हिन्दी (Hindi): Indian Revised Version - Hindi

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उत्पत्ति

लेखक

यहूदी परम्परा और बाइबल के अन्य लेखकों के अनुसार पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकें जिन्हें पेन्टाट्यूक या पंचग्रन्थ भी कहते हैं उनका लेखक मूसा है, जो इस्राएल का नबी और छुड़ानेवाला था। मिस्र के राजसी परिवार में मूसा का शिक्षण (प्रेरितों के कार्य 7:22) और यहोवा (इब्री भाषा में परमेश्वर का नाम) के साथ उसका घनिष्ठ सम्बन्ध इस विचार का समर्थन करता है। स्वयं यीशु ने (यूहन्ना 5:45-47) और उसके समय के फरीसियों और शास्त्रियों ने भी (मत्ती 19:7; 22:24) मूसा को इसका लेखक माना है।

लेखन तिथि एवं स्थान

1446 से 1405 ई.पू.

यह एक सम्भावना है कि जिस वर्ष इस्राएल ने सीनै के जंगलों में छावनी डाली थी, उस समय संतः मूसा ने इस पुस्तक को लिखा।

प्रापक

इस पुस्तक के श्रोतागण मिस्र की बंधुआई से निकल कर कनान अर्थात् प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले के आरम्भिक इस्राएली रहे होंगे।

उद्देश्य

मूसा ने इस पुस्तक को अपनी इस्राएली जाति के “पारिवारिक इतिहास” को दर्शाने के लिए लिखा था। उत्पत्ति की पुस्तक लिखने में मूसा का उद्देश्य यह दर्शाना था कि इस्राएली जाति किस प्रकार मिस्र की बंधुआई में पड़ गई थी(1:8), और यह भी कि वह देश जिसमें वे प्रवेश करने जा रहे थे उनका “प्रतिज्ञात देश” क्यों था (17:8), और वह यह भी दर्शाता है कि इस्राएल के साथ जो कुछ हुआ उन सब पर परमेश्वर की प्रभुता थी, और मिस्र में उनकी बंधुआई संयोग से होने वाली घटना नहीं बल्कि परमेश्वर की बड़ी योजना का एक भाग थी (15:13-16, 50:20), और यह दर्शाना कि अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर वही परमेश्वर है जिसने जगत की रचना की (3:15-16)। इस्राएल का परमेश्वर अनेक देवताओं में से कोई एक नहीं, बल्कि आकाश और पृथ्वी का बनानेवाला परमप्रधान सृष्टिकर्ता है।

रुपरेखा 1. सृष्टि की रचना (1:1-2:25) 2. मनुष्य का पाप में पतन (3:1-24) 3. आदम की पीढ़ी (4:1-6:8) 4. नूह की पीढ़ी (6:9-11:32) 5. अब्राहम का वृत्तान्त (12:1-25:18) 6. इसहाक और उसके पुत्रों का वृत्तान्त (25:19-36:43) 7. याकूब की पीढ़ी (37:1-50:26)

Chapter 1

सृष्टि का इतिहास

1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। (इब्रा. 1:10, इब्रा. 11:3)

2 पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी, और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। (2 कुरि. 4:6)

पहला दिन—उजियाला

3 तब परमेश्वर ने कहा, “ उजियाला हो [1] *,” तो उजियाला हो गया।

4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है [2] *; और परमेश्वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया।

5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अंधियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया।

दूसरा दिन—आकाश

6 फिर परमेश्वर ने कहा [3] *, “जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।”

7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; और वैसा ही हो गया।

8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।

तीसरा दिन—सूखी धरती और पेड़-पौधे

9 फिर परमेश्वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे,” और वैसा ही हो गया। (2 पत. 3:5)

10 और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।

11 फिर परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें,” और वैसा ही हो गया। (1 कुरि. 15:38)

12 इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं उगें; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।

13 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।

चौथा दिन—सूरज, चाँद और तारे

14 फिर परमेश्वर ने कहा, “दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियों हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों;

15 और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें,” और वैसा ही हो गया।

16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; और तारागण को भी बनाया।

17 परमेश्वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिए रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें,

18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अंधियारे से अलग करें; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।

19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया।

पाँचवाँ दिन—मछलियाँ और पक्षी

20 फिर परमेश्वर ने कहा, “जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।”

21 इसलिए परमेश्वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं जिनसे जल बहुत ही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।

22 परमेश्वर ने यह कहकर उनको आशीष दी [4] *, “फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।”

23 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो गया।

छठवाँ दिन—भूमि के जीवजन्तु और मनुष्य

24 फिर परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वन पशु, जाति-जाति के अनुसार उत्पन्न हों,” और वैसा ही हो गया।

25 इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।

26 फिर परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य [5] * को अपने स्वरूप के अनुसार [6] अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (याकू. 3:9)

27 तब परमेश्वर ने अपने स्‍वरूप में मनुष्य को रचा, अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की; पुरुष और स्त्री के रूप में उसने मनुष्यों की सृष्टि की। (मत्ती 19:4, मर. 10:6, प्रेरि. 17:29, 1 कुरि. 11:7, कुलु. 3:10, 1 तीमु. 2:13)

28 और परमेश्वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”

29 फिर परमेश्वर ने उनसे कहा, “सुनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैंने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं; (रोम. 14:2)

30 और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उन सबके खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” और वैसा ही हो गया।

31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सबको देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। (1 तीमु. 4:4)


1:3 [1] उजियाला हो: पहले दिन का कार्य उजियाले को अस्तित्व में लाना था। यहाँ स्पष्ट रूप से योजना, पिछले पद बताए गए एक दोष, अर्थात् अंधकार को दूर करना है।
1:4 [2] परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है: परमेश्वर अपने कार्य पर विचार करता है, और उस कार्य के उत्तमता के बोध से तृप्ति की भावना प्राप्त करता है।
1:6 [3] फिर परमेश्वर ने कहा: इससे हम यह सीखते हैं कि वह न केवल है, बल्कि ऐसा है जो अपनी इच्छा को व्यक्त कर सकता है और अपने सृजे हुओं के साथ बातचीत कर सकता है। वह न केवल अपनी सृष्टि के द्वारा प्रगट होता है बल्कि स्वयं भी अपने को प्रगट करता है।
1:22 [4] परमेश्वर ने यह कहकर उनको आशीष दी: आशीष देने का अर्थ कामना करना है और यहाँ परमेश्वर के सन्दर्भ में इसका अर्थ आशीष पानेवाले के लिए कुछ अच्छा करने का संकल्प लेना।
1:26 [5] मनुष्य: मनुष्य नई प्रजाति है, वह विशेषरूप से इस पृथ्वी के अन्य प्रकार के जीवों से भिन्न है।
1:26 [6] अपने स्वरूप के अनुसार: अर्थात् अपनी समानता में। मनुष्य स्वर्ग से सम्बद्ध है जो इस पृथ्वी का कोई भी प्राणी नहीं है

