हिन्दी, हिंदी: Unlocked Dynamic Bible - Hindi

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अय्यूब

Chapter 1

1 ऊज़ नाम के देश में, अय्यूब नाम का एक व्यक्ति था। उसने परमेश्वर की बातों का पालन किया और हमेशा बुराई करने से दूर रहा। 2 उसके सात पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं। 3 उसके पास सात हजार भेड़ें, तीन हजार ऊँट, एक हजार बैल, और पाँच सौ गधियाँ थे। उसके कई दास भी थे। वह व्यक्ति यरदन नदी के पूर्व के सम्पूर्ण क्षेत्र में सबसे अधिक धनवान था।

4 अय्यूब के पुत्र प्रायः अपने घरों में भोज का आयोजन करते थे। जब भी उनमें से एक भोज का आयोजन करता, तब वह अपने सब भाइयों और बहनों को भोज में आने के लिए आमन्त्रित करता था। 5 प्रत्येक उत्सव के बाद, अय्यूब उन्हें बुलाता था। वह यहोवा से प्रार्थना करता था कि उनसे कोई पाप हुआ या चूक हुई तो वह उन्हें क्षमा कर दे। वह सुबह भोर के समय ही उठकर जानवरों को मार कर, उन्हें वेदी पर उसकी प्रत्येक संतान के लिए बलि के रूप में जलाता था। क्योंकि अय्यूब ने हमेशा कहा, “संभव है कि मेरे बच्चों ने पाप किया और अपने हृदय में परमेश्वर के विषय में कुछ बुरा कहा हो।”

6 एक दिन, स्वर्गदूत आए और यहोवा के सामने उपस्थित हुए, और शैतान भी आया। 7 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू अभी कहाँ से आ रहा है?”

शैतान ने उत्तर दिया, “मैं पृथ्‍वी से आया हूँ, जहाँ मैं यह देखने के लिए इधर उधर घूम रहा था कि क्या हो रहा है।”

8 यहोवा ने शैतान से कहा, “क्या तू ने अय्यूब पर ध्यान दिया है, जो मेरी आराधना करता है? पृथ्‍वी पर कोई अन्य मुझे ऐसा सम्मान नहीं देता और न ही ऐसा धर्मी जीवन जीता है जैसा वह जीता है। वह सदा बुराई करने से इन्कार करता है।” 9 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, “जो कुछ आप कहते हैं वह सच है, परन्तु आपने अय्यूब के लिए जो किया है केवल उसके कारण वह आपका सम्मान करता है। 10 आपने उसे, उसके परिवार को और जो कुछ भी उसके पास है उसे सदा सुरक्षित रखा है। वह जो भी कार्य करने का प्रयास करता है, आप उसे सफल बनाते हैं, और उसके पास उसके सारे देश में बहुत अधिक पशुधन है। 11 परन्तु यदि जो कुछ भी उसके पास है आपने उस पर वार करके उससे छीन लिया, तो वह सबके सामने आपको श्राप देगा।”

12 यहोवा ने शैतान से कहा, “सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना।” तब शैतान यहोवा के सामने से चला गया।”

शैतान सहमत हो गया और फिर वह यह योजना बनाने के लिए यहोवा के पास से चला गया कि वह अय्यूब पर कैसे वार करे।

13 उसके बाद एक दिन, अय्यूब के पुत्र और पुत्रियाँ अपने सबसे बड़े भाई के घर पर भोज कर रहे थे और दाखरस पी रहे थे। 14 जब वे ऐसा कर रहे थे, तब एक सन्देशवाहक अय्यूब के घर पहुँचा और उससे कहा, “जब तेरे बैल खेतों में जुताई कर रहे थे और गधियाँ पास ही में चर रही थीं, 15 शेबा के पुरुषों का एक समूह आया और हम पर आक्रमण किया। उन्होंने तेरे सब दासों को मार डाला जो खेतों में कार्य कर रहे थे और सारे बैलों और गधों को ले गए! मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।”

16 वह अभी अय्यूब से बात कर ही रहा था, एक और सन्देशवाहक आ पहुँचा। उसने अय्यूब से कहा, “आकाश से बिजली गिरी और सब भेड़ों को और उन सब पुरुषों को मार डाला जो उनकी देखभाल कर रहे थे! मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।”

17 वह अभी अय्यूब से बात कर ही रहा था, कि तीसरा सन्देशवाहक आ पहुँचा। उसने अय्यूब से कहा, “कसदियों के क्षेत्र से लुटेरों के तीन दल आए और हम पर आक्रमण किया। उन्होंने सब ऊँटों को चुरा लिया और उन सब पुरुषों को मार डाला जो उनकी देखभाल कर रहे थे। मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।”

18 वह अभी अय्यूब से बात कर ही रहा था, कि चौथा सन्देशवाहक आ पहुँचा। उसने अय्यूब से कहा: “तेरे पुत्र और पुत्रियाँ अपने सबसे बड़े भाई के घर में भोज कर रहे थे। 19 अकस्मात ही एक बहुत तेज हवा रेगिस्तान से आकर घर पर लगी। वह घर तेरे पुत्रों और पुत्रियों पर गिर गया और उन सबकी मृत्यु हो गई! मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।”

20 तब अय्यूब खड़ा हुआ और अपना वस्त्र फाड़ा और अपने सिर को मुँड़वाया क्योंकि वह बहुत दुखी था। फिर वह परमेश्वर की आराधना करने के लिए भूमि पर गिर गया। 21 उसने कहा,

     “जब मेरा जन्म हुआ, मैं कोई कपड़े नहीं पहने हुए था।

     जब मैं मर जाऊँगा, मैं अपने साथ कोई कपड़े नहीं ले जाऊँगा।

     यह यहोवा ही है जिन्होंने मुझे वह सब कुछ दिया है जो मेरे पास है,

     और यह यहोवा ही है जिन्होंने वह सब कुछ ले लिया है।

     परन्तु हमें सदा यहोवा की स्तुति करनी चाहिए!”

22 इसलिए अय्यूब के साथ हुई सब बातों के उपरान्त, उसने मूर्ख व्यक्ति के समान बात नहीं की—उसने यह कहकर पाप नहीं किया कि परमेश्वर ने जो किया है वह गलत था।

Chapter 2

1 फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके सामने उपस्थित हुआ। 2 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू इस समय कहाँ से आता है?” शैतान ने उत्तर दिया, “मैं पृथ्‍वी से आया हूँ, जहाँ मैं यह देखने के लिए इधर उधर घूम रहा था कि क्या हो रहा है।”

3 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है, जो मेरी आराधना करता है?

वह निरन्तर मेरा सम्मान करता है; वह एक असाधारण व्यक्ति है, क्योंकि वह ऐसा जीवन जीता है जो पृथ्‍वी पर सबसे अधिक धर्म परायण है। वह अब भी ऐसा ही करता है जबकि तू ने मुझे बिना किसी कारण उस पर वार करने के लिए सहमत किया।”

4 शैतान ने यहोवा से कहा, “वह आपकी स्तुति इसलिए करता है कि आपने उसकी सहायता की है। लोग अपने स्वयं के जीवन को बचाने के लिए वह सब छोड़ देंगे जो उनके है। 5 परन्तु यदि आप उसके शरीर को हानि पहुँचाएँ हैं, तो वह निश्चय ही आपको हर किसी के सामने श्राप देगा!”

6 यहोवा ने शैतान से कहा, “ठीक है, तू जो भी चाहे उसके साथ कर सकता है, परन्तु उसका प्राण छोड़ देना।”

7 अतः शैतान चला गया, और उसने अय्यूब को उसके पैरों के निचले भाग से ले कर उसके सिर की चोटी तक अत्याधिक पीड़ा दायक फोड़ों से ग्रस्त कर दिया। 8 अय्यूब ने मिट्टी के टूटे हुए बर्तनों का एक टुकड़ा लिया और अपनी त्वचा पर के फोड़ों को उससे खुरचने लगा, और वह शोक और विलाप करने के लिए राख में बैठ गया।

9 उसकी पत्नी ने उससे कहा, “क्या तू अभी भी परमेश्वर के प्रति सच्चे होने का प्रयास कर रहा? तुझे परमेश्वर को श्राप देना चाहिए, और फिर जा कर मर जाना चाहिए।”

10 परन्तु अय्यूब ने उत्तर दिया, “तू ऐसे लोगों के समान बात करती है जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं। हमें केवल उन अच्छी बातों को ही स्वीकार नहीं करना चाहिए जो परमेश्वर हमारे लिए करते हैं। हमें बुरी बातों को भी स्वीकार करना चाहिए।” इसलिए अय्यूब के साथ हुई इन सब घटनाओं के उपरान्त, उसने परमेश्वर के विरुद्ध कुछ भी कहकर उनको अपमानित नहीं किया।

11 अय्यूब के मित्रों में तेमान नगर का एलीपज, शूआ देश से बिल्दद और नामाह देश से सोपर थे। जब उन्होंने अय्यूब के साथ हुई इन सब भयानक घटनाओं के विषय में सुना, तो वे अपने घर से एक साथ चलकर अय्यूब के पास शोक करने और उसे सांत्वना देने के लिए गए। 12 परन्तु उन्होंने जब दूर से ही अय्यूब को देखा, तो वे लगभग उसे पहचान नहीं पाए। ऊँचे शब्द में विलाप किया, उन्होंने अपने वस्त्र फाड़ डाले, और उन्होंने हवा में धूल फेंक कर उसे अपने सिरों पर डाला। उन्होंने यह दिखाने के लिए ऐसा किया कि वे उसके लिए कितने खेदित थे। 13 तब वे सात दिनों तक अय्यूब के साथ भूमि पर बैठे रहे। उनमें से किसी ने भी उससे कुछ नहीं कहा, क्योंकि उन्होंने देखा कि वह बहुत भयंकर रूप से पीड़ित था, और उनके मन में ऐसा कोई विचार नहीं आया कि वे ऐसा कुछ कह सकें जो उसके दर्द को कम करेगा।

Chapter 3

1 अंततः, अय्यूब ने बात की, और उसने उस दिन को श्राप दिया जिस दिन वह पैदा हुआ था। 2 उसने कहा,

     3 “मेरी इच्छा है कि वह दिन जब मैं पैदा हुआ, वह मिटा दिया गया होता,

         वह रात जब मैं पैदा हुआ था।

     4 मेरी इच्छा है कि जिस दिन मैं पैदा हुआ वह अंधेरा हो जाए।

         मेरी इच्छा है कि स्वर्ग के परमेश्वर उस दिन के विषय में भूल जाएँ,

         और यह कि सूर्य उस पर नहीं चमके।

     5 मेरी इच्छा है कि वह दिन घोर अन्धकार से भर जाए,

     और एक छाया के समान मृत्यु उसके ऊपर आ जाए

         और सम्पूर्ण प्रकाश को मिटा दे,

         और तब लोगों को डरा दे।

     6 मेरी इच्छा है कि जिस रात मैं पैदा हुआ, वह तिथिपत्र पर से मिटा दी जाए,

         कि यह किसी भी महीने की एक रात के रूप में कभी नहीं दिखाई देगी,

         और यह कि किसी भी तिथिपत्र में जोड़ी नहीं जाए।

     7 मेरी इच्छा है कि उस दिन कोई भी बच्चा कभी पैदा नहीं हो,

         और यह कि कोई भी फिर से आनन्दित नहीं होगा।

     8 जो जादूगर लोग लिव्यातान को छेड़ने में निपुर्ण हैं, में चाहता हूँ की उस दिन को धिक्कारे जब मेरा जन्म हुआ था।

     9 मेरी इच्छा है कि मेरे जन्म के बाद उस दिन सुबह जो सितारे चमकते थे, वे फिर से न चमकें।

         यदि केवल उन सितारों ने चमकने की कामना व्यर्थ में की थी,

         और यह कि वे उस दिन नहीं चमकते।

     10 वह एक बुरा दिन था क्योंकि मेरी माँ का गर्भ बन्द नहीं था;

         इसकी अपेक्षा, मेरा जन्म हुआ, और अब में इन सब भयानक घटनाओं का अनुभव कर रहा हूँ।

     11 मेरी इच्छा है कि जब मैं पैदा हुआ था तब मैं मर गया होता;

         मेरी इच्छा है कि जब मैं अपनी माँ के गर्भ से बाहर आया तो मेरी मृत्यु हो जाती।

     12 मेरी इच्छा है कि मेरी माँ ने कभी मेरा स्वागत नहीं किया होता।

         मेरी इच्छा है कि उसने मुझे अपने स्तनों से दूध नहीं पिलाया होता।

     13 यदि मैं पैदा होते ही मर गया होता,

         तो अब मैं सो रहा होता, शान्तिपूर्वक विश्राम में।

     14 मैं ऐसे राजाओं के साथ विश्राम कर रहा होता जिन्होंने सुन्दर मकबरे बनाए जो अब खण्डहर हैं,

         और मैं उनके उन अधिकारियों के साथ भी विश्राम कर रहा होता जो मर चुके हैं।

     15 मैं उन राजकुमारों के साथ विश्राम कर रहा होता जो धनवान थे,

         जिनके महल सोने और चाँदी से भरे हुए थे।

     16 मेरी इच्छा है कि मुझे उस बच्चे के समान दफनाया गया होता जिसकी मृत्यु उसकी माँ की गर्भ में हो गई थी

         और वह प्रकाश को देखने के लिए कभी नहीं जिया था।

     17 मरने के बाद, दुष्ट लोग और अधिक परेशानियों का कारण नहीं बनते हैं;

         जो अब बहुत थके हुए हैं वे विश्राम करेंगे।

     18 जो लोग बन्दीगृह में थे वे मरने के बाद शान्ति में विश्राम करते हैं;

         उन्हें श्राप देने के लिए अब उन पर दासों के स्वामी नहीं हैं।

     19 धनवान लोग और गरीब लोग मरने के बाद समान होते हैं,

         और जो दास थे उनको अब अपने स्वामियों की आज्ञाओं का पालन नहीं करना है।

     20 परमेश्वर उन लोगों को जीवित क्यों रहने देते हैं जो मेरे जैसी भयानक पीड़ा में हैं?

         वह उन्हें जीवित क्यों रहने देते हैं, जो बहुत दुखी हैं?

     21 वे मरने के लिए उत्सुक हैं, परन्तु वे मरते नहीं हैं।

         वे छिपे खजाने को खोजने की इच्छा रखने की तुलना में मरने की अधिक इच्छा रखते हैं।

     22 जब अंततः वे मर जाते हैं और दफन किए जाते हैं, तो वे बहुत आनन्दित होते हैं।

     23 मुझे समझ में नहीं आता कि परमेश्वर उन लोगों को क्यों जीवित रखते हैं जिन्हें वह आनन्दित होने से रोकते हैं,

         उस हर एक जन को जिसे वह दुखी रहने के लिए विवश करते हैं।

     24 मैं बहुत रोता हूँ; जिसके परिणामस्वरूप, मैं भोजन नहीं खा पाता;

         मैं नदी के बहने के समान कराहता रहता हूँ।

     25 जिन बातों की मैंने सदा चिन्ता की कि मेरे साथ न हों वे ही मेरे साथ हुई हैं;

         जिन बातों से मैं सदा डरा हूँ वे ही मुझ पर आ गई हैं।

     26 अब मेरे मन में कोई शान्ति नहीं है;

         मुझे कोई शान्ति नहीं है;

     मैं विश्राम नहीं कर पाता;

         इसकी अपेक्षा, मैं केवल दुखों से घिरा हुआ हूँ।”

Chapter 4

1 तब एलीपज ने अय्यूब को उत्तर दिया। उसने कहा,

     2 “क्या तू कृपया मुझे तुस से कुछ कहने की अनुमति देगा?

         मैं और अधिक चुप नहीं रह पा रहा हूँ।

     3 पहले के समय में, तू ने कई लोगों को निर्देश दिए हैं,

         और तू ने उन लोगों को प्रोत्साहित किया है जिनके लिए परमेश्वर पर भरोसा करना कठिन था।

     4 पहले के समय में, जब तू अन्य पीड़ित लोगों से बात करता था, तब तू ने उनकी सहायता की;

         वे परमेश्वर के कारण फिर से आनन्दित हो पाए थे।

     5 परन्तु अब, जब तू स्वयं कष्टों से पीड़ित है, तो तू निराश हो गया है।

         विपत्तियाँ तुझ पर आ पड़ी तो तेरे होश उड़ गए।

     6 तू कहता है कि तू परमेश्वर का सम्मान करता है; इसलिए तुझे उन पर भरोसा करना चाहिए, कि वह तुझे पीड़ित न होने दें।

         यदि तू ने वास्तव में पाप नहीं किया है, तो तुझे विश्वास होगा कि परमेश्वर इन विपत्तियों को तुझ पर नहीं आने देंगे!

     7 या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी! कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए?

         परमेश्वर निर्दोष लोगों को कभी मारते नहीं हैं!

     8 मैंने यह होते देखा है: यदि किसान खराब बीज लगाते हैं, तो वे अच्छी फसल नहीं पाते हैं;

         जो भी दूसरों के लिए परेशानी लाता है वह बाद में स्वयं के लिए परेशानी लाता है।

     9 जब परमेश्वर आज्ञा देते हैं तब लोग मर जाते हैं,

         क्योंकि वह उनसे बहुत क्रोधित होते हैं।

     10 भले ही दुष्ट लोग युवा शेरों के समय बहुत शक्तिशाली हो जाएँ,

         परमेश्वर उन्हें नष्ट कर देते हैं।

     11 वे वृद्ध शेरों के समान भूख से मर जाएँगे, जब खाने के लिए कोई जानवर नहीं बचता है।

         उनके बच्चे युवा शेरों के समान एक-दूसरे से अलग-अलग रहेंगे जो भोजन खोजने के लिए एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।

     12 मैंने एक सन्देश सुना है जो किसी ने आकर

         और मुझे फुसफुसा कर कहा था।

     13 उसने रात में मुझसे बात की जब मुझे एक बुरा सपना आया था जिसने मुझे परेशान कर दिया था।

     14 उसने मुझे डरा दिया और थरथरा दिया;

         उसने मेरी सारी हड्डियों को हिला दिया।

     15 एक भूत मेरे मुँह के सामने से निकला

         और मेरी गर्दन के पीछे के बाल को सीधे खड़ा कर दिया।

     16 वह रुक गया, परन्तु मैं नहीं देख सका कि यह वास्तव में कैसा दिखता था।

         परन्तु मुझे पता था कि मेरे सामने कोई प्राणी था,

     और उसने एक शान्त आवाज में कहा,

     17 ‘कोई मनुष्य परमेश्वर से अधिक धर्मी नहीं हो सकता है।

     कोई भी व्यक्ति परमेश्वर से अधिक अच्छा नहीं हो सकता, परमेश्वर जिसने उसे बनाया है।

     18 परमेश्वर यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि उसके अपने स्वर्गदूत सदा धर्म के कार्य करेंगे;

         वह घोषणा करते हैं कि उनमें से कुछ ने गलत किया है।

     19 इसलिए वह निश्चय ही उन मनुष्यों पर भरोसा नहीं कर सकते जिन्हें उन्होंने धूल और मिट्टी से बनाया है,

         मनुष्य, जिन्हें विपत्ति ऐसी सरलता से नष्ट करती है जैसे तुम एक पतंगे को कुचल सकते हो!

     20 कभी-कभी सुबह लोग अच्छे स्वास्थ्य में होते हैं, परन्तु शाम तक वे मर जाते हैं।

         वे सदा के लिए चले गए हैं और कोई ध्यान भी नहीं देता है।

     21 उनके परिवार और सम्पत्ति तम्बू के समान हैं जो उनके पट्टियों को खींचते समय गिर जाते हैं;

         वे कारण जाने बिना ही अकस्मात मर जाते हैं।’”

Chapter 5

    

1 “हे अय्यूब, तुझे सहायता की पुकार से कोई नहीं रोकेगा,

         परन्तु मुझे निश्चय है कि कोई भी स्वर्गदूत तेरे पास नहीं आएगा!

