से प्रसन्न है जिसने तुझे जन्म दिया है और जिसने तेरा पालन-पोषण किया है!” 28 तब उसने प्रत्युत्तर में कहा, “परमेश्वर उन लोगों से तो और भी अधिक प्रसन्न है जो उसके सन्देश को सुनते हैं और उसका पालन करते हैं!” 29 यीशु के चारों ओर की भीड़ में सम्मिलित होने के लिए अधिक से अधिक लोग आ रहे थे। उसने कहा, “इस समय में रहने वाले लोग दुष्ट लोग हैं। वे चाहते हैं कि मैं एक चमत्कार करूँ {यह साबित करने के लिए कि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ}। परन्तु केवल एक ही प्रमाण जो वे देखेंगे वह उस चमत्कार के जैसा है जो योना के साथ घटित हुआ था। 30 बहुत समय पहले परमेश्वर ने योना के लिए एक चमत्कार किया था नीनवे नगर में रहने वाले लोगों को यह दिखाने के लिए कि उसे उसने ही भेजा था। उसी प्रकार से, परमेश्वर मुझ, मनुष्य के पुत्र, के लिए वैसा ही चमत्कार करेगा, इस समय में रहने वाले लोगों को दिखाने के लिए कि उसने ही मुझे भेजा है। 31 जो बुद्धिमानी की बातें सुलैमान ने कही थीं उनको सुनने के लिए शीबा की रानी ने बहुत समय पहले बहुत लम्बी दूरी की यात्रा की थी। इस समय तुम्हारे साथ कोई सुलैमान से भी बढ़कर यहाँ पर उपस्थित है। {परन्तु तुम ने वास्तव में उस बात को नहीं सुना है जो मैं कह रहा हूँ।} इसलिए, जिस समय पर परमेश्वर सभी लोगों का न्याय करेगा, वह खड़ी होकर इस समय में रहने वाले लोगों पर दोष लगाएगी। 32 प्राचीन नीनवे नगर में रहने वाले लोग अपने पापी तरीकों से फिर गए थे जब योना ने उन पर प्रचार किया था। और इस समय पर मैंने, जो योना से भी बढ़कर हूँ, आकर तुम पर प्रचार किया। {परन्तु तुम अपने पापी तरीकों से नहीं फिरे।} इसलिए, जिस समय परमेश्वर सभी लोगों का न्याय करेगा, तब नीनवे में रहने वाले लोग खड़े होकर इस समय में रहने वाले लोगों पर दोष लगाएँगे। 33 जो लोग एक दीया जलाते हैं उसे छिपाते या उसे एक टोकरी के नीचे नहीं रखते हैं। बजाए इसके, वे उसे एक दीवट पर रखते हैं ताकि जो कोई कमरे में प्रवेश करे वह उजियाले को देख सके। 34 तेरी आँख तेरी देह में उजियाला आने देती है। यदि तेरी आँख ठीक से काम कर रही है, तो तेरी पूरी देह उजियाले से भर जाएगी। परन्तु यदि तेरी आँख ठीक से काम नहीं कर रही है तो तेरी देह को कोई उजियाला नहीं मिलेगा। 35 इसलिए, सावधान रह यह न सोच कि तेरी आँख सही काम कर रही है और उजियाले को भीतर आने दे रही है यदि वह वास्तव में सही काम नहीं कर रही है और किसी उजियाले को भीतर आने नहीं दे रही है। 36 इसलिए यदि उजियाला तेरी देह के प्रत्येक अंग में प्रवेश कर रहा है, इस कारण से उसका कोई भी अंग अन्धकार में नहीं है, तो तेरी सारी देह उजियाले से भर जाएगी। तेरे भीतर सब जगह उज्ज्वल प्रकाश चमकेगा, जैसे कि एक दीए का उज्ज्वल प्रकाश तेरे ऊपर सब जगह चमकता है।” 37 जब यीशु ने उन बातों को कहना समाप्त कर लिया तो उसके पश्चात एक फरीसी ने उसे अपने साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। इसलिए यीशु उस फरीसी के घर में गया और भोजन करने के लिए मेज़ पर बैठ गया। 38 उस फरीसी ने आश्चर्य किया जब उसने देखा कि यीशु ने भोजन खाने से पूर्व विधिपूर्वक अपने हाथों को धोया नहीं था। 39 यीशु ने उससे कहा, “तुम फरीसी लोग भोजन करने से पहले प्यालों और बरतनों के बाहरी भाग को धोते हो, परन्तु तुम्हारे भीतर से तुम बहुत ही लालची और दुष्ट हो। 40 तुम मूर्ख लोगों! निश्चित रूप से तुम जानते हो कि परमेश्वर ने न केवल बाहरी भाग को बनाया, परन्तु भीतरी भाग को भी बनाया है! 41 {बरतनों के विधिपूर्वक साफ-सुथरा होने के विषय में चिन्ता करने के बजाए, दयालु बनो और} जो लोग आवश्यकता में हैं उनको बरतन के अंदर जो कुछ भी है वह दो। तब तुम्हारे भीतरी भाग और बाहरी भाग दोनों ही परमेश्वर को स्वीकार्य होंगे। 42 परन्तु तुम फरीसियों के लिए यह कितना भयानक होगा! तुम्हारे पास जो कुछ भी है तुम उसका दसवाँ भाग परमेश्वर को सावधानीपूर्वक देते हो, यहाँ तक कि उन जड़ी-बूटियों समेत भी जिनको तुम अपने बगीचों में उगाते हो। परन्तु फिर तुम दूसरों के प्रति परमेश्वर का प्रेम या निष्पक्षता नहीं दिखाते हो। तुम को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुम जो परमेश्वर को देने के अलावा, ऐसा करते हो। 43 तुम फरीसियों के लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम आराधनालयों में सबसे महत्वपूर्ण आसनों पर बैठना पसंद करते हो, और तुम चाहते हो कि लोग तुम को {विशेष सम्मान के साथ} बाजारों में नमस्कार करें। 44 तुम्हारे लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम बिना चिन्ह वाली उन कब्रों के समान हो जिन पर लोग बिना जाने चढ़ जाते हैं और इसलिए औपचारिक रूप से अशुद्ध हो जाते हैं।” 45 यहूदी व्यवस्था के शिक्षक जो वहाँ उपस्थित थे उनमें से एक ने यीशु से शिकायत की, “हे गुरु, जब तू इस प्रकार की बातों को कहता है, तो तू हमारी भी आलोचना करता है!” 46 परन्तु यीशु ने प्रत्युत्तर दिया, “तुम जो यहूदी व्यवस्था के शिक्षक हो, तुम्हारे लिए भी यह कितना भयानक होगा! मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि तुम लोगों को बहुत सारे नियमों का पालन करने के लिए कहते हो, तौभी तुम उनकी सहायता करने के लिए छोटे से छोटे काम को भी नहीं करोगे। 47 तुम्हारे लिए यह कितना भयानक होगा, क्योंकि तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रों को चिन्हित करने के लिए भवनों का निर्माण करते हो, परन्तु तुम्हारे पूर्वज ही वे लोग थे जिन्होंने उनको मार डाला था! 48 इसलिए जब तुम उन भवनों का निर्माण करते हो, तो तुम घोषणा कर रहे होते हो कि तुम उसका अनुमोदन करते हो जो तुम्हारे पूर्वजों ने किया था जब उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला था। 49 इसलिए परमेश्वर ने, जो बहुत बुद्धिमान है, यह भी कहा, ‘मैं अपने लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूँगा। परन्तु वे उन्हें बहुत कष्ट देंगे। वे उनमें से कुछ को मार भी डालेंगे।’ 50 परिणास्वरूप, इस समय में रहने वाले लोगों को उन सब भविष्यद्वक्ताओं की हत्या के लिए दण्डित किया जाएगा जिनको इस संसार की उत्पत्ति के बाद से लोगों ने मार डाला है। 51 उन्हें उस प्रत्येक हत्या के लिए दण्डित किया जाएगा जो {आदम के पुत्र} हाबिल {जिसे उसके भाई कैन ने उसे मार डाला था} से लेकर जकर्याह {भविष्यद्वक्ता} की हत्या तक है, जिसे {मंदिर में} राजा के प्रतिनिधियों ने वेदी और पवित्र स्थान के बीच में मार डाला था। 52 यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों, तुम्हारे लिए यह कितना भयानक होगा। तुम परमेश्वर के विषय में जानने से लोगों को रोक रहे हो! तुम स्वयं तो परमेश्वर को जानते नहीं हो, और तुम बाकी लोगों के लिए बातों को कठिन बना देते हो जो परमेश्वर को बेहतर रूप से जानना चाहते हैं।” 53 {जब यीशु ने उन बातों को कहना समाप्त कर लिया तो उसके पश्चात,} वह फरीसी के घर से निकल कर चला गया। तब यहूदी व्यवस्था के शिक्षक और फरीसी उसके प्रति बहुत ही शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने लगे। उन्होंने उससे कई बातों के विषय में बड़ी बारीकी से प्रश्न किए। 54 वे उसे लगातार सुनते रहे कि वह कुछ अनुचित कहे ताकि वे उस पर झूठी शिक्षा देने का आरोप लगा सकें।

Chapter 12

1 इसी बीच में, हजारों लोग {यीशु के आसपास} इकट्ठा हो गए। वे लोग इतने सारे थे कि वे एक दूसरे पर चढ़ रहे थे। जो पहली बात उसने अपने चेलों से कही वह यह थी, “सावधान रहो कि तुम फरीसियों के समान न बनो, जो सार्वजनिक रूप से तो धार्मिक कार्य करते हैं परन्तु गुप्त में दुष्ट कामों को करते हैं। 2 लोगों के लिए अपने पापों को गुप्त रखने का प्रयास करना यह तो व्यर्थ है। किसी दिन परमेश्वर सब लोगों को वह सब कुछ बता देगा जिसे लोग छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। 3 किसी दिन लोग तुम्हारे द्वारा गुप्त रूप से कही गई हर बात को सार्वजनिक रूप से सुनेंगे। किसी दिन कोई जन सब लोगों को चिल्ला कर बताएगा कि वे सुनें कि तुम ने अपने कमरे में क्या फुसफुसाया है। 4 हे मेरे मित्रों, ध्यानपूर्वक सुनो! लोगों से मत डरो। वे तुम को मार सकते हैं, परन्तु उसके पश्चात वे तुम्हारे साथ उससे अधिक कुछ भी नहीं कर सकते हैं। 5 मैं तुम को बताऊँगा कि तुम को वास्तव में किससे डरना चाहिए। तुम को परमेश्वर से डरना चाहिए। उसके पास न केवल लोगों को मार डालने का अधिकार है, तत्पश्चात उसके पास उनको अधोलोक में डाल देने का अधिकार भी है! हाँ, मैं तुम से कहता हूँ कि परमेश्वर ही है जिससे तुम को वास्तव में डरना चाहिए! 6 गौरैयों के विषय में विचार करो। {उनका मूल्य इतना कम होता है कि} तुम दो छोटे सिक्कों में उनमें से पाँच को मोल ले सकते हो। और तौभी परमेश्वर उनमें से किसी को भी कभी भूलता नहीं! 7 यहाँ तक कि परमेश्वर जानता है कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं। डरो मत, क्योंकि तुम {परमेश्वर के लिए} बहुत गौरैयों से भी अधिक बढ़कर मूल्यवान हो। 8 मैं तुम से यह भी कहता हूँ कि यदि लोग दूसरे लोगों से कहते हैं कि वे मेरे चेले हैं, तो मैं, मनुष्य का पुत्र, परमेश्वर के स्वर्गदूतों से कहूँगा कि वे लोग मेरे ही चेले हैं। 9 परन्तु यदि वे अन्य लोगों से कहते हैं कि वे मेरे चेले नहीं हैं, तो मैं परमेश्वर के स्वर्गदूतों से कहूँगा कि वे लोग मेरे चेले नहीं हैं। 10 मैं तुम से यह भी कहता हूँ कि यदि लोग मुझ, मनुष्य के पुत्र, के विषय में बुरी बातों को बोलते हैं, तो इसके लिए परमेश्वर उनको क्षमा कर देगा। परन्तु यदि लोग पवित्र आत्मा के विषय में बुरी बातों को बोलते हैं, तो इसके लिए परमेश्वर उनको क्षमा नहीं करेगा। 11 इसलिए जब लोग तुम को आराधनालयों में लेकर आते हैं {कि वहाँ पर धार्मिक अगुवों के सामने तुम से प्रश्न करें} और अन्य लोगों के सामने जो उस देश में शक्ति को रखते हैं, तो इस विषय में चिन्ता मत करना कि तुम किस प्रकार से उनको उत्तर दोगे या इस विषय में कि तुम को क्या बोलना चाहिए, 12 क्योंकि पवित्र आत्मा उस समय पर ही तुम को बता देगा कि तुम को क्या बोलना चाहिए।” 13 तब भीड़ में से एक व्यक्ति ने यीशु से कहा, “हे गुरु, हमारे पिता की सम्पत्ति को मेरे साथ बाँट लेने के लिए मेरे भाई से कह दे!” 14 परन्तु यीशु ने प्रत्युत्तर में उससे कहा, “हे मनुष्य, लोगों में सम्पत्ति के विषय में जो झगड़े हैं उनको निपटाने के लिए किसी ने भी मुझे न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया है!” 15 फिर उसने सम्पूर्ण भीड़ से कहा, “किसी भी रीति से लालची न होने के विषय में सावधान रहो! किसी व्यक्ति के जीवन के विषय में जो मायने रखता है वह यह नहीं है कि उसके पास कितनी वस्तुएँ हैं।” 16 उसके पश्चात यीशु ने भीड़ को यह कहानी बताई: “किसी एक धनवान व्यक्ति के खेतों में बहुतायत से फसल उत्पन्न हुई। 17 वह अपने में ही विचार करने लगा, ‘मैं नहीं जानता कि क्या करना चाहिए, क्योंकि अपनी सारी फसल को भण्डार करके रखने के लिए मेरे पास {इतना बड़ा} कोई स्थान नहीं है!’ 18 फिर वह अपने में ही विचार करने लगा, ‘मैं जानता हूँ कि मैं क्या करूँगा! मैं अपने गेहूँ के डिब्बों को तोड़ डालूँगा और उनसे बड़े आकार के बनाऊँगा! तब मैं अपने सारे गेहूँ और अन्य वस्तुओं को उन नए बड़े-बड़े डिब्बों में भण्डार करके रखने पाऊँगा। 19 तब मैं स्वयं से कहूँगा, “अब मैंने बहुत वर्षों के लिए पर्याप्त वस्तुओं को भण्डार करके रख लिया है। इसलिए मैं जीवन को सरलता से व्यतीत करूँगा। मैं खाऊँगा और पीऊँगा और प्रसन्न रहूँगा!”’ 20 परन्तु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख मनुष्य! आज की रात तू मर जाएगा! तब जो सब वस्तुएँ तूने अपने लिए बचा कर रखी हुई हैं वह तेरी नहीं, परन्तु किसी अन्य की हो जाएँगी!”’ 21 तब यीशु ने इस उदाहरण को यह कहने के द्वारा समाप्त किया, “यही उन लोगों के साथ भी होगा जो केवल अपने लिए वस्तुओं को भण्डार करके रखते हैं और उन वस्तुओं को महत्व नहीं देते जिनको परमेश्वर मूल्यवान मानता है।” 22 फिर यीशु ने अपने चेलों से कहा, “यहाँ कुछ ऐसा है जो इस कहानी से तुम को सीखना चाहिए। चाहे तुम्हारे पास जीवित रहने हेतु खाने के लिए पर्याप्त भोजन हो या गर्म रहने के लिए पहनने को पर्याप्त कपड़े हों तौभी उनके विषय में चिन्ता मत करना। 23 अन्ततः, जो भोजन तुम खाते हो उससे बढ़कर महत्वपूर्ण तुम्हारा जीवन है, और जो कपड़े तुम पहनते हो उससे बढ़कर महत्वपूर्ण तुम्हारी देह है। 24 पक्षियों के विषय में विचार करो। वे बीज नहीं बोते हैं, और वे फसल नहीं काटते हैं। उनके पास कमरे या भवन नहीं होते हैं जिनमें वे फसल को भण्डार करके रखें, परन्तु परमेश्वर उनके लिए भोजन उपलब्ध करवाता है। और निश्चित रूप से तुम पक्षियों से अधिक बढ़कर मूल्यवान हो। 25 तुम में से कोई भी अपने जीवन में उसके विषय में चिन्ता करने के द्वारा एक घड़ी भी जोड़ नहीं सकता है। 26 इसलिए क्योंकि तुम यह एक छोटा सा काम भी नहीं कर सकते, तो निश्चित रूप से तुम को किसी अन्य बात के विषय में भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। 27 जिस रीति से फूल उन्नति करते हैं उस पर विचार करो। वे धन कमाने के लिए काम नहीं करते हैं, और न ही वे अपने स्वयं के कपड़ों को बनाते हैं। परन्तु मैं तुम को बताता हूँ कि राजा सुलैमान, {जो बहुत समय पहले जीवित था और} जिसने महिमामय वस्त्रों को धारण किया था, उसने भी कभी किसी फूल के समान सुन्दर रूप से वस्त्र धारण नहीं किए थे। 28 परमेश्वर पौधों को भी सुन्दर बनाता है, भले ही वे केवल थोड़े समय के लिए उन्नति करते हैं। फिर लोग उनको काट डालते हैं और उनको आग में झोंक देते हैं। {परन्तु तुम परमेश्वर के लिए अत्यन्त मूल्यवान हो।} वह तुम्हारी चिन्ता उससे भी बढ़कर करता है जितनी चिन्ता वह पौधों की करता है। जितना तुम करते हो तुम को उससे बढ़कर परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। 29 जहाँ तक तुम्हारी बात है, इस विषय में अचम्भित मत हो कि तुम क्या खाओगे और पियोगे, और {उन बातों के विषय में} चिन्ता करते ही मत रहना। 30 जबकि वे सब लोग जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं ऐसी ही बातों के विषय में चिन्ता करते हैं {तो तुम आश्वस्त हो सकते हो कि} स्वर्ग में विराजमान तुम्हारा पिता जानता है कि तुम को उनकी आवश्यकता है। 31 बजाए इसके, इस पर ध्यान लगाओ कि तुम परमेश्वर के राज्य के लिए क्या कर सकते हो। जब तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारे लिए आवश्यक सब वस्तुओं को उपलब्ध करवाने के लिए तुम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हो। 32 इसलिए हे मेरे मित्र, तुम को डरना नहीं चाहिए। स्वर्ग में विराजमान तुम्हारा पिता चाहता है कि तुम उसके राज्य का हिस्सा बनो {और उसके सब लाभों को प्राप्त करो}। 33 इसलिए जो वस्तुएँ तुम्हारे पास हैं उनको बेच दो और वह धन उन लोगों को दे दो जिनको जीवित रहने के लिए भोजन या कपड़ों या एक स्थान की आवश्यकता है। अपने लिए ऐसे बटुए ले लो जो फटते न हों। मेरा अर्थ है कि स्वर्ग में धन को जमा करो जहाँ वह सर्वदा सुरक्षित रहेगा। वहाँ कोई चोर किसी भी वस्तु को चुरा नहीं सकता है और कोई भी कीड़ा तुम्हारे कपड़ों को नष्ट नहीं करेगा। 34 अन्ततः, जिस किसी भी वस्तु को तुम जमा करते हो, यह वही है जिसके विषय में तुम विचार करते रहोगे और अपने समय को खर्च करोगे। 35 {सर्वदा} तैयार रहो {परमेश्वर का काम करने के लिए,} उन लोगों के समान जिन्होंने अपने काम करने वाले कपड़ों को पहन लिया है और पूरी रात दीए को जलाए रखते हैं। 36 तैयार रहो {मेरे लौट आने के लिए,} उन दासों के समान जो विवाह के भोज में सम्मिलित होने के पश्चात अपने स्वामी के लौट आने की प्रतीक्षा कर रहे हों। वे प्रतीक्षा कर रहे हैं कि जैसे ही वह पहुँचे और द्वार खटखटाए तो वे उसके लिए शीघ्रता से द्वार को खोल दें। 37 यह उन दासों के लिए बहुत ही भला होगा यदि वे उस समय पर जाग रहे हों जब उनका स्वामी लौटता है। मैं तुम को यह बताता हूँ: वह दास के समान वस्त्र पहन कर, और उनको बैठने के लिए कहकर उनको भोजन परोसने के द्वारा उनको पुरस्कृत करेगा। 38 भले ही यदि वह शाम के समय में या आधी रात में विलम्ब से घर आता है, तो यदि वह पाता है कि उसके दास जागे हुए हैं और उसके लिए तैयार हैं, तो वह उनसे अत्यन्त प्रसन्न हो जाएगा। 39 और मैं चाहता हूँ कि तुम इस पर ध्यान दो: यदि किसी घर का स्वामी जानता होता कि एक चोर आ रहा है, और किस समय पर आ रहा है, तो वह जागता रहता और उस चोर को अपने घर में सेंध लगाने नहीं देता। 40 इसलिए तैयार रहो, क्योंकि, मैं, मनुष्य का पुत्र, ऐसे समय पर वापस आऊँगा जब तुम मेरी अपेक्षा न करते हो। 41 पतरस ने पूछा, “हे प्रभु, क्या तू यह उदाहरण हमें, तेरे चेलों के लिए ही दे रहा है? या फिर इस भीड़ के लिए भी है?” 42 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं यह उस हर एक जन के लिए कह रहा हूँ जो उस विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास के समान है जो अपने स्वामी के घर में एक भण्डारी है। उसका स्वामी उसे अपने अन्य दासों पर सरदार इसलिए ठहराता है, ताकि वह यह सुनिश्चित करे कि वे सब अपना भोजन सही समय पर प्राप्त करें। 43 यदि उसका स्वामी घर आकर देखे कि वह अपने काम को कर रहा है, तो वह उस दास को पुरस्कृत करेगा। 44 मैं तुम को यह बताता हूँ: वह स्वामी उस दास को अपनी सारी सम्पत्ति पर सरदार ठहराएगा। 45 परन्तु वह दास जिसे सरदार ठहराया गया स्वयं से कहे कि, ‘मेरा स्वामी लम्बे समय के लिए दूर जा रहा है।’ तब वह अन्य दासों को पीटने लगे। सम्भवतः वह खाने और बहुत पीने लगे, और पियक्कड़ हो जाए। 46 यदि वह ऐसा करता है, तो उसका स्वामी ऐसे समय पर वापस आएगा जिसके लिए वह दास अपेक्षा न करता हो। तब उसका स्वामी उसे गम्भीर रूप से दण्डित करेगा और उसे उन लोगों के साथ स्थान देगा जो उसकी सेवा विश्वासयोग्यता के साथ नहीं करते हैं। 47 वह दास जो जानता था कि उसका स्वामी क्या चाहता था परन्तु तैयार रहकर उसे नहीं किया तो वह गम्भीर रूप से दण्डित किया जाएगा। 48 परन्तु हर एक वह दास जो नहीं जानता कि उसका स्वामी उससे क्या करवाना चाहता था, और फिर कुछ अनुचित करे, तो वह केवल सौम्य सा दण्ड पाएगा। वह स्वामी उन सारे ही दासों से बहुत अधिक की अपेक्षा करेगा जिनको उसने अधिक सौंपा हुआ है। और वह स्वामी उन दासों से तो और भी अधिक की अपेक्षा करेगा जिन पर उसने बहुत से उत्तरदायित्वों के साथ भरोसा किया हुआ है। 49 मैं लोगों के आत्मिक आवेश में हलचल मचाने के लिए आया हूँ। मैं चाहता था कि वे पहले से ही उन पर काम कर रहे होते! 50 शीघ्र ही मुझे भयंकर सताव से होकर जाना है। जब तक कि मैं अपने सताव को समाप्त नहीं कर लेता, तब तक मैं व्यथित रहूँगा। 51 तुम को जान लेना चाहिए कि मैं इसलिए नहीं आया ताकि लोग शान्तिपूर्वक मिल कर रहें। नहीं, तुम को समझना होगा कि बजाए इसके, लोग मेरे लिए और मेरे विरोध में पक्षपात करेंगे। 52 तैयार रहो, क्योंकि यही है जो होनेवाला है। पाँच लोगों के एक परिवार में, कुछ मुझ पर विश्वास करेंगे और कुछ नहीं करेंगे। परिवार के तीन सदस्य अन्य दो के विरोध में एक साथ मिल जाएँगे। 53 परिवार के सदस्यों में झगड़े होंगे। एक पिता अपने पुत्र का विरोध करेगा, या एक पुत्र अपने पिता का विरोध करेगा। एक माता अपनी पुत्री का विरोध करेगी, या एक पुत्री अपनी माता का विरोध करेगी। एक सास अपनी बहू का विरोध करेगी, या एक बहू अपनी सास का विरोध करेगी।” 54 उसने भीड़ से भी कहा, “जब तुम पश्चिम में एक घने बादल को आकार लेते हुए देखते हो , तो झट से तुम कहते हो, ‘वर्षा होने वाली है!’ और ऐसा होता भी है। 55 जब दक्षिण से हवा बहती है, तो तुम कहते हो, ‘यह दिन बहुत ही गर्म होने वाला है!’ और तुम सही होते हो। 56 हे पाखण्डियों! बादलों और हवा पर ध्यान करने के द्वारा, तुम यह समझने में सक्षम हो कि मौसम के विषय में क्या हो रहा है। तुम को यह समझने में भी सक्षम होना चाहिए कि इस वर्तमान समय में परमेश्वर क्या कर रहा है! 57 तुम में से प्रत्येक को अपने स्वयं के लिए निर्णय लेना चाहिए कि क्या सही है! 58 यहाँ एक काम है जो तुम को करना चाहिए। जिस समय पर तुम अभी न्यायालय जाने के मार्ग में ही हो, तो तुम को उस व्यक्ति के साथ मामलों को निपटाने का प्रयास करना चाहिए जिसने तुम पर आरोप लगाया है। यदि वह तुम को न्यायाधीश के पास जाने के लिए विवश करता है, तो न्यायाधीश यह निर्णय ले सकता है कि तुम दोषी हो और तुमको न्यायालय के अधिकारी को सौंप सकता है। तब वह अधिकारी तुम को बन्दीगृह में डाल देगा। 59 मैं तुम से कहता हूँ कि यदि तुम बन्दीगृह में जाते हो, तो तुम तब तक वहाँ से कभी नहीं निकल पाओगे जब तक कि तुम न्यायाधीश के कहने पर जो कुछ तुम पर बकाया है, उसका एक-एक अंश चुकाने में सक्षम न हो जाओ।”