Chapter 2

सातवाँ दिन—विश्राम

1 इस तरह आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया।

2 और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया [1] ।* (इब्रा. 4:4)

3 और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उसमें उसने सृष्टि की रचना के अपने सारे काम से विश्राम लिया।

4 आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया।

5 तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था।

6 लेकिन कुहरा पृथ्वी से उठता था जिससे सारी भूमि सिंच जाती थी।

मानव जाति का आरम्भ

7 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया। (1 कुरि. 15:45)

8 और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिका लगाई; और वहाँ आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया।

9 और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)

10 उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहाँ से आगे बहकर चार नदियों में बँट गई। (प्रका. 22:2)

11 पहली नदी का नाम पीशोन है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता है घेरे हुए है।

12 उस देश का सोना उत्तम होता है; वहाँ मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं।

13 और दूसरी नदी का नाम गीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है।

14 और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहती है। और चौथी नदी का नाम फरात है।

15 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर [2] * अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रखवाली करे।

16 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता है;

17 पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”

18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “ आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं [3] *; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये उपयुक्त होगा।” (1 कुरि. 11:9)

19 और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।

20 अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के जंगली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके।

21 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। (1 कुरि. 11:8)

22 और यहोवा परमेश्वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। (1 तीमु. 2:13)

23 तब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।”

24 इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। (मत्ती 19:5, मर. 10:7, 8, इफि. 5:31)

25 आदम और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर वे लज्जित न थे।


2:2 [1] सातवें दिन विश्राम किया: परमेश्वर का विश्राम थकान के कारण नहीं परन्तु अपना कार्य समाप्त करने से है। वह अपनी शक्ति को फिर से प्राप्त करके तरोताजा नहीं हुआ बल्कि अपने सामने समाप्त कार्य को देखने की तृप्ति से हुआ।
2:15 [2] परमेश्वर ने आदम को लेकर: वही सर्व-सामर्थी हाथ जिसने उसे बनाया था, उसने अब भी उसे थाम रखा था, और उसने उसे वाटिका में रखा। उसने वह वाटिका उसे विश्राम करने या उसमें वास करने के लिए दी, जो एक शान्ति और विश्रांति का स्थान था।
2:18 [3] आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं: परमेश्वर ने मनुष्य को समाजिक प्राणी बनाया, कि वह न केवल अपने से बड़ो के साथ बातचीत करे बल्कि समान लोगों के साथ भी करे। उसे एक साथी चाहिए था जिसके साथ वह बातचीत कर सके और परमेश्वर ने उसकी इस ज़रूरत की पूर्ति करने का निर्णय किया।

Chapter 3

पाप का आरम्भ

1 यहोवा परमेश्वर ने जितने जंगली पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, ‘तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना’?” (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2)

2 स्त्री ने सर्प से कहा, “इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं;

3 पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।”

4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे

5 वरन् परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।”

6 अतः जब स्त्री ने देखा [1] * कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था और उसने भी खाया। (1 तीमु. 2:14)

7 तब उन दोनों की आँखें खुल गईं, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे हैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंगोट बना लिये।

पाप का परिणाम

8 तब यहोवा परमेश्वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए।

9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकारकर आदम से पूछा, “तू कहाँ है?”

10 उसने कहा, “मैं तेरा शब्द वाटिका में सुनकर डर गया, क्योंकि मैं नंगा था [2] *; इसलिए छिप गया।”

11 यहोवा परमेश्वर ने कहा, “किसने तुझे बताया कि तू नंगा है? जिस वृक्ष का फल खाने को मैंने तुझे मना किया था, क्या तूने उसका फल खाया है?”

12 आदम ने कहा, “जिस स्त्री को तूने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैंने खाया।”

13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, “तूने यह क्या किया है?” स्त्री ने कहा, “सर्प ने मुझे बहका दिया, तब मैंने खाया।” (रोम. 7:11, 2 कुरि. 11:3, 1 तीमु. 2:14)

14 तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया है इसलिए तू सब घरेलू पशुओं, और सब जंगली पशुओं से अधिक श्रापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा;

15 और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”

16 फिर स्त्री से उसने कहा, “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बच्चे उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” (1 कुरि. 11:3, इफि. 5:22, कुलु. 3:18)

17 और आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैंने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा; (इब्रा. 6:8)

18 और वह तेरे लिये काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा;

19 और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।”

20 आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा [3] * रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की मूलमाता वही हुई।

21 और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के वस्‍त्र बनाकर उनको पहना दिए।

22 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिए अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।” (प्रका. 2:7, प्रका. 22:2, 14, 19, उत्प. 3:24, प्रका. 2:7)

23 इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिसमें से वह बनाया गया था।

24 इसलिए आदम को उसने निकाल दिया [4] * और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली अग्निमय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।


3:6 [1] जब स्त्री ने देखा: स्त्री ने फल देखा और यह सम्भव था उसने परीक्षा लेनेवाले द्वारा बताई बातों से उत्साहित होकर उस फल को मनोहरता की आँखों से देखा।
3:10 [2] क्योंकि मैं नंगा था: इस कथन में उसके द्वारा अपने विचारों को परमेश्वर से छिपाने की स्वाभाविक प्रवृति दिखाई देती है। नंगाई का ज़िक्र है, परन्तु उस आज्ञा-उल्लंघन का नहीं जिससे यह बात आई।
3:20 [3] हव्वा: इब्रानी भाषा में हव्वा का अर्थ है ‘जीवन’
3:24 [4] आदम को उसने निकाल दिया: यह आदम के वाटिका में से निर्वासन को न्यायिक क्रिया के रूप में दर्शाता है। वह मिट्टी में मिलने तक अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने परिश्रम के फल पर ही निर्भर रह गया

Chapter 4

कैन द्वारा हाबिल की हत्या

1 जब आदम अपनी पत्नी हव्वा के पास गया तब उसने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, “मैंने यहोवा की सहायता से एक पुत्र को जन्म दिया है।”

2 फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, हाबिल तो भेड़-बकरियों का चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करनेवाला किसान बना।

3 कुछ दिनों के पश्चात् कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया। (यहू. 1:11)

4 और हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई [1] *; तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, (इब्रा. 11:4)

5 परन्तु कैन और उसकी भेंट को उसने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुँह पर उदासी छा गई।

6 तब यहोवा ने कैन से कहा, “तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुँह पर उदासी क्यों छा गई है?