     2 मूर्ख लोग मर जाते हैं क्योंकि वे क्रोधित है;

         वे लोग जिन्हें दूसरे सरलता से धोखा दे देते हैं - ये लोग मर जाते हैं क्योंकि वे दूसरों से ईर्ष्या करते हैं।

     3 मैंने मूर्ख लोगों को देखा है जो सफल होते दिखते थे,

         परन्तु उन पर अकस्मात ही विपत्ति आ पड़ी क्योंकि मैंने उनके घर को श्राप दिया था।

     4 उनके पुत्र कभी सुरक्षित नहीं रहते हैं;

         वे सदा अदालत में अपने विरोधियों से हार जाते हैं,

         क्योंकि उनका बचाव करने के लिए कोई भी नहीं है।

     5 भूखे लोग उस फसल को चुरा लेते हैं जिसे मूर्ख लोग उगाते हैं;

         वे उन फसलों को भी चुराते हैं जो काँटों के बीच बढ़ती है,

         और लालची लोग उन मूर्ख लोगों की सम्पत्ति ले लेते हैं।

     6 परन्तु यह खेत की भूमि नहीं है जो बुरे कार्य उपजाती है;

         परेशानियाँ पौधों के समान भूमि पर नहीं बढ़ती हैं।

     7 लोग अपने जन्म के समय से स्वयं को परेशान करते हैं;

         यह एक निश्चित तथ्य है कि आग से चिन्गारियाँ निकलती हैं।

     8 यदि मैं तुम्हारे जैसे पीड़ित हो रहा होता, तो मैं सहायता के लिए परमेश्वर से कहता

         और उन्हें बताता कि मैं किस विषय में शिकायत कर रहा हूँ।

     9 वह महान कार्य करते हैं, ऐसे कार्य जिन्हें हम समझ नहीं सकते;

         हम उन अद्भुत कार्यों को गिन भी नहीं सकते हैं जो वह करते हैं।

     10 वह भूमि पर वर्षा भेजते हैं;

         वह हमारे खेतों में वर्षा करते हैं।

     11 वह नम्र लोगों की रक्षा करते हैं,

         और वह उन शोक करने वाले लोगों को ऐसे स्थान पर रखते हैं जहाँ वे सुरक्षित हैं।

     12 वह कुटिल लोगों को वह कार्य करने नहीं देते हैं जिसे करने की वे योजना बनाते हैं,

         जिसके परिणामस्वरूप वे कुछ भी प्राप्त नहीं करते हैं।

     13 जो लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं – वह उन्हें उनके स्वयं के जाल में पकड़वा देते हैं;

         जिसके परिणामस्वरूप वे सफल नहीं होते हैं।

     14 ऐसा लगता है कि मानों वे दिन में भी अन्धकार में रह रहे थे

         और दिन के समय सड़क को खोजने का प्रयास ऐसे कर रहे थे जैसे लोग रात में करते हैं।

     15 परन्तु परमेश्वर असहाय लोगों को उन दुष्टों से बचाते हैं जो उनके विषय में बुरी बातें कहते हैं;

         वह गरीब लोगों को शक्तिशाली लोगों द्वारा हानि पहुँचाए जाने से बचाते हैं।

     16 इसलिए गरीब लोग आश्वस्त होकर आशा करते हैं कि उनके साथ अच्छी बातें होंगी;

         परन्तु परमेश्वर दुष्ट लोगों को बुरी बातें कहने से रोकते हैं।

     17 परन्तु जिन्हें परमेश्वर सुधारते हैं वे भाग्यशाली हैं;

         इसलिए इस बात को तुच्छ मत जानो जब परमेश्वर, जो कुछ भी कर सकते हैं, तुझे अनुशासित करते हैं।

     18 वह लोगों को घायल करते हैं, परन्तु फिर वह उन घावों पर पट्टियाँ भी बाँधते हैं;

         वह लोगों को पीड़ा देते हैं, परन्तु वह उन्हें ठीक भी करते हैं।

     19 वह कई बार तुझे तेरी परेशानियों से बचाएँगे,

         जिसके परिणामस्वरूप तेरे साथ कोई बुराई नहीं होगी।

     20 जब खाने के लिए भोजन की कमी हो तब वह तुझे मरने नहीं देंगे,

         और जब युद्ध होता है, तब तेरे शत्रु तेरी हत्या नहीं करेंगे।

     21 जब लोग तेरे विषय में झूठ बोलते हैं, बुरी बातें कहते हैं, तब परमेश्वर तेरी रक्षा करेंगे;

         तू नहीं डरेगा जब तेरे आस-पास की कई वस्तुएँ नष्ट हो जाती हैं।

     22 जब ऐसा होता है और जब खाने के लिए कुछ भी नहीं है तो तू हँसने में सक्षम होगा,

         और तू जंगली जानवरों से नहीं डरेगा।

     23 तू अपने खेतों में पाई जाने वाली बड़ी चट्टानों के विषय में चिन्ता नहीं करेगा जो जुताई को कठिन बना देंगी,

         और तू चिन्ता नहीं करेगा कि जंगली जानवर तुझ पर आक्रमण कर सकते हैं।

     24 तुझे पता चलेगा कि तेरे घर में तेरे लिए अच्छी बातें होंगी;

         जब तू अपने पशुओं को देखेगा तो तू देखेगा कि वे सब वहाँ हैं।

     25 तू निश्चित होगा कि तेरे पास अनेक वंशज हैं,

         जो घास की पत्तियों के समान असंख्य होंगे।

     26 तू मरने से पहले बहुत बूढ़ा हो जाएगा,

         जैसे अनाज की पूलियाँ तब तक बढ़ती रहती हैं जब तक कि फसल को काटने का और उनकी दाँवनी करने का समय न हो।

     27 मेरे मित्रों ने और मैंने इन बातों के विषय में सावधानी से सोचा है, और हम जानते हैं कि वे सच हैं,

         इसलिए मैंने जो कहा है उस पर ध्यान दे!”

Chapter 6

1 तब अय्यूब ने एलीपज से फिर से बात की:

     2 “यदि मेरी सब परेशानियों और दुखों को पैमाने पर रख कर वजन किया जा सके,

     3 तो वे समुद्र तटों पर की सारी रेत से अधिक भारी होंगे।

         यही कारण है कि मैंने पैदा होने के दिन के विषय में बिना सोचें समझे बातें की हैं।

     4 ऐसा लगता है जैसे मानों सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे तीरों से मारा है।

         ऐसा लगता है कि मानों उन तीरों की नोकों पर विष है, और वह विष मेरी आत्मा में चला गया है।

     परमेश्वर ने मेरे साथ जो किया है वह मुझ पर आक्रमण करने के लिए पंक्ति में खड़े सैनिकों के समान हैं।

     5 जिस प्रकार जंगली गधा शिकायत करने के लिए रेंकता नहीं जब उसके पास खाने के लिए बहुत घास होती है,

         और एक बैल रम्भाना के द्वारा शिकायत करने के लिए डकारता नहीं जब उसके पास खाने के लिए भोजन होता है,

     उसी प्रकार यदि तुम वास्तव में मेरी सहायता रहे हो तो मैं भी शिकायत नहीं करूँगा।

     6 लोग शिकायत करते हैं जब उन्हें वह भोजन खाना पड़ता है जिसमें नमक नहीं है

         या ऐसा खाना जो चिपचिपा और स्वादहीन है;

     हे एलीपज, ऐसे ही तेरे शब्द हैं।

     7 मैं इस प्रकार का भोजन नहीं खाना चाहता,

         क्योंकि यह मुझे घिनौना लगता है,

     और मुझे वह पसन्द नहीं जो तू ने मुझसे कहा है।

     8 मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर मेरे लिए वह करें, जो मैंने उनसे माँगा है:

     9 मेरी इच्छा है कि वह मुझे कुचल दें और मुझे मर जाने दें।

         मेरी इच्छा है कि वह अपने हाथ को बढ़ाएँ और मेरा जीवन ले लें।

     10 यदि वह ऐसा करेंगे, तो मुझे शान्ति मिलेगी क्योंकि मुझे पता चलेगा कि जिस भयंकर दर्द से मैं पीड़ित हूँ, उसके उपरान्त भी,

         उस एकमात्र पवित्र, परमेश्वर, ने जो आदेश दिए हैं, मैंने सदा उनका आज्ञापालन किया है।

     11 परन्तु अब मेरे पास इन सब बातों को सहन करने के लिए पर्याप्त शक्ति नहीं है।

         और क्योंकि मेरे पास भविष्य में आशा करने के लिए कुछ भी नहीं है,

         इसलिए अब धीरज रखना मेरे लिए कठिन है।

     12 मैं चट्टानों के समान दृढ़ नहीं हूँ,

         और मेरा शरीर पीतल से बना नहीं है।

     13 इसलिए मैं स्वयं की सहायता कर पाने में सक्षम नहीं हूँ;

         मैं इसके लिए पर्याप्त बुद्धिमान नहीं हूँ।

     14 जब एक व्यक्ति पर कई परेशानियाँ आती हैं, तब उसके मित्रों को उसके प्रति दयालु होना चाहिए,

         भले ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सम्मान करना बन्द कर देता है।

     15 परन्तु तुम, मेरे मित्र, विश्वास के योग्य नहीं हो।

         तुम जंगल के नालों के समान हो: वे वसन्त ऋतु में अपने किनारों से बाहर फैल जाते हैं

     16 जब पिघलने वाली बर्फ और हिम उन्हें उमड़ने वाला कर देती हैं,

     17 परन्तु जब शुष्क मौसम आता है, तो उन नालों में पानी नहीं बहता है,

         और सोते सूख जाते हैं।

     18 व्यापारियों के कारवाँ पानी की खोज के लिए अपने मार्ग से हट जाते हैं,

         परन्तु उन नालों में कोई पानी नहीं होता है,

         इसलिए वे व्यापारी रेगिस्तान में मर जाते हैं।

     19 उन कारवाँ में से लोगों ने कुछ पानी की खोज की

         क्योंकि वे निश्चित थे कि वे कुछ पाएँगे।

     20 परन्तु उन्हें कुछ नहीं मिला,

         इसलिए वे बहुत निराश थे।

     21 इसी प्रकार, तुम मित्रों ने मेरी कोई सहायता नहीं की है!

     तुमने देखा है कि मेरे साथ भयानक बातें हुई हैं,

         और तुम डरते हो कि परमेश्वर तुम्हारे साथ भी इसी प्रकार के कार्य कर सकते हैं।

     22 मेरी सारी सम्पत्ति खोने के बाद, मैंने तुम में से किसी से भी पैसा नहीं माँगा।

         मैंने तुम में से किसी से भी मेरी सहायता करने के लिए अपना कुछ पैसा खर्च करने के लिए अनुरोध नहीं किया।

     23 मैंने तुम में से किसी से भी मेरे शत्रुओं से मुझे बचाने के लिए नहीं कहा,

         और मैंने तुमसे उन लोगों से मुझे बचाने के लिए नहीं कहा जिन्होंने मुझ पर अत्याचार किया था।

     24 अब मुझे उत्तर दो, और फिर मैं चुप हो जाऊँगा;

         मुझे बताओ कि मैंने क्या गलत कार्य किए हैं!

     25 जब लोग सच बोलते हैं, तो सुनने वाले के लिए खरे शब्दों को सुनना पीड़ा दायक हो सकता है।

         परन्तु क्या तुम्हारे सभी तर्क मेरे विषय में सिद्ध हुए हैं?

     26 मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसके पास आशा करने के लिए कुछ भी नहीं है,

         परन्तु तुम मुझे सही करने का प्रयास करते हो, और तुमको लगता है कि मैं जो कहता हूँ वह हवा के समान व्यर्थ है!

     27 तुम उन बातों के लिए मुझे बिलकुल भी सहानुभूति नहीं दिखाते हो जिनसे मैं पीड़ित हूँ।

         तुम अपने लिए कुछ पाने हेतु कुछ भी करोगे! तुम यह देखने के लिए एक खेल भी खेलोगे कि पुरस्कार के रूप में एक अनाथ को कौन प्राप्त करता है!

     28 कृपया मुझे देखो! मैं झूठ नहीं बोलूँगा जब मैं सीधे तुमसे बात कर रहा हूँ।

     29 यह कहना बन्द करो कि मैंने पाप किया है, और अन्यायपूर्वक मेरी निन्दा करना बन्द करो!

         तुमको जान लेना चाहिए कि मैंने ऐसी बातें नहीं की हैं जो गलत हैं।

     30 क्या तुमको लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ?

         नहीं, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, क्योंकि मुझे पता है कि कहने के लिए क्या सही है, और क्या गलत है।”

Chapter 7

    

1 “लोगों को इस पृथ्‍वी पर वैसा कठोर परिश्रम करने की आवश्यकता है जैसा सैनिक करते हैं;

     जब हम जीवित रहते हैं, तब हमें किसी भाड़े के मजदूर के समान कठोर परिश्रम करने की आवश्यकता होती है।

     2 हम दासों के समान हैं जो शाम की ठण्डक में रहने की इच्छा करते रहते हैं,

         और हम ऐसे श्रमिकों के समान हैं जो भुगतान किए जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं।

     3 परमेश्वर ने मुझे कई महीनों का ऐसा समय दिया हैं जिनमें मुझे लगता है कि जीवित रहना व्यर्थ है;

     उसने मुझे ऐसी कई रातें दी हैं जिनमें मुझे दुख ही दुख होता है।

     4 जब मैं रात में लेटता हूँ तो मैं कहता हूँ, ‘जब तक मैं उठता हूँ तो यह कितना समय होगा?’

         परन्तु रातें लम्बी हैं, और मैं सुबह तक अपने बिस्तर पर छटपटाता हूँ।

     5 मेरा शरीर कीड़ों और फोड़ों से ढँका हुआ है;

         मेरे खुले घावों से मवाद बहता है।

     6 मेरे दिन एक जुलाहे की ढरकी के समान शीघ्र ही से बीतते हैं;

         जब एक दिन समाप्त होता है, तो मैं कभी आशा नहीं करता कि अगले दिन कुछ अच्छा होगा।

     7 हे परमेश्वर, यह मत भूलना कि मेरा जीवन एक साँस जितना छोटा है;

         मुझे लगता है कि मैं कभी भी आनन्द का अनुभव नहीं करूँगा।

     8 हे परमेश्वर, आप मुझे अब देखते हो,

         परन्तु एक दिन आप मुझे और नहीं देख पाएँगे।

         आप मेरी खोज करेंगे, परन्तु मैं जा चुका होऊँगा क्योंकि मैं मर जाऊँगा।

     9 जैसे एक बादल निकलता है और लोप हो जाता है,

         लोग मर जाते हैं और उस स्थान में आते जाते हैं जहाँ मरे हुए लोग हैं, और वे लौट कर नहीं आते हैं;

     10 वे लौट कर अपने घरों में कभी नहीं आते, हैं,

         और जो लोग जीवित हैं वे उन्हें फिर कभी स्मरण नहीं करते है।

     11 इसलिए मैं चुप नहीं रहूँगा;

         जबकि मैं पीड़ित हूँ, मैं बोलूँगा;

     जो मेरे साथ हुआ है उसके विषय में मैं परमेश्वर से शिकायत करूँगा

         क्योंकि मैं बहुत क्रोधित हूँ।

     12 हे परमेश्वर, आप बारीकी से क्यों देखते हैं कि मैं क्या कर रहा हूँ?

         क्या आपको लगता है कि मैं एक खतरनाक समुद्री राक्षस हूँ?

     13 जब मैं रात में लेटता हूँ, तो मैं स्वयं से कहता हूँ, ‘मैं सो जाऊँगा और पीड़ित होने से बच जाऊँगा;

         जब मैं सो रहा हूँ तो मेरा दर्द कम हो जाएगा।’

     14 परन्तु फिर आप मुझे ऐसे सपने देते हो जो मुझे डरा देते हैं;

         आप मुझे ऐसे दर्शन देते हैं जो मुझे भयभीत कर देते हैं;

     15 ये बातें मुझमें ऐसी इच्छा उत्पन्न करती हैं कि कोई मेरा गला दबा कर मार दे,

         अपेक्षा इसके कि मैं जीवित रहूँ जबकि मैं केवल हड्डियों का एक ढाँचा रह गया हूँ।

     16 मैं जीवित रहने से निरन्तर घृणा करता हूँ; मैं कई वर्षों तक नहीं जीना चाहता हूँ।

         मुझे अकेला रहने दो, क्योंकि मैं बहुत ही कम समय के लिए जीवित रहूँगा।

     17 हम मनुष्य बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं;

         तो आप हम पर इतना ध्यान क्यों देते हैं?

     18 आप यह देखने के लिए हर सुबह हम पर दृष्टि करते हैं कि हम क्या कर रहे हैं,

         और आप यह देखने के लिए हर पल हमारी जाँच करते हैं कि जो हम कर रहे हैं वह सही है,

     19 आप मुझ पर दृष्टि करना कब बन्द करेंगे और क्या आप मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ देंगे, मेरे स्वयं के थूक को निगलने के समय तक के लिए?

     20 आप मुझे निरन्तर क्यों देखते रहते हैं?

         यदि मैं पाप करता हूँ, तो निश्चय ही आपको हानि नहीं पहुँचाता!

     आपने मुझे निशाना साध ने के लक्ष्य के समान क्यों बनाया हुआ है?

         क्या आप मुझे ऐसा भारी बोझ मानते हैं जिसे उठाने के लिए आप विवश हैं?

     21 यदि मैंने पाप भी किया, तो क्या आप मुझे क्षमा करने में सक्षम नहीं हैं

         उन गलत कार्यों के लिए भी जो मैंने किए हैं?

     शीघ्र ही मैं अपनी कब्र में लेटूँगा;

         आप मेरी खोज करेंगे, परन्तु आप मुझे नहीं पाएँगे क्योंकि मैं मर कर जा चुका होऊँगा।”

Chapter 8

1 तब शूआ क्षेत्र के रहने वाले बिल्दद ने अय्यूब से बात की। उसने कहा,

     2 “हे अय्यूब, तू कब तक ऐसी बातें करता रहेगा?

         तू जो कहता है वह एक बड़ी हवा के समान व्यर्थ है।

     3 सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चय ही कोई भी कार्य अनुचित नहीं करते हैं।

         वह सदा वही करते हैं जो सही है।

     4 तुम्हारे बच्चों ने उनके विरुद्ध पाप किया है;

         यह प्रकट है क्योंकि उन्होंने उन्हें उन बुरे कार्यों के लिए दण्डित किया है।

     5 परन्तु अब, यदि तू केवल आग्रहपूर्वक परमेश्वर की सहायता करने के लिए अनुरोध करे!

     6 यदि केवल तू शुद्ध और सच्चा है!

         तो वह निश्चय ही तेरे लिए कुछ अच्छा करेंगे

         और तेरा परिवार तुझे वापस दे कर और तुझे समृद्ध बना कर पुरस्कार देंगे।

     7 भले ही तू पहले बहुत समृद्ध नहीं था,

         तेरे जीवन के अंतिम चरण में तू बहुत धनवान बन जाएगा।

     8 मैं तुझसे निवेदन करता हूँ कि बहुत पहले हुई बातों पर विचार कर

         और ध्यान दे कि हमारे पूर्वजों ने क्या खोज की थी।

     9 ऐसा लगता है जैसे मानों हम कल ही पैदा हुए थे

         और हम बहुत कम जानते हैं;

     पृथ्‍वी पर हमारा समय शीघ्र समाप्त हो जाता है, जैसे कि यहाँ एक छाया आई और फिर चली गई है।

     10 तो क्यों न अपने पूर्वजों को कुछ सिखाने की अनुमति दे?

         उन्हें अपना ज्ञान तुझे सुनाने दे!

     11 निश्चय ही कछार की घास दलदल से दूर नहीं बढ़ती है;

         निश्चय ही जहाँ पानी नहीं है वहाँ सरकण्डे विकसित नहीं होते हैं।

     12 यदि उनके खिलते समय पानी सूख जाता है,

         तो वे अन्य किसी भी पौधे की तुलना में अधिक तेजी से सूखते हैं।

     13 जो लोग परमेश्वर के वचनों पर ध्यान नहीं देते वे उन सरकण्डों के समान हैं;

         परमेश्वर से रहित लोग आत्म-विश्वास से आशा करना छोड़ देते हैं कि उनके साथ अच्छी बातें होंगी।

     14 जिन बातों के होने की वे आशा आत्म-विश्वास से करते हैं वे नहीं होती हैं;

         जिन बातों पर वे भरोसा करते हैं वे उनकी सहायता करने में इतनी दुर्बल होती हैं जैसे मकड़ी का जाला।

     15 यदि उन्हें लगता है कि वे धनवान हैं इसलिए सुरक्षित रहेंगे, तो वे सुरक्षित नहीं रहेंगे;

         जिन वस्तुओं के लिए वे सोचते हैं कि वे उन्हें सुरक्षित रखेंगी - वे वस्तुएँ गायब हो जाएँगी।

     16 परमेश्वर से रहित लोग ऐसे पौधों के समान हैं जिनको सूरज उगने से पहले पानी दिया गया है:

         उनकी टहनियाँ सारे बगीचों में फैल गई हैं।

     17 उन पौधों की जड़ें पत्थरों के ढेरों के चारों ओर घूम गई हैं

         और चट्टानों से कस कर चिपक गई हैं।

     18 परन्तु माली उन पौधों को खींच कर उखाड़ता है,

         ऐसा लगता है कि मानों जहाँ वे लगाए गए थे वह स्थान कहता है, ‘वे कभी यहाँ नहीं थे!’

         दुष्ट लोगों के साथ यही होता है जो परमेश्वर के कहने पर ध्यान नहीं देते हैं।

     19 सचमुच, यही सब वह सुख है जो दुष्ट लोगों के पास है:

         अन्य लोग बस आते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं।

     20 इसलिए हे अय्यूब, मैं तुझे बताता हूँ, यदि तू उनका सम्मान करता है, तो परमेश्वर तुझे अस्वीकार नहीं करेंगे,

         परन्तु वह बुरे लोगों की सहायता नहीं करते हैं।

     21 वह तुझे हँसने में

         और आनन्द से चिल्लाने में सदा सक्षम बनाएँगे।

     22 परन्तु जो तुझसे घृणा करते हैं वे बहुत लज्जित होंगे,

         और दुष्ट लोगों के घर लोप हो जाएँगे।”

Chapter 9

1 तब अय्यूब ने उत्तर दिया,

     2 “हाँ, हाँ, मुझे पता है।

         परन्तु परमेश्वर से कोई कैसे कह सकता है, ‘मैं निर्दोष हूँ’?

     3 यदि कोई इस विषय में परमेश्वर से विवाद करना चाहता है,

         तो परमेश्वर उससे एक हजार प्रश्न पूछ सकते हैं

         और वह व्यक्ति उनमें से किसी का उत्तर नहीं दे पाएगा!

     4 परमेश्वर बहुत बुद्धिमान और शक्तिशाली हैं;

         कोई भी जिसने उनसे विवाद करने का प्रयास किया है वह कभी भी जीतने में सक्षम नहीं हुआ है।

     5 वह किसी को भी पहले से बताए बिना भूकम्प में पर्वतों को भी सरका देते हैं।

         जब वह क्रोधित होते हैं, तो वह पर्वतों को उल्टा कर देते हैं।

     6 वह पृथ्‍वी को हिलाने वाला भूकम्प भेजते हैं;

         वह उन स्तम्भों को हिला देते हैं जो पृथ्‍वी को सहारा देते हैं।

     7 उनकी आज्ञा बिना सूर्य उदय होता ही नहीं,

         और वह तारों पर मुहर लगाता है।

     8 उन्होंने अकेले ही आकाश को फैलाया है (वह अकेले ही आकाश को फैलाते हैं);

         वह अकेले ही अपने पैरों को लहरों पर रखते हैं और उनकी प्रचण्डता को रोक देते हैं।

     9 उन्होंने सप्तर्षि, मृगशिरा, कचपचिया तारामंडलों को अपने स्थानों में और दक्षिणी आकाश में सितारों के समूहों को स्थापित किया है।

     10 वह महान कार्य करते हैं जिसे हम समझ नहीं सकते;

         वह हमारी गिनने की सक्षमता से अधिक अद्भुत कार्य करते हैं।

     11 जहाँ मैं हूँ वह वहाँ से निकलते हैं, परन्तु मैं उन्हें नहीं देख सकता;

         वह आगे बढ़ जाते हैं, परन्तु मैं उन्हें जाते हुए नहीं देख पाता।

     12 यदि वह किसी को छीन कर दूर ले जाना चाहें, तो कोई भी उन्हें रोक नहीं पाएगा;

         कोई भी उनसे पूछने का साहस नहीं करता है, ‘आप ऐसा क्यों कर रहे हो?’