Chapter 13

1 उस समय पर, कुछ लोगों ने जो वहाँ भीड़ में थे यीशु को इस विषय में बताया जो कुछ गलीलवासियों के साथ हाल ही में घटित हुआ था। रोमी राज्यपाल, पिलातुस ने सैनिकों को उन गलीलवासियों को मार डालने का आदेश दिया था जिस समय पर वे यरूशलेम के मंदिर में बलिदान चढ़ा रहे थे। 2 यीशु ने उनको प्रत्युत्तर दिया, “क्या तुम सोचते हो कि ऐसा उन गलील में रहने वालों के साथ इसलिए घटित हुआ क्योंकि वे अन्य सब गलीलवासियों से भी अधिक बढ़कर पापी थे? 3 मैं तुम को आश्वासन देता हूँ, कि कारण यह नहीं था! बजाए इसके, यदि तुम अपने पापी व्यवहार से नहीं फिरे तो परमेश्वर तुम सब को भी उसी प्रकार से दण्डित करेगा। 4 या उन 18 लोगों के विषय में क्या जो तब मर गए थे जब उन पर शिलोह {के पड़ोस} में गुम्मट गिर पड़ा था? क्या तुम विचार करते हो कि उनके साथ ऐसा इस कारण से हुआ क्योंकि वे यरूशलेम में रहने वाले बाकी सब लोगों से अधिक बुरे पापी थे? 5 मैं तुम को आश्वासन देता हूँ, कि कारण यह नहीं था! परन्तु बजाए इसके, तुम को यह समझने की आवश्यकता है कि यदि तुम अपने पापी व्यवहार से नहीं फिरे तो परमेश्वर तुम सब को भी उसी प्रकार से दण्डित करेगा।” 6 फिर यीशु ने उनको यह कहानी बताई: “किसी मनुष्य ने अपने बगीचे में अंजीर का एक पेड़ लगाया। {प्रत्येक वर्ष} वह अंजीर लेने के लिए आया, परन्तु {सदा ही} उस में कुछ नहीं पाया। 7 तब उसने माली से कहा, ‘इस पेड़ को देख! मैंने पिछले तीन वर्षों से प्रत्येक वर्ष इस में फल की खोज कर रहा हूँ, परन्तु इसमें से कोई अंजीर नहीं मिला। इसे काट डाल! यह केवल व्यर्थ में मिट्टी में से पोषक तत्वों का उपयोग कर रहा है!’ 8 परन्तु माली ने प्रत्युत्तर में कहा, ‘हे महोदय, इसे यहाँ एक वर्ष के लिए और छोड़ दे। मैं उसके चारों ओर खुदाई करूँगा और खाद डालूँगा। 9 यदि इस में अगले वर्ष अंजीर लग जाएँ, तो हम इसे उन्नति करते रहने दे सकते हैं! परन्तु यदि उस समय तक उसमें कोई फल नहीं आता है, तो तू इसे काट सकता है।’” 10 यहूदियों के एक विश्रामदिन पर, यीशु एक आराधनालय में लोगों को शिक्षा दे रहा था। 11 वहाँ पर एक स्त्री थी जिसे एक दुष्टात्मा ने 18 वर्षों से अपंग किया हुआ था। वह सदा झुकी ही रहती थी। वह सीधी खड़ी नहीं हो सकती थी। 12 जब यीशु ने उसे देखा, तो उसने उसे अपने पास बुलाया। उसने उससे कहा, “हे स्त्री, मैंने तुझे इस व्याधि से चंगा कर दिया है!” 13 उसने अपने हाथों को उस पर रख दिया। वह झट से सीधी खड़ी हो गई और परमेश्वर की स्तुति करने लगी! 14 परन्तु आराधनालय का अगुवा क्रोधित हो गया था क्योंकि यीशु ने उसे यहूदियों के विश्रामदिन पर चंगा किया था। इसलिए उसने लोगों से कहा, “प्रत्येक सप्ताह में छः दिन ऐसे होते हैं जिनमें लोगों को काम करने की अनुमति हमारी व्यवस्था देती है। यदि तुम को चंगाई की आवश्यकता है, तो तुम को चंगा करने के लिए किसी के आराधनालय में आने के लिए वे दिन हैं। हमारे विश्राम के दिन में मत आओ!” 15 तब यीशु ने उसे प्रत्युत्तर दिया, “तू और तेरे साथी धार्मिक अगुवे पाखण्डी हैं! तुम में से प्रत्येक {कभी-कभी विश्राम के दिन भी काम करता है! उदाहरण के लिए, तू} अपने बैल या गधे को थान से ऐसे स्थान पर ले जाने के लिए खोलता है जहाँ वह पानी पी सकता है। 16 यह स्त्री एक यहूदी है, और अब्राहम की वंशज है! परन्तु शैतान ने उसे 18 वर्ष से अपंग कर रखा है, मानो उसने उसे बाँध दिया हो! निश्चित रूप से तू सहमत होगा कि यह उचित है कि मैं उसे इस अक्षम करने वाली बीमारी से मुक्त कर दूँ, भले ही मैं इसे विश्राम के दिन करूँ!” 17 उसके पश्चात उसने जो कहा, उसके शत्रु स्वयं ही लज्जित हो गए। परन्तु बाकी सब लोग उन सब अद्भुत कामों के विषय में प्रसन्न थे जो वह कर रहा था। 18 फिर उसने कहा, “मैं यह समझाना चाहता हूँ कि जब राजा के रूप में परमेश्वर शासन करता है तो यह किसके समान होगा। मैं तुम को समझने में सहायता के लिए एक चित्रण प्रदान करूँगा। 19 यह एक छोटे से राई के दाने के समान है जिसे एक व्यक्ति ने अपने खेत में बो दिया। उसने एक पेड़ के समान बड़े होने तक उन्नति की। वह इतना बड़ा हो गया कि पक्षियों ने भी उसकी शाखाओं पर घोंसले बना लिए।” 20 उसके पश्चात उसने फिर से कहा, “मैं तुम को एक और (मार्ग) बताऊँगा कि जब परमेश्वर शासन करे तो यह किसके समान होगा। 21 यह उस थोड़े से ख़मीर के समान है जिसे किसी स्त्री ने लगभग 25 किलोग्राम आटे में मिला दिया। उस थोड़ी सी मात्रा वाले ख़मीर ने आटे के उस सम्पूर्ण जत्थे को फुला दिया।” 22 यीशु ने यरूशलेम की ओर जाने की यात्रा को जारी रखा। वह मार्ग के सब नगरों और गाँवों में रुका और लोगों को उपदेश दिया। 23 किसी ने उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या परमेश्वर केवल थोड़े लोगों को ही बचाएगा?” यीशु ने उत्तर दिया ताकि वहाँ पर उपस्थित हर कोई सुन पाए, 24 “तुम को प्रवेश करने के लिए कठिन प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह अत्यन्त मुश्किल है। मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से लोग भीतर जाने का प्रयास करेंगे, परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ होंगे। 25 घर के स्वामी के उठ कर द्वार को बन्द कर देने के पश्चात, तुम बाहर ही खड़े रहोगे और द्वार को खटखटाओगे। और तुम स्वामी से विनती करोगे और उससे कहोगे, ‘हे प्रभु, हमारे लिए द्वार को खोल दे!’ परन्तु वह प्रत्युत्तर में कहेगा, ‘नहीं, मैं उसे नहीं खोलूँगा, क्योंकि मैं तुम को नहीं जानता, और मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के रहने वाले हो!’ 26 तब तुम कहोगे, ‘{तू अवश्य ही भूल गया होगा कि} हम ने तेरे संग भोजन किया था, और तूने हमारे नगरों की सड़कों पर हम को उपदेश दिया था!’ 27 परन्तु वह कहेगा, ‘मैं तुम से फिर से कहता हूँ, मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के रहने वाले हो। तुम सब दुष्ट लोग हो! यहाँ से चले जाओ!’” 28 {तब यीशु ने यह कहने के द्वारा जारी रखा,} “तुम अब्राहम और इसहाक और याकूब को {एक दूरी पर से} देखोगे। सभी भविष्यद्वक्ता जो बहुत पहले जीवित थे, वे भी वहाँ होंगे जहाँ राजा के रूप में परमेश्वर सब कुछ पर शासन करता है। परन्तु तुम रोते हुए और दु:ख में अपने दाँत पीसते हुए बाहर ही रहोगे! 29 परन्तु भीतर संसार के हर हिस्से से लोग होंगे, {जिनमें कई गैर-यहूदी लोग भी सम्मिलित हैं}। वे सब वहाँ एक साथ उत्सव मनाएँगे जहाँ राजा के रूप में परमेश्वर सब कुछ पर शासन करता है। 30 इस पर विचार करो: कुछ लोग जो इस समय सबसे कम महत्वपूर्ण लगते हैं, वे तब सर्वाधिक महत्वपूर्ण होंगे, और अन्य जो इस समय महत्वपूर्ण लगते हैं, वे तब सबसे कम महत्वपूर्ण होंगे।” 31 उसी दिन, कुछ फरीसी आये और यीशु से कहा, “इस क्षेत्र से चला जा, क्योंकि शासक हेरोदेस अन्तिपास तुझे मार डालना चाहता है!” 32 उसने उन्हें उत्तर दिया, "जाओ और उस चालाक मनुष्य से कह दो, {जो सोचता है कि वह मुझे चोट पहुँचा सकता है परन्तु जो वास्तव में नहीं कर सकता,} यह सन्देश मेरी ओर से है: ‘सुन! मैं अभी दुष्टात्माओं को निकाल रहा हूँ और चमत्कारों को कर रहा हूँ, और मैं थोड़े समय तक ऐसा ही करता रहूँगा। उसके पश्चात, मैं अपने काम को समाप्त कर दूँगा।’ 33 परन्तु मुझे आने वाले दिनों में यरूशलेम की अपनी यात्रा को भी जारी रखना जरुरी है, क्योंकि {यहूदी अगुवों ने सदा ही ऐसा काम किया है} यरूशलेम की तुलना में किसी अन्य स्थान पर किसी भविष्यद्वक्ता को मार डालना उचित नहीं है। 34 हे यरूशलेम के लोगों! तुम ने उन भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला जो बहुत पहले जीवित थे। फिर तुम ने उन लोगों को मार डाला जिन्हें परमेश्वर ने तुम्हारे पास भेजा था। तुम ने उन पर पत्थर फेंक कर उन्हें मार डाला। जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है, वैसे ही मैंने कई बार तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हें इकट्ठा करना चाहा है। परन्तु तुम नहीं चाहते थे कि मैं ऐसा करूँ। 35 अब देखो! हे यरूशलेम के लोगों, परमेश्वर अब तुम्हारी रक्षा नहीं करेगा। मैं तुम से यह भी कहूँगा: मैं तुम्हारे शहर में केवल एक बार फिर प्रवेश करूँगा। उसके पश्चात, जब तक मैं लौट न आऊँ, तब तक तुम मुझे न देखोगे, और तब तुम मेरे विषय में कहोगे, ‘परमेश्वर इस मनुष्य को आशीष दे जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आता है!’”