7 यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी ओर होगी, और तुझे उस पर प्रभुता करनी है।”

8 तब कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा [2] *; और जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसकी हत्या कर दी।

9 तब यहोवा ने कैन से पूछा, “तेरा भाई हाबिल कहाँ है?” उसने कहा, “मालूम नहीं; क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?”

10 उसने कहा, “तूने क्या किया है? तेरे भाई का लहू भूमि में से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दुहाई दे रहा है! (इब्रा. 12:24)

11 इसलिए अब भूमि जिसने तेरे भाई का लहू तेरे हाथ से पीने के लिये अपना मुँह खोला है, उसकी ओर से तू श्रापित [3] * है।

12 चाहे तू भूमि पर खेती करे, तो भी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी, और तू पृथ्वी पर भटकने वाला और भगोड़ा होगा।”

13 तब कैन ने यहोवा से कहा, “मेरा दण्ड असहनीय है।

14 देख, तूने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है और मैं तेरी दृष्टि की आड़ में रहूँगा और पृथ्वी पर भटकने वाला और भगोड़ा रहूँगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मेरी हत्या करेगा।”

15 इस कारण यहोवा ने उससे कहा, “जो कोई कैन की हत्या करेगा उससे सात गुणा बदला लिया जाएगा।” और यहोवा ने कैन के लिये एक चिन्ह ठहराया ऐसा न हो कि कोई उसे पाकर मार डाले।

कैन के वंशज

16 तब कैन यहोवा के सम्मुख से निकल गया और नोद नामक देश में, जो अदन के पूर्व की ओर है, रहने लगा।

17 जब कैन अपनी पत्नी के पास गया तब वह गर्भवती हुई और हनोक को जन्म दिया; फिर कैन ने एक नगर बसाया और उस नगर का नाम अपने पुत्र के नाम पर हनोक रखा।

18 हनोक से ईराद उत्पन्न हुआ, और ईराद से महूयाएल उत्पन्न हुआ और महूयाएल से मतूशाएल, और मतूशाएल से लेमेक उत्पन्न हुआ।

19 लेमेक ने दो स्त्रियाँ ब्याह लीं: जिनमें से एक का नाम आदा और दूसरी का सिल्ला है।

20 आदा ने याबाल को जन्म दिया। वह उन लोगों का पिता था जो तम्बूओं में रहते थे और पशुओं का पालन करके जीवन निर्वाह करते थे।

21 उसके भाई का नाम यूबाल था : वह उन लोगों का पिता था जो वीणा और बाँसुरी बजाते थे।

22 और सिल्ला ने भी तूबल-कैन नामक एक पुत्र को जन्म दिया: वह पीतल और लोहे के सब धारवाले हथियारों का गढ़नेवाला हुआ। और तूबल-कैन की बहन नामाह थी।

23 लेमेक ने अपनी पत्नियों से कहा,

     “हे आदा और हे सिल्ला मेरी सुनो;

     हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ:

     मैंने एक पुरुष को जो मुझे चोट लगाता था,

     अर्थात् एक जवान को जो मुझे घायल करता था, घात किया है।

     24 जब कैन का बदला सात गुणा लिया जाएगा।

     तो लेमेक का सतहत्तर गुणा लिया जाएगा।”

शेत और एनोश

25 और आदम अपनी पत्नी के पास फिर गया; और उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम यह कहकर शेत रखा कि “परमेश्वर ने मेरे लिये हाबिल के बदले, जिसको कैन ने मारा था, एक और वंश प्रदान किया।” (उत्प. 5:3, 4)

26 और शेत के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ और उसने उसका नाम एनोश रखा। उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे।


4:4 [1] हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई: हाबिल की भेंट बाहरी रूप से अपने भाई कैन से भिन्न थी। इसमें उसकी भेड़-बकरियों के पहिलौठे शामिल थे। इनको मारके उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई गई। अतः लहू बहाया गया, और प्राण ले लिया गया।
4:8 [2] कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा: कुछ पांडुलिपियों के अनुसार “कैन ने अपने भाई हाबिल से कहा, 'हम बाहर मैदान में चले।'
4:11 [3] श्रापित: वह शाप जो अब कैन पर आया, एक प्रकार से दंडात्मक था, क्योंकि वह उस भूमि से आया जिसने उसके भाई का लहू पिया था।

Chapter 5

आदम की वंशावली

1 आदम की वंशावली यह है। जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपने ही स्वरूप में उसको बनाया। (मत्ती 1:1, 1 कुरि. 11:7)

2 उसने नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की और उन्हें आशीष दी, और उनकी सृष्टि के दिन उनका नाम आदम रखा [1] *। (मत्ती 19:4, मर. 10:6)

3 जब आदम एक सौ तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा उसकी समानता में उस ही के स्वरूप के अनुसार एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने उसका नाम शेत रखा।

4 और शेत के जन्म के पश्चात् आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

5 इस प्रकार आदम की कुल आयु नौ सौ तीस वर्ष की हुई, तत्पश्चात् वह मर गया।

6 जब शेत एक सौ पाँच वर्ष का हुआ, उससे एनोश उत्पन्न हुआ।

7 एनोश के जन्म के पश्चात् शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

8 इस प्रकार शेत की कुल आयु नौ सौ बारह वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

9 जब एनोश नब्बे वर्ष का हुआ, तब उसने केनान को जन्म दिया।

10 केनान के जन्म के पश्चात् एनोश आठ सौ पन्द्रह वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

11 इस प्रकार एनोश की कुल आयु नौ सौ पाँच वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

12 जब केनान सत्तर वर्ष का हुआ, तब उसने महललेल [2] * को जन्म दिया।

13 महललेल के जन्म के पश्चात् केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

14 इस प्रकार केनान की कुल आयु नौ सौ दस वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

15 जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उसने येरेद को जन्म दिया।

16 येरेद के जन्म के पश्चात् महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

17 इस प्रकार महललेल की कुल आयु आठ सौ पंचानबे वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

18 जब येरेद एक सौ बासठ वर्ष का हुआ, जब उसने हनोक को जन्म दिया।

19 हनोक के जन्म के पश्चात् येरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

20 इस प्रकार येरेद की कुल आयु नौ सौ बासठ वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

21 जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उसने मतूशेलह को जन्म दिया।

22 मतूशेलह के जन्म के पश्चात् हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा [3] *, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