     13 परमेश्वर का क्रोधित होना बहुत सरलता से नहीं रुकता है;

         उन्होंने बड़े समुद्र राक्षस राहाब के सेवकों को होरिया है।

     14 यदि परमेश्वर मुझे अदालत में ले गए,

         तो मैं उन्हें उत्तर देने के लिए क्या कह सकता हूँ?

     15 भले ही मैं निर्दोष हूँ, मैं उन्हें उत्तर देने में सक्षम नहीं होऊँगा।

         जो मैं कर सकूँ वह बस यही होगा कि मैं परमेश्वर, अपने न्यायधीश से अनुरोध करूँ कि वह मुझ पर दया करें।

     16 यदि मैंने उन्हें अदालत में आने के लिए बुलाया और उन्होंने कहा कि वह आएँगे,

         तो मुझे विश्वास नहीं होगा कि जो मैं कहूँगा उस पर वह ध्यान देंगे।

     17 वह मुझे तोड़ डालने के लिए तूफान भेजते हैं,

         और वह बिना किसी कारण के मुझे कई बार चोट पहुँचाते हैं।

     18 ऐसा लगता है कि मानों वह मुझे मेरी साँस लेने नहीं देंगे

         क्योंकि वह मुझे हर समय पीड़ित करते हैं।

     19 यदि मैंने उनके साथ कुश्ती लड़ने का प्रयास किया तो उन्हें हराने का कोई रास्ता नहीं होगा,

         क्योंकि वह मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं।

     यदि मैंने उन्हें अदालत में उपस्थित होने के लिए बुलाया,

         तो कोई ऐसा नहीं है जो उन्हें वहाँ जाने के लिए विवश कर सके।

     20 भले ही मैं निर्दोष था, जो कुछ भी मैंने कहा उसके लिए वह मुझे दण्ड देंगे;

         भले ही मैंने कुछ भी गलत नहीं किया था, फिर भी वह सिद्ध कर देंगे कि मैं दोषी हूँ।

     21 मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, परन्तु अब यह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि मुझे चिन्ता नहीं कि मेरे साथ क्या होता है।

         मैं जीवित रहने को तुच्छ जानता हूँ।

     22 मेरे लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है

         क्योंकि परमेश्वर हम सबसे छुटकारा पाएँगे, जो निर्दोष हैं और जो दुष्ट हैं, दोनों से।

     23 जब लोग विपत्ति का सामना करते हैं और यह उन्हें अकस्मात ही मार देता है,

         परमेश्वर उन पर हँसते हैं, भले ही वे निर्दोष हों।

     24 जो संसार में होता है, परमेश्वर ने उसे नियंत्रित करने की अनुमति दुष्ट लोगों को दी है।

         ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने न्यायधीशों को अंधा बना दिया था, वे अब निष्पक्षता से न्याय करने में सक्षम नहीं हैं।

     यदि यह परमेश्वर नहीं हैं जिन्होंने ऐसा किया है,

         तो फिर, यह किसने किया है?

     25 मेरे दिन बहुत तेजी से बीतते हैं, जैसे बहुत तेज दौड़ने वाला किसी के निकट से निकलता है;

         ऐसा लगता है जैसे मानों दिन दूर भागते हैं, और मेरे साथ कभी भी कुछ भी अच्छा नहीं होता है।

     26 मेरा जीवन बहुत तेजी से चला जाता है, सरकण्डों से बनी तेजी से बहने वाली नाव के समान

         या एक उकाब के समान जो एक जानवर को पकड़ने के लिए नीचे झपटता है।

     27 यदि मैं मुस्कुराता हूँ और परमेश्वर से कहता हूँ, ‘मैं भूल जाऊँगा कि मैं किस विषय में शिकायत कर रहा हूँ;

         मैं उदास दिखना बन्द कर दूँगा और हँसमुख रहने का प्रयास करूँ,’

     28 तब जिससे मैं पीड़ित हूँ उसके कारण मैं डर जाता हूँ

         क्योंकि मुझे पता है कि परमेश्वर यह नहीं मानते कि मैं निर्दोष हूँ।

     29 वह वैसे भी मुझे दोषी ठहराएँगे,

         इसलिए मुझे अपने बचाव के लिए क्यों व्यर्थ में प्रयास करते रहना चाहिए?

     30 यदि मैंने स्वयं को बर्फ से धो लिया

         या मेरे हाथों को खार से साफ कर दिया

         मेरे अपराध से छुटकारा पाने के लिए,

     31 वह अभी भी मुझे एक गन्दे गड्ढे में फेंक देंगे;

         जिसके परिणामस्वरूप ऐसा होगा कि मानों मेरे कपड़े भी मुझसे घृणा करेंगे।

     32 परमेश्वर मनुष्य नहीं है, जैसा मैं हूँ,

         इसलिए ऐसा कोई मार्ग नहीं है कि मैं अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए उन्हें उत्तर दे सकूँ

         यदि हम न्यायालय में मुकद्दमा लड़ने एक साथ गए।

     33 तो मध्यस्थता करने वाला कोई नहीं है,

         कोई भी नहीं, जिसके पास हम दोनों पर अधिकार है।

     34 मेरी इच्छा है कि कोई परमेश्वर को मुझे पीड़ित करने से रोके,

         और कि वह मुझे डराते न रहें।

     35 यदि उन्होंने ऐसा किया, तो मैं उनसे डरे बिना घोषणा करूँगा कि मैं निर्दोष हूँ

         क्योंकि मैं अपने भीतर में जानता हूँ कि मैंने वास्तव में ऐसा नहीं किया है जो गलत है जैसे परमेश्वर सोचते हैं कि मैंने किया है।

Chapter 10

    

1 मैं अब और अधिक जीने से घृणा करता हूँ।

     मैं यह कहना बन्द नहीं करूँगा कि मैं शिकायत क्यों कर रहा हूँ।

         इसलिए मैं बहुत दुखी हूँ, मैं बोलूँगा।

     2 मैं परमेश्वर से कहूँगा, ‘सिर्फ यह न कहें कि आपको मुझे दण्ड देना है;

         इसके अतिरिक्त, मुझे बताइए कि आपने मुझमें ऐसा, क्या गलत देखा है जिसे मैंने किया है।

     3 मुझ पर अत्याचार करने से क्या आप, प्रसन्न होते हैं,

         मुझे, जिसे आपने बनाया है, त्याग देना

         और, उसी समय, उन कार्यों को करने में दुष्टों की सहायता करना जिन्हें करने की वे योजना बना रहे हैं?

     4 क्या आप समझते हैं कि हम मनुष्य कार्यों को कैसे करते हैं?

     5 क्या आप हमारे समान केवल कुछ वर्षों तक जीवित रहते हैं? जिस प्रकार (जैसे) हम करते हैं?

     6 तो आप मेरी गलतियों को

         और मेरे पापों को खोजते रहते हो?

     7 आप जानते हैं कि मैं दोषी नहीं हूँ,

         और मुझे आपकी शक्ति से कोई भी नहीं बचा सकता है।

     8 अपने हाथों से आपने मुझे बनाया और मेरे शरीर को आकार दिया,

         परन्तु अब आप यह निर्णय ले रहे हैं कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, और आप मुझे नष्ट कर रहे हैं।

     9 मत भूलिए कि आपने मुझे मिट्टी के टुकड़े से बनाया है;

         क्या आप मुझे फिर से मिट्टी बनाने जा रहे हैं?

     10 जब मेरा गर्भधारण किया गया था तो निश्चय ही आपने मुझे बनाया था,

         और आपने मुझे अपनी माँ के गर्भ में एक साथ रखा।

     11 आपने मेरी हड्डियों को नसों के साथ जोड़ दिया,

         और फिर आपने उन्हें मेरी त्वचा के भीतर माँस से ढाँप दिया।

     12 आपने मुझे जीवित रखा है; आपने मुझसे सच्चा प्रेम किया है,

         और आपने सावधानीपूर्वक मुझे सुरक्षित रखा है।

     13 परन्तु आप मेरे साथ जो करने की योजना बना रहे थे आपने उसे गुप्त रखा;

         मुझे निश्चय है कि आप इन बातों को मेरे साथ करने की योजना बना रहे थे।

     14 आप यह देखने के लिए दृष्टि रख रहे थे कि क्या मैं पाप करूँगा,

         कि यदि मैंने पाप किया, तो आप मुझे क्षमा करने से इन्कार कर दें।

     15 यदि मैं एक दुष्ट मनुष्य हूँ, तो मुझे आशा है कि मेरे साथ भयानक बातें होंगी।

     परन्तु भले ही अगर मैं धर्मी हूँ, तो भी मुझे अपने सिर को झुकाना और लज्जित होना होगा

         क्योंकि मैं बहुत अपमानित और दुखी हूँ।

     16 और यदि मैं घमण्ड करता हूँ, तो आप ऐसे मेरा शिकार करते हैं जैसे किसी जानवर को मारने के लिए शेर शिकार करता है,

         और आप मुझे चोट पहुँचाने के लिए शक्तिशाली रीति से कार्य करते हैं।

     17 आप निरन्तर यह प्रमाणित करने के लिए अधिक गवाहों को पाते हैं कि मैंने वह किया है जो गलत है,

         और आप निरन्तर मुझसे अधिक क्रोधित होते जाते हैं।

         ऐसा लगता है कि मानों आप सदा मुझ पर आक्रमण करने के लिए नए सैनिक ला रहे हैं (ला रहे थे)।

     18 हे परमेश्वर, आपने मेरा जन्म क्यों होने दिया?

         मेरी इच्छा है कि मैं मर गया होता जब मैं पैदा हुआ था, और यह कि किसी ने भी मुझे कभी नहीं देखा होता।

     19 मुझे लगता है कि यदि मैं अपनी माँ के गर्भ से सीधे कब्र तक ले जाया गया होता

         तो यह मेरे जीवित रहने की तुलना में अधिक अच्छा होता।

     20 मुझे लगता है कि मेरे जीवित रहने के लिए केवल कुछ दिन हैं;

         इसलिए मुझे अकेला रहने दीजिए, जिससे कि मुझे थोड़ी शान्ति मिल सके

     21 इससे पहले कि मैं उस स्थान पर जाऊँ जहाँ से मैं कभी वापस नहीं आऊँगा,

         जहाँ सदा अन्धकार है और घोर अंधेरा है,

     22 अन्धकार और अँधेरी छाया का एक स्थान जहाँ सब कुछ उलझन में है;

         जहाँ छोटी ज्योति भी अन्धकार के समान है।’”

Chapter 11

1 तब नामाह क्षेत्र के मित्र सोपर ने अय्यूब से यह कहा:

     2 “जो कुछ तू ने कहा है क्या उसका उत्तर किसी को नहीं देना चाहिए?

         केवल इसलिए कि तू बहुत बात करता है, हम तुझे निर्दोष घोषित करने के लिए विवश न हों।

     3 हे अय्यूब, क्या तेरा बकबक करना हमें वास्तव में चुप कर दे?

         तू हमारे विचारों की निन्दा करता है, तो निश्चय ही कोई ऐसा होना चाहिए जो तुझे डाँटे और तुझे लज्जित करे!

     4 तू कहता है, ‘मैं जो कहता हूँ वह सच है;

         परमेश्वर जानते हैं कि मैं निर्दोष हूँ।’

     5 परन्तु मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर बात करें

         और तुझे उत्तर देने के लिए कुछ कहें!

     6 परमेश्वर सब कुछ के विषय में सब कुछ जानते है,

         इसलिए मैं चाहता हूँ कि वह तुझ पर उन भेदों को प्रकट करें जो वह जानते हैं क्योंकि वह बुद्धिमान है।

     यह अच्छा होगा यदि तू समझ पाए कि परमेश्वर तेरे दण्ड से जितने के तू योग्य हो कम दण्ड तुझे दे रहे हैं!

     7 मुझे बता, क्या तू कभी परमेश्वर के विषय में उन बातों को जानने में सक्षम होगा जो समझने में बहुत कठिन हैं?

         क्या तू सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विषय में जानने के लिए सब कुछ पता कर पाएगा?

     8 परमेश्वर के विषय में जानना पृथ्‍वी से स्वर्ग की दूरी से अधिक है;

         इसलिए ऐसा कोई विधि नहीं है कि तू इस सबको समझ सके।

     यह यहाँ से मृतकों के स्थान की दूरी से भी अधिक है;

         इसलिए यह सब जानना तेरे लिए असम्भव है।

     9 परमेश्वर के विषय में जानना पृथ्‍वी अधिक व्यापक है

         और सागर से अधिक व्यापक है।

     10 यदि परमेश्वर तेरे पास आते हैं और तुझे बन्दीगृह में डाल देते हैं और फिर तेरा परीक्षण करते हैं,

         तो कौन उन्हें रोक सकता है?

     11 वह जानते हैं कि कौन से लोग निकम्मे हैं;

         और जब वह लोगों को दुष्ट कार्यों को करते हुए देखते हैं, तो निश्चय ही वह उन्हें अनदेखा नहीं करते हैं।

     12 निर्बुद्धि मनुष्य बुद्धिमान हो सकता है;

         यद्दपि मनुष्य जंगली गधे के बच्चा के समान जन्म ले;

     13 हे अय्यूब, पश्चाताप कर और मन का दीन बन;

         परमेश्वर की ओर अपने हाथों को फैला और उनसे याचना कर।

     14 यदि तू ने बुरे कार्य किए हैं, तो उन्हें करना बन्द कर;

         और अपने घर के किसी को भी दुष्ट कर्म करने मत दे।

     15 यदि तू ऐसा करता है, तो निश्चय ही तू अपने सिर को ऊपर उठाने योग्य होगा, क्योंकि तू लज्जित नहीं होगा;

         तू बलवन्त होगा और किसी बात से नहीं डरेगा।

     16 तू अपनी सारी परेशानियाँ भूल जाएगा;

         वे पानी के समान होंगी जो सारा बह गया है और सूख गया है।

     17 तेरी परेशानियाँ समाप्त हो जाएँगी, जैसे भोर में अन्धकार समाप्त हो जाता है;

         यह ऐसा होगा जैसे मानों तेरे ऊपर सूरज प्रकाशमान होकर चमक रहा था, जैसे वह दोपहर में चमकता है।

     18 तुझे सुरक्षा का बोध होगा क्योंकि तू आश्वस्त होगा कि तेरे साथ सब अच्छा होगा;

         परमेश्वर तेरी रक्षा करेंगे और हर रात तुझे सुरक्षित रूप से विश्राम देंगे।

     19 तू सोने के लिए लेट जाएगा, और कोई भी तुझे नहीं डराएगा।

         और बहुत से लोग आएँगे और उन पर दया करने का तुझसे अनुरोध करेंगे।

     20 परन्तु दुष्ट लोग समझने में सक्षम नहीं होंगे कि उनके साथ बुरी बातें क्यों हो रही हैं;

         उनके पास उनकी परेशानियों से बचने का कोई मार्ग नहीं होगा।

         केवल एक ही कार्य जो वे करना चाहेंगे वह मर जाना होगा।”

Chapter 12

1 तब अय्यूब ने अपने तीन मित्रों से कहा,

     2 “इसमें कोई सन्देह नहीं है कि तुम ऐसे लोग हो जिनकी बातें सब लोगों को सुनना चाहिए,

         और जब तुम मर जाओगे, तब कोई और बुद्धिमान लोग जीवित नहीं होंगे।

     3 परन्तु मेरे पास भी उतना ही अच्छा ज्ञान है जितना तुम रखते हो;

         मैं तुम लोगों से कम बुद्धिमान नहीं हूँ।

         निश्चय ही जो कुछ तुमने कहा है वह तो हर कोई जानता है।

     4 मेरे सब मित्र अब मुझ पर हँसते हैं।

         पहले मैं स्वभावतः परमेश्वर से मेरी सहायता करने का अनुरोध करता था, और उन्होंने हमेशा मुझे उत्तर दिया।

     मैं धर्मी हूँ, और मैं परमेश्वर का सम्मान करता हूँ, परन्तु अब हर कोई मुझ पर हँसता है।

     5 मेरे जैसे लोगों पर हँसना तुम जैसे लोगों के लिए सरल है, जिन्हें कोई परेशानियाँ नहीं हैं;

         तुम हमारे लिए जो पहले से पीड़ित हैं, और अधिक परेशानियाँ उत्पन्न करते हो।

     6 इस बीच, डाकू शान्तिपूर्वक रहते हैं,

         और कोई भी उन लोगों को नहीं धमकाता है जो परमेश्वर को क्रोधित करते हैं;

         जिस देवता की वे उपासना करते हैं वह उनकी अपनी शक्ति है।

     7 परन्तु जंगली जानवरों से पूछो कि वे परमेश्वर के विषय में क्या जानते हैं;

         यदि वे बोल सकें तो वे तुमको सिखाएँगे।

     यदि तुम पक्षियों से पूछो,

         तो वे तुमको बताएँगे।

     8 यदि तुम उन प्राणियों से पूछो जो भूमि पर रेंगते हैं, या समुद्र की मछलियों से पूछो,

         तो वे तुमको परमेश्वर के विषय में बताएँगे।

     9 उन सबको निश्चय ही पता है कि वह यहोवा हैं जिन्होंने यह किया है।

     10 वह सब जीवित प्राणियों के जीवन को निर्देशित करते हैं;

         वह हमें जीवित रखने के लिए हम सब मनुष्यों को साँस देते हैं।

     11 जब हम सुनते हैं कि तुम्हारे जैसे लोग क्या कहते हैं,

         हम इस विषय में सावधानी से सोचते हैं कि वे यह निर्धारित करने के लिए क्या कहते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है,

         जैसे कि हम यह जानने के लिए भोज को चखते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है।

     12 बूढ़ों में बुद्धि पाई जाती है;

         क्योंकि उन्होंने लम्बी आयु को जीया है उनमे अधिक समझ होती है।

     13 और परमेश्वर बुद्धिमान और बहुत शक्तिशाली हैं;

         उनके पास अच्छी समझ है और वह सब कुछ समझते हैं।

     14 यदि वह किसी वस्तु को तोड़ देते हैं, तो कोई भी उसे फिर से बना नहीं सकता;

         यदि वह किसी को बन्दीगृह में डाल देते हैं, तो कोई भी उस व्यक्ति के भाग जाने के लिए द्वार नहीं खोल सकता है।

     15 जब वह वर्षा को गिरने से रोकते हैं, तो सब कुछ सूख जाता है।

         जब वह बहुत सारी वर्षा को गिराते हैं, तो परिणाम यह होता है कि बाढ़ आती है।

     16 वही एकमात्र हैं जो वास्तव में शक्तिशाली और बुद्धिमान हैं;

         वह उन लोगों पर शासन करते हैं जो दूसरों को धोखा देते हैं और जिन्हें वे धोखा देते हैं।

     17 वह कभी-कभी राजा के अधिकारियों का ज्ञान खो जाने देते हैं और उसके कारण उनको दुखी होने देते हैं’

         और वह न्यायधीशों को मूर्ख बना देते हैं।

     18 वह उन गहने को राजाओं से ले लेते हैं जो वे पहनते हैं

         और उनकी कमर के चारों ओर लंगोटी को बाँधते हैं, जिससे वे दास बन जाते हैं।

     19 वह याजक को भी दुखी करते हैं,

         और वह उन लोगों की शक्ति को छीन लेते हैं जो दूसरों पर शासन करते हैं।

     20 वह कभी-कभी उन लोगों को बोलने में असमर्थ कर देते हैं जिन पर दूसरे लोग भरोसा करते हैं,

         और वह वृद्ध पुरुषों की अच्छी समझ को ले लेते हैं।

     21 वह लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे शासन करने वालों को तुच्छ मानें,

         और जो शक्तिशाली हैं वह उनको निर्बल कर देते हैं।

     22 वह हम पर उन बातों को प्रकट करते हैं जो गुप्त थीं,

         यहाँ तक कि ऐसी बातें जो मरे हुओं के संसार में होती हैं।

     23 वह कुछ राष्ट्रों को बहुत महान बना देते हैं,

         और बाद में वह उन्हें नष्ट कर देते हैं;

     वह कुछ देशों की सीमा को बहुत बड़ा कर देते हैं,

         और बाद में वह उनको हरा कर बन्दी बना लेने के लिए दूसरों को लाते हैं।

     24 वह कुछ शासकों को मूर्ख बना देते हैं,

         और फिर वह उन्हें चारों ओर भटकने देते हैं, जैसे कि वे बाहर निकलने के रास्ते के बिना जंगल में थे।

     25 ऐसा लगता है जैसे वे बिना किसी प्रकाश के अँधेरे में टटोल रहे थे;

         जैसे कि वे नशे में थे, और यह नहीं जानते कि उन्हें क्या करना चाहिए।”

Chapter 13

    

1 “जो कुछ तुमने देखा है वह मैंने देखा है,

         और जो कुछ तुमने कहा है वह सब मैंने सुना और समझा है।

     2 जो तुम जानते हो, वह मुझे भी पता है;

         मैं तुमसे कम नहीं जानता।

     3 परन्तु मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ बात करना चाहूँगा, न कि तुम्हारे साथ;

         मैं उनके साथ विवाद करना चाहूँगा और उन्हें दिखाना चाहूँगा कि मैं निर्दोष हूँ।

     4 जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुम झूठ बोलते हो और लोगों को कड़वे सच नहीं जानने देते हो,

         जैसे कोई व्यक्ति दीवार की खराब सतह को सफेदी से ढाँप देता है।

     तुम सब वैद्यों के समान हो जो लोगों को निकम्मी दवा बेचते हैं।

     5 मेरी इच्छा है कि तुम चुप रहो;

         यह तुम्हारे द्वारा मुझसे कही गई बातों से भी अधिक बुद्धिमानी होगी।

     6 सुनो कि मैं अब तुमसे क्या कहूँगा;

         सुनो जब मैं कह रहा हूँ कि मेरे विषय में क्या सच है।

     7 तुम परमेश्वर की सहायता करने के लिए झूठ बोल रहे हो;

         तुम उनकी सहायता करने के लिए जो कह रहे हो वह गलत है!