Chapter 14

1 एक दिन, जो कि विश्राम का दिन था, यीशु भोजन करने के लिए फरीसियों के अगुवों में से एक के घर पर गया। {उस अगुवे ने उसी भोज में दूसरे फरीसियों को भी आमंत्रित किया हुआ था।} वे सब के सब यीशु को {उस पर आरोप लगाने के किसी आधार को ढूँढ़ने के प्रयास में} बड़े ध्यानपूर्वक देख रहे थे। 2 वहीं पर यीशु के सामने एक मनुष्य था जिसको एक ऐसी बीमारी थी जिसके कारण उसके हाथ और पाँव बहुत सूज गए थे। 3 यीशु ने यहूदी व्यवस्था के विशेषज्ञों और फरीसियों से जो वहाँ पर उपस्थित थे पूछा, “क्या व्यवस्था में विश्राम के दिन में लोगों को चंगा करने की अनुमति दी गई है, या नहीं?” 4 उन्होंने उत्तर नहीं दिया। इसलिए यीशु ने अपने हाथों को उस मनुष्य पर रख कर उसे चंगा कर दिया। फिर उसने उस मनुष्य से कहा कि वह जा सकता है। 5 और उसने वहाँ पर उपस्थित अन्य लोगों से कहा, “यदि तुम में से किसी का पुत्र या बैल हो जो विश्राम के दिन में कुएँ में गिर जाए, तो क्या तुम उसे झटपट से बाहर नहीं खींच लोगे।” 6 फिर से, वे उसे उत्तर देने में असमर्थ थे। 7 यीशु ने ध्यान दिया कि जिन लोगों को भोज में आमंत्रित किया गया था वे उन आसनों पर बैठने का चुनाव कर रहे थे जहाँ सामान्य रूप से महत्वपूर्ण लोगों बैठते थे। इसलिए उसने उनको यह सुझाव दिया। 8 “जब कोई व्यक्ति तुम में से किसी को विवाह के भोज में आमंत्रित करे, तो उस स्थान पर मत बैठना जहाँ पर महत्वपूर्ण लोग बैठते हैं। यह हो सकता है कि उसने भोज में किसी ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित किया हो जो तुम से भी अधिक बढ़कर महत्वपूर्ण हो। 9 जब वह मेजबान जिसने तुम दोनों को ही आमंत्रित किया हुआ हो देखे कि तुम में से प्रत्येक जन कहाँ पर बैठा हुआ है, तो वह तुम से कहेगा, ‘इस व्यक्ति को अपने आसन पर बैठने दे!’ तब तुम को सबसे कम महत्वपूर्ण आसन पर बैठना पड़ेगा, और तुम को लज्जित भी होना पड़ेगा। 10 बजाए इसके, जब कोई व्यक्ति तुम को किसी भोज में आमंत्रित करे, तो जाकर सबसे कम महत्वपूर्ण स्थान पर बैठना। फिर जब वह मेजबान जिसने सब लोगों को आमंत्रित किया है आएगा, तो वह तुम से कहेगा, ‘हे मित्र, आकर उत्तम आसन पर बैठ!’ तब वे सब लोग जो तुम्हारे साथ भोजन कर रहे हैं देखेंगे कि वह तुम्हारा सम्मान कर रहा है। 11 क्योंकि परमेश्वर उनको नम्र करेगा जो स्वयं को बड़ा बनाते हैं, और वह उनको बड़ा बनाएगा जो स्वयं को नम्र करते हैं।” 12 यीशु ने उस फरीसी से भी जिसने उसे भोज के लिए आमंत्रित किया था कहा, “जब तू दिन के भोजन या रात के भोजन के लिए लोगों को आमंत्रित करे, तो केवल अपने मित्रों, कुटुम्बियों, या धनवान पड़ोसियों को ही आमंत्रित मत करना, क्योंकि बाद में वे भी तुझे भोज में आमंत्रित करने के द्वारा तेरा बदला चुका देंगे। 13 बजाए इसके, जब तू भोज रखे, तो कंगालों, अपंगों, लंगड़ों या अंधों को आमंत्रित कर। 14 यदि तू ऐसा करे, तो परमेश्वर तुझे पुरस्कृत करेगा, क्योंकि वे लोग तेरा बदला चुकाने में असमर्थ होंगे। तू सुनिश्चित हो सकता है कि परमेश्वर तुझे उस समय पर इसे वापस चुकाएगा जब वह धर्मी लोगों को फिर से जीवित करेगा।” 15 जो लोग उसके साथ भोजन कर रहे थे उनमें से एक ने उसे यह कहते हुए सुना। उसने यीशु से कहा, “परमेश्वर ने हर उस जन को वास्तव में आशीषित किया है जो वहाँ पर उत्सव मनाने पाएँगे जहाँ राजा के रूप में परमेश्वर सब कुछ पर शासन करता है!” 16 यीशु ने उसे प्रत्युत्तर दिया, “एक बार एक व्यक्ति ने एक बड़ा भोज तैयार किया। उसने बहुत सारे लोगों को आने के लिए आमंत्रित किया। 17 जब भोज का समय आया, तो जिन लोगों को उसने आमंत्रित किया था उनके पास उसने अपने दास को यह कहने को भेजा, ‘अब आ जाओ, क्योंकि सब कुछ तैयार है!’ 18 परन्तु जब दास ने ऐसा किया, तो वे सब लोग जिनको उसने आमंत्रित किया था बताने लगे कि वे क्यों नहीं आ सकते। उस पहले व्यक्ति ने जिसके पास वह दास गया था कहा, ‘मैंने अभी-अभी एक खेत मोल लिया है, और मुझे वहाँ जाकर उसे देखना आवश्यक है। कृपया अपने स्वामी से मुझे न आने हेतु क्षमा कर देने के लिए कह देना!’ 19 दूसरे व्यक्ति ने कहा, ‘मैंने अभी-अभी बैलों के पाँच जोड़े मोल लिए हैं, और मुझे जाकर उन्हें परखना आवश्यक है। कृपया अपने स्वामी से मुझे न आने हेतु क्षमा कर देने के लिए कह देना।’ 20 एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘मैंने अभी-अभी विवाह किया है, इसलिए मैं आ नहीं सकता।’ 21 इसलिए वह दास अपने स्वामी के पास लौट आया और सब लोगों ने जो कहा था वह उसे बता दिया। घर के स्वामी ने अत्यन्त क्रोधित होकर अपने दास से कहा, ‘नगर की गलियों और रास्तों में शीघ्रता से जाओ और कंगालों को और अपंगों को और अंधों को और लंगड़ों को ढूँढ़कर उनको यहाँ मेरे घर में लेकर आओ!’ 22 {उसके पश्चात} वह दास {चला गया और वैसा ही किया, और वह वापस आया और} बोला, ‘हे महोदय, तूने मुझ से जो करने के लिए बोला था मैंने वह कर दिया है, परन्तु यहाँ अभी भी और लोगों के लिए स्थान बचा हुआ है।’ 23 इसलिए उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘तो फिर नगर के बाहर चला जा। राजमार्गों पर लोगों की खोज कर। बाड़ वाली संकरी सड़कों पर भी खोज कर। उन स्थानों में रहने वाले लोगों से मेरे घर में आने के लिए दृढ़तापूर्वक आग्रह कर। मैं चाहता हूँ कि वह लोगों से भर जाए! 24 इसके अलावा मैं तुझ से कहता हूँ कि वे मनुष्य जिनको मैंने पहले आमंत्रित किया था मेरे भोज का आनन्द नहीं ले पाएँगे, {क्योंकि उन्होंने आने से मना कर दिया}।’” 25 लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु के साथ यात्रा कर रही थी। वह लोगों की ओर मुड़ा और उनसे कहा, 26 “यदि कोई मेरे पास आता है जो अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों से अधिक बढ़ कर प्रेम करता है जितना वह मुझ से प्रेम करता है, तो वह मेरा चेला नहीं बन सकता है। उसे मुझे उससे भी बढ़ कर प्रेम करना है जितना वह अपने स्वयं के जीवन से करता है। 27 जो कोई भी अपना स्वयं का क्रूस नहीं उठाता और मेरा आज्ञापालन नहीं करता तो वह मेरा चेला नहीं बन सकता है। 28 अन्ततः, यदि तुम में से कोई गुम्मट बनाना चाहता हो, तो सर्वप्रथम तुम बैठ जाओगे और यह निर्धारित करोगे कि इसमें कितना खर्चा होगा। इस तरह से तुमको पता चल जाएगा कि तुम्हारे पास इसे पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा है या नहीं। 29 अन्यथा, यदि तुम नींव डाल दो और बाकी के गुम्मट को पूरा करने में असमर्थ हो, तो जो कोई भी यह देखेगा वह तुम्हारा उपहास करेगा। 30 वे कहेंगे, ‘इस मनुष्य ने गुम्मट को बनाना आरम्भ तो किया, परन्तु वह उसे पूरा करने में असमर्थ था!’ 31 या मान लो कि एक राजा के पास सेना में 10,000 सैनिक थे। और मान लो कि कोई अन्य राजा उस पर आक्रमण करने के लिए आ रहा था जिसके पास 20,000 सैनिक थे। तो अपनी सेना को युद्ध करने के लिए बाहर निकालने से पूर्व, सर्वप्रथम वह राजा निश्चित रूप से अपने सलाहकारों के साथ बैठ कर यह निर्धारित करेगा कि वह दूसरे राजा की सेना को पराजित कर सकता है या नहीं। 32 मान लो कि उसने यह निर्धारित किया है कि उसकी सेना दूसरी सेना को पराजित नहीं कर सकती है। तब वह सन्देशवाहकों को उस दूसरे राजा के पास भेजेगा जबकि अभी उसकी सेना दूर ही हो। वह अपने सन्देशवाहकों को उससे यह पूछने के लिए कहेगा, ‘तुझ से शान्ति स्थापित करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’ 33 अतः, उसी प्रकार से, यदि तुम में से कोई सर्वप्रथम यह निर्णय नहीं लेता कि जो कुछ तुम्हारे पास है तुम उसे त्याग देने के इच्छुक हो, तो तुम मेरे चेले नहीं बन सकते हो।” 34 {यीशु ने यह भी कहा,, “तुम ऐसे हो जैसे कि} नमक {, जो कि} अत्यन्त उपयोगी होता है। परन्तु यदि नमक अपना नमकीनपन खो दे, तो कोई भी उसे फिर से कभी नमक का स्वाद नहीं दे सकता है। 35 {यदि नमक में अब नमक का स्वाद नहीं रहा तो,} अब वह किसी काम का नहीं रहा, न तो भूमि के लिए और न ही खाद के लिये। लोग उसे केवल फेंक देते हैं। जो तुम ने मुझे अभी-अभी कहते हुए सुना है उसके विषय में तुम को ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए!”

Chapter 15

1 अब, बहुत से चुंगी लेने वाले और अन्य लोग जिनको धार्मिक अगुवे पापी मानते थे यीशु के पास उसे शिक्षा देते हुए सुनने के लिए चले आ रहे थे। 2 {जब} फरीसियों और यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों ने {यह देखा, तो वे} कुड़कुड़ाने लगे। उन्होंने कहा, “यह मनुष्य तो पापियों का स्वागत करता है और यहाँ तक कि उनके साथ भोजन भी करता है।” {उन्होंने सोचा कि ऐसा करने के द्वारा यीशु स्वयं को अशुद्ध कर रहा था।} 3 इसलिए यीशु ने उनको यह दृष्टान्त बताया: 4 “मान लो कि तुम में से एक के पास 100 भेड़ें हैं और तुम उनमें से एक को खो देते हो। निश्चित रूप से तुम उन अन्य 99 भेड़ों को जंगल में छोड़ कर और जाकर उस खोई हुई भेड़ को तब तक ढूँढ़ते रहोगे जब तक कि वह तुम को मिल न जाए। 5 और जब वह तुम को मिल जाए, तो तुम आनन्दपूर्वक उसे उसे घर ले जाने के लिए अपने कंधों पर उठा लोगे। 6 फिर जब तुम घर पहुँच जाओगे, तो तुम अपने मित्रों और पड़ोसियों को एक साथ बुला कर उनसे कहोगे, : ‘मेरे साथ आनन्दित होओ, क्योंकि मेरी वह भेड़ मुझे मिल गई है जो खो गई थी!’ 7 तुम जान लो कि, इसी प्रकार से, वहां स्वर्ग में जो हैं उनके मध्य में आनन्द मनाया जाता है जब एक पापी अपने पापों से पश्चाताप करता है। वह आनन्द उन बहुत से लोगों पर किए गए आनन्द से कहीं अधिक बढ़ कर है जो पहले से ही परमेश्वर के साथ सही हैं और जिनको पश्चाताप करने की आवश्यकता नहीं है। 8 या मान लो कि एक स्त्री के पास चांदी के दस मूल्यवान सिक्के हों परन्तु वह उनमें से एक को खो दे। निश्चित रूप से वह एक दीया जलाएगी और फर्श को बुहारेगी, और तब तक ध्यानपूर्वक खोजती रहेगी जब तक कि वह उसे मिल न जाए। 9 जब वह उसे मिल जाए, तो वह अपने मित्रों और पड़ोसियों को एक साथ बुलाएगी और उनसे कहेगी, : ‘मेरे साथ प्रसन्न होओ, क्योंकि मेरा वह सिक्का मुझे मिल गया है जो खो गया था!’ 10 मैं तुम को बताता हूँ कि, इसी प्रकार से, परमेश्वर के स्वर्गदूतों के मध्य में वहां बहुत आनन्द मनाया जाता है जब एक पापी अपने पापों से पश्चाताप करता है। 11 फिर यीशु ने जारी रखते हुए कहा, “एक बार एक व्यक्ति था जिसके दो पुत्र थे। 12 एक दिन छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा, ‘हे पिता, मुझे अभी ही अपनी सम्पत्ति का वह हिस्सा दे दे जो मुझे तब मिलता जब तेरी मृत्यु हो जाती।’ अतः पिता ने अपनी सम्पत्ति को अपने दोनों पुत्रों के मध्य में बाँट दिया। 13 केवल कुछ ही दिनों के पश्चात, छोटे पुत्र ने सब कुछ इकट्ठा किया जो उसका अपना था और एक दूर देश की ओर यात्रा की। वहाँ उस देश में उसने अपने सारे धन को मूर्खतापूर्ण रीति से व्यर्थ और अनैतिक जीवन जीने में खर्च कर दिया। 14 उसके अपना सारा धन खर्च कर देने के पश्चात, वहां उस सम्पूर्ण देश में भयंकर अकाल पड़ा। शीघ्र ही उसके पास जीवित रहने के लिए कुछ भी बचा नहीं रहा। 15 इसलिए वह उस देश में रहने वाले एक व्यक्ति के पास गया और उससे उसे भाड़े में रख लेने के लिए निवेदन किया। अतः उस व्यक्ति ने अपने खेतों में उसे अपने सूअरों को चराने के लिए भेज दिया। 16 {वह इतना भूखा हो गया कि} वह चाहता था कि वह उन सेम की फलियों को खा सके जिनको सूअर खाते थे, तौभी उसे किसी ने कुछ नहीं दिया। 17 अन्ततः वह स्पष्ट रूप से इस विषय में विचार करने लगा कि वह कितना मूर्ख था, और उसने स्वयं से कहा: ‘मेरे पिता के सारे ही भाड़े के दासों को खाने के लिए पर्याप्त से भी अधिक भोजन मिलता है, परन्तु मैं यहाँ इसलिए मर रहा हूँ क्योंकि मेरे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है! 18 इसलिए मैं यहाँ से निकल कर और अपने पिता के पास वापस चला जाऊँगा। मैं उससे कहूँगा, “हे पिता, मैंने परमेश्वर के विरोध में और तेरे विरोध में पाप किया है। 19 मैं इस योग्य नहीं हूँ कि अब तू मुझे अपना पुत्र समझे। कृपया मुझे तेरे भाड़े पर रखे हुए दासों में से एक के समान ही तेरे लिए काम करने दे।”’ 20 अतः वह वहाँ से निकला और अपने पिता के घर को वापस जाने के लिए यात्रा को आरम्भ किया। परन्तु जब वह अभी भी घर से बहुत दूर था, उसके पिता ने उसे देखा और उसके लिए अथाह करुणा की अनुभूति की। वह दौड़ कर अपने पुत्र के पास गया और उसे गले से लगा लिया और उसके गाल पर चूम लिया। 21 उसके पुत्र ने उससे कहा, ‘हे पिता, मैंने परमेश्वर के विरोध में और तेरे विरोध में पाप किया है। इसलिए मैं इस योग्य नहीं हूँ कि अब तू मुझे अपना पुत्र समझे।’ 22 परन्तु उसके पिता ने अपने दासों से कहा; ‘शीघ्रता से जाओ और मेरा सबसे उत्तम परिधान लेकर आओ और उसे मेरे पुत्र को पहनाओ। साथ ही उसकी उंगली में अंगूठी और उसके पाँवों में जूतियाँ पहनाओ! 23 और उस बछड़े को लेकर आओ जिसे हम ने विशेष समारोह के लिए मोटा किया हुआ है और उसे मार डालो, ताकि हम उसे खाएँ और उत्सव मनाएँ! 24 हमें उत्सव इसलिए मनाना है क्योंकि मेरा यह पुत्र मर चुके व्यक्ति के समान हो गया था, परन्तु अब वह फिर से जी उठा है! वह एक खोए हुए व्यक्ति के समान हो गया था, परन्तु हम ने उसे फिर से प्राप्त कर लिया है!’ इसलिए वे उत्सव मनाने लगे। 25 {जिस समय पर यह सब कुछ घटित हो रहा था,} उस समय उस पिता का बड़ा पुत्र बाहर खेतों में काम कर रहा था। {जब उसने काम करना समाप्त कर लिया तो उसके पश्चात,} वह घर की ओर चल पड़ा। जब वह घर के निकट पहुँचा, तो उसने लोगों को संगीत बजाते और नाचते हुए सुना। 26 उसने दासों में से एक को बुला कर पूछा कि क्या हो रहा है। 27 उस दास ने उससे कहा, ‘तेरा भाई घर लौट आया है। तेरे पिता ने हम से उत्सव मनाने के लिए मोटे बछड़े को मारने के लिए बोला था क्योंकि तेरा भाई सुरक्षित और स्वस्थ लौट आया है।’ 28 परन्तु बड़ा भाई क्रोधित हो गया और उसने उत्सव में सम्मिलित नहीं होना चाहा। इसलिए उसका पिता बाहर आया और उससे भीतर आने के लिए याचना की। 29 परन्तु उसने अपने पिता को प्रत्युत्तर दिया, ‘सुन! इन सारे वर्षों में मैंने तेरे लिए एक गुलाम के समान कठोर परिश्रम किया है। जो कुछ भी तूने मुझे करने के लिए बोला मैंने उसका सदा ही पालन किया है। परन्तु तूने मुझे कभी बकरी के बच्चे के जितना भी नहीं दिया जिसे मैं अपने मित्रों के लिए एक भोज की मेजबानी करने के लिए उपयोग कर सकूँ। 30 परन्त अब जब तेरा यह पुत्र, तेरे धन को वेश्याओं पर उड़ा देने के पश्चात घर वापस आ गया है और तूने अपने दासों से उत्सव मनाने के लिए मोटे बछड़े को मारने के लिए बोला है!’ 31 परन्तु उसके पिता ने उससे कहा, ‘हे मेरे पुत्र, तू तो सदा से मेरे साथ है, और जो कुछ मेरे पास है वह तेरा ही तो है। 32 परन्तु हमारे लिए उत्सव मनाना और आनन्दित होना ही उचित है, क्योंकि यह ऐसा है जैसे कि तेरा भाई मर गया था और फिर से जी उठा है! यह ऐसा है जैसे वह खो गया था और वह हमें फिर से मिल गया है!’”

Chapter 16

1 यीशु ने अपने चेलों से यह भी कहा, “एक समय में एक धनवान व्यक्ति था जिसके पास एक घर का भण्डारी था। एक दिन किसी व्यक्ति ने उस धनवान को सूचित किया कि वह भण्डारी ऐसा बुरा काम कर रहा था कि वह धनवान अपना बहुत सा धन गँवाए जा रहा था। 2 इसलिए उसने उस भण्डारी को अपने पास बुलाया और उससे कहा, ‘जो मैंने सुना है कि जो तू कर रहा है वह भयानक है! मुझे लिखित में उन वस्तुओं की अन्तिम जानकारी दे जिनका प्रबन्ध तू कर रहा है, क्योंकि अब तू मेरे घर का भण्डारी बना नहीं रहेगा!’ 3 तब उस भण्डारी ने स्वयं से कहा, ‘मेरा स्वामी मुझे उसका भण्डारी बने रहने से निकालने वाला है, इसलिए मुझे सोचना पड़ेगा कि क्या करना चाहिए। मैं इतना बलवंत भी नहीं हूँ कि गड्ढे खोदने का काम करूँ, और भीख माँगने में मैं लज्जित होता हूँ। 4 मैं जानता हूँ कि मैं क्या करूँगा जिससे कि लोग मुझे अपने घरों में बुला लेंगे {और मेरे लिए प्रावधान करेंगे} जब वह मेरे भण्डारीपन के काम से मुझे निकाल देगा!’ 5 इसलिए उसने उन सभी को एक-एक करके उसके पास आने के लिए कहा, जिनके पास उसके स्वामी का पैसा बकाया था। उसने पहले से कहा, ‘मेरे स्वामी का तुझ पर कितना बकाया है?’ 6 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘3,000 लीटर जैतून का तेल।’ उस भण्डारी ने उससे कहा, ‘अपनी खाता-बही ले, और बैठ जा, और झटपट से इसे 1,500 लीटर में बदल दे!’ 7 उसने दूसरे व्यक्ति से कहा, ‘तुझ पर कितना बकाया है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘1,000 टोकरी गेहूँ।’ उस भण्डारी ने उससे कहा, ‘अपनी खाता-बही ले और इसे 800 टोकरियों में बदल दे!’ 8 {जब} स्वामी ने {सुना कि उसके भण्डारी ने क्या किया है, तो उसने} उस कपटी भण्डारी के बहुत चतुर होने के लिए उसकी बड़ाई की। सत्य यह है कि, इस संसार के रहनेवाले लोग इस विषय में परमेश्वर के लोगों से अधिक बढ़कर चतुर हैं कि वे अपने आसपास के लोगों से कैसे मेलजोल रखते हैं। 9 मैं तुम से कहता हूँ, इस संसार में जो धन तुम्हारे पास है उसका स्वयं के लिए मित्र बनाने के लिए उपयोग करो। उस समय पर जब धन समाप्त हो जाएगा, वे मित्र अपने घरों में तुम्हारा स्वागत करेंगे, जो कि अन्त तक बना रहेगा। 10 ऐसे लोग जो थोड़े से धन का विश्वासयोग्यता के साथ प्रबन्धन करते हैं वे अधिक बड़ी मात्रा में भी विश्वासयोग्य रहेंगे। ऐसे लोग जो थोड़ी मात्रा में धन का प्रबन्धन करने के तरीके में कपटी हैं, वे अधिक बड़ी मात्रा में भी कपटी रहेंगे। 11 इसलिए यदि तुम ने इस संसार में विश्वासयोग्यता के साथ उस धन को (जो परमेश्वर ने तुम को दिया है) नहीं सम्भाला है, तो वह निश्चित रूप से {स्वर्ग के} सच्चे धन के विषय में तुम पर भरोसा नहीं करेगा। 12 यदि तुम ने उस सम्पत्ति का जो अन्य लोगों की है विश्वासयोग्यता के साथ प्रबन्धन नहीं किया है, तो तुम को किसी से यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि वह तुम को तुम्हारी स्वयं की सम्पत्ति देगा। 13 कोई भी दास एक ही समय पर दो अलग-अलग स्वामियों की सेवा करने में सक्षम नहीं होता है। यदि उसने ऐसा करने का प्रयास किया, तो वह एक से द्वेष रखेगा और दूसरे से प्रेम रखेगा, या वह उनमें से एक के प्रति निष्ठावान रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा। तुम अपना जीवन परमेश्वर की सेवा करने में समर्पित नहीं कर सकते यदि तुम अपना जीवन धन और अन्य भौतिक सम्पत्तियों को प्राप्त करने के लिए भी समर्पित कर रहे हो।” 14 जब फरीसियों ने {जो वहाँ पर उपस्थित थे} यह सुना जिसकी यीशु शिक्षा दे रहा था, तो उन्होंने उसका उपहास किया क्योंकि वे धन प्राप्त करने से प्रीति रखते थे। 15 परन्तु यीशु ने उनसे कहा, “तुम दूसरे लोगों को यह सोचने देने का प्रयास करते हो कि तुम धर्मी हो, परन्तु परमेश्वर जानता है कि वास्तव में तुम किसके समान हो। ध्यान रखो कि परमेश्वर उन बहुत सी वस्तुओं को घृणित मानता है जिनकी लोग बहुत महत्वपूर्ण के जैसे प्रशंसा करते हैं। 16 जो व्यवस्था परमेश्वर ने मूसा को दी और जो बातें भविष्यद्वक्ताओं ने लिखीं, वे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के आने तक प्रभावी थीं। तब से, मैं इस विषय में शुभ सन्देश का प्रचार कर रहा हूँ कि परमेश्वर राजा के रूप में कैसे शासन करेगा। बहुत से लोग {मेरे संदेश को स्वीकार कर रहे हैं और} बहुत उत्सुकता से परमेश्वर के राज्य का हिस्सा बनने का प्रयास कर रहे हैं। 17 परमेश्वर की सम्पूर्ण व्यवस्था, यहाँ तक कि वह जो महत्वहीन लगती है, स्वर्ग और पृथ्वी से भी अधिक स्थायी है। 18 कोई पुरुष जो अपनी पत्नी से विवाह-विच्छेद करके और दूसरी स्त्री से विवाह करता है तो वह व्यभिचार करता है, और कोई पुरुष जो उस स्त्री से विवाह करे जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया हो तो वह भी व्यभिचार करता है।” 19 {यीशु ने यह भी कहा,} “एक बार एक धनवान व्यक्ति था जो बहुमूल्य बैंगनी और सनी के वस्त्र पहना करता था। वह प्रतिदिन भव्य भोज दिया करता था। 20 और {प्रतिदिन} लोग एक निर्धन व्यक्ति को जिसका नाम लाज़र था उस धनवान व्यक्ति के घर के द्वार पर लिटा दिया करते थे। लाज़र की देह घावों से ढकी हुई थी। 21 {वह इतना भूखा था कि} वह भोजन के उन टुकड़ों को खाना चाहता था जो उस मेज़ से गिरे थे जहाँ उस धनवान व्यक्ति भोजन किया था। {जब वह वहाँ लेटा हुआ था,} तो कुत्तों ने आकर उसके घावों को चाट लिया। 22 अन्ततः वह निर्धन व्यक्ति मर गया। फिर स्वर्गदूत उसे {उसके पूर्वज} अब्राहम के साथ रहने के लिए ले गए। वह धनवान भी मर गया, और लोगों ने उसके शव को गाड़ दिया। 23 मरे हुओं के स्थान में, वह धनवान अत्यन्त पीड़ा को झेल रहा था। और उसने दृष्टि उठा कर बहुत दूरी पर इब्राहीम को देखा और लाज़र को इब्राहीम के बहुत समीप में बैठा हुआ। 24 इसलिए वह धनवान व्यक्ति चिल्लाया, ‘हे पिता अब्राहम, मैं यहाँ इस अग्नि में अत्यधिक पीड़ित हो रहा हूँ! इसलिए कृपया मुझ पर दया कर और लाज़र को यहाँ पर भेज दे ताकि वह अपनी उंगली को पानी में डुबोए और मेरी जीभ को ठण्डा करने के लिए उसे छू ले!’ 25 परन्तु अब्राहम ने प्रत्युत्तर में कहा, ‘मेरे बच्चे, स्मरण कर कि जिस समय पर तू पृथ्वी पर जीवित था तब तूने बहुत सी अच्छी वस्तुओं का आनन्द लिया। परन्तु लाज़र दुःखित था। अब वह यहाँ पर प्रसन्न है, और तू पीड़ित हो रहा है। 26 इसके अलावा, परमेश्वर ने हमारे और तेरे बीच में एक बड़ी खाई ठहराई है। इसलिए जो कोई यहाँ से वहाँ तेरे पास जाना चाहे वे ऐसा करने में असमर्थ हैं। इससे भी बढ़कर, न ही कोई वहाँ से यहाँ तक जहाँ हम हैं पार करके नहीं आ सकता है।’ 27 तब उस धनवान व्यक्ति ने कहा, ‘यदि ऐसा है तो, हे पिता अब्राहम, मैं तुझ से विनती करता हूँ कि लाज़र को मेरे घराने के पास भेज दे। 28 मेरे पाँच भाई हैं {जो वहाँ रहते हैं}। उससे उनको चेतावनी देने के लिए कह दे ताकि वे भी इस स्थान में आने न पाएँ जहाँ हम अत्यन्त पीड़ा को झेलते हैं!’ 29 परन्तु अब्राहम ने प्रत्युत्तर में कहा, ‘{नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा क्योंकि} तेरे भाइयों के पास वह है जो मूसा ने और भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत समय पहले लिख दिया था। जो उन्होंने लिखा है उनको उसका पालन करना चाहिए!’ 30 परन्तु उस धनवान व्यक्ति ने प्रत्युत्तर में कहा, ‘नहीं, हे पिता अब्राहम, {यह पर्याप्त नहीं होगा}! परन्तु यदि कोई उनमें से जो मर गए हैं उनके पास वापस जाए और उनको चेतावनी दे, तो वे अपने पापी व्यवहार से फिर जाएँगे।’ 31 परन्तु अब्राहम ने उससे कहा, ‘इसलिए वे उन बातों का पालन नहीं करते जो मूसा ने और भविष्यद्वक्ताओं ने लिखी हैं। फिर तो यह भी उनकी सहायता नहीं कर पाएगा कि यदि कोई उनमें से जो मर चुके हैं जाकर उनको चेतावनी दे। वे तब भी विश्वास नहीं करेंगे कि उनको अपने पापी व्यवहार से फिर जाना चाहिए।’”