23 इस प्रकार हनोक की कुल आयु तीन सौ पैंसठ वर्ष की हुई।

24 हनोक परमेश्वर के साथ-साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया। (इब्रा. 11:5)

25 जब मतूशेलह एक सौ सत्तासी वर्ष का हुआ, तब उसने लेमेक को जन्म दिया।

26 लेमेक के जन्म के पश्चात् मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

27 इस प्रकार मतूशेलह की कुल आयु नौ सौ उनहत्तर वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

28 जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, तब उससे एक पुत्र का जन्म हुआ।

29 उसने यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि “यहोवा ने जो पृथ्वी को श्राप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्रम में जो हम करते हैं, हमें शान्ति देगा।”

30 नूह के जन्म के पश्चात् लेमेक पाँच सौ पंचानबे वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

31 इस प्रकार लेमेक की कुल आयु सात सौ सतहत्तर वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।

32 और नूह पाँच सौ वर्ष का हुआ; और नूह से शेम, और हाम और येपेत का जन्म हुआ।


5:2 [1] उनका नाम आदम रखा: यह स्पष्ट रूप से प्रजातिगत या सामूहिक शब्द है जो प्रजाति को दर्शाता है। सृष्टिकर्ता के रूप में परमेश्वर, जाति को नाम देता है और इसके द्वारा वह उसके चरित्र और उद्देश्य को चिह्नित करता है।
5:12 [2] महललेल: अर्थात् ‘परमेश्वर की स्तुति’
5:22 [3] हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा: हनोक के समय में कुछ लोगों ने सच्चे परमेश्वर को छोड़ दिया था और परम प्रधान परमेश्वर से सम्बन्धित कई गलत धारणाओं में गिर गए थे। उसका परमेश्वर के साथ साथ चलना यह संकेत देता है कि अन्य लोग परमेश्वर के चल बिना रहे थे।

Chapter 6

परमेश्वर के बेटे और मनुष्यों की बेटियाँ

1 फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियाँ उत्पन्न हुईं,

2 तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; और उन्होंने जिस-जिस को चाहा उनसे ब्याह कर लिया।

3 तब यहोवा ने कहा, “मेरा आत्मा मनुष्य में सदा के लिए निवास न करेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है; उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।”

4 उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात् जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीनकाल से प्रचलित है।

परमेश्वर द्वारा न्याय का फैसला

5 यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है। (भज. 53:2)

6 और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ।

7 तब यहोवा ने कहा, “ मैं मनुष्य को जिसकी मैंने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा [1] *; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूँगा, क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूँ।”

परमेश्वर के अनुग्रह की दृष्टि में नूह

8 परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही।

9 नूह की वंशावली यह है। नूह [2] * धर्मी पुरुष और अपने समय के लोगों में खरा था; और नूह परमेश्वर ही के साथ-साथ चलता रहा।

10 और नूह से शेम, और हाम, और येपेत नामक, तीन पुत्र उत्पन्न हुए।

11 उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई [3] * थी, और उपद्रव से भर गई थी।

12 और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपना-अपना चाल-चलन बिगाड़ लिया था।

13 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, “सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे सामने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिए मैं उनको पृथ्वी समेत नाश कर डालूँगा।

14 इसलिए तू गोपेर वृक्ष की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उसमें कोठरियाँ बनाना, और भीतर-बाहर उस पर राल लगाना।

15 इस ढंग से तू उसको बनाना: जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊँचाई तीस हाथ की हो।

16 जहाज में एक खिड़की बनाना, और उसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक ओर एक द्वार रखना, और जहाज में पहला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना।

17 और सुन, मैं आप पृथ्वी पर जल-प्रलय करके सब प्राणियों को, जिनमें जीवन का श्वास है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूँ; और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएँगे।

18 परन्तु संग मैं वाचा बाँधता हूँ; इसलिए तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना।

19 और सब जीवित प्राणियों में से, तू एक-एक जाति के दो-दो, अर्थात् एक नर और एक मादा जहाज में ले जाकर, अपने साथ जीवित रखना।

20 एक-एक जाति के पक्षी, और एक-एक जाति के पशु, और एक-एक जाति के भूमि पर रेंगनेवाले, सब में से दो-दो तेरे पास आएँगे, कि तू उनको जीवित रखे।

21 और भाँति-भाँति का भोजन पदार्थ जो खाया जाता है, उनको तू लेकर अपने पास इकट्ठा कर रखना; जो तेरे और उनके भोजन के लिये होगा।”

22 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।


6:7 [1] मैं मनुष्य को जिसकी मैंने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा: यह वर्तमान मनुष्यजाति को मिटा देने का निर्णय था।
6:9 [2] नूह: यहाँ नूह का चित्रण “धर्मी” और “खरे” पुरुष के रूप में की गई है। यह स्मरण रखें कि वह पहले ही उस पर परमेश्वर के अनुग्रह की दृष्टि बनी थी।
6:11 [3] पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई: नूह के विपरीत, बाकी सब मानवजाति भ्रष्ट थी – पाप से पूरी तरह से विकृत। “वह उपद्रव से भर गई थी”।

Chapter 7

जहाज में प्रवेश करना

1 तब यहोवा ने नूह से कहा, “तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मैंने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में धर्मी पाया है।

2 सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात-सात जोड़े, अर्थात् नर और मादा लेना: पर जो पशु शुद्ध नहीं हैं, उनमें से दो-दो लेना, अर्थात् नर और मादा:

3 और आकाश के पक्षियों में से भी, सात-सात जोड़े, अर्थात् नर और मादा लेना, कि उनका वंश बचकर सारी पृथ्वी के ऊपर बना रहे।

4 क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूँगा; और जितने प्राणी मैंने बनाये हैं उन सबको भूमि के ऊपर से मिटा दूँगा।”

5 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।

6 नूह की आयु छः सौ वर्ष की थी, जब जल-प्रलय पृथ्वी पर आया।

7 नूह अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जल-प्रलय से बचने के लिये जहाज में गया।

8 शुद्ध, और अशुद्ध दोनों प्रकार के पशुओं में से, पक्षियों,

9 और भूमि पर रेंगनेवालों में से भी, दो-दो, अर्थात् नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी।

10 सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा।

जल-प्रलय

11 जब नूह की आयु के छः सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्रहवाँ दिन आया; उसी दिन बड़े गहरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए।

12 और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृथ्वी पर होती रही।

13 ठीक उसी दिन नूह अपने पुत्र शेम, हाम, और येपेत, और अपनी पत्नी, और तीनों बहुओं समेत,

