31. यीशु का पानी पर चलना
तब यीशु ने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ने के लिए विवश किया कि वह उससे पहले उस पार चले जाए, जब तक कि वह लोगों को विदा करें | यीशु भीड़ को विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया | यीशु अकेला वहाँ रात तक प्रार्थना करता रहा |
इस बीच, चेले नाव पर थे, परन्तु आधी रात होने पर भी नाव झील के बीच में ही पहुँच पाई थी | वह बहुत कठनाई से नाव चला रहे थे, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी |
यीशु ने अपनी प्रार्थना समाप्त की और वह चेलों के पास चला गया | वह रात के चौथे पहर झील पर चलते हुए उनकी नाव की ओर आया |
चेलों ने जब यीशु को झील पर चलते देखा तो वह डर गए, क्योंकि उन्होंने सोचा कि वह भूत है, और चिल्ला उठे | यीशु को पता था कि वे डर रहे थे, इसलिये उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा,” ढाढ़स बाँँधो: मैं हूँ डरो मत |”
फिर पतरस ने यीशु से कहा ‘हे गुरु’ यदि तू है, तो मुझे भी अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे” यीशु ने पतरस से कहा, “ आ |”
तब पतरस नाव पर से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा | पर जैसे ही वह थोड़ा आगे बढ़ा तो तेज़ हवा का अनुभव किया और अपनी आँखें यीशु पर से हटा लिया |
पतरस हवा को देखकर डर गया और डूबने लगा तब चिल्लाकर कहा “हे प्रभु, मुझे बचा |” यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया और पतरस से कहा, ‘ हे अल्प विश्वासी, तू ने क्यों सन्देह किया?’’
जब पतरस और यीशु नाव पर चढ़ गए तो हवा थम गई और पानी की लहरें शान्त हो गई | चेले चकित थे | उन्होंने यीशु की आराधना करी, और उसे कहा, सचमुच, तू परमेश्वर का पुत्र है |”
बाइबिल की कहानी ली गई है: मती 14 : 22-33 ; मरकुस 6 : 45-52 ; यूहन्ना 6 : 16-21