Chapter 17

1 यीशु ने अपने चेलों से कहा, “ऐसी बातें जो लोगों को पाप करने के लिए परीक्षा में डालती हैं वे निश्चित रूप से घटित होती हैं। परन्तु यह उस मनुष्य के लिए कितना भयंकर होगा कि जो उन बातों को घटित होने देता है! 2 उस मनुष्य के लिए यह अच्छा होगा कि यदि कोई व्यक्ति एक बड़ा सा पत्थर उसके गले में बाँध दे और उसे समुद्र में फेंक दे बजाए इसके कि वह उनमें से किसी जन से पाप करवाए जिनका विश्वास दुर्बल था। 3 सावधान रहो कि तुम कैसे व्यवहार करते हो। यदि कोई अन्य विश्वासी पाप करता है, तो तुम को उसे फटकारना चाहिए। यदि वह कहे कि वह पाप करने के लिए खेदित है और तुम से उसे क्षमा कर देने के लिए विनती करे, तो तुम को उसे क्षमा कर देना चाहिए। 4 यहाँ तक कि यदि वह तेरे विरोध में एक दिन में सात बार भी पाप करे, यदि वह तेरे पास हर बार आये और कहे, ‘जो मैंने किया है मैं उसके लिए खेदित हूँ,’ तो तुझे उसे क्षमा करते रहना चाहिए।” 5 तब प्रेरितों ने यीशु से कहा, “हमें और अधिक विश्वास प्रदान कर!” 6 यीशु ने प्रत्युत्तर में कहा, “यहाँ तक कि यदि तुम्हारा विश्वास ऐसा हो जो इस छोटे से राई के बीज से भी बड़ा न हो, तब तुम इस शहतूत के पेड़ से कह सकते हो, ‘स्वयं को भूमि में से जड़ों समेत उखाड़ ले, और समुद्र में जा लग,’ और वह तुम्हारा आज्ञापालन करेगा!” 7 {यीशु ने यह भी कहा,} “मान लो कि तुम में से किसी के पास एक दास हो जो खेत में हल जोत रहा था या तुम्हारी भेड़ों की रखवाली कर रहा था। उसके खेतों में से वापस घर पर आने के पश्चात, तुम यह नहीं कहोगे, ‘झटपट आ और भोजन करने के लिए बैठ जा!’ 8 बजाए इसके, तुम उससे कहोगे, ‘मेरे लिए भोजन तैयार कर! अतः अपने सेवा करने के वस्त्रों को पहन और मुझे भोजन परोस ताकि मैं खाऊँ और पीऊँ! उसके पश्चात ही तू खा और पी सकता है।’ 9 तुम उस काम को करने के लिए अपने दास का धन्यवाद नहीं करोगे जिसे करने के लिए उससे कहा गया था! 10 इसी रीति से, जब तुम उन सब कामों को कर चुकते हो जिसे करने के लिए परमेश्वर ने तुम से कहा था, तो तुम को कहना चाहिए, ‘हम तो केवल परमेश्वर के दास हैं। हम इस योग्य नहीं हैं कि तू हमें धन्यवाद बोले। हम ने केवल उन कामों को किया है जिनको करने के लिए तूने हम से कहा था।’” 11 जब यीशु और उसके चेले यरूशलेम जाने वाली सड़क पर चल रहे थे, तो वे सामरिया और गलील क्षेत्रों के मध्य के इलाके से होकर जा रहे थे। 12 जब यीशु ने एक गाँव में प्रवेश किया, तो दस कोढ़ी उसके पास आए, परन्तु वे थोड़ी दूरी पर ही खड़े हो गए। 13 उन्होंने पुकार कर कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, कृपया हम पर दया कर।” 14 जब यीशु ने उन्हें देखा, तो उसने उनसे कहा, “जाकर याजकों से अपनी जाँच करवाओ।” इसलिए वे चले गए, और मार्ग में ही, उनका कोढ़ मिट गया। 15 तब उनमें से एक ने जब उसने देखा कि अब उसे कोढ़ नहीं है, तो वह ऊँचे स्वर से परमेश्वर की स्तुति करता हुआ वापस आया। 16 {वह यीशु के पास आया और} यीशु के पाँवों में वह मुँह के बल लेट गया, और उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। वह व्यक्ति सामरिया का रहने वाला था। 17 तब यीशु ने कहा, “मैंने तो दस कोढ़ियों को चंगा किया था! मैंने तो बाकी के नौ से भी वापस आने की अपेक्षा की थी! 18 यह परदेशी व्यक्ति ही केवल एक ऐसा था जो परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिए लौट आया। अन्य लोगों में से कोई भी वापस नहीं लौटा!” 19 फिर उसने उस व्यक्ति से कहा, “उठ कर अपने मार्ग पर चला जा। क्योंकि तूने मुझपर भरोसा किया इसलिए परमेश्वर ने तुझे चंगा कर दिया है।” 20 एक दिन कुछ फरीसियों ने यीशु से पूछा, “परमेश्वर सब लोगों पर शासन करना कब आरम्भ करेगा?” उसने प्रत्युत्तर दिया, “यह उन संकेतों के साथ घटित नहीं होगा जिनको यदि लोग देखें तो उन्हें पहचान सकें। 21 लोग यह कहने में सक्षम नहीं होंगे कि, ‘देखो! परमेश्वर यहाँ शासन कर रहा है!’ या ‘परमेश्वर वहाँ शासन कर रहा है!’ {जो तुम विचार करते हो उसके विपरीत,} परमेश्वर ने पहले से ही तुम्हारे मध्य में शासन करना आरम्भ कर दिया है।” 22 यीशु ने अपने चेलों से कहा, “ऐसा समय आएगा जब तुम मुझ, मनुष्य के पुत्र, को सामर्थी रूप से शासन करते हुए देखना चाहोगे, परन्तु तुम उसे देख नहीं पाओगे। 23 तुम से लोग कहेंगे, ‘देखो, मसीह वहाँ पर है!’ या वे कहेंगे, ‘देखो, वह यहाँ पर है!’ {जब वे ऐसा कहें,} तो उनका अनुसरण मत करना। 24 क्योंकि जब बिजली चमकती है और आकाश को एक ओर से दूसरी ओर तक प्रकाशित करती है, {तो हर कोई उसे देख सकता है}। उसी प्रकार से, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, वापस आऊँगा, तो हर कोई मुझे देखने पाएगा। 25 परन्तु इसके घटित होने से पूर्व, मुझे बहुत बातों में दुःख उठाना अवश्य है, और लोग मुझे अस्वीकार कर देंगे। 26 परन्तु जब मैं, मनुष्य का पुत्र, वापस आऊँगा, तो लोग वैसे ही कामों को कर रहे होंगे जिस प्रकार से उस समय के लोग कर रहे थे जब नूह जीवित था। 27 उस समय पर लोग {सामान्य रूप से} खाते और पीते थे, और वे {सामान्य रूप से} विवाह किया करते थे, उस दिन के आने तक जब नूह और उसके परिवार ने उस विशाल नाव में प्रवेश नहीं किया। परन्तु फिर बाढ़ आई और उन सब को नष्ट कर दिया जो नाव के भीतर नहीं थे। 28 उसी प्रकार से, जब लूत {सदोम नगर में} रहा करता था, तो {वहाँ रहने वाले} लोग {सामान्य रूप से} खाते और पीते थे। वे वस्तुओं को मोल लिया करते थे और वे वस्तुओं को बेचा करते थे। उन्होंने {सामान्य रूप से} फसलों को बोया और उन्होंने घरों का निर्माण किया। 29 परन्तु उस दिन जब लूत सदोम से निकला, अग्नि और गंधक आकाश से बरसे और उन सब को नष्ट कर दिया जो नगर के भीतर रुके हुए थे। 30 उसी प्रकार से, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, पृथ्वी पर वापस आऊँगा, तो लोग तैयार नहीं होंगे। 31 उस दिन, वे लोग जो अपने घरों से बाहर हों और उनका सब सामान उनके पास घरों के भीतर हो, तो उन्हें समय निकाल कर उनको लेने के लिए भीतर नहीं जाना चाहिए। उसी प्रकार से, जो लोग बाहर खेत में काम कर रहे हों उन्हें कोई भी सामान लेने के लिए घर वापस नहीं लौटना चाहिए {उनको झटपट से भाग जाना चाहिए।} 32 जो लूत की पत्नी के साथ घटित हुआ था उसे स्मरण रखें! 33 जो कोई भी अपने स्वयं के तरीके से जीवन जीना जारी रखता है, वह मर जाएगा। परन्तु जो कोई भी {मेरी खातिर} जीवन जीने के अपने पुराने तरीके को त्याग देता है, वह सदा के लिए जीवित रहेगा। 34 मैं तुम से यह कहता हूँ: उस रात में जब मैं वापस आऊँगा, तब दो लोग एक ही खाट पर सो रहे होंगे। जो मुझ पर विश्वास करता है परमेश्वर उस व्यक्ति को उठा लेगा और दूसरे व्यक्ति को वहीं छोड़ देगा। 35 दो स्त्रियाँ एक साथ गेहूँ पीसती होंगी। परमेश्वर उनमें से एक को उठा लेगा और दूसरी को वहीं पर छोड़ देगा।” 36 [“दो जन खेत में होंगे; एक को उठा लिया जाएगा और दूसरे को छोड़ दिया जाएगा।”] 37 उसके चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यह कहाँ पर घटित होगा?” उसने उनको प्रत्युत्तर दिया, “जहाँ कहीं भी कोई मृत देह होगी, वहाँ उसे खाने के लिए गिद्ध इकट्ठा होंगे।”

Chapter 18

1 यीशु ने अपने चेलों को यह सिखाने के लिए एक और कहानी सुनाई कि उनको लगातार प्रार्थना करनी चाहिए और {यदि परमेश्वर तुरन्त ही उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं देता है तो} हतोत्साहित नहीं होना चाहिए 2 उसने कहा, “एक नगर में एक न्यायाधीश रहता था जो न तो परमेश्वर से डरता था और न ही लोगों के विषय में परवाह करता था। 3 उस नगर में एक विधवा रहती थी जो उस न्यायाधीश के पास आ-आकर कहा करती थी, ‘कृपया मुझे उस व्यक्ति के सामने न्याय दिला जो न्यायालय में मेरा विरोध कर रहा है।’ 4 एक लम्बे समय तक वह न्यायाधीश उसकी सहायता करने से मना करता रहा। परन्तु बाद में, उसने स्वयं से कहा, ‘मैं न तो परमेश्वर से डरता हूँ और न ही लोगों के विषय में परवाह करता हूँ। 5 परन्तु यह विधवा मुझे परेशान करती रहती है! इसलिए मैं उसके मामले का न्याय करूँगा और सुनिश्चित करूँगा कि उसके साथ उचित रीति से व्यवहार किया गया है। मैं चिन्तित हूँ कि यदि मैंने ऐसा नहीं किया, तो वह लगातार मेरे पास आ-आकर मुझे थका देगी!’” 6 तब यीशु ने कहा, “इस विषय में सावधानीपूर्वक विचार करो कि इस अधर्मी न्यायी ने क्या कहा है। 7 {इससे भी बढ़कर} निश्चित रूप से परमेश्वर {, जो न्यायी है,} अपने उन चुने हुए लोगों के लिए न्याय लेकर आएगा, जो दिन भर उससे आग्रहपूर्वक प्रार्थना करते हैं! और वह सदा उनके साथ धीरज रखता है। 8 मैं तुम से कहता हूँ कि परमेश्वर तुरन्त ही अपने उन चुने हुओं के लिए न्याय लेकर आएगा! तौभी, जब मैं, मनुष्य का पुत्र, पृथ्वी पर वापस आऊँगा, तब भी यहाँ बहुत से ऐसे लोग होंगे जो मुझ पर विश्वास नहीं करते होंगे।” 9 फिर यीशु ने कुछ ऐसे लोगों को भी निम्नलिखित कहानी बताई जो सोचते थे कि वे धर्मी हैं और अन्य लोगों को तुच्छ समझते थे। 10 {उसने कहा,} “दो पुरुष प्रार्थना करने के लिए यरूशलेम के मंदिर में गए। उनमें से एक पुरुष फरीसी था। और दूसरा पुरुष कोई ऐसा जन था जो रोमी सरकार के लिए लोगों से कर वसूला करता था। 11 उस फरीसी ने खड़े होकर स्वयं के विषय में इस रीति से प्रार्थना की, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं अन्य लोगों के समान नहीं हूँ। कुछ लोग अन्यों का धन चुरा लेते हैं। कुछ अन्यों के साथ अन्यायपूर्ण रीति से व्यवहार करते हैं। कुछ व्यभिचार करते हैं। मैं इनमें से कोई भी काम नहीं करता हूँ। और निश्चित रूप से मैं इस पापी चुंगी लेने वाले के समान भी नहीं हूँ जो लोगों के साथ छल करता है! 12 मैं प्रत्येक सप्ताह के दौरान दो दिनों को उपवास रखता हूँ, और जो कुछ भी मैं मंदिर में से कमाता हूँ उसका दसवाँ भाग मैं दान करता हूँ!’ 13 परन्तु वह चुंगी लेने वाला मंदिर के आँगन में अन्य लोगों से दूर खड़ा हो गया। यहाँ तक कि उसने ऊपर स्वर्ग की ओर भी नहीं देखा। बजाए इसके, उसने अपनी छाती को पीट-पीटकर कहा, ‘हे परमेश्वर, कृपया मुझे क्षमा कर, क्योंकि मैं एक भयंकर पापी हूँ!’” 14 फिर यीशु ने कहा, “मैं तुम से कहता हूँ कि जब वे घर से निकालकर चले गए, तो परमेश्वर ने उस चुंगी लेने वाले को क्षमा कर दिया था, परन्तु परमेश्वर ने उस फरीसी को क्षमा नहीं किया था। ऐसा इसलिए था क्योंकि परमेश्वर हर उस जन को नम्र करेगा जो स्वयं को बड़ा बनाता है, और परमेश्वर हर उस जन को बड़ा बनाएगा जो स्वयं को नम्र करता है।” 15 एक दिन लोग अपने बच्चों को भी यीशु के पास ला रहे थे ताकि वह उन पर अपने हाथ रखे और उन्हें आशीर्वाद दे। जब चेलों ने यह देखा तो उन्होंने उनसे ऐसा न करने को कहा। 16 परन्तु यीशु ने बच्चों को उसके पास लेकर आने के लिए बोला। उसने कहा, “छोटे बच्चों को मेरे पास आने दो! उन्हें मत रोको, क्योंकि यह लोग इन बच्चों की तरह {नम्र और निर्भर} हैं जो परमेश्वर को अपने जीवनों पर शासन करने देते हैं। 17 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई नम्रता और भोलेपन से परमेश्वर को अपने जीवन पर शासन करने नहीं देगा वह परमेश्वर के शासन को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा।” 18 एक बार एक यहूदी अगुवे ने यीशु से पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन प्राप्त करने की खातिर मुझे क्या करना चाहिए?” 19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? केवल परमेश्वर ही एकमात्र है जो वास्तव में उत्तम है! 20 {और तेरे प्रश्न के उत्तर में, निश्चित रूप से} तू उन आज्ञाओं को जानता है {जिनको परमेश्वर ने मूसा को हमारे लिए पालन करने हेतु दिया था}: ‘व्यभिचार मत करना। किसी की हत्या मत करना। चोरी मत करना। झूठी जानकारी मत देना। अपने पिता और माता का आदर करना।’” 21 उस व्यक्ति ने कहा, “मैंने तो उन सब आज्ञाओं का पालन तब से ही किया है जब मैं जवान था।” 22 जब यीशु ने उसे ऐसा कहते हुए सुना, तो उसने उसे प्रत्युत्तर दिया, “तुझे अभी भी एक और काम करने की आवश्यकता है। जो कुछ भी तेरे पास है उसे बेच दे। फिर उस धन को ऐसे लोगों को दान कर दे जिनके पास जीवित रहने के लिए बहुत थोड़ा ही है। परिणाम यह होगा कि तुझे स्वर्ग में आत्मिक धन प्राप्त होगा। तब आकर मेरा चेला हो जा!” 23 जब उसने यह सुना तो वह व्यक्ति जो बहुत दुःखी हो गया, क्योंकि वह अत्यन्त धनी था। 24 जब यीशु ने उस व्यक्ति को देखा तो कहा, “जो धनी हैं यह उन लोगों के अति कठिन है कि वे परमेश्वर को उन पर शासन करने दें। 25 बल्कि, धनवान लोगों के परमेश्वर को अपने जीवनों पर शासन करने देने की तुलना में एक ऊँट के लिए यह सरल है कि वह सूई के नाके में से निकल जाए।” 26 जिन लोगों ने यीशु को यह कहते हुए सुना उन्होंने प्रत्युत्तर दिया, “तब तो लगता है कि परमेश्वर इस पर ध्यान नहीं देगा कि किसी को अनन्त जीवन प्राप्त हो!” 27 परन्तु यीशु ने कहा, “जो लोगों के लिए असम्भव है वह परमेश्वर के लिए सम्भव है।” 28 तब पतरस ने कहा, “तो हमारे विषय में क्या? हम ने तो तेरे चेले होने की खातिर जो कुछ हमारे पास था वह सब कुछ त्याग दिया है।” 29 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम को आश्वस्त कर सकता हूँ कि वे जिन्होंने अपने घरों को, अपनी पत्नियों को, अपने भाइयों को, अपने माता-पिता को, या अपनी सन्तानों को परमेश्वर को उन पर शासन करने देने की खातिर त्याग दिया है 30 वे इस जीवन में जितना उन्होंने पीछे छोड़ दिया है उससे कहीं अधिक बढ़कर प्राप्त करेंगे और, आने वाले समय में, वे अनन्त जीवन को प्राप्त करेंगे।” 31 यीशु अपने साथ उन 12 चेलों को एक स्थान पर लेकर गया। उसने उनसे कहा, “ध्यानपूर्वक सुनो! हम यरूशलेम जाने के अपने मार्ग पर हैं। जब हम वहाँ होंगे, तो जो कुछ भी भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत समय पहले मुझ, मनुष्य के पुत्र, के विषय में लिखा था, वह घटित होगा। 32 यह तब घटित होगा जब मेरे शत्रु मुझे उन अधिकारियों के हाथों में सौंप देंगे जो यहूदी नहीं हैं। ने मेरा ठठ्ठा करेंगे, तिरस्कार सहित मुझ से व्यवहार करेंगे, और मुझ पर थूकेंगे। 33 वे मुझे कोड़े मारेंगे और फिर वे मुझे मार डालेंगे। परन्तु दो दिनों के पश्चात मैं फिर से जी उठूँगा।” 34 परन्तु वे चेले उनमें से किसी भी बात को नहीं समझे जो उसने कही थीं। परमेश्वर ने उन्हें उनके महत्व को पहचानने से रोक दिया, इसलिए वे नहीं जान पाए कि जो यीशु उनसे कह रहा था उससे उसका क्या अर्थ था। 35 जब यीशु और उसके चेले यरीहो नगर के समीप पहुँचे, तो एक अंधा व्यक्ति सड़क के किनारे पर बैठा हुआ था। वह धन के लिए भीख माँग रहा था। 36 जब उसने लोगों की भीड़ को पास से जाते हुए सुना, तो {जो उसके आसपास थे} उनसे वह पूछने लगा, “क्या हो रहा है?” 37 उन्होंने उसे बताया, “{यहाँ एक भीड़ है क्योंकि} वह व्यक्ति यीशु, जो नासरत का रहने वाला है, सड़क पर से जा रहा है।” 38 वह पुकार उठा, “हे यीशु, तू जो राजा दाऊद का वंशज है, मुझ पर दया कर!” 39 जो लोग भीड़ के आगे-आगे चल रहे थे उन्होंने उसे डाँटा और उससे चुप रहने के लिए बोला। परन्तु वह तो और भी अधिक ऊँचे स्वर में पुकारने लगा, “तू जो राजा दाऊद का वंशज है, मुझ पर दया कर!” 40 यीशु चलते-चलते रुक गया और लोगों को आदेश दिया कि उस व्यक्ति को उसके पास लेकर आएँ। जब वह अंधा व्यक्ति उसके पास आया, तो यीशु ने उससे पूछा, 41 “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” उसने प्रत्युत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं चाहता हूँ कि तू मुझे देखने में सक्षम बना दे!” 42 यीशु ने उससे कहा, “तो मैं अब तेरी दृष्टि को ठीक करता हूँ! क्योंकि तूने मुझ पर भरोसा किया, इसलिए मैंने तुझे चंगा कर दिया!” 43 तुरन्त ही वह देखने में सक्षम हो गया। और वह परमेश्वर की स्तुति करता हुआ, यीशु के साथ हो लिया। और जब वहाँ पर उपस्थित सब लोगों ने यह देखा, तो उन्होंने भी परमेश्वर की स्तुति की।