14 और उनके संग एक-एक जाति के सब जंगली पशु, और एक-एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक-एक जाति के सब पृथ्वी पर रेंगनेवाले, और एक-एक जाति के सब उड़नेवाले पक्षी, जहाज में गए।

15 जितने प्राणियों में जीवन का श्वास था उनकी सब जातियों में से दो-दो नूह के पास जहाज में गए।

16 और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए। तब यहोवा ने जहाज का द्वार बन्द कर दिया।

17 पृथ्वी पर चालीस दिन तक जल-प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया, जिससे जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृथ्वी पर से ऊँचा उठ गया।

18 जल बढ़ते-बढ़ते पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर-ऊपर तैरता रहा।

19 जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए।

20 जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए।

21 और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या जंगली पशु, और पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी में बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए [1] ।*

22 जो-जो भूमि पर थे उनमें से जितनों के नथनों में जीवन का श्वास था, सब मर मिटे।

23 और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, जो-जो भूमि पर थे, सब पृथ्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए।

24 और जल पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा।


7:21 [1] पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी में बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए: यहाँ सब के डूबकर मरने का ज़िक्र है। वे सब, जिनमें जीवन की आत्मा की श्वांस थी, मर गए।

Chapter 8

जल-प्रलय का अन्त

1 परमेश्वर ने नूह और जितने जंगली पशु और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभी की सुधि ली [1] : और परमेश्वर ने पृथ्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा।

2 गहरे समुंद्र के सोते और आकाश के झरोखे बंद हो गए; और उससे जो वर्षा होती थी वह भी थम गई।

3 और एक सौ पचास दिन के पश्चात् जल पृथ्वी पर से लगातार घटने लगा।

4 सातवें महीने के सत्रहवें दिन को, जहाज अरारात नामक पहाड़ पर टिक गया।

5 और जल दसवें महीने तक घटता चला गया, और दसवें महीने के पहले दिन को, पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई दीं।

6 फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात् नूह ने अपने बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोलकर,

7 एक कौआ उड़ा दिया: जब तक जल पृथ्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर-उधर फिरता रहा।

8 फिर उसने अपने पास से एक कबूतरी को भी उड़ा दिया कि देखे कि जल भूमि से घट गया कि नहीं।

9 उस कबूतरी को अपने पैर टेकने के लिये कोई आधार न मिला, तो वह उसके पास जहाज में लौट आई: क्योंकि सारी पृथ्वी के ऊपर जल ही जल छाया था तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे अपने पास जहाज में ले लिया।

10 तब और सात दिन तक ठहरकर, उसने उसी कबूतरी को जहाज में से फिर उड़ा दिया।

11 और कबूतरी सांझ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जैतून का एक नया पत्ता है; इससे नूह ने जान लिया, कि जल पृथ्वी पर घट गया है।

12 फिर उसने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौटकर न आई।

13 नूह की आयु के छः सौ एक वर्ष के पहले महीने के पहले दिन जल पृथ्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गई है।

14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृथ्वी पूरी रीति से सूख गई।

परमेश्वर की वाचा

15 तब परमेश्वर ने नूह से कहा,

16 “तू अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ।

17 क्या पक्षी, क्या पशु, क्या सब भाँति के रेंगनेवाले जन्तु जो पृथ्वी पर रेंगते हैं; जितने शरीरधारी जीव-जन्तु तेरे संग हैं, उन सबको अपने साथ निकाल ले आ कि पृथ्वी पर उनसे बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृथ्वी पर फैल जाएँ।”

18 तब नूह और उसके पुत्र और पत्नी और बहुएँ, निकल आईं। (2 पत. 2:5)

19 और सब चौपाए, रेंगनेवाले जन्तु, और पक्षी, और जितने जीवजन्तु पृथ्वी पर चलते-फिरते हैं, सब जाति-जाति करके जहाज में से निकल आए।

नूह द्वारा होमबलि चढ़ाना

20 तब नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई [2] *; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ-कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया।

21 इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, “मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को श्राप न दूँगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है वह बुरा ही होता है; तो भी जैसा मैंने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उनको फिर कभी न मारूँगा।

22 अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्डा और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएँगे।”


8:1 [1] परमेश्वर ने नूह और जितने जंगली पशु और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभी की सुधि ली: उसे जल से बचाने के लिए उठाएँ कदम के द्वारा परमेश्वर ने उसकी सुधि ली। इसके विषय में कई कदम उठाएँ गए।
8:20 [2] नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई: जब नूह और उसका परिवार, परमेश्वर की विशेष दया से सूखी भूमि पर पहुँच गए, तो उन्होंने उसको विश्वास और धन्यवाद की भेंट अर्पित करके आनन्द मनाया। नूह की भेंट को परमेश्वर ने स्वीकार किया।

Chapter 9

नूह और उसके पुत्रों को आशीर्वाद

1 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी [1] * और उनसे कहा, “फूलो-फलो और बढ़ो और पृथ्वी में भर जाओ।

2 तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पक्षियों, और भूमि पर के सब रेंगनेवाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियों पर बना रहेगा वे सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं।

3 सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसे तुम को हरे-हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसे ही तुम्हें सब कुछ देता हूँ। (उत्प. 1:29, 30)

4 पर माँस को प्राण समेत अर्थात् लहू समेत तुम न खाना [2] *। (व्य. 12:23)

5 और निश्चय मैं तुम्हारा लहू अर्थात् प्राण का बदला लूँगा: सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनों से मैं उसे लूँगा; मनुष्य के प्राण का बदला मैं एक-एक के भाईबन्धु से लूँगा।

6 जो कोई मनुष्य का लहू बहाएगा उसका लहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया है। (लैव्य. 24:17)

7 और तुम तो फूलो-फलो और बढ़ो और पृथ्वी पर बहुतायत से सन्तान उत्पन्न करके उसमें भर जाओ।”

परमेश्वर का नूह के साथ वाचा बाँधना

8 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से कहा,

9 “सुनो, मैं तुम्हारे साथ और तुम्हारे पश्चात् जो तुम्हारा वंश होगा, उसके साथ भी वाचा बाँधता हूँ;

10 और सब जीवित प्राणियों से भी जो तुम्हारे संग हैं, क्या पक्षी क्या घरेलू पशु, क्या पृथ्वी के सब जंगली पशु, पृथ्वी के जितने जीवजन्तु जहाज से निकले हैं।

11 और मैं तुम्हारे साथ अपनी यह वाचा बाँधता हूँ कि सब प्राणी फिर जल-प्रलय से नाश न होंगे और पृथ्वी का नाश करने के लिये फिर जल-प्रलय न होगा।”