     8 तुम उनके कार्यों का पक्ष ले कर वास्तव में उन पर दया करना चाहते हो?

         ऐसा लगता है कि तुम अदालत में सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे कि वह निर्दोष हैं!

     9 परन्तु यदि वह न्यायधीश के रूप में बैठे हुए, तुम पर बारीकी से ध्यान दें, तो वह पाएँगे कि तुम उनके लिए जो कर रहे हो वह बुरा है!

         तुमने अन्य लोगों को धोखा दिया है, परन्तु यह मत सोचो कि तुम उनके विषय में अदालत में झूठ बोल सकते हो और कह सकते हो कि तुम उनका बचाव कर रहे हो!

     10 यदि तुम तुम्हारा पक्ष लेने के लिए परमेश्वर को मनाने के लिए चतुर बातें कहते हो,

         तो निश्चय ही वह तुमको डाँटेंगे।

     11 निश्चय ही वह तुम्हारे विरुद्ध अपनी शक्ति का पूरा बल ले कर आएँगे;

         तुम उनसे बहुत डर जाओगे।

     12 तुमने जो कहा है – जो बातें तुम सोचते हो बहुत बुद्धिमानी की हैं – वे राख के समान व्यर्थ हैं;

         तुम जो सोचते हो उसका बचाव करने के लिए तुम जो कहते हो वह शीघ्र ही से टूट जाने वाली मिट्टी की तुलना में उत्तम नहीं है।

     13 इसलिए चुप रहो और मुझे बोलने दो;

         उसके बाद, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि मेरे साथ क्या होता है।

     14 मैं अपने जीवन का जोखिम उठाने के लिए तैयार हूँ;

         मैं यह जोखिम उठाने के लिए भी तैयार हूँ कि जो मैं कहता है उसके लिए परमेश्वर मुझे मृत्यु दण्ड दें।

     15 यदि वह मुझे मार डालते हैं, तो मेरे पास कोई और नहीं होगा जिससे मैं आत्म-विश्वास से मेरी सहायता करने की आशा कर सकता हूँ,

         परन्तु कैसे भी मैं उनकी उपस्थिति में अपने व्यवहार की रक्षा करने जा रहा हूँ।

     16 कोई दुष्ट व्यक्ति परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े होने का साहस नहीं करेगा,

     परन्तु क्योंकि मैं कहता हूँ कि मैंने ऐसे कार्य नहीं किए हैं जो गलत हैं,

         यदि मैं परमेश्वर के सामने सिद्ध कर सकता तो संभव है कि वह मुझे निर्दोष घोषित करेंगे।”

     17 “हे परमेश्वर, जो कुछ मैं कहता हूँ, उसे बहुत सावधानी से सुनिए; मुझ पर ध्यान दीजिए।

     18 मैं विवाद करने के लिए तैयार हूँ कि मैं निर्दोष हूँ,

         और मुझे पता है कि आप भी यह घोषणा करेंगे कि मैं दोषी नहीं हूँ।

     19 निश्चय ही मैं नहीं सोचता कि आप या कोई अन्य कहेगा कि जो मैं कहता हूँ वह झूठी बात है;

         यदि आपने ऐसा किया, तो मैं और बात नहीं करूँगा, और मैं मर जाऊँगा।

     20 मैं आप से अनुरोध कर रहा हूँ; कि मेरे लिए दो कार्य करें

         यदि आप उन्हें करते हैं, तो मैं आप से छिपने का प्रयास नहीं करूँगा।

     21 पहली बात जो मैं अनुरोध करता हूँ वह यह है कि आप मुझे दण्ड देना बन्द कर दें,

         और दूसरी बात जो मैं अनुरोध करता हूँ वह यह है कि आप मुझे डराना बन्द कर दें।

     22 पहले आप बोलिए, और मैं उत्तर दूँगा;

         या मुझे पहले बोलने की अनुमति दीजिए, और आप उत्तर दीजिए।

     23 मैंने क्या किया है जो गलत है? मैंने क्या पाप किए हैं?

         मुझे दिखाइए कि मैंने कैसे आपकी आज्ञा नहीं मानी है।

     24 आप मेरे साथ मित्रता का इन्कार क्यों करते हैं?

         आप मेरे प्रति ऐसे क्यों कार्य करते हैं जैसे कि मैं आपका शत्रु था?

     25 मैं एक पत्ते के समान महत्वहीन हूँ जिसे हवा उड़ा देती है।

         आप मुझे डराने का प्रयास क्यों कर रहे हैं?

     आप मुझे पीड़ित क्यों कर रहे हैं?

         मैं तो सूखी भूसी के थोड़े से कणों के समान व्यर्थ हूँ!

     26 ऐसा लगता है कि आप मुझ पर पाप करने का आरोप लगाने के लिए बातें लिख रहे हैं,

         और यह कि आप उन बुरे कार्यों को भी लिख रहे हैं जो मैंने तब किए थे जब मैं युवा था।

     27 ऐसा लगता है कि मानों आपने मेरे पैरों को काठ में ठोक दिया है

         और मैं जब चलता हूँ तो आप मुझे देखते रहते हैं;

         ऐसा लगता है कि मानों आप यह देखने के लिए मेरे पैरों के चिन्ह का पीछा कर रहे थे कि मैं कहाँ गया हूँ।

     28 इस कारण से, मेरा शरीर सड़ी हुआ लकड़ी के समान टूट कर गिर रहा है,

         कीड़ा खाए कपड़े के टुकड़े के समान।

Chapter 14

    

1 हम मनुष्य बहुत दुर्बल हैं। हम पैदा हुए हैं, और

         हम केवल थोड़े समय तक रहते हैं; हम बहुत परेशानी का अनुभव करते हैं।

     2 हम शीघ्र ही लोप हो जाते हैं, फूलों के समान जो अति शीघ्र भूमि से उगते हैं और फिर सूख जाते हैं और मर जाते हैं।

         हम छाया के समान हैं जो सूरज के चमकना बन्द होने पर गायब हो जाती है।

     3 हे यहोवा, आप यह देखने के लिए मुझ पर दृष्टि क्यों रखते हो कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूँ जो गलत है?

         क्या आप मुझे न्याय करने के लिए अदालत में ले जाना चाहते हैं?

     4 कोई भी परमेश्वर के लिए स्वीकार्य होने को उस वस्तु में से कुछ नहीं ला सकता है जो उसे स्वीकार्य नहीं है।

     5 आपने निर्णय लिया है कि हमारे जीवन कितने समय तक होंगे।

         आपने निर्णय लिया है कि हम कितने महीने जीवित रहेंगे,

         और हम आपके द्वारा निर्णय लिए गए समय से अधिक नहीं जी सकते हैं।

     6 इसलिए कृपया हमें जाँचना बन्द कीजिए, और हमें अकेले रहने दीजिए

         जिससे कि हम कठोर परिश्रम के हमारे जीवन का आनन्द उठा सकें, यदि भाड़े के मजदूर के लिए ऐसा करना संभव हो।

     7 यदि हम एक पेड़ काटते हैं,

         तो कभी-कभी हम आशा करते हैं कि यह फिर से अंकुरित होगा और नई शाखाएँ उगाएगा।

     8 भूमि में इसकी जड़ें बहुत पुरानी हो सकती हैं,

         और इसका तना सड़ सकता है,

     9 परन्तु यदि कुछ पानी उस पर पड़ता है,

         तो एक युवा पौधे के समान पनप सकता है और टहनियाँ निकाल सकता है।

     10 परन्तु जब हम लोग अपनी सारी शक्ति खो देते हैं और मर जाते हैं,

         हम साँस लेना बन्द करते हैं, और फिर हम सदा के लिए चले जाते हैं।

     11 जैसे झील का पानी भाप बन कर उड़ जाता है,

         या नदी के किनारे सूख जाते हैं,

     12 लोग लेटते हैं और मर जाते हैं और फिर उठते नहीं हैं।

     जब तक कि आकाश अस्तित्व में है;

         जो लोग मरते हैं वे जागते नहीं हैं,

         और कोई भी उन्हें जगा नहीं सकता है।

     13 हे यहोवा, मेरी इच्छा है कि आप मुझे मरे हुओं के स्थान पर सुरक्षित रखेंगे और मेरे विषय में भूल जाएँगे, कि मैं और पीड़ित न होऊँ

         जब तक आप मुझसे क्रोधित रहते हैं।

     मेरी इच्छा है कि आप यह निर्णय लें कि मैं वहाँ कितना समय व्यतीत करूँगा,

         और फिर स्मरण रखें कि मैं वहाँ हूँ।

     14 जब हम मनुष्य मर जाते हैं, तब निश्चय ही हम फिर से नहीं जीएँगे।

         यदि मुझे पता हो कि हम फिर से जीएँगे, तो मैं

         मेरे दुखों से मुक्ति पाने के लिए धैर्यपूर्वक आपकी प्रतीक्षा करूँगा।

     15 आप मुझे बुलाएँगे, और मैं उत्तर दूँगा।

         आप मुझे, आपके द्वारा बनाए गए प्राणियों में से एक को, देखने के लिए उत्सुक होंगे।

     16 आप ध्यान से देखेंगे कि मैं कहाँ गया था,

         और आपको यह देखने में कोई रूचि नहीं होगी कि मैंने पाप किया है या नहीं।

     17 मेरे पापों का लेखा एक छोटे से थैले में बन्द कर दिया जाएगा,

         और आप उन्हें ढाँप देंगे।

     18 परन्तु जैसे पहाड़ियाँ टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं और पर्वत से चट्टानें गिरती हैं,

     19 और जैसे पानी पत्थरों को धीरे-धीरे काटता है, और जैसे बाढ़ मिट्टी को बहा ले जाती है,

         आप अन्त में हमें नष्ट कर देते हैं; आप हमें आशा रखने नहीं देते कि हम जीवित रहेंगे।

     20 आप सदा हमें पराजित करते हैं, और फिर हम मर जाते हैं।

         हमारे मरने के बाद आप हमारे चेहरों को बिगाड़ देते हैं,

         और आप हमें दूर भेज देते हैं।

     21 जब हम मर जाएँगे, हम नहीं जानते कि हमारे पुत्र बड़े हो जाएँगे और ऐसे कार्य करेंगे जो अन्य लोगों को उनका सम्मान करने को प्रेरित करेंगे।

         या जब वे अपमानित हों, तो हम उसे भी नहीं जानते हैं।

     22 हमें अपनी पीड़ा के अतिरिक्त कुछ और अनुभव नहीं होगा;

         हम स्वयं के लिए दुखी होंगे, किसी और के लिए नहीं।”

Chapter 15

1 तब एलीपज ने अय्यूब को उत्तर दिया:

     2 “यदि तू वास्तव में बुद्धिमान होता, तो तू दावा करके हमें उत्तर नहीं देता कि तू बहुत कुछ जानता है;

         तुम जो कह रहा है वह केवल बहुत गर्म हवा है।

     3 तुझे ऐसी बातें नहीं कहना चाहिए जो किसी को भी लाभ नहीं पहुँचाती;

         तुझे ऐसी बातें नहीं कहना चाहिए जो किसी का कुछ भी भला नहीं करती।

     4 तू दूसरों को सिखा रहा है कि वे परमेश्वर का सम्मान न करें,

         और तू उन्हें सम्मानित करने से उनको रोक रहा है।

     5 तू दुष्ट हैं, और यही कारण है कि जो तू करता है वही तू कहता है;

         तू ऐसे बात करता है जैसे धोखा देने वाले लोग बात करते हैं।

     6 जो कुछ भी तू कहता है वह दिखाता है कि परमेश्वर को तुझे दण्ड देना चाहिए;

         मेरे लिए आवश्यक नहीं है कि मैं यह सिद्ध करूँ।

     7 मुझे बता, तुझे ऐसा क्यों लगता है कि तू बहुत अधिक जानता है? तुझे ऐसा तो नहीं लगता कि तू ही वह पहला व्यक्ति था जो कभी पैदा हुआ, है ना?

         तुझे ऐसा तो नहीं लगता कि इससे पहले परमेश्वर ने पर्वतों को बनाया तू पैदा हो गया था, है ना?

     8 क्या तू सुन रहा था जब परमेश्वर ने अपनी सारी योजनाएँ बनाई थीं?

         क्या तुझे ऐसा तो नहीं लगता कि तू एकमात्र व्यक्ति है जो बुद्धिमान है?

     9 तू ऐसा क्या जानता है जो हम दूसरे लोगों को नहीं पता?

         तू ऐसा कुछ भी नहीं समझता जो हमें स्पष्ट नहीं है।

     10 मेरे मित्र भी बुद्धिमान हैं और मैं भी बुद्धिमान हूँ;

         हमने वृद्ध पके बालों वाले लोगों से ज्ञान प्राप्त किया है,

         ऐसे लोगों से जिनका जन्म तेरे पिता से पहले हुआ था।

     11 परमेश्वर तुझे सांत्वना देना चाहते हैं

     और तुझसे कोमलता से बात करना चाहते हैं;

         जो तेरे लिए पर्याप्त होना चाहिए, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है, है ना?

     12 तू अपनी भावनाओं से उत्साहित क्यों होता हैं?

         तेरी आँखें क्रोध से क्यों चमकती हैं?

     13 तू परमेश्वर से क्रोधित है,

         और इसलिए तू उनके विरुद्ध कठोर बातें कहता है।

     14 तू और, कोई भी व्यक्ति पापहीन कैसे हो सकता है?

         पृथ्‍वी पर कोई भी पूरी तरह से धर्मी कैसे हो सकता है?

     15 परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों पर भी भरोसा नहीं करते हैं;

         वह स्वर्ग को पूरी तरह से शुद्ध नहीं मानते हैं।

     16 इसलिए वह निश्चित रूप से घृणित लोगों पर भरोसा नहीं करते हैं,

         जो जितनी बार पानी पीते हैं, उतनी ही बार बुरे कर्म करते हैं।

     17 हे अय्यूब, जो मैं कहता हूँ उसे सुन।

         मैं तुझको वह बताऊँगा जो मुझे पता है,

     18 वे बातें जो बुद्धिमान पुरुषों ने मुझे बताईं हैं,

         ऐसी सच्चाइयाँ जिसे उनके पूर्वजों ने छिपा कर नहीं रखा था।

     19 (परमेश्वर ने यह देश उन पूर्वजों को दिया जो वास्तव में बुद्धिमान थे;

         किसी ने भी अन्य देश से आकर उन्हें परमेश्वर के विषय में गलत सोचने के लिए प्रेरित नहीं किया।)

     20 दुष्ट लोग जीवन भर बड़े दर्द से पीड़ित होते हैं;

         यह उन लोगों के साथ होता है जो दूसरों पर अत्याचार करते हैं।

     21 वे निरन्तर उन आवाजों को सुनते हैं जो उन्हें डराती हैं;

         जब वे समृद्ध हो रहे होते हैं, तब लुटेरे उन पर आक्रमण करते हैं।

     22 दुष्ट लोग वास्तव में विचार नहीं करते कि वे अन्धकार से बच पाएँगे;

         उन्हें विश्वास है कि कोई उन्हें तलवार से मारने की प्रतीक्षा कर रहा है।

     23 वे भोजन की खोज में चारों ओर भटकते हुए कहते हैं, ‘कहाँ मुझे कुछ मिल सकता है?’

         वे जानते हैं कि वे शीघ्र ही विपत्तियों से घिर जाएँगे।

     24 क्योंकि वे उनके साथ हो रही उन बातों से डरते हैं, वे चिन्ता करते हैं

         कि वे उन पर ऐसे आ पड़ेंगी जैसे राजा की सेना अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा करती है और उन्हें पीड़ित करती है।

     25 ये बातें उनके साथ इसलिए होती हैं कि उन्होंने अपनी मुट्ठियों को सर्वशक्तिमान के विरुद्ध हिलाया था

         और सोचा था कि वे उसे हराने के लिए पर्याप्त शक्ति रखते थे।

     26 वे हठ करके परमेश्वर पर वार करने के लिए दौड़ते हैं

         यह सोचते हुए कि एक कठोर ढाल उनकी रक्षा करेगी।

     27 परन्तु वे इतने मोटे हैं कि वे लड़ने में असमर्थ हैं।

     28 वे उन शहरों में रहते हैं जिन्हें त्याग दिया गया है,

         ऐसे शहर जिनके लिए परमेश्वर ने घोषित किया था कि वे खण्डहरों का ढेर हो जाएँगे।

     29 परन्तु वे बहुत लम्बे समय तक धनवान नहीं रहेंगे;

         जो कुछ उनके पास है वह सब दूसरे ले लेंगे,

         और यहाँ तक कि पृथ्‍वी से उनकी छाया भी लोप हो जाएगी।

     30 वे मृत्यु के अन्धकार से नहीं बच पाएँगे;

         वे ऐसे पेड़ों के समान होंगे जिनकी शाखाएँ जल गई हैं।

         जब परमेश्वर आदेश देते हैं, तो वे मर जाएँगे।

     31 यदि वे बहुत मूर्ख हैं, इसलिए वे उन वस्तुओं पर भरोसा करते हैं जो वास्तव में निकम्मी हैं,

         फिर जो कुछ उनको मिलेगा वे ऐसी वस्तुएँ ही होंगी जो निकम्मी हैं।

     32 कि वे अपनी जवानी में ही हैं, लोप हो जाएँगे;

         वे उन शाखाओं के समान होंगे जो सूख जाएँगी और फिर कभी हरी न होंगी।

     33 वे ऐसी बेलों के समान होंगे जिनके अँगूर पकने से पहले गिर जाते हैं,

         वे ऐसे जैतून के पेड़ों के समान जिनके फूल किसी भी फल का उत्पादन करने से पहले गिर जाते हैं।

     34 दुष्ट लोगों के समूह में कोई वंशज नहीं होगा,

         और उन लोगों के घरों को आग पूरी तरह से जला देगी जिन्होंने रिश्वत में पैसा लिया था।

     35 वे संकट उत्पन्न करने और बुरे कार्यों को करने की योजना बनाते हैं,

         और अपने हृदयों में वे हमेशा लोगों को धोखा देने की तैयारी कर रहे होते हैं।”

Chapter 16

1 अय्यूब ने एलीपज और दूसरों को उत्तर दिया,

     2 “मैंने ऐसा बातें पहले सुनी हैं;

         तुम सब, मेरी सहायता करने की अपेक्षा, मुझे केवल और अधिक दुख का बोध करा रहे हो।

     3 क्या तुम्हारे भाषण, जो केवल हवा हैं, कभी समाप्त नहीं होंगे?

         एलीपज, ऐसी कौन सी बात है जिससे तू परेशान होकर मुझे इस प्रकार उत्तर देता जा रहा है?