Chapter 19

1 यीशु यरीहो में प्रवेश करके उस नगर से होकर जा रहा था। 2 वहाँ पर एक मनुष्य था जिसका नाम जक्कई था। वह कर वसूलने वालों का सरदार था, और वह बहुत धनी था। 3 वह यीशु को देखना चाहता था, परन्तु वह भीड़ के ऊपर से उसे देख नहीं पाया। वह एक नाटा व्यक्ति था {और यीशु के चारों ओर बहुत से लोग थे}। 4 इसलिए वह सड़क पर दौड़ कर आगे गया। वह एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया ताकि जब यीशु वहाँ से होकर जाए तो वह उसे देख पाए। 5 जब यीशु वहाँ पहुँचा, तो उसने ऊपर देखकर उससे कहा, “हे जक्कई, झटपट से नीचे उतर आ, मुझे आज रात को तेरे घर में ठहरना आवश्यक है!” 6 अतः वह झटपट से नीचे उतर आया। वह अपने घर के भीतर यीशु का स्वागत करते हुए आनन्दित था। 7 परन्तु जिन लोगों ने यीशु को वहाँ जाते हुए देखा तो वे कुड़कुड़ा कर कहने लगे, “वह तो एक वास्तविक पापी के यहाँ मेहमान बन कर गया है।” 8 तब जक्कई ने खड़े होकर जिस समय पर वे भोजन कर रहे थे यीशु से कहा, “हे प्रभु, मैं चाहता हूँ कि तू जान ले कि मैं अपनी आधी सम्पत्ति कंगालों लोगों को देने वाला हूँ। और उसी प्रकार बदले में उन लोगों को जिनके साथ मैंने छल किया, तो जो मैंने उनसे लिया था मैं उनको उस राशि का चार गुणा वापस भुगतान कर दूँगा।” 9 यीशु ने उससे कहा, “आज परमेश्वर ने इस घराने को बचा लिया है, क्योंकि इस व्यक्ति ने यह प्रकट किया है कि यह अब्राहम का एक सच्चा वंशज है। 10 इसे स्मरण रखो: मैं, मनुष्य का पुत्र, {तुम्हारे जैसे} लोगों को ढूँढ़ने और बचाने के लिए आया हूँ जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं कर रहे हैं।” 11 जो कुछ भी यीशु ने कहा लोग उसे सुन रहे थे। वह यरूशलेम के निकट आ रहा था{, और वह जानता था कि लोगों का विचार गलत है}। उन्होंने सोचा कि जैसे ही वह यरूशलेम पहुँचेगा, वह परमेश्वर के लोगों पर राजा के रूप में शासन करने लगेगा। इसलिए यीशु ने {उस विचार को सही करने के लिए} उन्हें एक और कहानी सुनाने का निर्णय लिया। 12 उसने कहा, “एक राजकुमार दूर देश में जाने की तैयारी कर रहा था ताकि सर्वोच्च राजा उसे उस देश पर शासन करने का अधिकार प्रदान करे जहाँ वह रहता था। जब उसे वह प्राप्त हो जाए, उसके पश्चात वह वापस आकर उसके लोगों पर शासन करे। 13 {उसके जाने से पूर्व,} उसने अपने दासों में से दस को बुलाया। उसने उनमें से प्रत्येक को एक समान धनराशि दी। उसने उनसे कहा, ‘जब तक मैं वापस न आऊँ तब तक इस धन से व्यापार करो!’ {तब वह चला गया।} 14 परन्तु उसके देश में रहने वाले बहुत से लोग उससे द्वेष रखते थे। इसलिए उन्होंने उसका पीछा करने के लिए और {सर्वोच्च राजा से} कहने के लिए कुछ दूतों को भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह पुरुष हमारा राजा बने!’ 15 {परन्तु फिर भी उसे राजा बना दिया गया। बाद में} वह एक नए राजा के रूप में लौटा। फिर उसने उन दासों को भीतर बुलवाया जिनको उसने धन दिया था। वह जानना चाहता था कि जो धन उसने उनको दिया था उससे व्यापार करने के द्वारा उन्होंने कितना लाभ कमाया था। 16 पहले दास ने उसके पास आकर कहा, ‘हे मदोहय, तेरे धन से मैंने दस गुणा अधिक कमाया है!’ 17 उसने उस पुरुष से कहा, ‘तू एक उत्तम दास है! तूने बहुत अच्छा किया है! क्योंकि तूने थोड़ी धनराशि का रखरखाव विश्वासयोग्य के साथ किया है, इसलिए मैं तुझे शासन करने के लिए दस नगर दूँगा।’ 18 तब दूसरे दास ने आकर कहा, ‘हे मदोहय, जो धन तूने मुझे दिया था उसका मूल्य अब पाँच गुणा अधिक है!’ 19 उसने उस दास से भी कहा, ‘{अच्छा किया!} मैं तुझे पाँच नगरों के ऊपर रखूँगा।’ 20 फिर एक और दास आया। उसने कहा, ‘हे मदोहय, तेरा धन यहाँ है। मैंने इसे सुरक्षित रखने के लिए इसे एक कपड़े में लपेट कर और उसे छिपा दिया था। 21 मैं डर गया था कि जो कुछ भी मैं कमाऊँगा तू वह ले लेगा। मैं जानता हूँ कि तू एक कठोर मनुष्य है जो अन्य लोगों से उन वस्तुओं को भी ले लेता है जो वास्तव में तेरी न हों। तू ऐसे किसान के समान है जो उस फसल को काट डालता है जिसे किसी दूसरे किसान ने लगाया था।’ 22 उसने उस दास से कहा, ‘हे दुष्ट दास! जो बातें तूने अभी कही हैं उन्हीं के द्वारा मैं तुझे दोषी ठहराऊँगा। तूने कहा कि मैं एक कठोर मनुष्य हूँ। तूने कहा कि मैं वह ले लेता हूँ जो मेरा नहीं होता। तूने कहा कि मैं ऐसे किसान के समान हूँ जो किसी और किसान के बोए हुए को काट डालता है। 23 तो कम से कम तुझे मेरा धन सर्राफों को दे देना चाहिए था! फिर जब मैं लौटता तो मैं उस राशि को और उस पर अर्जित ब्याज को वसूल कर सकता था!' 24 तब राजा ने उनसे जो पास ही में खड़े हुए थे कहा, ‘उससे वह धन ले लो और उस दास को दे दो जिसने दस गुणा अधिक बनाया है!’ 25 उन्होंने विरोध किया, ‘परन्तु महोदय, उसके पास पहले से ही बहुत धन है!’ 26 परन्तु राजा ने कहा, ‘मैं तुम से यह कहता हूँ: उन लोगों को जिन्होंने उसका अच्छे से उपयोग किया जो उन्होंने प्राप्त किया था, मैं उनको और भी दूँगा। परन्तु उन लोगों से जिन्होंने उसका अच्छे से उपयोग नहीं किया जो उन्होंने प्राप्त किया था, मैं उनसे वह भी छीन लूँगा जो पहले से उनके पास है। 27 अब, मेरे उन शत्रुओं के लिए जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर शासन करूँ, उनको यहाँ पर लेकर आओ और मेरे देखते-देखते ही उनको मार डालो!’” 28 यीशु के इन बातों को कहने के पश्चात, उसने यरूशलेम जाने के मार्ग पर आगे की यात्रा की। 29 जब वे जैतून पहाड़ के समीप, बैतफगे और बैतनिय्याह के गाँवों के निकट पहुँचे, तो उसने अपने दो चेलों को आगे भेजा। 30 उसने उनसे कहा, “अपने सामने के गाँव में जाओ। जब तुम उसमें प्रवेश करो, तो वहाँ तुम एक जवान गधे को बंधा हुआ देखोगे जिस पर कभी किसी ने सवारी नहीं की है। उसे खोल कर मेरे पास ले आओ। 31 यदि कोई तुम से पूछे, ‘तुम इस गधे को क्यों खोल रहे हो?’ तो उससे कह देना, ‘यीशु को इसकी आवश्यकता है।’” 32 अतः दो चेले उस गाँव में गए और वह गधा उनको मिल गया, जैसा कि यीशु ने उनसे कहा था। 33 जब वे उसे खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे कहा, “तुम हमारे गधे को क्यों खोल रहे हो?” 34 उन्होंने प्रत्युत्तर दिया, “यीशु को इसकी आवश्यकता है।” और उन मालिकों ने उसका उपयोग करने की उनको अनुमति दे दी। 35 फिर वे चेले उस गधे को यीशु के पास लेकर आए। उन्होंने अपने कपड़े उसे गधे की पीठ पर डाले और उस पर चढ़ने में यीशु की सहायता की। 36 फिर, जब वह उस पर सवार हो गया, तो उसके सम्मान में अन्यों ने अपने वस्त्रों को सड़क पर उसके सामने फैला दिया। 37 जब यीशु जैतून के पहाड़ से नीचे जाने वाली सड़क के पास पहुँचा, तो उसके चेलों की सम्पूर्ण भीड़ उन सब महान चमत्कारों के लिए जिनको करते हुए उन्होंने उसे देखा था ऊँचे और आनन्दित नारों के साथ परमेश्वर की स्तुति करने लगी। 38 वे इस प्रकार की बातों को कह रहे थे, “परमेश्वर हमारे राजा को आशीष दे जो परमेश्वर के अधिकार के साथ आता है! स्वर्ग में विराजमान परमेश्वर और हम उसके लोगों के मध्य में शान्ति स्थापित हो, और हर एक जन परमेश्वर की स्तुति करे!” 39 कुछ फरीसियों ने जो भीड़ में ही थे उससे कहा, “हे गुरु, अपने चेलों को बोल कि इन बातों को कहना बन्द करें!” 40 उसने प्रत्युत्तर दिया, “मैं तुम से यह कहता हूँ: यदि ये लोग मौन रहे, तो पत्थर स्वयं ही मेरी स्तुति करने के लिए चीख उठेंगे!” 41 जब यीशु ने यरूशलेम के निकट आकर नगर को देखा, तो वह उसमें रहने वाले लोगों के विषय में रोने लगा। 42 उसने कहा, “मेरी इच्छा थी कि आज तुम लोग जान लेते कि परमेश्वर की शान्ति कैसे प्राप्त होती है। परन्तु अब तुम यह जानने में असमर्थ हो। 43 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो: तुम कठिन समयों को अनुभव करने वाले हो। तुम्हारे शत्रु आकर तुम्हारे नगर के चारों ओर मोर्चा बाँधेंगे। वे नगर को घेर कर सब दिशाओं से उस पर आक्रमण करेंगे। 44 वे {दीवारों को तोड़ कर} उन्हें और शेष नगर को नष्ट कर देंगे। वे तुम सब को मार डालेंगे। वे सब कुछ पूरी तरह से ध्वस्त कर देंगे। यह सब इसलिए घटित होगा क्योंकि तुम ने उस समय को नहीं पहचाना जब परमेश्वर तुम्हें बचाने के लिए आया था!” 45 यीशु यरूशलेम में प्रवेश करके मंदिर के आँगन में गया। वह उन लोगों को बाहर निकालने लगा जो वहाँ पर वस्तुओं को बेच रहे थे। 46 उसने उनके कहा, “पवित्रशास्त्र कहता है, ‘परमेश्वर का मंदिर एक ऐसा स्थान होना चाहिए जहाँ पर लोग प्रार्थना करते हैं।’ परन्तु तुम लोगों ने इसे ‘चोरों का ठिकाना’ बना दिया है!” 47 उस सप्ताह के दौरान प्रत्येक दिन, यीशु लोगों को मंदिर में शिक्षा दे रहा था। प्रधान याजक, और अन्य धार्मिक व्यवस्था के शिक्षक, और अन्य यहूदी अगुवे उसे मार डालने का उपाय खोजने का प्रयास कर रहे थे। 48 परन्तु उन्हें ऐसा करने का कोई उपाय न मिला, क्योंकि अत्यधिक लोग उसे सुनने के इच्छुक थे।