12 फिर परमेश्वर ने कहा, “जो वाचा मैं तुम्हारे साथ, और जितने जीवित प्राणी तुम्हारे संग हैं उन सबके साथ भी युग-युग की पीढ़ियों के लिये बाँधता हूँ; उसका यह चिन्ह है:

13 कि मैंने बादल में अपना धनुष रखा है, वह मेरे और पृथ्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा।

14 और जब मैं पृथ्वी पर बादल फैलाऊं तब बादल में धनुष दिखाई देगा।

15 तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के साथ बंधी है; उसको मैं स्मरण करूँगा, तब ऐसा जल-प्रलय फिर न होगा जिससे सब प्राणियों का विनाश हो।

16 बादल में जो धनुष होगा मैं उसे देखकर यह सदा की वाचा स्मरण करूँगा, जो परमेश्वर के और पृथ्वी पर के सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के बीच बंधी है।”

17 फिर परमेश्वर ने नूह से कहा, “जो वाचा मैंने पृथ्वी भर के सब प्राणियों के साथ बाँधी है, उसका चिन्ह यही है [3] *।”

नूह और उसके पुत्र

18 नूह के जो पुत्र जहाज में से निकले, वे शेम, हाम और येपेत थे; और हाम कनान का पिता हुआ।

19 नूह के तीन पुत्र ये ही हैं, और इनका वंश सारी पृथ्वी पर फैल गया।

20 नूह किसानी करने लगा: और उसने दाख की बारी लगाई।

21 और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया।

22 तब कनान के पिता हाम ने, अपने पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपने दोनों भाइयों को बता दिया।

23 तब शेम और येपेत दोनों ने कपड़ा लेकर अपने कंधों पर रखा और पीछे की ओर उलटा चलकर अपने पिता के नंगे तन को ढाँप दिया और वे अपना मुख पीछे किए हुए थे इसलिए उन्होंने अपने पिता को नंगा न देखा।

24 जब नूह का नशा उतर गया, तब उसने जान लिया कि उसके छोटे पुत्र ने उसके साथ क्या किया है।

     25 इसलिए उसने कहा,

     “कनान श्रापित हो:

     वह अपने भाई-बन्धुओं के दासों का दास हो।”

     26 फिर उसने कहा,

     “शेम का परमेश्वर यहोवा धन्य है,

     और कनान शेम का दास हो।

     27 परमेश्वर येपेत के वंश को फैलाए;

     और वह शेम के तम्बूओं में बसे,

     और कनान उसका दास हो।”

28 जल-प्रलय के पश्चात् नूह साढ़े तीन सौ वर्ष जीवित रहा।

29 इस प्रकार नूह की कुल आयु साढ़े नौ सौ वर्ष की हुई; तत्पश्चात् वह मर गया।


9:1 [1] परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी: नूह को जल-प्रलय से बचाया गया। उसे परमेश्वर के द्वारा जीवन दान मिला। नूह ने परमेश्वर की दृष्टि में अनुग्रह पाया, और अब जब वह और उसका परिवार होम बलि अर्पित करने के द्वारा परमेश्वर के निकट आए तो उसके द्वारा कृपा पाकर वे स्वीकारे गए।
9:4 [2] तुम न खाना: किसी पशु को खाने के लिए इस्तेमाल करने से पहले उसको मारना ज़रूरी है और जब तक उसकी नसों में लहू बहता है उसमें जीवन रहता है, इसलिए इससे पहले उसका माँस खाया जाए उसके प्राण-लहू निकालना ज़रूरी है।
9:17 [3] उसका चिन्ह यही है: परमेश्वर यहाँ नूह का ध्यान बादल-धनुष की ओर आकर्षित करता है, जो उस समय वास्तव में आकाश में था, और उस कुल पिता को प्रतिज्ञा का आश्वासन देता है।

Chapter 10

नूह की वंशावली

1 नूह के पुत्र शेम, हाम और येपेत थे; उनके पुत्र जल-प्रलय के पश्चात् उत्पन्न हुए: उनकी वंशावली यह है।

येपेत के वंशज

2 येपेत के पुत्र [1] *: गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक और तीरास हुए।

3 और गोमेर के पुत्र: अश्कनज, रीपत और तोगर्मा हुए।

4 और यावान के वंश में एलीशा और तर्शीश, और कित्ती, और दोदानी लोग हुए।

5 इनके वंश अन्यजातियों के द्वीपों के देशों में ऐसे बँट गए कि वे भिन्न-भिन्न भाषाओं, कुलों, और जातियों के अनुसार अलग-अलग हो गए।

हाम के वंशज

6 फिर हाम के पुत्र [2] *: कूश, मिस्र, पूत और कनान हुए।

7 और कूश के पुत्र सबा, हवीला, सबता, रामाह, और सब्तका हुए। और रामाह के पुत्र शेबा और ददान हुए।

8 कूश के वंश में निम्रोद भी हुआ; पृथ्वी पर पहला वीर वही हुआ है।

9 वही यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला ठहरा, इससे यह कहावत चली है; “निम्रोद के समान यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला।”

10 उसके राज्य का आरम्भ शिनार देश में बाबेल, एरेख, अक्कद, और कलने से हुआ।

11 उस देश से वह निकलकर अश्शूर को गया, और नीनवे, रहोबोतीर और कालह को,

12 और नीनवे और कालह के बीच जो रेसेन है, उसे भी बसाया; बड़ा नगर यही है।

13 मिस्र के वंश में लूदी, अनामी, लहाबी, नप्तूही,

14 और पत्रूसी, कसलूही, और कप्तोरी लोग हुए, कसलूहियों में से तो पलिश्ती लोग निकले।

15 कनान के वंश में उसका ज्येष्ठ पुत्र सीदोन, तब हित्त,

16 यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी,

17 हिब्बी, अर्की, सीनी,

18 अर्वदी, समारी, और हमाती लोग भी हुए; फिर कनानियों के कुल भी फैल गए।

19 और कनानियों की सीमा सीदोन से लेकर गरार के मार्ग से होकर गाज़ा तक और फिर सदोम और गमोरा और अदमा और सबोयीम के मार्ग से होकर लाशा तक हुआ।

20 हाम के वंश में ये ही हुए; और ये भिन्न-भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों, और जातियों के अनुसार अलग-अलग हो गए।

शेम के वंशज

21 फिर शेम, जो सब एबेरवंशियों का मूलपुरुष हुआ, और जो येपेत का ज्येष्ठ भाई था, उसके भी पुत्र उत्पन्न हुए।