     4 यदि तुम तीनों पीड़ित होते और मैं नहीं,

         तो तुम्हारे स्थान पर, मैं उन बातों को कह सकता था जो तुम कह रहे हो।

     मैं तुम्हारी निन्दा करने के लिए बड़े भाषण दे सकता हूँ,

         और मैं तुम्हारा उपहास करने के लिए अपना सिर हिला सकता हूँ।

     5 तब तुम देखोगे कि मेरे शब्दों ने तुमको प्रोत्साहित किया है या नहीं;

         तुम देखोगे कि उनसे तुम्हारी पीड़ा कम हुई है या नहीं।

     6 परन्तु अब, यदि मैं बात करता हूँ, तो मेरी पीड़ा कम नहीं होती है,

         और यदि मैं चुप होता हूँ, तो निश्चय ही मेरी पीड़ा अभी भी दूर नहीं होती है।

     7 हे परमेश्वर, आपने मेरी सारी शक्ति को अब ले लिया है;

         आपने मेरे सारे परिवार को नष्ट कर दिया है।

     8 आपने मुझे झुका दिया है,

         और लोग सोचते हैं कि यह मेरा पापी होना दर्शाता है।

     वे देखते हैं कि मैं केवल त्वचा और हड्डियाँ ही हूँ,

         और वे सोचते हैं कि इससे सिद्ध होता है कि मैं दोषी हूँ।

     9 क्योंकि परमेश्वर मुझसे बहुत क्रोधित हैं और मुझसे घृणा करते हैं,

         इसलिए मानों कि वह एक जंगली जानवर के समान मुझे अपने दाँतों से फाड़ देते हैं

         क्योंकि वह मेरे शत्रु हैं।

     10 लोग मेरा उपहास करने के लिए मुझे मुँह चिढ़ाते हैं;

         उन्होंने मेरा उपहास करने के लिए मुझे चेहरे पर मारा है,

         और वे मुझे धमकी देने के लिए मेरे चारों ओर भीड़ लगाते हैं।

     11 ऐसा लगता है कि मानों परमेश्वर ने मुझे उन लोगों के हाथों में सौंप दिया है जो उसे सम्मान देने से इन्कार करते हैं

         और मुझे दुष्टों के अधिकार में कर दिया है।

     12 पहले, मैं शान्ति से रह रहा था,

         परन्तु उसने मुझे कुचल दिया;

     ऐसा लगता है कि मानों उसने मेरी गर्दन को पकड़ लिया और मुझे टुकड़े-टुकड़े कर दिया;

         ऐसा लगता है कि मानों उसने मुझे एक निशाने के समान खड़ा किया है।

     13 ऐसा लगता है कि मैं एक निशाना था, और लोग मेरे आस-पास थे और मुझ पर तीर मार रहे थे।

     परमेश्वर के तीर मेरे गुर्दों को छेदते हैं

         और मेरे गुर्दों से पित्त को भूमि पर बिखेर देते हैं;

         परमेश्वर मुझ पर बिलकुल दया नहीं करते हैं।

     14 ऐसा लगता है कि मानों मैं एक दीवार था जिसे वह समय-समय पर तोड़ रहे हैं;

         वह मुझ पर एक सैनिक के समान टूट पड़ते हैं जो अपने शत्रु पर आक्रमण कर रहा है।

     15 क्योंकि मैं शोक कर रहा हूँ, मैं टाट के वस्त्र के टुकड़े पहनता हूँ जिसे मैंने एक साथ सी लिया है,

         और मैं बहुत निराशा में यहाँ धूल में बैठता हूँ।

     16 मेरे बहुत अधिक रोने के कारण मेरा चेहरा लाल है,

         और मेरी आँखों के चारों ओर काले घेरे हैं।

     17 यह सब मेरे साथ हुआ है भले ही मैंने किसी के प्रति हिंसक व्यवहार नहीं किया है,

         और भले ही मैं हमेशा परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना करता हूँ।

     18 जब मैं मर जाऊँ, तो मैं चाहता हूँ कि भूमि ऐसे व्यवहार करे जैसे कि मेरी हत्या की गई थी; मैं उन लोगों के विरुद्ध दुहाई देना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे मारा,

         और मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे रोके, जब मैं यह माँग कर रहा हूँ कि परमेश्वर मेरे साथ न्यायपूर्वक कार्य करें।

     19 परन्तु अब भी, मुझे पता है कि स्वर्ग में कोई है जो मेरे लिए गवाही देंगे,

         और वह कहेंगे कि मैंने जो किया है वह सही है।

     20 मेरे तीन मित्र मुझसे घृणा करते हैं,

         परन्तु जब मैं परमेश्वर की दुहाई देता हूँ तो मेरी आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं।

     21 मैं प्रार्थना करता हूँ कि जो मेरे कार्यों को जानता है वह मेरे लिए परमेश्वर से याचना करे

         जैसे एक व्यक्ति अपने मित्र के लिए याचना करता है।

     22 मैं ऐसा कहता हूँ क्योंकि कुछ वर्षों में मैं मर जाऊँगा;

         मैं उस सड़क से होकर उस स्थान पर चला जाऊँगा जहाँ से मैं कभी वापस नहीं आऊँगा।”

Chapter 17

    

1 “मेरा जीने का समय लगभग समाप्त हो गया है; मेरे पास कोई शक्ति नहीं बची है;

         जिन्होंने मेरी कब्र खोद ली है वे मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

     2 जो मेरे आस-पास हैं वे मेरा ठट्ठा कर रहे हैं;

         मुझे सदा उन्हें मेरा ठट्ठा करते देखना है।”

     3 “हे परमेश्वर, ऐसा लगता है जैसे मानों मैं बन्दीगृह में था;

     कृपया उस धन का भुगतान कीजिए कि मुझे जामिन किया जाए,

         क्योंकि निश्चय ही और कोई नहीं है जो मेरी सहायता करेगा।

     4 आपने मेरे मित्रों को यह समझने से रोका है कि मेरे विषय में क्या सच है,

         परन्तु आप उन्हें मुझ पर प्रबल न होने दें जब वे कहते हैं कि मैंने गलत कार्य किए हैं।

     5 हमारे पूर्वजों ने कहा है, ‘प्रायः ऐसा होता है कि जब कोई अपने मित्रों की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए उन्हें धोखा देता है,

         तो उस व्यक्ति के बच्चों को उसके लिए दण्ड दिया जाएगा;’

     इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे विषय में झूठ बोलने वाले मेरे मित्रों के साथ यह सच हो।

     6 परन्तु अब जब लोग मेरे विषय में बात करते हैं तो वे हमारे पूर्वजों की उन कहावतों का उपयोग करते हैं;

         वे मेरा अपमान करने के लिए थूकते हैं।

     7 मेरी आँखें मन्द हो गई हैं क्योंकि मैं बहुत दुखी हूँ,

         और मेरी बाँहें और पैर छाया के समान पतले हैं।

     8 जो लोग सचमुच धर्मी हैं जब वे देखेंगे कि मेरे साथ क्या हुआ है तो वे चौंक जाएँगे;

         वे उन पर क्रोधित होंगे जो परमेश्वर का सम्मान करने से इन्कार करते हैं।

     9 जो लोग वास्तव में धर्मी हैं वे धर्म के कार्य करते रहेंगे,

         और जो लोग धार्मिकता से जीते हैं वे बलवन्त बने रहेंगे।

     10 परन्तु हे मेरे सब मित्रों,

         मुझे तुम में से एक भी नहीं मिला है जो बुद्धिमान है।

     11 मेरे जीने का समय लगभग समाप्त हो गया है; मैं उन कार्यों को करने में सक्षम नहीं हूँ जिन्हें करने की मैंने योजना बनाई थी।

         जिन कार्यों की मुझे सबसे अधिक इच्छा है, उनके होने की कोई आशा नहीं है।

     12 मेरे मित्र नहीं जानते कि रात कब है और दिन कब है;

         जब रात होती है, तो वे दावा करते हैं कि यह दिन का प्रकाश है;

         जब अंधेरा हो रहा होता है, तो वे दावा करते हैं कि प्रकाश हो रहा है।

     13 मुझे पता है कि मेरा घर वह स्थान होगा जहाँ मृत लोग हैं,

         जहाँ मैं अन्धकार में सो जाऊँगा।

     14 मैं कब्र से कह सकता हूँ, ‘जहाँ मुझे दफनाया गया है, वह स्थान मेरे लिए पिता समान होगा।’

         मैं कीड़ों से कह सकता हूँ, ‘तुम मेरे लिए एक माँ या छोटी बहन के समान हों क्योंकि मैं वहाँ सदा रहूँगा।’

     15 निश्चय ही मेरे लिए कोई आशा नहीं बची है।

         कोई भी अपेक्षा नहीं करता है कि मुझे कोई सुख मिलेगी।

     16 मरे हुओं के स्थान पर उतर जाने के बाद, मैं वहाँ किसी प्रकार की भलाई की अपेक्षा नहीं कर पाऊँगा।

         मैं और वे बातें जिनकी मैं आशा करता हूँ वे एक साथ मिट्टी के नीचे चली जाएँगे।”

Chapter 18

1 तब बिल्दद ने फिर से उत्तर दिया:

     2 “कृपया बात करना बन्द कर!

         यदि तू बात करना बन्द करे और सुने, तो हम तुझे कुछ बता सकते हैं।

     3 तू क्यों सोचता है कि हम मवेशी के समान और अधर्मी के समान मूर्ख हैं?

     4 बहुत क्रोधित होने से, तू केवल स्वयं को चोट पहुँचा रहा है।

         तू क्या यह सोचता है कि तुझे सच सिद्ध करने के लिए पृथ्‍वी पर से सब कुछ टल जाए,

         या तू क्या ऐसा सोचता है कि तुझे सुख देने के लिए परमेश्वर को पर्वतों की चट्टानों को अपने स्थान से हटा देना चाहिए?

     5 जो होगा वह यह है कि तेरे जैसे दुष्ट लोगों का जीवन

         इतनी शीघ्रता से समाप्त हो जाता है जैसे हम एक दीपक जलाते हैं या आग की लौ बुझाते हैं।

     6 जब उनके तम्बुओं में उनके ऊपर के दीपक बुझा दिए जाते हैं,

         तब उन तम्बुओं में कोई प्रकाश नहीं होगा।

     7 जब वे जीवित हैं, वे आत्म-विश्वास से चलते हैं,

         परन्तु बाद में ऐसा होगा जैसे मानों वे ठोकर खा कर गिर गए हैं,

     क्योंकि वे स्वयं उस शिक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं जो वे दूसरों को देते हैं।

     8 यह ऐसा होगा जैसे मानों वे अपने ही जाल में फँस गए

         या उस गड्ढे में गिर गए जिसे उन्होंने स्वयं खोदा था।

     9 यह ऐसा होगा जैसे मानों एक फन्दे ने उनकी एड़ी पकड़ ली और उन्हें बाँध लिया,

     10 जैसे मानों भूमि पर छिपी हुई रस्सी का भाग

         निकल आया और जब वे उस पर चले तो उन्हें पकड़ लिया था।

     11 जहाँ कहीं भी वे जाएँ, वहाँ ऐसी घटनाएँ होंगी जो उन्हें डरा देंगी;

         यह ऐसा होगा जैसे मानों वे घटनाएँ उनका पीछा कर रही थीं और उनकी एड़ी को डस रही थीं।

     12 वे भूखे हो जाएँगे, जिसके परिणामस्वरूप वे अब बलवन्त नहीं रहेंगे।

         वे निरन्तर विपत्तियों का सामना करेंगे।

     13 उनकी पूरी त्वचा पर बीमारियाँ फैल जाएगी;

         बीमारियाँ उनके शरीरों को सड़ा देंगी।

     14 जब वे मर जाएँगे, तो वे अपने तम्बुओं से खींच कर दूर ले जाए जाएँगे

         और मृतकों पर शासन करने वाले व्यक्ति के समक्ष लाए जाएँगे।

     15 तब अन्य लोग उनके तम्बुओं में रहेंगे,

         परन्तु बीमारी से छुटकारा पाने के लिए उन तम्बुओं पर गन्धक छिड़कने के बाद ही!

     16 क्योंकि वे मर जाएँगे और कोई वंशज नहीं छोड़ेंगे,

         वे ऐसे पेड़ों के समान होंगे जिनकी जड़ें सूख गई हैं और जिनकी शाखाएँ मुर्झा गई हैं।

     17 पृथ्‍वी पर कोई भी उन्हें अब स्मरण नहीं रखेगा;

         किसी भी सड़क पर कोई भी उनके नामों को स्मरण नहीं रखेगा।

     18 उन्हें पृथ्‍वी छोड़नी होगी, जहाँ प्रकाश है,

         और उस स्थान पर भागना होगा जहाँ अंधेरा है।

     19 उनके पास कोई संतान या पोते नहीं होंगे,

         कोई वंशज नहीं जहाँ वे पहले रहते थे।

     20 पूर्व से ले कर पश्चिम तक जो लोग उनके विषय में सुनते हैं कि उनके साथ क्या हुआ, वे सब,

         चौंक जाएँगे और भयभीत होंगे।

     21 तुम्हारे जैसे अधर्मी लोगों के साथ ऐसा ही होता है,

         वे लोग जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं।”

Chapter 19

1 तब अय्यूब ने उत्तर दिया:

     2 “तुम तीनों कब तक मुझे पीड़ित करोगे

         और दुष्ट कहकर मुझे हतोत्साह करोगे?

     3 तुमने मुझे कई बार अपमानित किया है;

         क्या तुम मुझसे ऐसी बातें करते समय लज्जित नहीं हो?

     4 भले ही यह सच हो कि मैंने गलत किया था,

         मैंने तुम्हें घायल नहीं किया है!

     5 यदि तुम वास्तव में सोचते हो कि तुम मुझसे अधिक अच्छे हो,

         और यदि तुम तर्क देते हो कि मुझे दोषी होना चाहिए क्योंकि मैं पीड़ित हूँ,

     6 तुमको यह जान लेना चाहिए कि यह परमेश्वर हैं जिन्होंने मुझे पीड़ा दी है।

         ऐसा लगता है कि मानों उनके पास जाल है और यह कि उन्होंने मुझे इसमें फँसा लिया है।

     7 मैं पुकारता हूँ, ‘लोग मेरी हत्या कर रहे हैं!’,

         परन्तु कोई भी मुझे उत्तर नहीं देता है।

     मैं ऊँचे स्वर में चिल्लाता हूँ, परन्तु वहाँ कोई भी नहीं है, परमेश्वर भी नहीं, जो मेरे साथ निष्पक्षता का व्यवहार करे।

     8 ऐसा लगता है कि परमेश्वर ने मेरी सड़क को रोकने कर दिया है,

         और मैं कहीं भी नहीं जा सकता;

         ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने मुझे अन्धकार में सड़क खोजने के लिए विवश कर दिया है।

     9 उन्होंने मेरी अच्छी प्रतिष्ठा को दूर कर दिया है;

         ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने मेरे सिर पर से मुकुट को हटा दिया है।

     10 वह चारों ओर से मुझ पर वार करते हैं, और मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा।

         अब मैं उनसे अपेक्षा नहीं करता कि वह मेरे लिए कुछ भी अच्छा करे।

     11 वह मुझ पर आक्रमण करते हैं क्योंकि वह मुझसे बहुत क्रोधित हैं;

         वह मुझे अपने शत्रु जैसा मानते हैं।

     12 ऐसा लगता है कि मानों वह मुझ पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना भेज रहे थे;

         वे मेरे तम्बू को घेरते हैं

         और मुझ पर आक्रमण करने के लिए तैयार होते हैं।

     13 परमेश्वर ने मेरे भाइयों को मुझे त्याग देने के लिए,

         और जो मुझे जानते हैं उन सबको मेरे साथ अपरिचित मनुष्यों का सा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है।

     14 मेरे सब सम्बन्धियों और अच्छे मित्रों ने मुझे छोड़ दिया है।

     15 जो लोग मेरे घर में अतिथि थे वे मुझे भूल गए हैं,

         और मेरी दासियाँ मुझे विदेशी मानती हैं जिसे वे नहीं जानती हैं।

     16 जब मैं अपने दासों को बुलाता हूँ, तो वे उत्तर नहीं देते;

         जब मैं उनसे सहायता करने के लिए अनुरोध करता हूँ, तो वे नहीं आते हैं।

     17 मेरी साँस मेरी पत्नी को दुर्गन्ध लगती है, इसलिए वह मुझसे दूर रहती है,

         और मेरे भाई मुझसे घृणा करते हैं।

     18 यहाँ तक कि छोटे बच्चे भी मुझे तुच्छ समझते हैं;

         जब मैं उनसे बात करने के लिए खड़ा होता हूँ, तो वे मुझ पर हँसते हैं।

     19 मेरे प्रिय मित्र मुझसे घृणा करते हैं,

         और जिन्हें मैं बहुत प्रेम करता हूँ, वे मेरे विरुद्ध हो गए हैं।

     20 मेरा शरीर केवल त्वचा और हड्डियाँ है;

         मैं कठिन से ही जीवित हूँ।

     21 हे मेरे तीनों मित्रों, मैं तुमसे विनती करता हूँ, मुझ पर दया करो

         क्योंकि परमेश्वर ने मुझे बहुत कठोरता से मारा है।

     22 क्यों तुम भी मुझे पीड़ित करते हो? क्या तुम अपने को परमेश्वर समझते हो?

         क्यों तुम मुझ पर गलत करने का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त बातें कभी नहीं पाते हो?

     23 मेरी इच्छा है कि कोई मेरे इन शब्दों को ले-ले

         और उन्हें एक पुस्तक में स्थायी रूप से लिख दे कि लोग उन्हें पढ़ सकें।

     24 अन्यथा, मेरी इच्छा है कि कोई छेनी से मेरे शब्दों को एक चट्टान पर खोद दे

         कि वे हमेशा के लिए बने रहें।

     25 परन्तु मुझे पता है कि जो अदालत में मेरी निन्दा करता है वह जीवित है,

         और वह किसी दिन यहाँ पृथ्‍वी पर खड़ा होगा और अंतिम निर्णय लेगा कि मैं दण्ड होने के योग्य हूँ या नहीं।

     26 बीमारियों ने मेरे शरीर को नष्ट कर दिया है, परन्तु

         मैं अब भी, मेरे शरीर में परमेश्वर को देखूँगा।

     27 मैं स्वयं उसे देखूँगा;

         मैं उसे अपनी स्वयं की आँखों से देखूँगा!

         मेरी भावनाएँ मुझ पर प्रबल हो जाती हैं जब मैं इसके विषय में सोचता हूँ!

     28 यदि तुम तीन पुरुष कहो, ‘इस तरह हम उसे पीड़ित करेंगे!’

         और तुम कहो, ‘इसने अपनी परेशानियाँ स्वयं उत्पन्न की हैं,’

     29 तो तुमको डरना चाहिए कि परमेश्वर तुम्हें दण्ड देंगे;

     वह तुम्हारे जैसे लोगों को दण्ड देते हैं जिनसे वह क्रोधित हैं;

         और जब ऐसा होगा, तब तुम जान लोगे कि कोई है जो लोगों का न्याय करता है।”

Chapter 20

1 तब सोपर ने फिर से उत्तर दिया:

     2 “तू ने जो कहा है उसके विषय में मैं बहुत परेशान हूँ,

         इसलिए मैं शीघ्र ही उत्तर देना चाहता हूँ।

     3 इन बातों को कहकर तू ने मेरा अपमान किया है,

         परन्तु कुछ ऐसा है जिसकी मैं व्याख्या नहीं कर सकता, वह तुझे उत्तर देने में मेरी अगुवाई करता है।

     4 क्या तू नहीं जानता कि बहुत पहले,

         जब से परमेश्वर ने पृथ्‍वी पर लोगों को रखा,

     5 तब से तेरे जैसे दुष्ट लोग लम्बे समय तक सुख से नहीं रह पाए,

         और जो लोग परमेश्वर का सम्मान करने से इन्कार करते हैं वे केवल एक पल के लिए सुख पाते हैं?

     6 हालाँकि उनका सम्मान आकाश तक पहुँचता है,

         और उनकी प्रसिद्धि बादलों जितनी ऊँची हो जाती है,

     7 वे अपने मल के समान सदा के लिए लोप हो जाएँगे,

         और जो उन्हें जानते थे वे पूछेंगे, ‘वे कहाँ चले गए?’

     8 वे एक स्वप्न के समान चले जाएँगे,

         और वे अब अस्तित्व में नहीं होंगे।

     वे रात में लोगों द्वारा देखे जाने वाले स्वप्नों के समान लोप हो जाएँगे।

     9 वे लोग जो अभी उन दुष्ट लोगों को देखते हैं उन्हें फिर कभी नहीं देख पाएँगे;

         यहाँ तक कि जो लोग उनके साथ रहते थे वे अब उन्हें नहीं देख पाएँगे।

     10 उनकी संतान को उन मूल्यवान वस्तुओं को वापस करने के लिए विवश होना होगा जिन्हें उन्होंने गरीब लोगों से चुरा लिया था।

     11 दुष्टों के शरीर एक समय युवा और बलवन्त थे,

         परन्तु वे मर जाएँगे और भूमि में दफन होंगे।

     12 यद्दपि दुष्टता के कार्य करना उनके मुँह में मीठे भोजन के समान था

         जिसे वे चखते रहना चाहते थे,

     13 और यद्दपि उन्होंने उन कार्यों को करना बन्द नहीं करना चाहा,

     14 वे बुरे कार्य किसी दिन विष के समान,

         या साँपों के विष के समान बन जाएँगे जिसे वे निगलते हैं।

     15 दुष्ट लोग स्वयं के लिए धन संग्रह करते हैं, परन्तु वे इसे सदा के लिए नहीं रख पाते हैं,

         जैसे लोग उस भोजन को नहीं रख पाते हैं जिसे वे उल्टी कर देते हैं।

     परमेश्वर उनकी सम्पत्ति उनसे ले लेते हैं।

     16 बुरे कार्य करना साँप के विष को निगलने जैसा है;

         बुराई करना दुष्टों को ऐसे मार डालेगा जैसे एक विषैले साँप का काटना लोगों को मार डालता है।

     17 परमेश्वर की भरपूर आशीषों को देखने के लिए दुष्ट जीवित नहीं रहेगा,

         जो बहने वाली धारा के समान हैं।

     18 उन्हें उन वस्तुओं को वापस देने के लिए विवश किया जाएगा जिन्हें उन्होंने गरीबों से चुरा ली थीं;

         वे उन वस्तुओं का सुख भोगते रहने में सक्षम नहीं होंगे।

     जो वे अपने व्यापार से प्राप्त करते हैं वे उसके कारण प्रसन्न नहीं रहेंगे

     19 क्योंकि उन्होंने गरीब लोगों पर अत्याचार किया और उनकी सहायता करने से इन्कार कर दिया,

         और धोखा दे कर उन्होंने अन्य लोगों के घरों को ले लिया।

     20 वे सदा लालची थे और कभी संतुष्ट नहीं थे।

         इसलिए जब उन्होंने खाया, तो उन्होंने इतना अधिक खा लिया कि उन्होंने कुछ भी नहीं बचाया जिसका उन्होंने सुख भोगा था।

     21 जब उन्होंने अपना भोजन खाना समाप्त किया, तो वहाँ कुछ भी नहीं बचा था क्योंकि उन्होंने लालच से इसे पूरा खा लिया था;

         परन्तु अब उनकी समृद्धि समाप्त हो जाएगी।

     22 जबकि वे अभी भी बहुत धनवान हैं,

         वे आकस्मिक परेशानी का सामना करेंगे।

         वे दुर्दशा के मारे होंगे और कुचल दिए जाएँगे।

     23 जब दुष्ट लोग अपने पेट भर रहे हैं,

         परमेश्वर दिखाएँगे कि वह उनसे बहुत क्रोधित हैं, और वह उन्हें दण्ड देंगे;

         वह भूमि पर गिरने वाली वर्षा के समान उन पर कष्ट डालेंगे।

     24 वे उन लोगों से बचने का प्रयास करेंगे जो उन पर लोहे के हथियारों से आक्रमण करेंगे,

         परन्तु पीतल की नोक वाले तीर उन्हें छेद डालेंगे।

     25 वे तीर पूरी तरह से उनके शरीर से पार हो जाएँगे और उनकी पीठ से बाहर निकल जाएँगे;

         तीर के चमकदार सिरों से लहू टपक रहा होगा,

         और वे दुष्ट लोग भयभीत हो जाएँगे।

     26 उनकी सब बहुमूल्य सम्पत्तियाँ नष्ट हो जाएँगी;

         मनुष्यों द्वारा नहीं, परमेश्वर द्वारा लगाई गई आग उन्हें जला देगी

         और उन वस्तुओं को नष्ट कर देगी जो उनके तम्बुओं में छोड़ी गई हैं।

     27 स्वर्ग के स्वर्गदूत उन पापों को प्रकट करेंगे जो उन दुष्ट लोगों ने किए हैं,

         और पृथ्‍वी पर लोग खड़े होकर उनके विरुद्ध गवाही देंगे।

     28 जिस दिन परमेश्वर लोगों को दण्ड देंगे,

         दुष्ट लोगों के घरों की सारी सम्पत्तियाँ ऐसे दूर की जाएँगी, जैसे एक बाढ़ आ गई थी।

     29 तेरे जैसे दुष्ट लोगों के साथ यही होगा;

         परमेश्वर ने उनके लिए यही आदेश दिया है।”

Chapter 21

1 तब अय्यूब ने इस तरह से उत्तर दिया:

     2 “मैं जो कहता हूँ, उसे तुम सब सुनो;

         यही एकमात्र कार्य है जो तुम कर सकते हो जो मुझे विश्राम देगा।

     3 मेरे साथ धीरज रखो, और मुझे बोलने की अनुमति दो।

         तब, मेरा बोलना समाप्त करने के बाद, तुम मेरा उपहास करते रहना।

     4 यह निश्चय ही मनुष्य नहीं जिनसे मैं शिकायत कर रहा हूँ, परन्तु परमेश्वर हैं!