Chapter 20

1 उस सप्ताह के दौरान एक दिन, यीशु मंदिर में लोगों को शिक्षा दे रहा था और उनको परमेश्वर का शुभ सन्देश बता रहा था। जब वह ऐसा कर रहा था, तो प्रधान याजक, यहूदी व्यवस्था के शिक्षक और कुछ अन्य पुरनिए उसके पास आए। 2 उन्होंने उससे कहा, “हमें बता, तू किस अधिकार से इन कामों को करता है? और किसने तुझे यह अधिकार दिया है?” 3 उसने प्रत्युत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक प्रश्न पूछूँगा। मुझे बताओ 4 यूहन्ना के लोगों को बपतिस्मा देने के विषय में: बपतिस्मा देने के लिए क्या उसे परमेश्वर ने आदेश दिया था या मनुष्यों ने आदेश दिया था?” 5 उन्होंने आपस में विचार-विमर्श किया। उन्होंने कहा, “यदि हम उत्तर देते हैं, ‘परमेश्वर ने उसे आदेश दिया था,’ तब वह कहेगा, ‘तो तुम ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 6 परन्तु यदि हम कहें, ‘वह तो केवल मनुष्य ही थे जिन्होंने उसे बपतिस्मा देने के लिए बोला था,’ तो लोग हमें मार डालने के लिए पत्थरवाह करेंगे, क्योंकि उनमें से अधिकांश यह विश्वास करते हैं कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था {जिसे परमेश्वर ने भेजा था}।” 7 इसलिए उन्होंने प्रत्युत्तर दिया कि वे नहीं जानते कि यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए किसने बोला था। 8 तब यीशु ने उनसे कहा, “जिस प्रकार से तुम मुझे नहीं बताओगे, वैसे ही मैं भी तुम को नहीं बताऊँगा कि इन कामों को करने के लिए मुझे किसने भेजा है।” 9 फिर यीशु ने लोगों से यह दृष्टान्त कहा: “किसी मनुष्य ने एक दाख की बारी लगाई। उसने वह दाख की बारी कुछ लोगों को किराए पर दे दी जो कि उसकी देखरेख करेंगे। फिर वह दूसरे देश को चला गया और एक लम्बे समय तक वहीं पर ठहरा रहा। 10 जब अंगूरों को तोड़ने का समय आया, तो इस मालिक ने एक दास को उन लोगों के पास भेजा जो उस दाख की बारी की देखरेख कर रहे थे। वह उनसे चाहता था कि वे उसका अंगूरों का वह हिस्सा उसे दें जो दाख की बारी में उत्पन्न हुए थे। परन्तु {उस दास के पहुँचने के पश्चात,} उन्होंने उस दास को मारा-पीटा और बिना कोई अंगूर दिए उसे भेज दिया। 11 बाद मेंं, मालिक ने किसी दूसरे दास को भेजा, परन्तु उन्होंने उस दास को भी मारा-पीटा और लज्जित किया। उन्होंने उसे बिना किसी अंगूर के भेज दिया। 12 उसके बाद भी, उस मालिक ने एक और दास को भी भेजा। उन किसानों ने इस दास को भी घायल कर दिया और उसे बलपूर्वक दाख की बारी से निकाल दिया। 13 इसलिए उस दाख की बारी के मालिक ने स्वयं से कहा, ‘अब मुझे क्या करना चाहिए? मैं अपने पुत्र को भेजूँगा, जिससे मैं अत्यन्त प्रेम करता हूँ। सम्भवतः वे उसका सम्मान करेंगे।’ 14 {इसलिए उसने अपने पुत्र को भेजा,} परन्तु उन लोगों ने जो दाख की बारी के देखरेख कर रहे थे जब उसे आते हुए देखा, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, ‘यहाँ वह पुरुष आ रहा है जो किसी दिन इस दाख की बारी का वारिस होगा! आओ हम उसे मार डालें! तब यह दाख की बारी हमारी हो जाएगी!’ 15 अतः वे उसे घसीट कर दाख की बारी से बाहर ले गए, और उसे मार डाला। मैं तुम को बताऊँगा कि दाख की बारी का मालिक उनके साथ क्या करेगा! 16 वह आएगा और उन लोगों को मार डालेगा जो दाख की बारी की देखरेख कर रहे थे। फिर वह उसकी देखरेख करने के लिए दूसरे लोगों का प्रबन्ध करेगा।” जो लोग यीशु को सुन रहे थे जब उन्होंने यह सुना, तो उन्होंने कहा, “इस प्रकार की परिस्थिति कभी न घटे!” 17 परन्तु यीशु ने सीधे उनकी ओर देख कर कहा, “तुम ऐसा कह सकते हो, परन्तु इन बातों के अर्थ के विषय में विचार करो जो पवित्रशास्त्र में लिखा हुआ है। ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने अस्वीकार कर दिया था वही भवन का सबसे महत्वपूर्ण पत्थर हो गया। 18 यह पत्थर हर उस जन के टुकड़े-टुकड़े कर देगा जो इस पर गिरता है, और जिस पर यह गिरता है यह उस जन को पीस डालेगा।’” 19 प्रधान याजकों और यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों को समझ में आ गया कि जब उसने उन दुष्ट लोगों के विषय में कहानी को बताया तब वह उन पर आरोप लगा रहा था। इसलिए उन्होंने तुरन्त ही उसे पकड़ने का उपाय खोजने का प्रयास किया। {परन्तु वे उसे पकड़ नहीं पाए,} क्योंकि यदि उन्होंने ऐसा किया तो लोग जो करेंगे वे उससे डरते थे। 20 इसलिए वे उसे ध्यानपूर्वक देखते रहे। उन्होंने {यीशु से बात करने के लिए} भेदियों को भी भेजा जिन्होंने धर्मी होने का ढोंग किया, परन्तु वे वास्तव में यीशु से कुछ अनुचित कहलवाना चाहते थे। वे चाहते थे {इस योग्य होना कि उस पर रोमी सरकार के प्रतिरोध को प्रोत्साहित करने का आरोप लगा पाएँ ताकि वे} उसे {उस क्षेत्र के} राज्यपाल के हाथों में सौंप सकें। 21 उनमें से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, हम जानते हैं कि जो उचित है तू उसी की बात करता है और शिक्षा देता है। तू तब भी ऐसा करता है जब महत्वपूर्ण लोग इसे पसन्द नहीं करते हैं। तू उस बात की शिक्षा सत्यपूर्वक देता है जिसे परमेश्वर चाहता है कि हम करें। 22 {इसलिए हमें बता कि तू इस मामले के विषय में क्या विचार रखता है।} क्या यह हमारे लिए ठीक है कि रोमी सरकार को करों का भुगतान करें, अथवा न करें?” 23 परन्तु वह जानता था कि वे या तो यहूदियों के साथ, जो उन करों का भुगतान करना पसन्द नहीं करते थे, या फिर रोमी सरकार के साथ, उसे परेशानी में डालने के लिए उसके साथ छल करने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए उसने उनसे कहा, 24 “मुझे रोमी सिक्का दिखाओ। और मुझे बताओ कि इस पर किसका चित्र और नाम है।” इसलिए उन्होंने {उसे एक सिक्का दिखाया और} कहा, “इस पर कैसर का चित्र और नाम है।” 25 अतः उसने उनसे कहा, “इस मामले में तो जो सरकार का है वह उसे दे दो, और जो परमेश्वर का है वह उसे दे दो।” 26 वे भेदिए किसी भी बात में उसमें कुछ भी अनुचित नहीं खोज पाए जो यीशु ने तब कही थीं जब लोग उसके चारों ओर खड़े हुए थे। वे भेदिए उसके उत्तर पर इतने विस्मित थे कि उन्होंने और कुछ भी नहीं कहा। 27 इसके पश्चात, कुछ सदूकी यीशु के पास आए। उनका यहूदियों का समूह शिक्षा देता था कि कोई भी मरे हुए में से जी नहीं उठेगा। वे भी यीशु से एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न पूछने की मनसा रखते थे। 28 उनमें से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, मूसा ने हम यहूदियों को सिखाया है कि तब क्या करना है यदि कोई ऐसा पुरुष मर जाए जिसके पास पत्नी तो हो परन्तु सन्तान न हो। तो उसके भाई को उस विधवा से विवाह करना चाहिए ताकि वह उससे एक सन्तान उत्पन्न करे। तब लोग उस सन्तान को जो पुरुष मर गया है उसका वंशज मानेंगे। 29 अतः, एक परिवार में सात भाई थे। सबसे बड़े वाले ने एक स्त्री से विवाह कर लिया, परन्तु इससे पहले कि उससे कोई सन्तान उत्पन्न होती, वह उसे विधवा छोड़ कर मर गया। 30 दूसरे भाई ने इस नियम का पालन करते हुए उस विधवा से विवाह कर लिया, परन्तु उसके साथ भी उसी प्रकार से हुआ। 31 तब तीसरे भाई ने उससे विवाह कर लिया, परन्तु फिर से वही बात घटित हुई। और अंत में, सारे सातों भाइयों ने, एक एक करके, उस स्त्री से विवाह किया परन्तु बिना कोई सन्तान उत्पन्न किए मर गए। 32 तत्पश्चात, वह स्त्री भी मर गई। 33 इसलिए यदि यह सत्य है कि एक ऐसा समय आएगा कि जब जो लोग मर गए हैं वे फिर से जीवित हो जाएँगे, तो तेरे विचार से उस समय पर वह स्त्री उनमें से किसकी पत्नी ठहरेगी? ध्यान रहे कि उसने सारे सातों भाइयों से विवाह किया था!” 34 यीशु ने उनको प्रत्युत्तर दिया, “इस संसार में, पुरुष स्त्रियों से विवाह करते हैं, और माता-पिता विवाह में पुत्रियों को पुरुषों को देते हैं। 35 परन्तु जिन लोगों को परमेश्वर स्वर्ग में रहने के योग्य समझेगा, उनके मरने के पश्चात जब वह उन्हें फिर से जीवित करेगा, तब वे विवाह नहीं करेंगे। 36 {वे विवाह इसलिए नहीं करेंगे} क्योंकि वे इसके बाद मरेंगे नहीं। बल्कि, वे स्वर्गदूतों के समान हो जाएँगे {जो सदा जीवित रहते हैं}। वे परमेश्वर की सन्तान हैं, क्योंकि परमेश्वर ने उनको उनके मर जाने के पश्चात फिर से जीवित किया है। 37 {अब जब मैंने विवाह के विषय में तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे दिया है, तो मैं पवित्रशास्त्र से दिखाऊँगा} कि परमेश्वर लोगों को उनके मर जाने के पश्चात फिर से जीवित नहीं करता है। यहाँ तक कि मूसा ने भी इस विषय में लिखा है। उस स्थान पर जहाँ उसने जलती झाड़ी में परमेश्वर से भेंट का वर्णन किया है, वह लिखता है कि कैसे प्रभु ने स्वयं को ‘अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर’ कहता है {परमेश्वर ने ऐसा नहीं कहा होता यदि उसने उन लोगों को फिर से जीवित नहीं किया होता और वह अभी भी उनका परमेश्वर नहीं होता।} 38 अन्ततः, वह ऐसे लोगों का परमेश्वर नहीं है जो मरे हुए हैं। वह ऐसे लोगों का परमेश्वर है जो जीवित हैं, क्योंकि परमेश्वर के लिए, हर एक जन {उनके मर जाने के पश्चात भी} जीवित रहता है।” 39 यहूदी व्यवस्था के शिक्षकों में से कुछ ने {जो वहाँ पर उपस्थित थे} प्रत्युत्तर में कहा, “हे गुरु, तूने बहुत ठीक उत्तर दिया है!” 40 {उन शास्त्रियों ने ऐसा इसलिए कहा} क्योंकि जो लोग यीशु को फंदे में फँसाने का प्रयास कर रहे थे {उन्होंने उससे कठिन प्रश्नों को पूछना बंद कर दिया। उसने इतनी ठीक रीति से उत्तर दिए कि वे} उससे कुछ और पूछने के लिए डर गए थे। 41 इसलिए लौटते समय, {यीशु ने स्वयं से ही उनसे एक कठिन प्रश्न पूछा।} उसने कहा, “लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि मसीह {केवल} राजा दाऊद का वंशज है? 42 ध्यान दो कि दाऊद ने स्वयं ही भजन संहिता की पुस्तक में {मसीह के विषय में} लिखा था, ‘परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा, “यहाँ {महान सम्मान के उस पद पर} मेरी दाहिनी ओर मेरे बगल में बैठ। 43 {यहाँ बैठ} जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को पूर्ण रीति से पराजित कर दूँ।”’ 44 इस भजन में, राजा दाऊद मसीह को ‘मेरे प्रभु’ कहता है। {यह महान आदर की उपाधि है।} तो मसीह दाऊद का वंशज कैसे हो सकता है? {वह तो वंशज है जिसे पूर्वजों के प्रति महान सम्मान का प्रदर्शन करना चाहिए।}” 45 तब, जिस समय पर अन्य सभी लोग सुन रहे थे, यीशु ने अपने चेलों से कहा, 46 “सुनिश्चित करो कि तुम उन लोगों के समान व्यवहार न करो जो हमारी यहूदी व्यवस्था की शिक्षा देते हैं। वे लम्बे परिधानों को पहनना और लोगों को यह सोचने देने के लिए चारों ओर चलना-फिरना पसन्द करते हैं कि वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। वे लोगों का बाजारों में उनको आदरपूर्वक नमस्कार करना भी पसन्द करते हैं। वे आराधनालयों में सबसे महत्वपूर्ण आसनों पर बैठना पसन्द करते हैं। रात्रिभोजों में वे सबसे सम्मानित लोगों के स्थानों पर बैठना पसन्द करते हैं। 47 वे विधवाओं की सारी सम्पत्ति को {भी} चुरा लेते हैं। परन्तु अन्य लोगों को यह सोचने देने के लिए कि वे धर्मी हैं, वे {सार्वजनिक रूप से} लम्बे समय तक प्रार्थना करते रहते हैं। जो कुछ उन्होंने किया है उसके लिए परमेश्वर उनकी कड़ी निन्दा करेगा।”

Chapter 21

1 फिर यीशु ने {जहाँ वह बैठा हुआ था वहाँ से} दृष्टि उठाई और धनवान लोगों को अपने {धन का} दान {मंदिर के आँगन में रखे} दानपात्रों में डालते हुए देखा। 2 उसने एक निर्धन विधवा को भी उन पात्रों में ताम्बे के दो छोटे सिक्के डालते हुए देखा। 3 और उसने {चेलों से} कहा, “सत्य यह है कि निर्धन विधवा ने {दानपात्र में} {इन धनी लोगों से} अधिक बढ़कर डाला है। 4 मैं तुम को बताता हूँ कि यह सत्य क्यों है। उन सब {धनी लोगों} ने बहुत सा धन दिया है, परन्तु वह अतिरिक्त धन था जिसकी उनको वास्तव में आवश्यकता नहीं थी। परन्तु इस विधवा ने, जो कि बहुत निर्धन है, वह सारा धन दे दिया जो उसके पास था, यहाँ तक कि उसे जीवित रहने के लिए वास्तव में इसकी आवश्यकता थी। 5 {यीशु के चेलों में से} कुछ इस विषय में बात कर रहे थे कि लोगों के द्वारा दिए गए सुन्दर पत्थरों और साजसज्जा के सामान से कैसे मंदिर को सुशोभित किया गया था। परन्तु यीशु ने कहा, 6 “{मैं तुम को बताता हूँ कि क्या घटित होने वाला है} इन सामानों के साथ जिनकी तुम सराहना कर रहे हो। किसी दिन तुम्हारे शत्रु इनको पूरी रीति से ध्वस्त कर देंगे।” 7 फिर उन्होंने उससे पूछा, “हे गुरु, यह बातें कब घटित होंगी? और उसका क्या चिन्ह होगा कि यह बातें लगभग कब घटित होने वाली हैं?” 8 यीशु ने प्रत्युत्तर दिया, “कोई भी तुम को पथभ्रष्ट करने न पाए। क्योंकि बहुत से लोग आएँगे और हर कोई यह दावा करेगा कि वह मैं हूँ। हर कोई स्वयं के विषय में कहेगा, ‘मैं मसीह हूँ!’ वे यह भी कहेंगे, ‘वह समय लगभग आ गया है जब राजा के रूप में परमेश्वर शासन करेगा!’ जो वे कह रहे हों उस पर विश्वास मत करना! 9 साथ ही, तुम लड़ाइयों के और लोगों के एक दूसरे से झगड़ने के विषय में सुनोगे। {संसार का} अंत होने से पूर्व इस प्रकार की बातों का होना अवश्य है। इसलिए {जब तुम इस प्रकार की बातों को सुनो तो,} भयभीत मत होना। 10 लोगों के विभिन्न समूह एक दूसरे पर आक्रमण करेंगे, और अलग-अलग साम्राज्यों के लोग एक दूसरे से युद्ध करेंगे। 11 और विभिन्न स्थानों पर बड़े-बड़े भूकम्प होंगे। वहाँ पर अकाल और भयानक महामारियाँ भी होंगी। बहुत सी बातें घटित होंगी जिससे लोग अत्यन्त डर जाएँगे। लोग आकाश में अद्भुत बातों को देखेंगे {जिससे प्रकट होगा कि कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण घटित होने वाला है}। 12 परन्तु इन सब बातों {के घटित होने} से पहले, तुम्हारे शत्रु तुम को पकड़ लेंगे और तुम्हारे साथ बुरी रीति से व्यवहार करेंगे। वे तुम को आराधनालयों में ले जाएँगे, {जिनके न्यायी तुम पर मुकदमा चलाएँगे} और {तुम को} बन्दीगृह में डाल देंगे। क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो इसलिए तुम्हारे शत्रुओं के पास तुम पर मुकदमा चलाने के लिए राजाओं और प्रधान सरकार के अधिकार भी होंगे। 13 मेरे विषय में उनको सत्य बताने हेतु वह तुम्हारे लिए एक समय होगा। 14 इसलिए इसके विषय में समय से पहले यह चिन्ता न करने का दृढ़ संकल्प करो कि तुम अपने बचाव के लिए क्या कहोगे, 15 क्योंकि मैं तुम्हें सही शब्द दूँगा जिससे कि तुम जान जाओगे कि क्या कहना है। इसके परिणामस्वरूप, तुम पर आरोप लगाने वाला कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह पाएगा कि तुम गलत हो। 16 और यहाँ तक कि तुम्हारे माता-पिता और भाई और बहन और {अन्य} कुटुम्बी और मित्र भी तुम्हें धोखा देंगे, और वे तुम में से कुछ को मार डालेंगे। 17 अधिकांश लोग तुम से इसलिए द्वेष रखेंगे, क्योंकि तुम मुझ पर विश्वास करते हो। 18 परन्तु {आत्मिक रूप से} तुम्हारा पूरा अस्तित्व सुरक्षित रहेगा। 19 यदि तुम कठिन समय से होकर जाते हो और साबित करते हो कि तुम परमेश्वर पर भरोसा करते हो, तो तुम्हारी मृत्यु के पश्चात तुम्हारी आत्माएँ परमेश्वर की उपस्थिति में जीवित रहेंगी। 20 जब तुम सेनाओं को यरूशलेम {नगर} के चारों ओर देखो, तब तुम जान जाओगे कि वे शीघ्र ही उस नगर को नष्ट कर देंगी। 21 उस समय तुम में से जो यहूदिया {क्षेत्र के अन्य स्थानों में} हों, तो वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। और तुम में से जो लोग इस नगर में हों, तो वे निकल जाएँ। तुम में से जो पास के गाँवों में हों, तो वे नगर में न आएँ। 22 {तुम्हें भाग जाना चाहिए} क्योंकि परमेश्वर इस समय {यरूशलेम नगर को} दण्ड देगा। {जब वह ऐसा करता है तो,} इस विषय में परमेश्वर ने पवित्रशास्त्र में जो कहा है वह पूरा होगा। 23 जब ऐसा घटित होगा तो गर्भवती स्त्रियों के लिए और उन स्त्रियों के लिए जो अपने बच्चों को दूध पिलाती हों यह कितना भयानक होगा। उस समय देश में बड़ा सताव होगा। परमेश्वर इन लोगों पर क्रोधित होगा और उन्हें कठोरतापूर्वक दण्ड देगा। 24 उनमें से बहुत से लोग मर जाएँगे क्योंकि सैनिक उन्हें अपने हथियारों से मार डालेंगे। बचे हुओं को पकड़ कर उनके शत्रु बन्दी बना कर संसारभर में कई स्थानों पर भेज देंगे। जब तक परमेश्वर अनुमति देता है, तब तक अन्यजातियाँ यरूशलेम {नगर} को नियंत्रित करेंगी।” 25 “उस समय पर, सूर्य, चन्द्रमा, और सितारों के साथ अद्भुत बातें घटित होंगी। और पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के समूह अत्यन्त भयभीत हो जाएँगे। वे उसी प्रकार से भयभीत होंगे जैसे वे विशाल लहरों वाले गरजते समुद्र से होते। 26 लोग इतने भयभीत हो जाएँगे कि वे मूर्छित हो जाएँगे क्योंकि संसार में आगे क्या घटित होगा वे उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आकाश के सितारे अपने सामान्य स्थानों से हट जाएँगे। 27 तब सब लोग मुझ, मनुष्य के पुत्र, को सामर्थी रूप से और चमकते प्रकाश के साथ बादलों पर आते हुए देखेंगे। 28 अतः जब वे भयंकर बातें घटित होने लगेंगी, तो आत्मविश्वास की मुद्रा को धारण कर लेना, क्योंकि परमेश्वर शीघ्र ही तुम्हें छुड़ाएगा।” 29 फिर यीशु ने उनको एक उदाहरण दिया। उसने कहा, “अंजीर के पेड़ों के और सब पेड़ों के विषय में विचार करो। 30 जब तुम देखते हो कि उनकी पत्तियों की कोंपलें निकल रही हैं, तो तुम जान लेते हो कि यह ग्रीष्मऋतु का आरम्भ है। 31 इसी रीति से, जब तुम इन बातों को घटित होते देखो जिनका मैंने अभी-अभी वर्णन किया है, तो तुम जान लोगे कि परमेश्वर स्वयं को शीघ्र ही राजा के रूप में प्रदर्शित करेगा। 32 मैं तुम को सच्चाई बता रहा हूँ। वे लोग जो सबसे पहले उन चिन्हों को देखते हैं जिनका मैंने वर्णन किया है वे निश्चित रूप से इन सब बातों को घटित होते हुए देखने के लिए भी जीवित रहेंगे। 33 तुम सोचते होगे कि आकाश और पृथ्वी स्थायी हैं। वे नहीं हैं, परन्तु मेरे वचन स्थायी हैं। 34 स्वयं को नियंत्रित करने के लिए बहुत ही सावधान रहो। यदि तुम नशे में हो जाते हो, तो तुम्हारे मन बाद में सतर्क नहीं होंगे। और यदि तुम दिन-प्रतिदिन के मामलों की चिंता करते हो, तो तुम विचलित हो जाओगे। {तब तुम उन संकेतों पर ध्यान नहीं दोगे जिनके विषय में मैंने तुम को बताया है, और} जब मैं वापस आऊँगा तो मैं तुम को चकित कर दूँगा। 35 {मैं इतने अचानक से आ जाऊँगा कि} यह ऐसा होगा कि जैसे कोई जाल एक पशु पर बन्द हो देता है। {इसलिए तुम को मेरी वापसी पर ध्यान देने की आवश्यकता है,} क्योंकि यह संसार में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करेगा। 36 इसलिए तुम को मेरे आगमन के लिए सदा तैयार रहना है। प्रार्थना करो कि जब तुम इन कठिन बातों का अनुभव करते हो जिनके विषय में मैं बात कर रहा हूँ तो तुम मेरे प्रति विश्वासयोग्य बने रहने के योग्य ठहरो। इस रीति से मैं, मसीह, {जब इस संसार का न्याय करने आऊँगा तो मैं} तुम्हें निर्दोष घोषित कर दूँगा। 37 प्रत्येक दिन यीशु मंदिर में लोगों को शिक्षा दे रहा था। परन्तु हर शाम को वह {नगर से बाहर} जाकर सारी रात जैतून के पहाड़ पर रहता था। 38 और हर सुबह भोर में, लोगों की बड़ी भीड़ {उसे शिक्षा देते हुए} उसकी सुनने के लिए मंदिर में आया करती थी।