22 शेम के पुत्र: एलाम, अश्शूर, अर्पक्षद, लूद और अराम हुए।

23 अराम के पुत्र: ऊस, हूल, गेतेर और मश हुए।

24 और अर्पक्षद ने शेलह को, और शेलह ने एबेर को जन्म दिया।

25 और एबेर के दो पुत्र उत्पन्न हुए, एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनों में पृथ्वी बँट गई, और उसके भाई का नाम योक्तान था।

26 और योक्तान ने अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, येरह,

27 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला,

28 ओबाल, अबीमाएल, शेबा,

29 ओपीर, हवीला, और योबाब को जन्म दिया: ये ही सब योक्तान के पुत्र हुए।

30 इनके रहने का स्थान मेशा से लेकर सपारा, जो पूर्व में एक पहाड़ है, उसके मार्ग तक हुआ।

31 शेम के पुत्र ये ही हुए; और ये भिन्न-भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों और जातियों के अनुसार अलग-अलग हो गए।

32 नूह के पुत्रों के घराने ये ही है: और उनकी जातियों के अनुसार उनकी वंशावलियाँ ये ही हैं; और जल-प्रलय के पश्चात् पृथ्वी भर की जातियाँ इन्हीं में से होकर बँट गईं।


10:2 [1] येपेत के पुत्र: येपेत का नाम पहले आता है क्योंकि शायद वह सबसे बड़ा भाई था (उत्प.त्ति 9:24; उत्पत्ति 10:21) और उसके वंशज बहुत थे और सब स्थानों में फ़ैल गए थे।
10:6 [2] हाम के पुत्र: हाम तीनों भाइयों में सबसे छोटा था (उत्प.त्ति 9:24) और उसे यहाँ इसलिए रखा है क्योंकि सच्चे परमेश्वर से दूर होने में येपेत के साथ सहमत था।

Chapter 11

भाषा में गड़बड़ी

1 सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली थी।

2 उस समय लोग पूर्व की ओर चलते-चलते शिनार [1] * देश में एक मैदान पाकर उसमें बस गए।

3 तब वे आपस में कहने लगे, “आओ, हम ईटें बना-बनाकर भली-भाँति आग में पकाएँ।” और उन्होंने पत्थर के स्थान पर ईंट से, और मिट्टी के गारे के स्थान में चूने से काम लिया।

4 फिर उन्होंने कहा, “आओ, हम एक नगर और एक मीनार बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें, ऐसा न हो कि हमको सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े।”

5 जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब उन्हें देखने के लिये यहोवा उतर आया।

6 और यहोवा ने कहा, “मैं क्या देखता हूँ, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्होंने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जो कुछ वे करने का यत्न करेंगे, उसमें से कुछ भी उनके लिये अनहोना न होगा।

7 इसलिए आओ, हम उतर कर उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सके।”

8 इस प्रकार यहोवा ने उनको वहाँ से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया [2] *; और उन्होंने उस नगर का बनाना छोड़ दिया।

9 इस कारण उस नगर का नाम बाबेल पड़ा; क्योंकि सारी पृथ्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, वह यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्यों को सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।

शेम से तेरह तक की वंशावली

10 शेम की वंशावली यह है। जल-प्रलय के दो वर्ष पश्चात् जब शेम एक सौ वर्ष का हुआ, तब उसने अर्पक्षद को जन्म दिया।

11 और अर्पक्षद ने जन्म के पश्चात् शेम पाँच सौ वर्ष जीवित रहा; और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

12 जब अर्पक्षद पैंतीस वर्ष का हुआ, तब उसने शेलह को जन्म दिया।

13 और शेलह के जन्म के पश्चात् अर्पक्षद चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

14 जब शेलह तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा एबेर का जन्म हुआ।

15 और एबेर के जन्म के पश्चात् शेलह चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

16 जब एबेर चौंतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा पेलेग का जन्म हुआ।

17 और पेलेग के जन्म के पश्चात् एबेर चार सौ तीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

18 जब पेलेग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा रू का जन्म हुआ।

19 और रू के जन्म के पश्चात् पेलेग दो सौ नौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

20 जब रू बत्तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा सरूग का जन्म हुआ।

21 और सरूग के जन्म के पश्चात् रू दो सौ सात वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

22 जब सरूग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा नाहोर का जन्म हुआ।

23 और नाहोर के जन्म के पश्चात् सरूग दो सौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा तेरह का जन्म हुआ;

25 और तेरह के जन्म के पश्चात् नाहोर एक सौ उन्नीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे-बेटियाँ उत्पन्न हुईं।

26 जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए।

तेरह की वंशावली

27 तेरह की वंशावली यह है: तेरह ने अब्राम, और नाहोर, और हारान को जन्म दिया; और हारान ने लूत को जन्म दिया।

28 और हारान अपने पिता के सामने ही, कसदियों के ऊर नाम नगर में, जो उसकी जन्म-भूमि थी, मर गया।

29 अब्राम और नाहोर दोनों ने विवाह किया। अब्राम की पत्नी का नाम सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था। यह उस हारान की बेटी थी, जो मिल्का और यिस्का दोनों का पिता था।

30 सारै तो बाँझ थी [3] *; उसके सन्तान न हुई।

31 और तेरह अपना पुत्र अब्राम, और अपना पोता लूत, जो हारान का पुत्र था, और अपनी बहू सारै, जो उसके पुत्र अब्राम की पत्नी थी, इन सभी को लेकर कसदियों के ऊर नगर से निकल कनान देश जाने को चला; पर हारान नामक देश में पहुँचकर वहीं रहने लगा।

32 जब तेरह दो सौ पाँच वर्ष का हुआ, तब वह हारान देश में मर गया।


11:2 [1] शिनार: बाबेल देश कई नामों से जाना जाता था, शिनार उनमें से एक है।
11:8 [2] फैला दिया :वे एक दूसरे की भाषा को समझ नहीं पा रहे थे, उन्होंने व्यवहारिक रूप से अपने आप को एक दूसरे से अलग महसूस किया। बातचीत और कार्य में एक होना अब असंभव हो गया था।
11:30 [3] सारै तो बाँझ थी: इस कथन से यह स्पष्ट है कि प्रवासन के समय अब्राम के विवाह को बहुत समय हो चुका था।

Chapter 12

अब्राम की बुलाहट

1 यहोवा ने अब्राम से कहा [1] *, “अपने देश, और अपनी जन्म-भूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा। (प्रेरि. 7:3, इब्रा. 11:8)

2 और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊँगा, और तुझे आशीष दूँगा, और तेरा नाम महान करूँगा, और तू आशीष का मूल होगा।