         और निश्चय ही मेरे लिए उत्सुक होना सही है!

     5 मुझे देखो! क्या जो तुम देखते हो वह तुमको अचम्भित नहीं करता है

         और तुम्हारे हाथों को तुम्हारे मुँह पर नहीं रखवाता और कुछ और नहीं कहलवाता?

     6 मेरे साथ जो हुआ है जब मैं उसके विषय में सोचता हूँ,

         तो मैं डर जाता हूँ और मेरा पूरा शरीर थरथराता है।

     7 परन्तु मुझे यह पूछने की अनुमति दो: ‘दुष्ट लोग क्यों जीते रहते हैं,

         और समृद्ध हो जाते हैं, और तब तक मरते नहीं हैं जब तक कि बहुत वृद्ध न हो जाएँ?’

     8 वे अपने बच्चों को अपने चारों ओर देखते हैं,

         और वे उन्हें बड़ा होते हुए और उनके स्वयं के घरों में रहना आरम्भ करते हुए देखते हैं।

     9 दुष्ट लोग बिना डर के अपने स्वयं के घरों में रहते हैं,

         और परमेश्वर उन्हें दण्ड नहीं देते हैं।

     10 उनके बैल हमेशा गायों के साथ सफलतापूर्वक सम्भोग करते हैं,

         और गायें हमेशा बछड़ों को जन्म देती हैं और कभी भी उनका गर्भपात नहीं होता है।

     11 दुष्ट लोग अपने छोटे बच्चों को खेलने के लिए बाहर भेजते हैं,

         और बच्चे एक चारागाह में भेड़ के बच्चों के समान सहर्ष चारों ओर कूदते हैं।

     12 बच्चे ढफ और वीणा की आवाज से गाते हैं,

         और वे बाँसुरी की आवाज सुन कर प्रसन्न होते हैं।

     13 दुष्ट लोग जब तक जीवित हैं वे हर समय अच्छी वस्तुएँ रखने का आनन्द लेते हैं,

         और वे चुप चाप मर जाते हैं और मरे हुओं के स्थान में चले जाते हैं।

     14 जिस समय वे जीवित हैं, वे परमेश्वर से कहते हैं, ‘हमें अकेला छोड़ दीजिए;

         हमें इस बात पर चिन्ता नहीं है कि आप हमसे कैसे अपने जीवन जीने की इच्छा रखते हैं!

     15 आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्यों सोचते हैं कि हमें आपकी सेवा करनी चाहिए?

         यदि हम आप से प्रार्थना करते हैं तो हमें क्या लाभ होता है?’

     16 दुष्ट लोग सोचते हैं कि उन्होंने जो किया है उसके कारण वे समृद्ध हो गए हैं,

         परन्तु मुझे उनकी सोच से कोई प्रयोजन नहीं है।

     17 ऐसा कितनी बार होता है कि दुष्ट लोग,

         विपत्तियों का सामना किए बिना मर जाते हैं?

         क्या परमेश्वर उन्हें कभी दण्ड देते हैं क्योंकि वह उनसे क्रोधित हैं?

     18 वह उन्हें ऐसे दूर उड़ा नहीं देते जैसे हवा पुआल को दूर उड़ा देती है;

         वे कभी भी बवण्डर द्वारा उठाए नहीं गए हैं।

     19 तुम कहते हो, ‘जब लोगों ने पाप किए हैं,

         तो परमेश्वर प्रतीक्षा करते हैं और उन पापों के कारण उनके बच्चों को दण्ड देते हैं;’

     मैं कहता हूँ कि परमेश्वर उन लोगों को दण्ड दें जो पाप करते हैं, न कि उनके बच्चों को,

         जिससे कि पापियों को पता चले कि यह उनके अपने पापों के कारण है कि उन्हें दण्ड दिया जा रहा है।

     20 मुझे आशा है कि दुष्ट लोग परमेश्वर द्वारा नष्ट किए जाने का अनुभव पाने के लिए जीवित रहेंगे,

         सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन्हें दण्ड दे रहे हैं वे इसका अनुभव करें।

     21 के मरने के बाद दुष्ट लोग,

         अपने जीवित परिवारों के लिए बिलकुल भी चिन्तित नहीं होते हैं।

     22 क्योंकि परमेश्वर सबका न्याय करते हैं, यहाँ तक कि उनका भी जो लोग स्वर्ग में हैं,

         कौन उसे कुछ भी सिखा सकता है?

     23 कुछ लोग तब मर जाते हैं जब वे बहुत स्वस्थ होते हैं,

         जिस समय वे शान्ति में हैं और किसी भी वस्तु से भयभीत नहीं हैं।

     24 उनके शरीर मोटे हैं;

         उनकी हड्डियाँ बलवन्त हैं।

     25 अन्य लोग बहुत दुखी होने के कारण मर जाते हैं;

         उन्होंने कभी उनके साथ हो रही बातों को अच्छी अनुभव नहीं किया।

     26 वे मर जाते हैं और दफन किए जाते हैं,

         और कीड़े उनके शरीर को ढाँप लेते हैं।

     हर कोई मर जाता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि मरना हमेशा दुष्ट होने की दण्ड नहीं है।

     27 सुनो, मुझे पता है कि तुम तीनों क्या सोच रहे हो,

         और मैं उन बुरे कार्यों को जानता हूँ जिन्हें तुम मेरे साथ करने की योजना बनाते हो।

     28 तुम कहते हो, ‘उन तम्बुओं के साथ क्या हुआ जिसमें दुष्ट लोग रह रहे थे?

         दुष्ट शासकों के घर नष्ट हो गए हैं!’

     29 क्या तुमने कभी उन लोगों से पूछा नहीं जो बहुत यात्रा करते हैं?

         क्या तुम उनके द्वारा देखी गई चीजों के विषय में उनकी चर्चा पर विश्वास नहीं करते हो,

     30 कि दुष्ट लोग आमतौर पर उस समय पीड़ित नहीं होते जब बड़ी विपत्तियाँ आती हैं;

         कि जब परमेश्वर लोगों को दण्ड देते हैं, तब क्या कोई दुष्टों को बचाता है? वे दुष्ट लोग ही हैं जिन्हें कोई और बचाता है जब परमेश्वर लोगों को दण्ड देते हैं?

     31 ऐसा कोई भी नहीं है जो दुष्ट लोगों पर आरोप लगाता है,

         और ऐसा कोई भी नहीं है जो उन्हें उन सब बुरे कार्यों के लिए प्रतिफल देता है, जो उन्होंने किए हैं।

     32 जब दुष्ट लोगों के शव उनकी कब्रों में ले जाए जाते हैं,

         तब लोगों को उन कब्रों की रक्षा के लिए रखा जाता है।

     33 बड़ी संख्या में लोग कब्रिस्तान में जाते हैं;

         कुछ जुलूस के आगे जाते हैं और कुछ पीछे आते हैं,

         और दुष्ट लोग जो मर चुके हैं निश्चय ही अच्छा महसूस करते हैं जब लोग उनकी कब्रों पर मिट्टी डालते हैं।

     34 इसलिए मूर्खता की बात करके तुम कैसे मुझे सांत्वना दे सकते हो?

         जो भी उत्तर तुम मुझे देते हो वह झूठ से भरा है!”

Chapter 22

1 तब एलीपज ने, यह कहकर उत्तर दिया:

     2 “कोई भी परमेश्वर के लिए उपयोगी नहीं हो सकता है!

         बुद्धिमान लोग स्वयं के लिए उपयोगी हो सकते हैं, परन्तु परमेश्वर के लिए नहीं।

     3 यदि तू धर्मी था, तो वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करेगा, है ना?

         यदि तू ने एक सिद्ध जीवन जीया है, तो वह उसकी सहायता नहीं करेगा, है ना?

     4 क्या तू परमेश्वर का सम्मान करता है, और क्या इसी कारण से वह तुझको दण्ड देते हैं?

         क्या यही कारण है कि वह तुझ पर मुकद्दमा चलाते हैं?

     5 नहीं, यह निश्चय ही इस कारण होना चाहिए कि तू अत्याधिक दुष्ट है।

         यह इस कारण है कि कोई भी तेरे द्वारा किए गए बुरे कार्यों की गिनती नहीं कर सकता!

     6 तू ने दूसरों को पैसा दिया होगा और तू ने उन्हें अनुचित रूप से विवश किया होगा कि वे पैसा लौटाने के लिए तेरे पास बन्धक रखें;

         तू ने उनके सभी कपड़े ले लिए होंगे और उनके पास पहनने के लिए कुछ भी नहीं बचा होगा।

     7 तू ने उन लोगों को पानी नहीं दिया होगा जो प्यासे थे,

         और तू ने उन लोगों को भोजन देने से इन्कार कर दिया होगा जो भूखे थे।

     8 क्योंकि तू बहुत शक्तिशाली था, तू ने लोगों की भूमि पर अधिकार कर लिया होगा,

         और फिर तू ने उस भूमि पर रहना आरम्भ कर दिया, भले ही दूसरों ने तुझे बहुत सम्मानित किया।

     9 जब विधवाएँ तेरे पास सहायता के लिए आईं, तो तू ने उन्हें कुछ भी दिए बिना भेज दिया होगा,

         और ने अनाथों पर अत्याचार किया होगा।

     10 क्योंकि तू ने उन सब कार्यों को किया है, अब वहाँ फन्दे हैं जो तुझे फँसा लेंगे;

         अब ऐसी बातें दिखाई देती हैं जो तुझे डराती हैं और तुझे थरथरा देती हैं।

     11 ऐसा लगता है कि मानों बहुत अंधेरा हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप तू कुछ भी नहीं देख सकता था,

         और ऐसा लगता है कि मानों एक बाढ़ ने तुझे डुबा दिया है।

     12 परन्तु हे अय्यूब, इस पर विचार कर: परमेश्वर सबसे ऊँचे स्वर्ग में रहते हैं।

         वहाँ से वह नीचे सबसे ऊँचे सितारों पर दृष्टि करते हैं।

     13 इसलिए तू क्यों कहता है, ‘जो हम कर रहे हैं उसके विषय में परमेश्वर कुछ भी नहीं जानते’?

         और तू क्यों कहता है, ‘काले बादल उन्हें हमें देखने से रोकते हैं, इसलिए वह हमारा न्याय नहीं कर सकते’?

     14 क्या तुझे लगता है कि जब वह आकाश को ढाँपने वाले गुम्मट पर चलता है,

         जहाँ उसके चारों ओर घने बादल हैं, वह नहीं देख सकता कि हम क्या करते हैं?’

     15 हे अय्यूब, क्या तू अपने जीवन का पुराना मार्ग ही पकड़े रहेगा?

         जैसा बुरे लोगों ने कई वर्षों तक किया है?

     16 जिस समय वे युवा ही थे, वे अचानक मर गए;

         वे ऐसे लोप हो गए जैसे बाढ़ आने पर सब कुछ लोप हो जाता है।

     17 वे परमेश्वर से कहते रहे, ‘हमें अकेला छोड़ दीजिए,’ हमें अकेले रहने की अनुमति दीजिए,’

         और उन्होंने अपमानजनक रूप से भी कहा, ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमें हानि पहुँचाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते!’

     18 फिर भी यह परमेश्वर थे जिन्होंने उनके घरों को अच्छी वस्तुओं से भर दिया;

         इसलिए मैं दुष्ट की बनाई योजना का पालन करने के लिए बिलकुल सहमत नहीं हो सकता।

     19 जब धर्मी लोग देखते हैं कि परमेश्वर दुष्ट लोगों को दण्ड देते हैं, तब वे आनन्दित होते हैं,

         और वे उन दुष्ट लोगों पर हँसते हैं।

     20 वे कहते हैं, ‘अब हमारे शत्रुओं को नष्ट कर दिया गया है,

         और उनकी सम्पत्ति में से कुछ भी बचा तो आग ने जला दिया है।’

     21 इसलिए, हे अय्यूब, परमेश्वर से मेल-मिलाप कर और उनके साथ शान्ति बना;

         यदि तू ऐसा करता है, तो तेरे साथ अच्छी बातें घटित होंगी।

     22 उन्हें तुझे सिखाने की अनुमति दे,

         और उनके शब्दों को अपने मन में डाल लो।

     23 यदि तू स्वयं को नम्र बनाए और परमेश्वर के पास लौट आए, तो वह तुझे पुनःस्थापित करेंगे;

         यदि तू अपने घर में जो भी बुरे कार्य कर रहा था उनको करना बन्द कर दे,

     24 और यदि तू अपना सोना फेंक दे,

         ओपीर देश की शुष्क धारा के तटों का बढ़िया सोना,

     25 तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर तेरे लिए उतने ही मूल्यवान होंगे जितना तेरा सोना और तेरी चाँदी थी।

     26 तब तू परमेश्वर के कारण आनन्दित रहेगा,

         और तू विश्वास के साथ उनके निकट जाने में सक्षम होगा।

     27 तू उनसे प्रार्थना करेगा, और वह वही करेंगे जो तू ने उनसे करने का अनुरोध किया है;

         तू उन कार्यों को करेगा जिसकी तू ने उनसे प्रतिज्ञा की है कि तू करेगा।

     28 तू जो कुछ भी करने का निर्णय लेता है तो वह सफल होगा;

         यह ऐसा होगा जैसे मानों सड़क पर तेरे सामने प्रकाश चमक रहा है।

     29 परमेश्वर उन लोगों को नम्र करते हैं जो घमण्डी हैं,

         परन्तु वह उन लोगों की रक्षा करते हैं जो निराश हैं।

     30 परमेश्वर उन लोगों को बचाते हैं जो निर्दोष हैं;

         यदि तू उचित कार्य करना आरम्भ कर दे तो तुझे बचाया जाएगा।”

Chapter 23

1 तब अय्यूब ने उत्तर दिया और कहा:

     2 “आज मैं फिर से परमेश्वर से कड़वाहट भरी शिकायत कर रहा हूँ;

         मैं कराहता रहता हूँ, परन्तु मुझे और भी भुगतना पड़ता है।

     3 मेरी इच्छा है कि मुझे पता हो कि मैं उनसे कहाँ मिल सकता हूँ

         कि मैं उस स्थान पर जा सकूँ जहाँ वह रहते हैं।

     4 यदि मैं ऐसा कर सकता, तो मैं उन्हें बताऊँगा कि मुझे क्यों पता है कि मैं निर्दोष हूँ;

         मैं उन्हें इसके लिए कई कारण बताऊँगा।

     5 तब मैं खोज करूँगा और समझ जाऊँगा कि वह मुझे क्या उत्तर देंगे।

     6 क्या वह मेरे साथ वाद-विवाद करने के लिए अपनी महान शक्ति का उपयोग करेंगे?

         नहीं, वह ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनेंगे।

     7 मैं एक सच्चा मनुष्य हूँ, इसलिए मैं उनके साथ निष्पक्ष रूप से चर्चा करने में सक्षम होऊँगा,

         और फिर वह घोषणा करेंगे कि मैं निर्दोष हूँ, और वह मुझे फिर से परेशान नहीं करेंगे।

     8 मैं पूर्व में गया हूँ, और वह वहाँ नहीं हैं;

         मैं पश्चिम में गया हूँ, परन्तु वह मुझे वहाँ नहीं मिले हैं।

     9 मैं उत्तर में गया हूँ और मैं दक्षिण में गया हूँ,

         परन्तु मैंने उन्हें कहीं भी नहीं देखा है क्योंकि वह स्वयं को मुझसे छिपा लेते हैं।

     10 वह जानते हैं कि मैंने अपना जीवन कैसे जीया है;

         जब उन्होंने मेरा परीक्षण पूरा कर लिया है, तो वह देखेंगे कि मैं सोने के समान शुद्ध हूँ, जिसकी अशुद्धियों को जला दिया गया है।

     11 मैं उस मार्ग पर विश्वासपूर्वक चला हूँ जो उन्होंने मुझे दिखाया;

         मैं उनका आज्ञापालन करने से दूर नहीं हुआ हूँ।

     12 उन्होंने जो आदेश दिया है मैंने सदा उसका पालन किया है;

         मैंने अपने मन में उन शब्दों को छिपा लिया है जो उन्होंने कहे हैं।

     13 वह कभी नहीं बदलते हैं। ऐसा कोई भी नहीं है जो उन्हें वह करने से रोक सकता है जिसकी वे इच्छा करते हैं।

         जो कुछ भी वह करना चाहते हैं, वह करते हैं।

     14 वह उन कार्यों को पूरा करेंगे जिनकी उन्होंने मेरे लिए योजना बनाई है,

         और मुझे निश्चय है कि उन्होंने मेरे लिए कई बातें करने के विषय में सोचा है।

     15 इसलिए जब मैं उनके सामने हूँ तो मैं डरता हूँ;

         जब मैं इस विषय में सोचता हूँ कि वह क्या कर सकते हैं, तो मैं बहुत भयभीत होता हूँ।

     16 सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे बहुत भयभीत कर दिया है।

     17 वह ऐसा है जैसे मेरे सामने घोर अन्धकार है,

         परन्तु अन्धकार नहीं, परमेश्वर ही है जो मुझे नष्ट करते हैं।”

Chapter 24

    

1 “सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक समय क्यों निर्धारित नहीं करते जब वह बुरे लोगों का न्याय करेंगे?

         जो लोग परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं उनको कभी भी नहीं लगता कि वे उन्हें दुष्ट लोगों का न्याय होते देखें।

     2 कुछ दुष्ट लोग अन्य लोगों की भूमि के सीमा चिन्हों को हटा देते हैं; कि उनकी भूमि ले लें,

         वे अन्य लोगों की भेड़ें जब्त कर लेते हैं और उन्हें अपने चारागाहों में डाल देते हैं।

     3 कुछ अनाथों के गधे को छीन लेते हैं,

         और वे विधवाओं के बैल को यह आश्वासन देने के लिए लेते हैं कि वे विधवाएँ वह धन वापस देंगी जो उन्होंने उन विधवाओं को ऋण में दिया था।

     4 कुछ लोग गरीब लोगों को सड़क से दूर फेंक देते हैं,

         और वे गरीब लोगों को विवश करते हैं कि उनसे छिपने के लिए स्थानों की खोज करें।

     5 परिणाम यह है कि गरीब लोगों को रेगिस्तानी मैदान में भोजन की खोज करनी पड़ती है

         जैसे जंगली गधे करते हैं।

     6 गरीब लोग दूसरों के खेतों में बचे हुए अनाज को चुनते हैं,

         और दुष्ट पुरुषों की दाख की बारियों से बचे हुए अँगूर उठाते हैं।

     7 रात में अपने शरीरों को ढाँपने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है,

         उन्हें गर्म रखने के लिए कुछ भी नहीं।

     8 जब पर्वतों पर वर्षा होती है, तो वे बहुत गीले हो जाते हैं,

         इसलिए वे वर्षा से स्वयं को बचाने के लिए चट्टानों के उभारों के नीचे सिमट जाते हैं।

     9 कुछ दुष्ट लोग गरीब, अनाथ दूध पीते बच्चे को उनकी माँ से छीन लेते हैं;

         वे कहते हैं, ‘जब मेरे द्वारा उधार दी गई धनराशि को तुम चुका दोगी तो मैं तुम्हारे दूध पीते बच्चे को वापस कर दूँगा।’

     10 परन्तु गरीब लोग बिना कपड़ों के चारों ओर घूमते हैं;

         जिस समय वे अन्य लोगों के अनाज के गट्ठों को उन स्थानों पर ले जाने के लिए कार्य कर रहे हैं जहाँ उनके अनाज को दाँवनी किया जाता है।

     11 तब वे भूखे होते हैं, उनके लिए जैतून का तेल बनाने के लिए गरीब लोगों को भाड़े पर लेते है;

         वे दाखमधु के लिए अँगूर का रस निकालने के लिए अँगूर कुचलते हैं,

         परन्तु जब वे प्यासे होते हैं तो उन्हें इसमें से कुछ भी पीने को नहीं दिया जाता है।

     12 शहरों में, जो लोग घायल हैं और मर रहे हैं वे सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारते हैं,

         परन्तु परमेश्वर उनकी प्रार्थनाओं को अनसुना करते हैं।

     13 कुछ दुष्ट लोग प्रकाश से बचते हैं क्योंकि वे अन्धकार में बुरे कार्य करते हैं;

         वे प्रकाशमान सड़कों पर नहीं चलते हैं।

     14 हत्यारे रात के समय वस्तुएँ चुरा लेते हैं,

         और फिर वे भोर से पहले उठ जाते हैं कि वे फिर से बाहर जा सकें और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों को मार सकें।

     15 जो लोग व्यभिचार करना चाहते हैं वे शाम के होने की प्रतीक्षा करते हैं;

         वे कहते हैं, ‘मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे देखे,’ इसलिए वे अपने चेहरों को ढाँपे रखते हैं।

     16 यह रात का समय है कि लुटेरों ने वस्तुएँ चुराने के लिए घरों को तोड़ दिया,

         परन्तु दिन के समय वे छिप जाते हैं क्योंकि वे प्रकाश में देख लिए जाने से बचना चाहते हैं।

     17 ये सब लोग रात में अपने बुरे कार्यों को करना चाहते हैं, दिन में नहीं जब प्रकाश होता है,

         क्योंकि वे रात में होने वाली उन बातों से डरते नहीं हैं जो दूसरों को डराती हैं।

     18 परन्तु दुष्ट लोग अति शीघ्र लोप हो जाएँगे,

         और परमेश्वर उस भूमि को श्राप देंगे जो उनके स्वामित्व में थी;

         कोई भी अब उनकी दाख की बारियाँ में कार्य करने के लिए नहीं जाएगा।

     19 जिस प्रकार गर्म हो जाने पर बर्फ पिघल जाती है और वर्षा नहीं होती है,

         जिन्होंने पाप किए हैं वे उस स्थान में जा कर लोप हो जाएँगे जहाँ मृत लोग हैं।

     20 यहाँ तक कि उनकी माताएँ भी उन्हें स्मरण नहीं रखेंगी;

         दुष्ट लोग काट दिए गए पेड़ के समान नष्ट हो जाएँगे,

         और उनके शवों को कीड़े खाएँगे।

     21 दुष्ट लोग उन स्त्रियों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं जो उन बच्चों को जन्म देने में असमर्थ रही हैं जो उनकी देखभाल करने के लिए बड़े हो गए होते;

         दुष्ट लोग कभी भी विधवाओं की सहायता नहीं करते हैं।

     22 परन्तु परमेश्वर, अपनी शक्ति से, सामर्थी लोगों से छुटकारा पाते हैं।

         वह दुष्ट लोगों को मर जाने देते हैं।

     23 परमेश्वर उन्हें यह सोचने की अनुमति देते हैं कि वे सुरक्षित और भयरहित हैं,

         परन्तु वह उन्हें हर समय देख रहे होते हैं।

     24 वे थोड़े समय के लिए समृद्ध हुए,

         और फिर अकस्मात ही वे चले गए हैं;

         परमेश्वर उन्हें अन्य सब लोगों के समान मर जाने देंगे;

         वे अनाज के डंठलों के समान होंगे जिन्हें किसानों ने काट दिया है।

     25 यदि यह सच नहीं है, तो क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो दिखाएगा कि मैं झूठा हूँ

         और मुझे गलत सिद्ध करेगा?”