Chapter 22

1 अब लगभग वह समय आ ही गया था जब अख़मीरी रोटी का पर्व मनाया जाए, जिसे लोग फसह भी कहते हैं। 2 प्रधान याजक और यहूदी व्यवस्था के शिक्षक ऐसे किसी उपाय की खोज में थे कि उन {बहुत से} लोगों में {जो यह विचार रखते थे कि वह कोई महान पुरुष है} बिना कोई दंगे उपजाए वे यीशु को मार डालें। 3 तब शैतान ने यहूदा में प्रवेश किया, जिसका दूसरा नाम इस्करियोती था। वह 12 चेलों में से एक था। 4 उसने जाकर प्रधान याजकों और मंदिर के पहरुओं के सरदारों से इस विषय में बात की कि वह कैसे यीशु को पकड़ने में उनकी सहायता कर सकता है। 5 वे बहुत ही प्रसन्न हुए {जब उसने ऐसा करने का प्रस्ताव दिया}। उन्होंने कहा कि {यदि उसने ऐसा किया तो} वे उसे धन का भुगतान करेंगे। 6 अतः यहूदा मान गया, और फिर वह यीशु को पकड़ने में उनकी सहायता करने के ऐसे किसी उपाय की खोज करने लगा जहाँ भीड़ इसे देख न पाए। 7 फिर अख़मीरी रोटी का दिन आया। यह वह दिन था जब यहूदी लोगों को मेमनों को मारना था जिसे वे फसह मनाने के लिए खाएँगे। 8 इसलिए यीशु ने पतरस और यूहन्ना को इन निर्देशों के साथ बाहर भेजा: “जाकर फसह मनाने के लिए भोजन की तैयारी करो ताकि हम सब एक साथ उसे खाएँ।” 9 उन्होंने उसे प्रत्युत्तर दिया, “तू कहाँ चाहता है कि हम भोजन की तैयारी करें?” 10 उसने उत्तर दिया, “ध्यानपूर्वक सुनो। जब तुम नगर में जाओगे, तो एक व्यक्ति पानी का एक बड़ा सा पात्र उठाए हुए तुम को मिलेगा। उसके पीछे-पीछे उस घर में जाना जिसमें वह प्रवेश करता है। 11 उस घर के स्वामी से कहना, ‘हमारा गुरु कहता है कि हमें वह कमरा दिखा जहाँ हमारे, अर्थात उसके चेलों के साथ में वह फसह का भोजन खा सके।’ 12 वह तुम को एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो उस घर के ऊपरी तल पर होगा। वह मेहमानों के स्वागत के लिए पूर्णतः तैयार होगा। वहाँ पर हमारे लिए भोजन की तैयारी करना। 13 अतः वे दोनों चेले {नगर में} चले गए। उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया जैसा यीशु ने उनको बोला था। अतः उन्होंने वहाँ फसह मनाने के {भोजन की} तैयारी की। 14 जब उस भोजन को खाने का वह समय आया, तो यीशु आकर उन प्रेरितों के साथ बैठ गया। 15 उसने उनसे कहा, “मैंने अपने मरने से पहले तुम्हारे साथ फसह के इस विशेष भोज को खाने की बहुत इच्छा की थी। 16 मैं तुम को बताता हूँ, कि अगली बार जब मैं इसे खाऊँगा तो वह उस समय पर होगा जब परमेश्वर इसे इसका अथाह अर्थ प्रदान करता है जिस समय पर वह राजा के रूप में सब जगह पर शासन करता है।” 17 तब उसने दाखरस के प्याले को उठाया और उसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। उसने {अपने प्रेरितों से} कहा, “इस दाखरस को लो और अपने मध्य में बाँट लो। 18 {मैं चाहता हूँ कि तुम यह करो} क्योंकि, मैं तुम से कहता हूँ, कि मैं उस समय तक फिर से दाखरस को नहीं पीऊँगा जब तक कि परमेश्वर राजा के रूप में सब जगह पर शासन नहीं करता है।” 19 फिर उसने कुछ रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। उसने उसे टुकड़ों में तोड़ कर और खाने के लिए उनको दे दिया। जब उसने ऐसा किया, तो उसने कहा, “यह रोटी मेरी देह है, जिसे मैं तुम्हारे लिए बलिदान करने वाला हूँ। बाद में मेरे सम्मान में इसे फिर से करना।” 20 इसी रीति से, उनके भोजन खा लेने के पश्चात, उसने दाखरस के प्याले को उठाया और कहा, “यह नई वाचा है जिसे मैं अपने स्वयं के लहू का उपयोग करने के द्वारा बाँधूँगा, जो मेरे मरने के समय पर मेरे घावों से तुम्हारे लिए बहेगा। 21 परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम सब जान लो कि जो जन मुझे मेरे शत्रुओं के हाथों में सौंपेगा वह यहाँ मेरे साथ भोजन कर रहा है। 22 {मैं यह इसलिए कह रहा हूँ} क्योंकि मैं, मनुष्य का पुत्र, वास्तव में उस रीति से मरूँगा जिसके लिए परमेश्वर ने योजना बनाई है। परन्तु उस जन के लिए यह कितना भयंकर होगा जो मुझे {मेरे शत्रुओं के} हाथों में सौंपेगा!” 23 तब वे प्रेरित एक दूसरे से पूछने लगे कि उनमें से कौन वास्तव में यीशु को पकड़वाने के लिए तैयार होगा। 24 इसके पश्चात, वे प्रेरित इस विषय पर आपस में विवाद करने लगे कि उनमें से किसे यह विचार करना चाहिए कि वह सबसे महत्वपूर्ण जन है। 25 यीशु ने उनको उत्तर देते हुए कहा, “अन्यजाति देशों के राजा लोगों को यह दिखाना पसन्द करते हैं कि वे शक्तिशाली हैं। तौभी वे स्वयं को यह नाम देते हैं ‘वह जो लोगों की सहायता करते हैं।’ 26 परन्तु तुम को उन शासकों के समान नहीं बनना है! बजाए इसके, तुम में से सर्वाधिक सम्मानित लोगों को ऐसे व्यवहार करना चाहिए जैसे कि वे तुम में से सबसे कम सम्मानित जन हों। जो कोई जन अगुवाई करता है उसे दास के समान व्यवहार करना चाहिए। 27 क्योंकि तुम जानते हो कि महत्वपूर्ण जन वह है जो मेज़ पर भोजन करता है, वह दास नहीं जो भोजन लेकर आता है। परन्तु जिस समय पर मैं तुम्हारे मध्य में हूँ तो मैं, तुम्हारा अगुवा, तुम्हारी सेवा करने के द्वारा तुम्हारे लिए एक उदाहरण स्थापित कर रहा हूँ। 28 तुम वही लोग हो जो उन सारी कठिन बातों में मेरे साथ बने रहे जिनसे मैं पीड़ित हुआ था। 29 इसलिए अब मैं तुम को उन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर रहा हूँ जिन पर तुम शासन करोगे, जिस प्रकार से मेरे पिता ने मुझे राजा के रूप में शासन करने के लिए नियुक्त किया है। 30 जब मैं राजा बनता हूँ तो तुम मेरे साथ बैठोगे और खाओगे और पीओगे। बल्कि, तुम सिंहासनों पर बैठोगे और इस्राएल को 12 गोत्रों के लोगों का न्याय करोगे।” 31 “हे शमौन, हे शमौन, ध्यान दे! शैतान ने {परमेश्वर} से {उसके द्वारा} तुम सभी को ऐसे परखने देने के लिए बोला है, जिस तरह से कोई छलनी में अनाज हिलाता है, {और परमेश्वर ने उसे ऐसा करने की अनुमति दे दी है}। 32 परन्तु हे शमौन, मैं ने तेरे लिए प्रार्थना की है। {मैंने परमेश्वर से कहा है} कि तू मुझ पर विश्वास करना पूरी रीति से बन्द नहीं करेगा। इसलिए जब तू यह निर्णय ले कि तू वास्तव में मुझ पर विश्वास करता है, तो अन्य प्रेरितों को {भी मुझ पर विश्वास करने के लिए} प्रोत्साहित करना। 33 पतरस ने उसे प्रत्युत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं तो तेरे साथ बन्दीगृह में जाने को तैयार हूँ। यहाँ तक कि मैं तो तेरे साथ मरने का भी इच्छुक हूँ!” 34 यीशु ने प्रत्युत्तर दिया, “हे पतरस, मैं चाहता हूँ कि तू जान ले कि आज की रात, इससे पहले कि मुर्गा बाँग दे, तू तीन बार कहेगा कि तू मुझे नहीं जानता!” 35 फिर यीशु ने चेलों से पूछा, “जब मैंने तुम को बाहर भेजा {गाँवों में, और तुम चले गए} बिना कोई धन, भोजन, या जूतियाँ लिए, तो क्या कुछ ऐसा भी था जिसकी तुम को आवश्यकता पड़ी परन्तु वह प्राप्त नहीं हुआ?” उन्होंने प्रत्युत्तर दिया, “नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था!” 36 फिर यीशु ने कहा, “परन्तु, अब, यदि {तुम में से} किसी के पास धन है, तो वह उसे अपने साथ ले जाए। साथ ही, जिस किसी के पास भी भोजन है, वह उसे अपने साथ ले जाए। और जिस किसी के पास तलवार नहीं है, तो वह अपना कुर्ता बेच दे और एक मोल ले ले!” 37 मैं तुम से यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि एक भविष्यद्वक्ता ने मेरे विषय में पवित्रशास्त्र में जो लिखा था वह अवश्य पूरा होगा: ‘लोगों ने उसके साथ अपराधियों के जैसे व्यवहार किया।’ जो कुछ भी पवित्रशास्त्र मेरे विषय में कहता है वह होने वाला है। 38 चेलों ने प्रत्युत्तर दिया, “हे प्रभु, देख! हमारे पास दो तलवारें हैं!” उसने उत्तर दिया, “हमें दो से अधिक की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।” 39 यीशु नगर से निकल कर जैतून के पहाड़ पर चला गया, जैसा कि वह सामान्य रूप से किया करता था। उसके चेले भी उसके साथ गए। 40 जब यीशु {अपने चेलों के साथ} उस स्थान पर आया, जहाँ पर वह अक्सर रात बिताया करता था, तो उसने उनसे कहा, “प्रार्थना करो कि जब तुम परीक्षा में पड़ो तो पाप न करने में परमेश्वर तुम्हारी सहायता करे।” 41 फिर वह उनसे लगभग 30 मीटर की दूरी पर गया, और घुटने टिका कर प्रार्थना की। 42 उसने कहा, “हे पिता, यदि तेरी इच्छा हो, तो कृपया मुझे उन भयंकर बातों का अनुभव न करने की अनुमति प्रदान कर जो होने वाली हैं। परन्तु वह न कर जो मैं चाहता हूँ। वही कर जो तू चाहता है।” 43 [तब स्वर्ग से एक स्वर्गदूत उसके पास आया और उसे साहस प्रदान किया। 44 उसे बहुत कष्ट हो रहा था।। इसलिए उसने अत्यन्त गहनता से प्रार्थना की। उसका पसीना लहू की बड़ी-बड़ी बूँदों के समान भूमि पर गिर रहा था।] 45 जब यीशु प्रार्थना करने से उठा, तो वह अपने चेलों के पास लौट आया। उसने पाया कि वे सो रहे थे। वे बहुत दुःखी थे और इसी बात ने उनको थका दिया था। 46 उसने {उनको जगा कर} उनसे कहा, “यह तुम्हारे लिए सोते रहने का समय नहीं है! उठो! प्रार्थना करो कि {परमेश्वर तुम्हारी सहायता करे ताकि} कोई भी बात तुम को पाप करने के लिए परीक्षा में न डाले।” 47 जिस समय पर यीशु बोल ही रहा था, लोगों की एक भीड़ उसके पास आई। यहूदा, जो 12 चेलों में से एक था, उनका मार्गदर्शन कर रहा था। वह यीशु के गाल पर चूमने के द्वारा नमस्कार करने के लिए उसके पास आया। 48 परन्तु यीशु ने उससे कहा, “हे यहूदा, तूने मुझ, मनुष्य के पुत्र, को मेरे शत्रुओं के हाथों में सौंपने के लिए चुम्बन का उपयोग करने का साहस कैसे किया!” 49 जब चेलों को समझ में आया कि क्या घटित हो रहा था, तो उन्होंने कहा, “हे प्रभु, क्या हमें {उनको तुझे बन्दी बनाने से रोकने के लिए} अपने हथियारों का उपयोग करना चाहिए?” 50 उनमें से एक ने {अपनी तलवार को खींच कर} महायाजक के दास पर प्रहार किया, परन्तु {केवल} उसके दाहिने कान को ही काटा। 51 परन्तु यीशु ने कहा, “इससे अधिक कुछ भी मत करना!” फिर उसने उस दास को वहाँ पर छुआ जहाँ उसे घाव हुआ था और उसे चंगा कर दिया। 52 फिर यीशु ने प्रधान याजकों, मंदिर के पहरुओं के सरदारों, और यहूदी पुरनियों से कहा जो उसे बन्दी बनाने आए थे, “यह आश्चर्य की बात है कि तुम यहाँ पर तलवारों और लाठियों के साथ मुझे बन्दी बनाने के लिए आए हो, जैसे कि मैं कोई डाकू था। बहुत दिनों तक मैं तुम्हारे साथ मंदिर में ही था, परन्तु तुम ने मुझे बन्दी बनाने का बिलकुल भी प्रयास नहीं किया! परन्तु यह वह समय है जब तुम वह कर रहे हो जो तुम चाहते हो। यह वह समय भी है जब शैतान उन दुष्ट कामों को कर रहा है जैसे कि वह करना चाहता है। 53-54 यहूदी अगुवों और सैनिकों ने यीशु को पकड़ लिया और उसे ले गए। वे उसे महायाजक के घर पर ले आए। पतरस ने बहुत पीछे से {एक सुरक्षित दूरी से} उनका पीछा किया। 55 कुछ लोग आँगन के मध्य में आग जला हुए और एक साथ बैठ थे। पतरस भी आकर उनके बीच में बैठ गया। 56 एक दासी ने पतरस को वहाँ बैठे हुए देखा जब आग की चमक उस पर पड़ी। उसने उसे ध्यानपूर्वक देख कर कहा, “यह व्यक्ति भी उस जन के साथ था जिसको उन्होंने बन्दी बनाया है!” 57 परन्तु उसने यह कह कर इन्कार कर दिया, “हे युवती, मैं उसे नहीं जानता!” 58 थोड़ी देर के पश्चात किसी अन्य ने पतरस को देख कर कहा, “तू भी उनमें से एक है जो उस मनुष्य के साथ थे जिसको उन्होंने बन्दी बनाया है!” परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं, हे श्रीमान, मैं उनमें से कोई नहीं हूँ!” 59 लगभग एक घण्टे के पश्चात किसी और ने ऊँचे स्वर से कहा, “{जिस रीति से} यह व्यक्ति {बात करता है उससे प्रकट होता है कि वह} गलील {क्षेत्र का} रहने वाला है। इसलिए निश्चित रूप से वह यहाँ इस मनुष्य के साथ आया है जिसको उन्होंने बन्दी बनाया है!” 60 परन्तु पतरस ने कहा, “हे श्रीमान, यह सत्य नहीं है!” जिस समय पर पतरस बोल ही रहा था, तुरन्त ही एक मुर्गे ने बाँग दी। 61 यीशु ने पीछे घूम कर सीधे पतरस पर दृष्टि डाली। तब पतरस को स्मरण आया जो यीशु ने उससे कहा था: “आज की रात, इससे पहले कि मुर्गा बाँग दे, तू तीन बार इन्कार करेगा कि तू मुझे जानता है।” 62 और वह आँगन से बाहर जाकर बड़े दुःख के साथ रोने लगा। 63 जो पुरुष यीशु की पहरेदारी कर रहे थे उन्होंने उसका उपहास किया और उसे मारा-पीटा। 64 उन्होंने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी {जिससे कि वह देख न पाए और तब उसे पीटने की बारी लेने लगे}। उन्होंने उससे कहा, “हमें दिखा कि तू एक भविष्यद्वक्ता है! हमें बता कि अभी-अभी तुझे किसने पीटा है!” 65 उन्होंने उसका ठठ्ठा करते हुए, उसके विषय में बहुत सी अन्य {क्रूर} बातों को कहा। 66 अगली सुबह भोर में, यहूदी अगुवों में से बहुत से एक साथ इकट्ठा हुए। इस समूह में प्रधान याजकों के साथ में वे पुरुष भी थे जो यहूदी व्यवस्था की शिक्षा दिया करते थे। उन्होंने सैनिकों से यीशु को यहूदी परिषद कक्ष में लाने के लिए कहा। 67 वहाँ उन्होंने उससे कहा, “यदि तू मसीह है, तो हमें बता दे!” परन्तु उसने प्रत्युत्तर दिया, “यदि मैं कहूँ कि मैं मसीह हूँ, तो तुम मेरा विश्वास नहीं करोगे। 68 परन्तु यदि मैं तुम से पूछूँ कि क्या तुम सोचते हो कि मैं मसीह हूँ, तो तुम मुझे उत्तर नहीं दोगे। 69 परन्तु अब से, मैं, मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बगल में बैठूँगा {और शासन करूँगा}!” 70 फिर उन सब ने पूछा, “यदि यह ऐसा है, तो क्या तू {कह रहा है कि तू} परमेश्वर का पुत्र है?” उसने उत्तर दिया, “हाँ, जो तुम कह रहे हो वह सत्य है।” 71 तब उन्होंने एक दूसरे से कहा, “हम ने स्वयं ही उसे कहते हुए सुन लिया है {कि वह परमेश्वर के समकक्ष है}! और इसलिए हमें निश्चित रूप से उसके विरोध में {ईशनिंदा के आरोप में} गवाही देने के लिए और लोगों की आवश्यकता नहीं है!”