3 और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूँगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं श्राप दूँगा; और भूमंडल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएँगे।” (प्रेरि. 3:25, गला. 3:8)

4 यहोवा के इस वचन के अनुसार अब्राम चला; और लूत भी उसके संग चला; और जब अब्राम हारान देश से निकला उस समय वह पचहत्तर वर्ष का था।

5 इस प्रकार अब्राम अपनी पत्नी सारै, और अपने भतीजे लूत को, और जो धन उन्होंने इकट्ठा किया था, और जो प्राणी उन्होंने हारान में प्राप्त किए थे, सबको लेकर कनान देश में जाने को निकल चला; और वे कनान देश में आ गए। (प्रेरि. 7:4)

6 उस देश के बीच से जाते हुए अब्राम शेकेम में, जहाँ मोरे का बांज वृक्ष है पहुँचा। उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे।

7 तब यहोवा ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, “यह देश मैं तेरे वंश को दूँगा।” और उसने वहाँ यहोवा के लिये, जिसने उसे दर्शन दिया था, एक वेदी बनाई। (गला. 3:16)

8 फिर वहाँ से आगे बढ़कर, वह उस पहाड़ पर आया, जो बेतेल के पूर्व की ओर है; और अपना तम्बू उस स्थान में खड़ा किया जिसके पश्चिम की ओर तो बेतेल, और पूर्व की ओर आई है; और वहाँ भी उसने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई: और यहोवा से प्रार्थना की।

9 और अब्राम आगे बढ़ करके दक्षिण देश की ओर चला गया।

मिस्र देश में अब्राम

10 उस देश में अकाल पड़ा: इसलिए अब्राम मिस्र देश को चला गया कि वहाँ परदेशी होकर रहे क्योंकि देश में भयंकर अकाल पड़ा था।

11 फिर ऐसा हुआ कि मिस्र के निकट पहुँचकर, उसने अपनी पत्नी सारै से कहा, “सुन, मुझे मालूम है, कि तू एक सुन्दर स्त्री है;

12 और जब मिस्री तुझे देखेंगे, तब कहेंगे, ‘यह उसकी पत्नी है,’ इसलिए वे मुझ को तो मार डालेंगे, पर तुझको जीवित रख लेंगे।

13 अतः यह कहना, ‘मैं उसकी बहन हूँ,’ जिससे तेरे कारण मेरा कल्याण हो और मेरा प्राण तेरे कारण बचे।”

14 फिर ऐसा हुआ कि जब अब्राम मिस्र में आया, तब मिस्रियों ने उसकी पत्नी को देखा कि यह अति सुन्दर है।

15 और मिस्र के राजा फ़िरौन के हाकिमों ने उसको देखकर फ़िरौन के सामने उसकी प्रशंसा की: इसलिए वह स्त्री फ़िरौन के महल में पहुँचाई गई [2] *।

16 और फ़िरौन ने उसके कारण अब्राम की भलाई की; और उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, दास-दासियाँ, गदहे-गदहियाँ, और ऊँट मिले।

17 तब यहोवा ने फ़िरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ डाली [3] *।

18 तब फ़िरौन ने अब्राम को बुलवाकर कहा, “तूने मेरे साथ यह क्या किया? तूने मुझे क्यों नहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है?

19 तूने क्यों कहा कि वह तेरी बहन है? मैंने उसे अपनी ही पत्नी बनाने के लिये लिया; परन्तु अब अपनी पत्नी को लेकर यहाँ से चला जा।”

20 और फ़िरौन ने अपने आदमियों को उसके विषय में आज्ञा दी और उन्होंने उसको और उसकी पत्नी को, सब सम्पत्ति समेत जो उसका था, विदा कर दिया।


12:1 [1] यहोवा ने अब्राम से कहा: अब्राम की बुलाहट में आज्ञा और प्रतिज्ञा दोनों हैं।
12:15 [2] वह स्त्री फ़िरौन के महल में पहुँचाई गई: सारै की सुन्दरता की प्रशंसा की गई, और, क्योंकि यह बताया गया था कि वह अकेली है, इसलिए उसे फ़िरौन की पत्नी होने के लिए चुना गया; जबकि उसके भाई के रूप में अब्राम को भेंट दी गईं।
12:17 [3] यहोवा ने फ़िरौन और उसके घराने पर, ...बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ डाली: ईश्वरीय हस्तक्षेप का सम्बन्धित लोगों पर उचित प्रभाव पड़ा। जब फ़िरौन को दंड मिला, तो यह निष्कर्ष निकलता है कि वह स्वर्ग की दृष्टि में इस विषय में दोषी था।

Chapter 13

अब्राम का कनान लौटना

1 तब अब्राम अपनी पत्नी, और अपनी सारी सम्पत्ति लेकर, लूत को भी संग लिये हुए, मिस्र को छोड़कर कनान के दक्षिण देश में आया।

2 अब्राम भेड़-बकरी, गाय-बैल, और सोने-चाँदी का बड़ा धनी था।

3 फिर वह दक्षिण देश से चलकर, बेतेल के पास उसी स्थान को पहुँचा, जहाँ पहले उसने अपना तम्बू खड़ा किया था, जो बेतेल और आई के बीच में है।

4 यह स्थान उस वेदी का है, जिसे उसने पहले बनाया था, और वहाँ अब्राम ने फिर यहोवा से प्रार्थना की।

अब्राम और लूत का अलग होना

5 लूत के पास भी, जो अब्राम के साथ चलता था, भेड़-बकरी, गाय-बैल, और तम्बू थे [1] *।

6 इसलिए उस देश में उन दोनों के लिए पर्याप्त स्थान न था कि वे इकट्ठे रहें क्योंकि उनके पास बहुत संपत्ति थी इसलिए वे इकट्ठे न रह सके।

7 सो अब्राम, और लूत की भेड़-बकरी, और गाय-बैल के चरवाहों में झगड़ा हुआ। उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे।

8 तब अब्राम लूत से कहने लगा, “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाईबन्धु हैं।

9 क्या सारा देश तेरे सामने नहीं? सो मुझसे अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दाहिनी ओर जाऊँगा; और यदि तू दाहिनी ओर जाए तो मैं बाईं ओर जाऊँगा।”

10 तब लूत ने आँख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा कि वह सब सिंची हुई है। जब तक यहोवा ने सदोम और गमोरा को नाश न किया था, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की वाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ थी।

11 सो लूत अपने लिये यरदन की सारी तराई को चुन के पूर्व की ओर चला, और वे एक दूसरे से अलग हो गये।

12 अब्राम तो कनान देश में रहा, पर उस तराई के नगरों में रहने लगा [2]