Chapter 25

1 तब बिल्दद ने भी उत्तर दिया:

     2 “परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं, हर किसी को उनका बहुत सम्मान करना चाहिए;

         वह बिना किसी भ्रम के, स्वर्ग में सब कुछ शान्तिपूर्ण होने देते हैं।

     3 क्या कोई उन स्वर्गदूतों को गिन सकता है जो स्वर्ग में उनकी सेना में हैं?

         क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिस पर उनका प्रकाश चमकता नहीं है?

     4 इसलिए परमेश्वर किसी भी व्यक्ति का धर्मी होना कैसे मान सकते हैं?

         वह किसी मनुष्य को कैसे स्वीकार कर सकते हैं?

     5 इस पर विचार करो: परमेश्वर यह भी नहीं सोचते कि पूरा चँद्रमा चमकदार है,

         और वह आकाश के सितारों को भी उनके योग्य होने के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं।

     6 तो मनुष्यों के विषय में क्या?

         वे कीड़ों के समान महत्वहीन हैं।

         परमेश्वर कीड़े से बढ़कर लोगों के लिए नहीं सोचते हैं।”

Chapter 26

1 अय्यूब ने बिल्दद को उत्तर दिया:

     2 “मैं बहुत दुर्बल और असहाय व्यक्ति हूँ;

         तुम वास्तव में नहीं सोचते कि तुमने मेरी सहायता की है, है ना?

     3 तुम निश्चय ही नहीं सोचते कि तुमने मुझे अच्छी सलाह दी है, है ना? - मैं, जो बिलकुल बुद्धिमान नहीं हूँ।

     4 उन सब बड़ी बातों को कहने में किसने तुम्हारी सहायता की?

         तुमको इस तरह से बोलने के लिए किसने प्रेरित किया?

     5 मृत लोगों की आत्मा भय से थरथराती है,

         जो पृथ्‍वी की गहराई पानी के नीचे हैं

     और हर कोई जो उनके साथ रहता है।

     6 परमेश्वर उन सबके विषय में जानते हैं जो मरे हुओं के स्थान में हैं;

         वहाँ नीचे कुछ भी नहीं है जो परमेश्वर को यह देखने से रोकता है कि वहाँ क्या है।

     7 परमेश्वर आकाश को

     खाली स्थान पर फैलाते हैं,

         और वह पृथ्‍वी को उस विशाल खाली स्थान में रखते हैं, परन्तु यह किसी भी वस्तु पर टिकी हुई नहीं है।

     8 वह घने बादलों को पानी से भरते हैं

         और उस पानी से बादलों को फटने से रोकते हैं।

     9 वह बादलों से चँद्रमा को धुंधला कर देते हैं।

     10 वह प्रकाश को अँधेरे से अलग करते हैं

         और उस स्थान को चिन्हित करने के लिए क्षितिज को रखते हैं जहाँ रात समाप्त होती है और दिन आरम्भ होता है।

     11 जब वह क्रोधित होते हैं, तब ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने आकाश को थामने वाले खम्भों को डाँट दिया है।

         वे चौंक गए हैं, और वे थरथराते हैं।

     12 अपनी शक्ति से उन्होंने समुद्र को शान्त किया;

         अपनी युक्ति से उन्होंने विशाल समुद्री राक्षस राहाब को नष्ट कर दिया।

     13 अपनी साँस से उन्होंने आकाश को उज्ज्वल कर दिया;

         अपने हाथ से उन्होंने समुद्र के बड़े अजगर को मार डाला जब वह उनसे भाग रहा था।

     14 परन्तु ये घटनाएँ उनकी शक्ति की केवल थोड़ी सी मात्रा दिखाती है;

         ऐसा लगता है कि मानों हम केवल उनकी शक्तिशाली आवाज की फुसफुसाहट को सुन रहे थे।

         जब हम गगड़ाहट सुनते हैं, तो हम कहते हैं, ‘वास्तव में कौन समझ सकता है कि उनकी शक्ति कितनी महान है?’”

Chapter 27

1 अय्यूब अपने तीनों मित्रों से बात करता रहा:

     2 “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरे साथ उचित व्यवहार करने से इन्कार कर दिया है।

         उन्होंने मुझे कड़वाहट का बोध करवाया है।

         परन्तु जैसा कि निश्चित रूप से वह जीवित हैं,

     3 मैं यह तब तक कहूँगा जब तक परमेश्वर के आत्मा मुझे साँस लेने में सक्षम बनाते हैं!

     4 मैं झूठ नहीं बोलूँगा!

         मैं किसी को भी धोखा देने के लिए कुछ भी नहीं कहूँगा।

     5 मैं कभी स्वीकार नहीं करूँगा कि तुम तीनों ने जो कुछ कहा है वह सच है;

         जिस दिन मैं मरूँगा उस दिन मैं जोर दे कर कहूँगा कि मैंने ऐसे कार्य नहीं किए हैं जो गलत हैं।

     6 मैं कहूँगा कि मैं निर्दोष हूँ, और मैं कभी भी कुछ अलग नहीं कहूँगा;

         जब तक मैं जीवित हूँ तब तक मेरा अन्त:करण मुझे कभी नहीं धिक्कारेगा।

     7 मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर मेरे शत्रुओं को दण्ड दें जैसे वह सब दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे;

         मैं चाहता हूँ कि वह उन लोगों को दण्ड दें जो मेरा विरोध करते हैं जैसे वह सब अधर्मी लोगों को दण्ड देते हैं।

     8 जब परमेश्वर के लिए अधर्मी लोगों से छुटकारा पाने और उनके लिए मृत्यु लाने का समय आता है,

         तब निश्चय ही कुछ भी अच्छा नहीं है जिसके होने की वे आत्म-विश्वास से आशा कर सकते हैं।

     9 जब वे परेशानियों का सामना करते हैं, तब परमेश्वर उनकी सहायता के लिए उनकी पुकार को नहीं सुनेंगे, क्या वह सुनेंगे?

     10 क्या वे इस विषय में आनन्दित होंगे जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर करते हैं?

         क्या वे उससे निरन्तर प्रार्थना करना आरम्भ कर देंगे?

         निश्चय ही नहीं!

     11 मैं तुम तीनों को परमेश्वर की शक्ति के विषय में कुछ सिखाऊँगा;

         मैं तुम पर प्रकट करूँगा कि वह क्या सोच रहे है।

     12 तुम तीनों ने अपने लिए उन शक्तिशाली कार्यों को देखा है जो परमेश्वर ने किए हैं;

         इसलिए मुझे समझ में नहीं आता कि तुम मुझसे इतनी व्यर्थ की बातें क्यों कर रहे हो।

     13 मैं तुम्हें बताऊँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर दुष्ट लोगों के साथ क्या करते हैं,

         वह उन लोगों के साथ क्या करते हैं जो दूसरों से बुरा व्यवहार करते हैं।

     14 यहाँ तक कि यदि उनके कई बच्चे हों, तो भी वे बच्चे युद्ध में मर जाएँगे,

         या वे इस कारण मर जाएँगे कि उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है।

     15 उनके मरने के बाद उनके बच्चे जो अभी भी जीवित हैं वे बीमारियों से नाश हो जाएँगे,

         और जिन पत्नियों को वे पीछे छोड़ जाते हैं वे उनके लिए शोक भी नहीं करेंगी।

     16 कभी-कभी दुष्ट लोग एक बड़ी मात्रा में चाँदी

         और कुम्हार के मिट्टी के ढेर के समान वस्त्रों का ढेर एकत्र कर लेते हैं,

     17 परन्तु वे दुष्ट लोग मर जाएँगे, और फिर धर्मी लोग उन वस्त्रों को पहनेंगे,

         और निष्ठावान लोग उनकी चाँदी को प्राप्त करेंगे और इसे अपने बीच में विभाजित करेंगे।

     18 जो घर वे बनाते हैं वे मकड़ी के जाल के समान होते हैं;

         वे झोपड़ियों के समान हैं जिसमें लोगों के खेतों की रक्षा करते समय पहरेदार रखते हैं।

     19 दुष्ट लोग जब रात में लेटते हैं तो धनवान होते हैं,

         परन्तु जब वे सुबह जागते हैं, तो पाते हैं कि उनका पैसा लोप हो गया है।

     20 जो लोग उन्हें डराते हैं वे एक ऐसी बाढ़ के समान उनकी ओर आते हैं जिसकी वे अपेक्षा नहीं करते हैं;

         रात के समय एक बवण्डर उन्हें उड़ा ले जाता है।

     21 ऐसा लगता है कि मानों पूर्व की हवा ने उन्हें उठा लिया था और उन्हें अपने घरों से दूर ले गई थी,

         और वे सदा के लिए लोप हो जाते हैं।

     22 वह हवा उन पर दया किए बिना वार करती है

         जिस समय वे उसकी शक्ति से बचने के प्रयास में भाग रहे हैं।

     23 वह हवा किसी ऐसे व्यक्ति के समान है जो उनका उपहास करने के लिए अपने हाथों से तालियाँ बजा रहा है,

         उन पर चीख-चिल्ला रहा है और उन्हें भागने के लिए विवश कर रहा है।”

Chapter 28

    

1 “यह सच है कि ऐसे स्थान हैं जहाँ लोग चाँदी खोजने के लिए खुदाई करते हैं,

         और ऐसे स्थान हैं जहाँ लोग उस सोने को शुद्ध करते हैं जिसे उन्होंने खोदा है।

     2 लोग भूमि से कच्चा लोहा खोद कर निकालते हैं,

         और वे तांबा भी पिघलाते हैं।

     3 जिस समय पुरुष खानों के भीतर कच्चे लोहे की खोज के लिए

         भूमि के भीतर बहुत नीचे कार्य करते हैं तो वे दीपक का उपयोग करते हैं

         जहाँ बहुत अन्धकार है।

     4 वे उन स्थानों पर गड्ढे खोदते हैं जो लोगों के रहने के स्थान से बहुत दूर हैं,

         जहाँ यात्री नहीं जाते हैं।

     वे अन्य लोगों से बहुत दूर कार्य करते हैं,

         वे रस्सी पर आगे और आगे झूलते हुए खानों के गड्ढों में आते हैं।

     5 भोजन भूमि की सतह पर उगता है,

         परन्तु भूमि के नीचे, जहाँ कोई भोजन नहीं है, चट्टानों को तोड़ने के लिए खदान कर्मी आग लगाते हैं।

     6 भूमि के नीचे से खोदे गए पत्थरों में नीलमणि होते हैं,

         और धूल में सोने के कण होते हैं।

     7 कुछ पक्षियों की बहुत अच्छी आँखें होती हैं,

     परन्तु यहाँ तक कि बाज को नहीं पता कि खानें कहाँ हैं,

         और गिद्ध ने उन स्थानों को नहीं देखा है।

     8 शेर या अन्य घमण्डी जंगली जानवर कभी उन स्थानों पर नहीं गए हैं।

     9 खदान कर्मी बहुत कठोर चट्टान को खोदते हैं;

         ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने कच्चा लोहा पाने के लिए पर्वतों को उलट दिया है।

     10 वे चट्टानों के बीच से सुरंगों को बनाते हैं,

         और उन्हें बहुमूल्य वस्तुएँ मिलती हैं।

     11 वे छोटी नदियों को बहने से रोकने के लिए पानी को बाँधते हैं,

         और वे उन वस्तुओं को प्रकाश में लाते हैं जो भूमि में और नदियों में छिपी हुई हैं।

     12 परन्तु ज्ञान: लोग इसे कहाँ पा सकते हैं?

         हम कहाँ जा कर खोजें कि बातों को वास्तव में कैसे समझें?

     13 मनुष्य नहीं जानते कि ज्ञान का वास्तव में क्या मूल्य है;

         कोई भी इसे यहाँ इस पृथ्‍वी पर नहीं ढूँढ़ सकता, जहाँ वे रह रहे हैं।

     14 ऐसा लगता है कि मानों पृथ्‍वी के नीचे जो पानी है और समुद्र में जो पानी है, उसने कहा,

         ‘मेरे पास यह नहीं है!’

     15 लोग ज्ञान को

         चाँदी या सोने से नहीं मोल ले सकते हैं।

     16 ज्ञान ओपीर देश के उत्तम सोने की तुलना में बहुत अधिक बहुमूल्य है,

         बहुत मूल्यवान पत्थरों से कहीं अधिक कीमती।

     17 यह सोने या सुन्दर बिल्लौर से कहीं अधिक मूल्यवान है;

         ज्ञान अति उत्तम गहनों से अधिक महँगा है, और यह शुद्ध सोने से बने फूलदान से अधिक मूल्यवान है।

     18 ज्ञान मूँगे या स्फटिक बिल्लौर से कहीं अधिक मूल्यवान है;

         ज्ञान की कीमत माणिकों की कीमत से कहीं अधिक है।

     19 इथियोपिया के पुखराज और शुद्ध सोने की कीमतें

         ज्ञान के मूल्य से कम हैं।

     20 अतः ज्ञान कहाँ से आता है?

         हम कहाँ जा कर खोज सकते हैं कि बातों को वास्तव में कैसे समझें?

     21 कोई जीवित मनुष्य इसे देख नहीं सकता है;

         और पक्षी आकाश में रहते हुए इसे नहीं देख सकते हैं।

     22 ऐसा लगता है कि मानों लोग मरने के बाद जहाँ जाते हैं, उन स्थानों ने कहा है,

         ‘हमने केवल इस विषय में अफवाहें सुनी हैं कि ज्ञान कहाँ से प्राप्त करें।’

     23 परमेश्वर ही एकमात्र हैं जो जानते है कि ज्ञान कैसे पाया जाए;

         वह जानते हैं कि यह कहाँ है

     24 क्योंकि वह पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों में भी चीजें देख सकते हैं;

         वह आकाश के नीचे की हर वस्तु को देख सकते हैं।

     25 उन्होंने निर्णय किया है कि हवाओं को कितनी प्रचण्डता से बहना चाहिए,

         और बादलों में कितनी वर्षा होनी चाहिए।

     26 उन्होंने निर्णय किया है कि वर्षा कहाँ गिरनी चाहिए,

         और भूमि पर गिरने के लिए बिजली को बादलों से कौन सा मार्ग लेना चाहिए।

     27 उस समय उसने ज्ञान को देखा और निर्णय किया कि यह बहुत मूल्यवान है।

         उन्होंने इसकी जाँच की और इसे अनुमति दे दी।

     28 और फिर उसने मनुष्यों से कहा, ‘सुनो! यदि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो, तो तुम बुद्धिमान बनने में सक्षम होंगे;

         वास्तव में सब कुछ समझने के लिए, तुमको पहले बुराई करने से दूर हो जाना चाहिए।’”

Chapter 29

1 अय्यूब ने फिर से बात की और यह कहा:

     2 “मेरी इच्छा है कि मैं वैसा हो सकूँ जैसा मैं पहले था

         उन वर्षों के जैसा जब परमेश्वर ने मेरा ध्यान रखा था।

     3 उन वर्षों में, ऐसा लगता था कि मानों परमेश्वर का दीपक मुझ पर चमका था

         और अन्धकार में चलते समय मुझे प्रकाश दिया।

     4 उस समय मैं युवा और बलवन्त था,

         और क्योंकि परमेश्वर मेरे मित्र थे, इसलिए जहाँ मैं रहता था वहाँ उन्होंने मेरी सुरक्षा की।

     5 सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन वर्षों में मेरे साथ थे

         जब मेरे सब बच्चे मेरे आस-पास थे।

     6 मेरे पशुओं ने मुझे बहुत दूध दिया,

         और उस चट्टान से तेल की धाराएँ बहती थीं जहाँ मेरे सेवकों ने जैतूनों को कुचला था।

     7 जब भी मैं उस स्थान पर जाता था जहाँ शहर के फाटक पर प्राचीन एकत्र होते थे,

         मैं उनके साथ बैठता था,

     8 और जब युवा पुरुष ने मुझे देखते, तो वे सम्मानपूर्वक इधर उधर हो जाते थे,

         और वृद्ध व्यक्ति भी सम्मान से खड़े हो जाते थे।

     9 लोगों के अगुवे भी बात करना बन्द कर देते थे,

     10 और यहाँ तक कि सबसे महत्वपूर्ण पुरुष भी चुप हो जाते थे,

         और मेरी बातों के लिए बात करना बन्द कर देते थे।

     11 जब उन सब ने वह सुना जो मैंने उन्हें बताया,

         तो उन्होंने मेरे विषय में अच्छी बातें कही।

     जब उन्होंने मुझे देखा, तो उन्होंने सदा मेरी प्रशंसा की

     12 क्योंकि जो गरीब थे उनकी मैंने सहायता की थी जब वे सहायता के लिए पुकारते थे,

         और क्योंकि मैंने उन अनाथों की सहायता की जिनके पास सहायता करने के लिए कोई नहीं था।

     13 जो पीड़ित थे और मरने वाले थे, उन्होंने मेरी प्रशंसा की,

         और मैंने विधवाओं को आनन्द से गाने वाली बना दिया, क्योंकि मैंने उनकी सहायता की थी।

     14 मैंने हमेशा न्यायपूर्वक कार्य किया;

         मेरे कार्य एक वस्त्र के समान थे जो मैंने पहना था और एक पगड़ी के समान थे जो मेरे सिर के चारों ओर लपेटी गई थी।

     15 ऐसा लगता था कि मानों मैं स्वयं अंधे लोगों के लिए देखा करता था

         और लंगड़े लोगों के लिए चला करता था।

     16 मैं गरीब लोगों के लिए पिता के समान था,

         और अदालतों में मैंने उन लोगों का बचाव किया जो मेरे लिए अपरिचित थे।

     17 मैंने दुष्ट लोगों का दूसरों पर अत्याचार करना बन्द करवा दिया; यह ऐसा था जैसे कि कोई व्यक्ति जंगली जानवरों के दाँत तोड़ देता है

         और उन्हें अपने शिकार को अपने दाँतों से छोड़ने के लिए विवश करता है।

     18 उस समय मैंने सोचा, ‘निश्चय ही जब तक कि मैं बहुत बूढ़ा न होऊँ मैं शान्ति में रहूँगा,

         और मैं अपने परिवार के साथ घर पर मर जाऊँगा।

     19 मैं एक पेड़ के समान हूँ जिसकी जड़ें पानी तक पहुँचती हैं

         और जिनकी शाखाएँ हर रात ओस के साथ गीली हो जाती हैं।

     20 लोग सदा मेरा सम्मान करते हैं,

         और मैं सदा एक नए धनुष के समान था।’

     21 जब मैं बात करता था तब लोग यह सुनने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे कि मैं क्या कहूँगा;

         वे तब तक चुप रहते थे, जब तक कि मैं उन्हें यह परामर्श नहीं देता कि उन्हें क्या करना चाहिए।

     22 मेरा बोलना समाप्त करने के बाद, वे और कुछ नहीं कहते थे;

         ऐसा लगता था कि मानों मेरे शब्द वर्षा की बूँदों जैसे उनके कानों पर गिरते थे।

     23 उन्होंने मेरे बोलने की प्रतीक्षा ऐसे की जैसे वे वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं;

         जो मैंने कहा उन्हें वह पसन्द आता था जैसे किसान शुष्क मौसम से पहले वसन्त की अंतिम वर्षा की सराहना करते हैं।

     24 जब वे दुखी होते थे, तो मैं उन्हें उत्साहित करने के लिए उनकी ओर मुस्कुराया करता था;

         वे मेरे हँसमुख चेहरे को देख कर उत्साहित होते थे।

     25 मैं उनका अगुवा था, और मैं निर्णय लेता था कि कौन से कार्य करना उनके लिए अच्छा होगा;

         मैं उनके बीच एक ऐसे राजा के समान था जो अपने सैनिकों के बीच में है;

         मैं किसी ऐसे व्यक्ति के समान था जो शोक करने वाले अन्य लोगों को सांत्वना देता है।”

Chapter 30

    

1 “परन्तु अब, जो पुरुष मुझसे छोटे हैं वे मेरा उपहास करते हैं—

         वे पुरुष जिनके पिताओं को मैंने बहुत तुच्छ माना था—

         उनके पिता, जिन्हें मैंने मेरी भेड़ों की रक्षा करने के लिए मेरे कुत्तों की सहायता करने की भी अनुमति नहीं दी थी।

     2 वे ऐसे पुरुष थे जो वृद्ध और दुर्बल थे;

         इन पुरुषों से कार्य ले कर मुझे क्या लाभ हो सकता है, भले ही उन्होंने सोचा कि वे बलवन्त थे?