Chapter 23

1 फिर वह सम्पूर्ण समूह उठ खड़ा हुआ और यीशु को {रोमी राज्यपाल} पिलातुस के पास लेकर गया। 2 उन्होंने {पिलातुस के सामने} उस पर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “हम ने देखा है कि यह मनुष्य हमारे लोगों को पथभ्रष्ट {करने के द्वारा परेशानी उत्पन्न} कर रहा है। वह उनसे उन करों का भुगतान नहीं करने के लिए कह रहा था जिनको रोमी सम्राट, कैसर ने लागू किया है। साथ ही, वह कह रहा था कि वह मसीह, एक राजा है!” 3 तब पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने प्रत्युत्तर दिया, “हाँ, यह ऐसा ही है जैसा तूने मुझ से पूछा है।” 4 फिर पिलातुस ने प्रधान याजकों से और भीड़ से कहा, “यह मनुष्य किसी भी अपराध का दोषी नहीं है।” 5 परन्तु यहूदी शासकीय परिषद की ओर से आया हुआ समूह यीशु पर आरोप लगाता रहा। उन्होंने कहा, “वह लोगों में दंगा करवाने का प्रयास कर रहा है! वह सम्पूर्ण यहूदिया {के क्षेत्र} में अपने विचारों की शिक्षा देता रहा है। उसने गलील {के क्षेत्र} में भी ऐसा करना आरम्भ किया, और अब वह यहाँ पर भी ऐसा ही कर रहा है!” 6 जब पिलातुस ने यह सुना जो उन्होंने कहा था, तो उसने पूछा, “क्या यह मनुष्य गलील {के क्षेत्र} का रहने वाला है?” 7 जब पिलातुस को मालूम हुआ कि यीशु गलील का रहने वाला है, जहाँ हेरोदेस अन्तिपास शासन करता था, तो उसने यीशु को उसके पास भेज दिया। उस समय पर हेरोदेस यरूशलेम में ही था। 8 जब हेरोदेस ने यीशु को देखा तो वह अति आनन्दित हुआ, क्योंकि वह बहुत समय से यीशु को देखना चाहता था। ऐसा इसलिए था क्योंकि हेरोदेस ने यीशु के विषय में बहुत सारी बातों को सुना था, और वह उसे कोई चमत्कार करते हुए देखना चाहता था। 9 इसलिए उसने यीशु से कई प्रश्न पूछे, परन्तु यीशु ने उनमें से किसी को भी प्रत्युत्तर नहीं दिया। 10 और प्रधान याजक और यहूदी व्यवस्था के कुछ विशेषज्ञ यीशु के पास ही खड़े रहे और उस पर {बहुत से अपराधों को करने का} दृढ़तापूर्वक आरोप लगाते रहे। 11 फिर हेरोदेस और उसके सैनिकों ने यीशु का तिरस्कार किया और उसका ठठ्ठा किया। उन्होंने उसे {यह ढोंग करने के लिए कि वह एक राजा था} मूल्यवान वस्त्र पहनाए। तब हेरोदेस ने उसे वापस पिलातुस के पास भेज दिया। 12 उस समय तक वे दोनों ही जन एक दूसरे के भयंकर शत्रु थे, परन्तु उसी दिन से हेरोदेस और पिलातुस मित्र बन गए। 13 फिर पिलातुस ने प्रधान याजकों और अन्य यहूदी अगुवों को और उस भीड़ को जो अभी भी वहीं पर थी एक साथ इकट्ठा किया। 14 उसने उनसे कहा, “तुम इस मनुष्य को मेरे पास लेकर आए, यह कहते हुए कि वह लोगों की विद्रोह करने में अगुवाई कर रहा था। परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि जब तुम सुन रहे थे तब उसकी जाँच करने के पश्चात, मैं यह निष्कर्ष निकालता हूँ कि जिन कामों के लिए तुम ने कहा था कि उसने किए हैं, उनमें से किसी को भी करने के लिए वह दोषी नहीं है। 15 साथ ही, हेरोदेस ने इसे {बिना दण्डित किए} हमारे पास वापस भेज दिया है। इसका अर्थ है कि उसने भी {यही निष्कर्ष निकाला है कि वह दोषी नहीं है}। अतः यह स्पष्ट है कि इस मनुष्य ने कुछ भी ऐसा नहीं किया है जिससे कि यह मार डाले जाने के योग्य हो। 16 इसलिए मैं {अपने सैनिकों से कह कर} इसे कोड़े लगवाऊँगा और फिर इस मुक्त कर दूँगा।” 17 [{पिलातुस ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि} उसे प्रत्येक फसह के उत्सव में एक बन्दी को मुक्त करना होता था।] 18 परन्तु सम्पूर्ण भीड़ एक साथ चिल्ला पड़ी, “इस मनुष्य को मार डाल! बजाए इसके हमारे लिए बरअब्बा को मुक्त कर दे!” 19 अब बरअब्बा वह जन था जिसने {यरूशलेम} नगर में रोमी सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए कुछ लोगों को भड़काया था। वह एक हत्यारा भी था। इन अपराधों के कारण उसे बन्दीगृह में डाला गया था। 20 परन्तु पिलातुस बहुत चाहता था कि यीशु को मुक्त करे, इसलिए उसने फिर से भीड़ से बात करने का प्रयास किया। 21 परन्तु वे लगातार चिल्लाते रहे, “उसे क्रूस पर चढ़ा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” 22 तब पिलातुस ने तीसरी बार भीड़ से बात की। “नहीं! उसने कोई भी अपराध नहीं किया है! उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसके कारण से वह मार डाले जाने के योग्य हो। इसलिए मैं अपने सैनिकों से उसे कोड़े लगवाऊँगा और फिर मैं उसे मुक्त कर दूँगा।” 23 लेकिन भीड़ में से लोग चिल्लाते रहे और दृढ़तापूर्वक कहा कि पिलातुस यीशु को क्रूस पर चढ़ा दे। अन्ततः, क्योंकि वे बहुत ऊँचे स्वर में चिल्लाते ही रहे, इसलिए उन्होंने पिलातुस को सहमत कर लिया। 24 अतः पिलातुस ने घोषणा की कि जो वे चाहते हैं वह उसे करेगा। 25 फिर पिलातुस ने उस व्यक्ति को मुक्त कर दिया जिसे स्वतंत्र करने के लिए भीड़ उससे कह रही थी। वह व्यक्ति बन्दीगृह में इस कारण से था क्योंकि उसने सरकार के विरुद्ध झगड़ा किया था और लोगों की हत्या की थी! तब पिलातुस ने सैनिकों को आदेश दिया कि वे यीशु को ले जाकर वैसा करें जैसा भीड़ चाहती थी। 26 अब वहाँ पर शमौन नाम का एक व्यक्ति था, जो {अफ्रीका में स्थित} कुरेने नगर का रहने वाला था। वह गाँव से यरूशलेम में आ रहा था। जिस समय सैनिक यीशु को लेकर जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन को पकड़ लिया। उन्होंने {यीशु से उस क्रूस को ले लिया जिसको उन्होंने उस पर लादा हुआ था, और उन्होंने} उसे शमौन के काँधों पर रख दिया। उन्होंने उसे वह उठा कर यीशु के पीछे-पीछे चलने के लिए बोला। 27 अब एक बड़ी भीड़ यीशु के पीछे-पीछे चल रही थी। भीड़ में बहुत सी स्त्रियाँ थीं जो {अपना शोक प्रकट करने के लिए} अपनी छातियाँ पीट रही थीं और {दुःख के साथ} उसके लिए विलाप कर रही थीं। 28 परन्तु {उनकी सहानुभूति को स्वीकार करने के बजाए} यीशु ने उन स्त्रियों की ओर घूम कर कहा, “हे यरूशलेम की स्त्रियों, मेरे लिए मत रोओ! बजाए इसके, तुम पर और तुम्हारी सन्तानों पर {जो भयंकर बातें घटित होने वाली हैं उन पर} रोओ! 29 क्योंकि मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि {शीघ्र ही} एक ऐसा समय आएगा जब लोग कहेंगे, ‘वे स्त्रियाँ कितनी भाग्यशाली हैं जिन्होंने कभी भी किसी सन्तान को जन्म नहीं दिया है या शिशुओं को दूध नहीं पिलाया है!’ 30 परन्तु इस नगर में रहने वाले लोग कहेंगे, ‘हम चाहते हैं कि हमारे ऊपर पहाड़ गिर पड़ें और टीले हमें ढाँप लें!’ 31 इस समय पर लोगों के लिए दूसरों के साथ बुरे कामों को करना कठिन है, उसी प्रकार से जैसे ताजी लकड़ी में आग लगाना कठिन होता है। परन्तु तत्पश्चात, दूसरों के साथ भयानक कामों को करने में लोग सरलतापूर्वक सक्षम होंगे, उसी प्रकार से जैसे सूखी लकड़ी में आग लगाना सरल होता है।” 32 दो अन्य पुरुष, जो कि अपराधी थे, वे भी यीशु के साथ-साथ उस स्थान की ओर जा रहे थे जहाँ रोमी लोग उनको मार डालेंगे। 33 जब वे उस स्थान पर पहुँच गए जिसका नाम खोपड़ी था, वहाँ पर सैनिकों ने यीशु को क्रूस पर कीलों से ठोक कर उसे क्रूस पर चढ़ा दिया। उन्होंने इन्हीं कामों को उन दो अपराधियों के साथ भी किया। उन्होंने उनमें से एक को यीशु की दाहिनी ओर तथा दूसरे को उसकी बायीं ओर खड़ा कर दिया। 34 [परन्तु यीशु ने कहा, “हे पिता, कृपया इन लोगों को क्षमा कर। ये जानते नहीं हैं कि वे क्या कर रहे हैं।”] फिर सैनिकों ने उसके कपड़ों को बाँट लिया और पासे जैसी किसी वस्तु के साथ यह निर्धारित करने के लिए जुआ खेला कि प्रत्येक को कपड़े का कौन सा टुकड़ा मिलेगा। 35 बहुत से लोग पास में खड़े होकर देख रहे थे। वे यीशु का उपहास कर रहे थे। यहूदी अगुवों ने भी उसी प्रकार के काम किए। उन्होंने कहा, “इसने अन्य लोगों को बचाया! यदि परमेश्वर ने वास्तव में इसे मसीह बनने के लिए चुना है, तो इसे स्वयं को भी बचाना चाहिए!” 36 सैनिकों ने भी उसका ठठ्ठा किया। उसके पास आकर उन्होंने उसे थोड़ी सी खट्टी मदिरा दी। 37 उन्होंने उससे कहा, “यदि तू यहूदियों का राजा है तो स्वयं को बचा ले!” 38 उसके सिर के ऊपर क्रूस पर, सैनिकों ने एक चिन्ह भी लगाया जिसमें कहा गया था, “यह यहूदियों का राजा है।” 39 उन अपराधियों में से एक जो {यीशु के बगल में क्रूस पर} लटका हुआ था उसने भी उसका तिरस्कार किया। उसने कहा, “यदि तू वास्तव में मसीह होता, तो तू स्वयं को बचा लेता, और तू हम को भी बचा लेता!” 40 परन्तु दूसरे अपराधी ने उसे {ऐसा कहने के लिए} फटकारा। उसने उससे बोला, “तुझे परमेश्वर से {तुझे दण्डित करने से} डरना चाहिए! तू भी तो क्रूस पर मर रहा है, {और शीघ्र ही परमेश्वर तेरा न्याय करेगा}। 41 हम दोनों तो {मरने के} योग्य हैं। वे हमें इसलिए दण्डित कर रहे हैं क्योंकि हम उन दुष्ट कामों के कारण जो हम ने किए इसके योग्य हैं। परन्तु जिस मनुष्य का तू तिरस्कार कर रहा है उसने कोई भी अनुचित काम नहीं किया!” 42 फिर उसने यीशु से कहा, “हे यीशु, जब तू राजा के रूप में शासन करने लगे तो कृपया मेरे विषय में विचार करना और मुझ से अच्छे से व्यवहार करना!” 43 यीशु ने प्रत्युत्तर दिया, “मैं चाहता हूँ कि तू जान ले कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा!” 44 उस समय यह लगभग दोपहर का समय था। परन्तु उस सम्पूर्ण क्षेत्र में दोपहर में तीन बजे तक अंधकार छाया रहा। 45 वहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं था। और मंदिर के भीतर जो {मोटा} पर्दा था {जो परम पवित्र स्थान को ढाँपता था} वह दो टुकड़ों में विभाजित हो गया। 46 जब ऐसा हुआ, तो यीशु ऊँचे स्वर में चिल्लाया, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा को तेरी देखरेख में छोड़ता हूँ!” उसके ऐसा कहने के पश्चात, उसने साँस लेना बन्द कर दिया और मर गया। 47 जब उस सूबेदार ने {जो सैनिकों को आदेश दे रहा था} जो घटित हुआ था उसे देखा, तो उसने कहा, “सच में, इस मनुष्य ने कुछ भी अनुचित नहीं किया था!” जो उसने कहा उससे परमेश्वर की प्रशंसा हुई। 48 जब भीड़ के उन लोगों ने जो इन मनुष्यों को मरते हुए देखने के लिए इकट्ठा हुए थे वह देखा जो वास्तव में घटित हुआ था, तो वे यह प्रकट करने के लिए कि वे दुःखित थे अपनी छातियों को पीटते अपने घरों को वापस चले गए। 49 {परन्तु जब बाकी की सारी भीड़ चली गई तो,} जितने यीशु के परिचित थे, जिनमें वे स्त्रियाँ भी सम्मिलित थीं, जो उसके साथ गलील {क्षेत्र} से आई थीं, जहाँ थोड़ी दूरी पर वे खड़े थे, वहीं से जो घटित हुआ था उसे देखते रहे। 50 वहाँ एक यूसुफ नाम का व्यक्ति था {जो यरूशलेम में रहता था}। वह एक भला और धर्मी व्यक्ति था जो कि यहूदी परिषद का एक सदस्य भी था। 51 परन्तु वह अन्य परिषद सदस्यों से सहमत नहीं था जब उन्होंने यीशु को मार डालने का निर्णय लिया था और जब उन्होंने योजना बनाई थी कि इसे कैसे करना है। वह यहूदिया के अरमतिया का रहने वाला था। वह अपेक्षापूर्ण रीति से उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जब परमेश्वर अपने राजा को शासन करना आरम्भ करने के लिए भेजेगा। 52 यूसुफ पिलातुस के पास गया और यीशु का शव लेकर उसे गाड़ने के लिए अनुमति प्रदान करने हेतु उसने पिलातुस से विनती की {पिलातुस ने उसे अनुमति दे दी,} 53 अतः यूसुफ ने यीशु के शव को {क्रूस पर से} नीचे उतार लिया। उसने उसे सनी के वस्त्र में लपेट दिया। तब उसने यीशु के शव को एक कब्र में रख दिया जिसे किसी ने खड़ी चट्टान में काटा था। इससे पहले कभी भी किसी ने उस कब्र में कोई शव नहीं रखा था। 54 यह उस दिन घटित हुआ जब यहूदी लोग उनके विश्राम दिन के लिए तैयार हो रहे थे। शीघ्र ही सूर्यास्त होकर सब्त का आरम्भ होने वाला था। 55 जो स्त्रियाँ यीशु के साथ गलील {क्षेत्र} से आई थीं, वे {यूसुफ और जो पुरुष उसके साथ थे} उनके पीछे-पीछे गईं। उन्होंने उस कब्र को देखा, और उन्होंने यह भी देखा कि उसके भीतर उन पुरुषों ने यीशु के शव को कैसे लिटाया था। 56 फिर वे स्त्रियाँ वहाँ वापस चली गईं जहाँ पर वे ठहरी हुई थीं कि {यीशु के शव पर लगाने के लिए} मसाले और लेप तैयार करें। तथापि, जब सब्त आरम्भ हुआ तो उन्होंने काम करना बन्द कर दिया, जिस प्रकार से यहूदी व्यवस्था की माँग थी।

Chapter 24

1 रविवार को सुबह में बड़ी भोर को, वे स्त्रियाँ कब्र पर गईं। वे अपने साथ में वे मसाले लेकर आईं जिनको {यीशु के शव पर लगाने के लिए} उन्होंने तैयार किया था। 2 {जब वे पहुँचीं,} तो उन्होंने पाया कि किसी ने कब्र पर से उस पत्थर को {जिसने प्रवेश द्वार को बन्द कर रखा था} लुढ़का कर दूर कर दिया था। 3 वे {कब्र में} भीतर गईं, परन्तु यीशु का शव वहाँ पर नहीं था! 4 वे नहीं जानती थीं कि इसके विषय में क्या विचार करना है। तभी दो पुरुष उज्ज्वल, चमकते वस्त्र पहने हुए अचानक से उनके समीप आ खड़े हुए! 5 इस बात ने उन स्त्रियों को बहुत डरा दिया। वे भूमि की ओर झुक कर बैठ गईं। उन दो पुरुषों ने उनसे कहा, “जो मनुष्य जीवित हो तुम को किसी ऐसे जन की खोज उस स्थान पर नहीं करनी चाहिए जहाँ पर वे मृत लोगों के शवों को दफनाते हैं! 6 वह यहाँ पर नहीं है। नहीं, वह जीवित हो गया है! स्मरण करो जिस समय पर वह तुम्हारे साथ गलील में ही था, तो उसने तुम से कहा था, 7 ‘वे मुझ, मनुष्य के पुत्र, को पापी मनुष्यों के हाथों में सौंप देंगे। वे मनुष्य मुझे क्रूस पर चढ़ा देने के द्वारा मार डालेंगे। परन्तु दो दिनों के पश्चात, मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा।’” 8 उन स्त्रियों को स्मरण आ गया जो यीशु ने उनसे कहा था। 9 इसलिए वे कब्र को छोड़ कर यीशु के उन 11 प्रेरितों और अन्य चेलों के पास गईं और जो घटित हुआ था वह उनको बताया। 10 जिन स्त्रियों ने इन बातों को प्रेरितों को बताया वे मगदला गाँव की रहने वाली मरियम, योअन्ना, याकूब की माता मरियम, और अन्य स्त्रियाँ थीं जो उनके साथ थीं, 11 परन्तु प्रेरितों ने सोचा कि यह सूचना मूर्खता ही थी, इसलिए उन्होंने उन स्त्रियों का विश्वास नहीं किया। 12 तथापि, पतरस ने {यह देखने का कि कहानी सच थी या नहीं} निर्णय लिया। वह कब्र की ओर दौड़ गया। वह नीचे झुका {और भीतर झाँका}। उसने वह सनी के कपड़े देखे {जिसमें यीशु का शव लिपटा हुआ था, परन्तु यीशु वहाँ नहीं था}। इसलिए जो कुछ घटित हुआ था उसके विषय में विचार करते हुए, वह कब्र पर से चला गया। 13 उसी दिन यीशु के दो चेले इम्माऊस नाम के दूर के एक गाँव को जा रहे थे। यह यरूशलेम से लगभग दस किलोमीटर दूर था। 14 वे उन सभी बातों के विषय में एक दूसरे से बात कर रहे थे जो {यीशु के साथ} घटित हुई थीं। 15 जिस समय पर वे बातें कर रहे थे और {उन बातों की} चर्चा कर रहे थे, तो यीशु स्वयं उनके पास पहुँचा और उनके साथ-साथ चलने लगा। 16 परन्तु परमेश्वर ने उन्हें यह समझने से रोक दिया कि वह यीशु था। 17 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम दोनों चलते-चलते किस विषय में बात कर रहे थे?” वे रुक गए, और उनके मुँह पर बहुत दुःखी भाव थे। 18 परन्तु तभी उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लियुपास था, प्रत्युत्तर दिया, “तू ही एकमात्र व्यक्ति होगा जो यरूशलेम की यात्रा कर रहा है और जो हाल ही के दिनों में वहाँ पर घटित हुई घटनाओं के विषय में नहीं जानता है!” 19 उसने उनसे पूछा, “कैसी घटनाएँ?” उन्होंने प्रत्युत्तर दिया, “वे बातें जो यीशु के साथ घटित हुईं, वह मनुष्य जो नासरत का रहने वाला था, जो कि एक भविष्यद्वक्ता था। परमेश्वर ने उसे बड़े-बड़े चमत्कार दिखाने में और अद्भुत सन्देशों की शिक्षा देने में सक्षम किया। अधिकांश लोगों के विचार में वह अद्भुत था। 20 परन्तु हमारे प्रधान याजकों और अगुवों ने उसे {रोमी अधिकारियों को} सौंप दिया। उन्होंने उसे मृत्युदण्ड दिया, और उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ा कर मार डाला। 21 हम आशा कर रहे थे कि वह वही जन था जो हम इस्राएलियों को हमारे शत्रुओं से स्वतंत्र करेगा! परन्तु अब यह सम्भव नहीं लगता है, क्योंकि रोमियों के द्वारा उसे मार डाले जाने के पश्चात से तीन दिन बीत चुके हैं। 22 इसके अतिरिक्त, हमारे समूह की कुछ स्त्रियों ने हमें चकित कर दिया। आज सुबह भोर में वे उस कब्र पर गईं {जहाँ यीशु को दफनाया गया था}, 23 परन्तु यीशु का शव वहाँ पर नहीं था! उन्होंने वापस आकर हमें बताया कि उन्होंने दर्शन में कुछ स्वर्गदूतों को भी देखा। उन स्वर्गदूतों ने बताया कि यीशु जीवित है! 24 तब उनमें से कुछ जो हमारे साथ थे {जब उन स्त्रियों ने आकर यह बताया तो} कब्र पर गए। उन्होंने देखा कि वे बातें उसी प्रकार से थीं जैसी उन स्त्रियों ने सूचना दी थी। परन्तु उन्होंने यीशु को नहीं देखा। 25 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम दोनों मूर्ख हो! जो सब बातें भविष्यद्वक्ताओं ने मसीह के विषय में लिखी हैं उन पर विश्वास करने में तुम बहुत ढीले हो! 26 निश्चित रूप से तुम को मालूम होना चाहिए कि मसीह के लिए यह आवश्यक था कि उन सब बातों में दुःख उठाए {और मर जाए}, और फिर परमेश्वर की ओर से महान सम्मान को प्राप्त करे!” 27 तब यीशु ने उन्हें वे सब बातें समझा दीं जो पवित्रशास्त्र में उसके विषय में कही गई हैं। उसने मूसा की लिखी बातों से आरम्भ किया, और फिर उसने समझाया कि सारे ही भविष्यवक्ताओं ने क्या लिखा था। 28 जब वे उस गाँव के निकट पहुँच गए जहाँ वे दोनों पुरुष जा रहे थे, और ऐसा प्रतीत हुआ कि यीशु सड़क पर चलते हुए आगे जा रहा था। 29 परन्तु उन्होंने उससे {ऐसा नहीं करने के लिए} विनती की। उन्होंने कहा, “आज रात हमारे साथ रह, क्योंकि दोपहर बीत गया है और शीघ्र ही अंधेरा हो जाएगा।” इसलिए वह उनके साथ रहने के लिए {घर में} भीतर गया। 30 जब वे सब भोजन करने के लिए बैठ गए, तो यीशु ने थोड़ी रोटी ली और उसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। फिर उसने उसे टुकड़ों में तोड़ा और उन दो पुरुषों को कुछ देने लगा। 31 और तब परमेश्वर ने उनको उसे पहचानने में सक्षम किया। परन्तु तुरन्त ही वह अदृश्य हो गया! 32 उन्होंने एक दूसरे से कहा, “जिस समय पर हम सड़क पर चले रहे थे और वह हम से बातें कर रहा था और हमें पवित्रशास्त्र को समझने में सक्षम कर रहा था, हम भीतर से अत्यन्त उत्साहित हो गए थे! {इन सब का यही अर्थ निकलता है कि मसीह को दुःख उठाना ही होगा परन्तु तत्पश्चात महान सम्मान प्राप्त होगा।}” 33 इसलिए वे तुरन्त ही निकल कर यरूशलेम को लौट गए। वहाँ उन्होंने उन 11 प्रेरितों और कुछ अन्य लोगों को पाया जो उनके साथ इकट्ठे हो गए थे। 34 प्रेरितों ने उन दो पुरुषों से कहा, “यह सत्य है कि यीशु फिर से जी उठा है। वह शमौन को दिखाई भी दिया है!” 35 फिर उन दो पुरुषों ने दूसरों को बताया कि जब वे सड़क पर चल रहे थे तब क्या घटित हुआ था। उन्होंने उन्हें यह भी बताया कि कैसे वे दोनों यीशु को पहचान गए जब उसने उनके लिए कुछ रोटी तोड़ी। 36 जब वे यह कह ही रहे थे, अचानक यीशु स्वयं उनके मध्य में प्रकट हो गया। उसने उनसे कहा, “परमेश्‍वर तुम्हें शान्ति प्रदान करे!” 37 परन्तु {वे शान्तिपूर्ण नहीं थे।} वे चौंक गए थे और डर गए थे क्योंकि उन्हें लगा कि वे किसी भूत को देख रहे हैं! 38 उसने उनसे कहा, “तुम को चिन्तित नहीं होना चाहिए! और तुम को सन्देह भी नहीं करना चाहिए {कि मैं जीवित हूँ}। 39 {मेरे हाथों के घावों को} और मेरे पाँवों को देखो! इस प्रकार से तुम सुनिश्चित हो सकते हो कि यह वास्तव में मैं ही हूँ। भूतों के शरीर नहीं होते, जैसा कि तुम देखते हो कि मेरे पास है, और तुम मुझे यह साबित करने के लिए छू भी सकते हो कि मेरा शरीर वास्तविक है।” 40 उसके ऐसा कहने के पश्चात, उसने उनको अपने हाथों और अपने पाँवों {में घावों} को दिखाया। 41 वे इतने आनन्दित थे कि वे अभी भी बड़ी कठिनाई से विश्वास कर पा रहे थे {कि वह वास्तव में जीवित था}। इसलिए उसने उनसे कहा, “क्या तुम्हारे पास यहाँ पर कुछ है जिसे मैं खा सकूँ?” 42 अतः उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया। 43 और जबकि वे देख ही रहे थे, उसने उसे लेकर खा लिया। 44 फिर उसने उनसे कहा, “मैं उसे फिर से दोहराऊँगा जो मैंने तुम से उस समय पर कहा था जब पहले मैं तुम्हारे साथ था। परमेश्वर वह सब कुछ करने वाला था जो उसने मेरे {मसीह के} विषय में सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में कहा था।” 45 तब उसने उनको पवित्रशास्त्र {की उन बातों को} {जो उसके विषय में कही गई थीं} समझने में सक्षम कर दिया। उसने उनसे कहा, 46 “यह वही है जो पवित्रशास्त्र में तुम पढ़ सकते हो: कि मसीह दुःख उठाएगा {और मर जाएगा}, परन्तु उसके पश्चात तीसरे दिन, वह फिर से जीवित हो जाएगा। 47 {पवित्रशास्त्र यह भी कहता है कि} जो मसीह पर विश्वास करते हैं वे जाकर उसकी ओर से घोषणा करें कि परमेश्वर उन लोगों को क्षमा कर देगा जो पाप करना बन्द कर देते हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम यह करो कि यहाँ यरूशलेम से आरम्भ करके संसार में रहने वाले प्रत्येक लोगों के समूहों के पास जाओ। 48 {तुम को लोगों को बताना है कि} तुम ने मेरे साथ घटित हुई उन सब बातों को देखा है जिनके लिए पवित्रशास्त्र कहता है कि वे मसीह के साथ घटित होंगी। 49 और जैसा कि मेरे पिता ने वादा किया था, मैं तुम्हारे पास पवित्र आत्मा को भेजने वाला हूँ। परन्तु तुम को उस समय तक इस नगर में ठहरे रहना है जब तक कि परमेश्वर तुम को {पवित्र आत्मा की} सामर्थ प्रदान न करे।” 50 फिर यीशु उनको {नगर से} बाहर ले गया जब तक कि वे बैतनिय्याह {गाँव} के निकट तक नहीं आ गए। वहाँ पर उसने अपने हाथों को उठा कर उनको आशीर्वाद दिया। 51 जब वह ऐसा कर रहा था, तो वह उनको छोड़ कर स्वर्ग को चला गया। 52 उसकी आराधना करने के पश्चात, वे बड़े आनन्द के साथ यरूशलेम को लौट गए। 53 प्रत्येक दिन वे मंदिर में गए और वहाँ पर परमेश्वर की आराधना करने में समय को व्यतीत किया।