     3 वे बहुत गरीब और भूखे थे,

         इस कारण से वे रात में

         शुष्क और निर्जन स्थानों में जड़ों को चबाते थे।

     4 उन्होंने मरुस्थल में पौधों को उखाड़ा और उन्हें खाया;

         वे झाऊ के पेड़ों की जड़ों को जला कर स्वयं को गर्म करते थे।

     5 हर कोई उन पर चिल्लाया, “हे चोर, रुको!”

         और उन्हें अपने क्षेत्र से बाहर कर दिया।

     6 वे नदी के किनारे,

         भूमि में गड्ढों में, और चट्टानों के किनारों में रहने के लिए विवश कर दिए गए थे।

     7 झाड़ियों में वे जानवरों के समान चिल्लाते थे क्योंकि वे भूखे थे,

         और वे कंटीली झाड़ियों के नीचे एक साथ एकत्र होते थे।

     8 वे ऐसे लोग थे जिनको सही समझ नहीं थी,

         जिनके नाम कोई नहीं जानता;

     उन्हें उस देश से बाहर निकाल दिया गया जहाँ वे पैदा हुए थे।

     9 अब उनके बच्चे मेरा उपहास करते के लिए गाने गाते हैं।

         वे मेरे विषय में चुटकुले सुनाते हैं।

     10 वे मुझसे घृणा करते हैं, और वे मुझसे दूर रहते हैं,

         परन्तु जब वे मुझे देखते हैं, तो वे मेरे चेहरे पर थूकने में प्रसन्न होते हैं।

     11 ऐसा लगता है जैसे मानों परमेश्वर ने मेरे धनुष की डोरी को काट दिया था और मुझे स्वयं को बचाने में असमर्थ होने का कारण बना दिया; उसने मुझे नम्र किया है,

         और मेरे शत्रुओं ने जो भी वे चाहते थे मेरे साथ किया है।

     12 इन लोगों का समूह मुझ पर आक्रमण करता है और मुझे भागने के लिए विवश करता है;

         वे मुझे नष्ट करने के लिए तैयार हैं।

     13 वे मुझे बच कर भागने से रोकते हैं,

         और उन्हें मुझ पर वार करने से रोकने के लिए कोई नहीं है।

     14 ऐसा लगता है कि मानों मैं एक शहर की दीवार था और उन्होंने इसे तोड़ दिया था,

         जैसे कि मानों वे मुझे तोड़ कर घुस आए थे।

     15 मैं बहुत डरा हुआ हूँ;

         मेरी गरिमा हवा से उड़ा दी गई है,

         और मेरी समृद्धि ऐसे गायब हो गई है जैसे बादल गायब होते हैं।

     16 अब मैं मरने वाला हूँ;

         मैं हर दिन पीड़ित होता हूँ।

     17 रात के समय मेरी हड्डियों में दर्द होता है,

         और वह दर्द जो मुझे तड़पा देता है कभी नहीं रुकता है।

     18 ऐसा लगता है जैसे मानों परमेश्वर ने मेरे कपड़े पकड़ लिए थे

         और मुझे मेरे बागे की गिरेबान द्वारा दबाया।

     19 उसने मुझे कीचड़ में फेंक दिया है;

         मैं धूल और राख से अधिक किसी योग्य नहीं हूँ।

     20 हे परमेश्वर, मैं आपको पुकारता हूँ, परन्तु आप मुझे उत्तर नहीं देते;

         मैं खड़ा होकर प्रार्थना करता हूँ, परन्तु आप ध्यान नहीं देते हैं।

     21 आप मेरे साथ बहुत क्रूरता का व्यवहार करते हैं;

         अपनी सारी शक्ति के साथ आप मुझे पीड़ित करते हैं।

     22 आप हवा को मुझे उठा कर दूर उड़ा ले जाने की अनुमति देते हैं;

         और आप मेरे चारों ओर एक प्रचण्ड तूफान उठाते हैं।

     23 मुझे पता है कि आप मुझे मर जाने देंगे,

         जैसा उन सबके साथ होता है जो जीवित हैं।

     24 जब लोग विपत्तियों का सामना करते हैं,

         तो वे खण्डहरों के ढेर पर बैठते हैं और सहायता के लिए पुकारते हैं;

         वे निश्चय ही सहायता के लिए पुकारते हैं।

     25 मैं स्वयं उन लोगों के लिए रोया जो परेशानियों का सामना कर रहे थे,

         और मुझे गरीब लोगों के लिए दुख होता था।

     26 हालाँकि, जब मुझे अच्छी बातें होने की अपेक्षा थी, तो बुरी बातें हुईं;

         जब मैंने प्रकाश के लिए प्रतीक्षा की, तो मैंने अन्धकार का अनुभव किया।

     27 मैं हर समय बहुत परेशान हूँ;

         मैं हर दिन पीड़ित होता हूँ।

     28 मैं बहुत निराश हो जाता हूँ;

         मैं खड़े होकर सहायता करने के लिए लोगों से अनुरोध करता हूँ।

     29 मेरा विलाप करना जंगल में सियारों और शुतुर्मुर्गों के उदास होने के समान हैं।

     30 मेरी त्वचा काली पड़ गई है और छिल कर गिर रही है,

         और मुझे ऐसा बुखार है जो मेरे शरीर को जला रहा है।

     31 पहले, मैंने अपनी वीणा पर और मेरी बाँसुरी के साथ सुखद संगीत बजाया था,

         परन्तु अब मैं केवल शोक करने वालों का दुखद संगीत बजाता हूँ।”

Chapter 31

    

1 “मैंने स्वयं से एक गम्भीर प्रतिज्ञा की है

         कि मैं एक युवा स्त्री को नहीं देखूँगा और उसके साथ सोना नहीं चाहूँगा।

     2 यदि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार नहीं करता,

         तो परमेश्वर जो स्वर्ग में हैं मुझे क्या देंगे?

         सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चय ही मुझे कोई प्रतिफल नहीं देंगे!

     3 पहले मैंने सोचा था कि निश्चय ही यह अधर्मी लोग थे जो विपत्तियों का सामना करेंगे,

         और यह कि जो गलत कार्य करते हैं वही हैं जो विपत्तियों का सामना करेंगे।

     4 निश्चित रूप से जो कुछ भी मैं करता हूँ परमेश्वर उसे देखते हैं,

         तो वह मुझे पीड़ित क्यों कर रहे हैं?

         ऐसा लगता है कि मानों वह हर उस कदम की गिनती कर रहे हैं जो मैं लेता हूँ।

     5 मैं गम्भीर घोषणा करता हूँ कि मैंने कभी दुष्टतापूर्ण व्यवहार नहीं किया है

         और मैंने कभी लोगों को धोखा देने का प्रयास नहीं किया है।

     6 मैं केवल यह अनुरोध करता हूँ कि परमेश्वर मेरा न्याय निष्पक्षतापूर्ण करें;

         यदि वह ऐसा करते हैं, तो वह जान जाएँगे कि मैं निर्दोष हूँ।

     7 यदि यह सच है कि मैं सही रास्ते पर चलने से दूर हो गया था,

         या मैंने करने के लिए गलत कार्यों को देखा था और फिर उन्हें किया था,

         या मेरे हाथों में इसलिए दाग थे क्योंकि मैंने पाप किया था,

     8 तब मैं आशा करूँगा कि जब मैं बीज लगाऊँ, तो कोई और फसलों की कटाई करे और उन्हें खाए,

         और यह कि अन्य मेरी लगाई गई फसलों को उखाड़ कर फेंक दें।

     9 यदि यह सच है कि मैं किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी से आकर्षित हुआ हूँ,

         या यह कि मैंने स्वयं को छिपा कर उसके घर के द्वार के बाहर प्रतीक्षा की है,

     10 तो मैं आशा करता हूँ कि कोई अन्य व्यक्ति मेरी अपनी पत्नी के साथ सोएगा

         और यह कि वह उसके साथ सो जाए।

     11 मेरे लिए ऐसा करना एक भयानक पाप होगा,

         और न्यायधीश निर्णय लें कि मुझे दण्ड दिया जाना चाहिए।

     12 मेरा व्यभिचार मुझमें एक ऐसी आग उत्पन्न करे जैसी आग लोगों को नरक में जलाती है,

         और मेरे पास जो कुछ भी है, यह उसे जला देगी।

     13 यदि यह सच है कि मैंने कभी अपने पुरुष या स्त्री दासों में से किसी की बात सुनने से इन्कार किया है

         जब उन्होंने मुझसे किसी बात के विषय में शिकायत की,

     14 तो मैं आशा करता हूँ कि परमेश्वर खड़े हों और घोषणा करेंगे कि वह मुझे दण्ड देंगे;

         जब वह ऐसा करते हैं, तब मैं क्या कर सकता हूँ?

         जो मैंने किया है यदि उसके विषय में वह मुझसे पूछते हैं, तो मैं क्या उत्तर दूँगा?

     15 परमेश्वर, जिन्होंने मुझे बनाया है, निश्चय ही उन्होंने मेरे सेवकों को भी बनाया है;

         निश्चय ही वही हैं जिन्होंने उन्हें और मुझे हमारी माताओं के गर्भों में रचा है,

         इसलिए हम सबको एक-दूसरे के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

     16-18 जब मैं युवा था तब से मैंने अनाथों का ध्यान रखा है; मेरे सारे जीवन में मैंने कभी विधवा माताओं को आशा खोने का कारण नहीं दिया है।

     इसलिए यदि यह सच है कि मैंने अपना सारा भोजन स्वयं ही खा लिया और अनाथों के साथ उसमें से कुछ साझा नहीं किया,

         या यह कि मैंने गरीब लोगों को वह वस्तुएँ देने से इन्कार कर दिया जो वे चाहते थे,

         या यह कि मैंने विधवाओं को निराशा में रहने दिया, तो मेरे साथ जो कुछ भी आपको करना है वह आप मेरे साथ कीजिए।

     19 यदि मैंने लोगों को ठण्ड से इसलिए मरते देखा क्योंकि उनके पास कपड़े नहीं था,

         या यह कि मैंने उन गरीब लोगों को देखा था जिनके पास उन्हें गर्म रखने के लिए कपड़े नहीं थे,

     20 और वे मेरी भेड़ों के ऊन से बने कपड़ों से गर्म हो पाने में सक्षम नहीं थे

         और उन्होंने इसके लिए मुझे धन्यवाद दिया,

     21 या यदि यह सच है कि मैंने किसी अनाथ को मारने की धमकी दी थी

         क्योंकि मुझे पता था कि शहर के फाटक के वृद्ध मेरा पक्ष लेंगे तो मेरे साथ जो कुछ भी आपको करना है, कीजिए।

     22 क्योंकि यदि वे बातें मेरे विषय में सच हैं, तो मैं आशा करता हूँ कि मेरे कंधे की हड्डी टूट जाए

         और मेरी बाँह मेरे कंधे से उखड़ जाए।

     23 मुझे सदा डर था कि यदि मैंने उन बुरे कार्यों में से किसी एक को किया तो परमेश्वर मुझे एक बड़ी विपत्ति का सामना करने देंगे,

         और मैं उन शक्तिशाली कार्यों को सहन करने में सक्षम नहीं होऊँगा जो वह मुझे दण्ड देने के लिए करेंगे।

     24 यदि यह सच है कि मैंने अपने सोने पर भरोसा किया,

     25 या मैं इसलिए आनन्दित हुआ कि मैंने कई वस्तुएँ प्राप्त की

         और बहुत समृद्ध हो गया,

     26 या जब सूर्य चमक रहा था तब मैंने उसकी ओर देखा,

         या मैंने सुन्दर चँद्रमा को देखा,

     27 और मैं उनकी उपासना करने के लिए

         उन्हें सम्मान देने के लिए अपने हाथ पर चुम्बन करके परीक्षा में पड़ गया,

     28 वे चीजें भी पाप होंगी जिनके लिए न्यायधीश कहेंगे कि मुझे दण्ड दिया जाना चाहिए

         क्योंकि मैं उन चीजों को करके परमेश्वर को अस्वीकार कर रहा होता।

     29-30 यह सच नहीं है कि मैंने उन लोगों को श्राप देने के लिए परमेश्वर से अनुरोध करके पाप किया है जिन्होंने मुझसे घृणा की है

         और उन्हें इसलिए मर जाने देता कि मैं उनसे क्रोधित था।

     यह सच नहीं है कि जब वे नष्ट हो गए तो मैं प्रसन्न हुआ था

         या जब वे विपत्तियों का सामना करते थे तो मैं आनन्दित था। नहीं!

     31-32 कोई भी सच्चाई से यह नहीं कह सकता कि मैंने अपने घर में रहने के लिए यात्रियों का स्वागत नहीं किया है,

         या मैंने उनके लिए अपने द्वार नहीं खोले, और मैंने उन्हें सड़कों पर सोने के लिए विवश कर दिया!

         मेरे लिए कार्य करने वाले सभी लोग निश्चय ही जानते हैं कि मैंने उस हर एक जन को भोजन दिया है जिसको उसकी आवश्यकता है!

     33 कुछ लोग अपने पापों को छिपाने का प्रयास करते हैं,

         परन्तु मैंने कभी ऐसा नहीं किया है;

     34 और मैं कभी चुप नहीं रहा और बाहर जाने से इसलिए इन्कार नहीं किया

         कि मैं भयभीत था कि लोग मेरे विषय में क्या कहेंगे,

         और यह कि वे मुझसे घृणा करेंगे।

     35 मेरी इच्छा है कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सुने कि मैं क्या कह रहा हूँ!

         मैं गम्भीरता से यह घोषणा करता हूँ कि मैंने जो कुछ कहा है वह सच है।

     मेरी इच्छा है कि जो लोग मेरा विरोध करते हैं वे उन बुरे कार्यों को एक पुस्तक में लिख दें जो वे कहते हैं कि मैंने किए हैं।

     36 यदि उन्होंने ऐसा किया, तो मैं अपने कंधे पर या मेरे सिर के ऊपर उस पुस्तक को रख लूँगा, कि हर कोई उसे देख सके।

     37 मैं परमेश्वर को सब कुछ बताऊँगा जो मैंने किया है,

         और मैं बिना डरे उनसे ऐसे सम्पर्क करूँगा, जैसे एक शासक करेगा।

     38 यदि यह सच है कि मैंने भूमि चोरी की है,

         कि उसकी रेघारियाँ किसी ऐसे व्यक्ति के समान थीं जो मुझ पर आरोप लगाने के लिए चिल्लाया था;

     39 या यह कि मैंने उन फसलों को खा लिया है जो किसी और के खेतों में बढ़ी थीं

         उन फसलों के लिए भुगतान किए बिना,

         जिसके कारण वे किसान भूख से मर गए जिन्होंने उन फसलों को उगाया था;

     40 तब मैं चाहता हूँ कि मेरे खेतों में गेहूँ की अपेक्षा काँटे बढ़ें,

         और जौ के अपेक्षा जंगली घास बढ़े!”

     जो अय्यूब ने अपने तीन मित्रों से कहा था यह उसका अन्त है।

Chapter 32

1 तब उन तीनों पुरुषों ने अय्यूब को उत्तर देना बन्द कर दिया क्योंकि वे अय्यूब को यह विश्वास नहीं दिला सके कि उसने कुछ भी गलत किया है। 2 तब बूज के वंशज राम के कुल के बारकेल का पुत्र एलीहू, अय्यूब पर बहुत क्रोधित हो गया। वह क्रोध में था क्योंकि अय्यूब ने निरन्तर दावा किया कि वह निर्दोष था, और परमेश्वर उसे दण्ड देने में गलत थे। 3 वह अय्यूब के तीन मित्रों से भी क्रोधित था क्योंकि उन्होंने घोषणा की थी कि अय्यूब ने ऐसे कई कार्य किए होंगे जो गलत थे, परन्तु वे उसे विश्वास नहीं दिला सके थे। 4 अब एलीहू दूसरों से छोटा था, इसलिए उसने अय्यूब को उत्तर देने से पहले प्रतीक्षा की जब तक कि उन्होंने बोलना समाप्त नहीं किया। 5 परन्तु जब एलीहू को मालूम हुआ कि उन तीन पुरुषों के पास अय्यूब से कहने के लिए और कुछ नहीं है, तो वह क्रोधित हो गया।

6 उसने जो कहा वह यह है:

     “मैं युवा हूँ, और तुम सब मुझसे अधिक आयु के हो।

         इसलिए मैं भयभीत था, और मैं तुम्हें बताने से डरता था जो मैं सोच रहा था।

     7 मैंने स्वयं से कहा, ‘जो लोग अधिक आयु के हैं उनको बोलने दो

         क्योंकि बड़े लोगों को ऐसी बातें कहने में सक्षम होना चाहिए जो बुद्धिमानी की हैं।’

     8 हालाँकि, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आत्मा लोगों के भीतर है, और वही हैं जो उन्हें बुद्धिमान बनने में सक्षम बनाते हैं।

     9 जब वे वृद्ध होते हैं तो सब लोग बुद्धिमान नहीं होते;

         सब वृद्ध लोग नहीं समझते कि क्या सही है।

     10 यही कारण है कि मैं अब तुमसे कहता हूँ, ‘मेरी बात सुनो,

         और मुझे जो कुछ पता है उसे कहने की अनुमति दो।’

     11 मैंने तुम सबके बोलने की प्रतीक्षा की;

         मैं बुद्धिमान बातों को सुनना चाहता था जो तुम कहोगे।

         मैंने प्रतीक्षा की, जिस समय तुमने इस विषय में सावधानीपूर्वक सोचा कि तुमको क्या कहना चाहिए।

     12 मैंने सावधानीपूर्वक ध्यान दिया,

         परन्तु आश्चर्य की बात है कि तुम में से कोई भी यह सिद्ध करने में सक्षम नहीं था कि अय्यूब ने जो कहा वह गलत है।

     13 इसलिए स्वयं से मत कहो, ‘हमने खोज लिया है कि बुद्धिमानी क्या है!’

         यह परमेश्वर हैं जिन्हें अय्यूब की बातों का खण्डन करना चाहिए क्योंकि तुम तीन ऐसा करने में सक्षम नहीं हो।

     14 अय्यूब तुमको उत्तर दे रहा था, मुझे नहीं,

         इसलिए मैं उसको वह कहकर उत्तर नहीं दूँगा जो तुम तीनों ने कहा है।

     15 मैं स्वयं से यह कहता हूँ: ये तीनों पुरुष उलझन में हैं क्योंकि उनके पास अय्यूब से कहने के लिए कुछ और नहीं है;

         उनके पास उससे कहने के लिए कुछ और नहीं है।

     16 परन्तु क्योंकि तुम नहीं बोलते, इसलिए निश्चय ही मैं अब और प्रतीक्षा नहीं करूँगा;

         तुम केवल वहाँ खड़े हो और अब कुछ उत्तर नहीं देते हो।

     17 इसलिए अब मैं अय्यूब को उत्तर दूँगा

         और उसे वह बताऊँगा जो मुझे पता है।

     18 मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ है,

         और मेरा आत्मा मुझे यह कहने के लिए विवश करता है।

     19 मेरा मन दाखमधु की एक कुप्पी के समान है जो उफान से अधिकाधिक खींच रही है,

         और यह शीघ्र ही फट जाएगी।

     20 मुझे कहना चाहिए जिससे कि मैं अपने शब्दों को रोकने के प्रयास से विश्राम पा सकूँ;

         मुझे तुम सबको उत्तर देने के लिए कुछ कहना होगा।

     21 तुम में से किसी का भी पक्ष नहीं लेते हुए, मैं निष्पक्ष रूप से बात करूँगा,

         और मैं किसी की भी चापलूसी करने का प्रयास नहीं करूँगा।

     22 मैं वास्तव में नहीं जानता कि लोगों की चापलूसी कैसे करें;

         यदि मैंने ऐसा किया, तो परमेश्वर शीघ्र ही मुझे नष्ट कर दें।”

Chapter 33

    

1 “अब, हे अय्यूब, ध्यान से सुन

         जो कुछ भी मैं कहने जा रहा हूँ।

     2 मैं तुझे बताने के लिए तैयार हूँ जो मैं सोचता है।

     3 मेरे मन में मुझे पता है कि मैं निष्ठापूर्वक बोल रहा हूँ

         और यह कि मैं सच्चाई से बोल रहा हूँ।

     4 सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जैसे तुझे वैसे ही मुझे बनाया है,

         और अपनी साँस से उन्होंने मुझे जीवित किया है।

     5 इसलिए यदि तू उत्तर दे सकता है तो दे;

         सावधानीपूर्वक विचार करके मुझे उत्तर देना।

     6 परमेश्वर मानते हैं कि तू और मैं दोनों एक जैसे हैं;

         उन्होंने हम दोनों को मिट्टी से रचा है।

     7 इसलिए तुझे मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं है;

         मैं तुझे से कठोरता से बात नहीं करूँगा।

     8 मैंने तुझे बोलते हुए सुना है,

         और जो तू ने कहा वह यह है:

     9 ‘मैं निर्दोष हूँ, और मैंने कोई पाप नहीं किया है;

         मैं शुद्ध हूँ, और मैंने ऐसे कार्य नहीं किए हैं जो गलत हैं।

     10 परन्तु परमेश्वर मुझ पर दोष लगाने के कारण ढूँढ़ते हैं,

         और वह मानते हैं कि मैं उनका शत्रु हूँ।

     11 ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने मेरे पैरों को काठ में ठोक दिया है,

         और जो कुछ मैं करता है वह उसे देखते हैं।’

     12 परन्तु, तू ने जो कहा वह गलत है,

         और मैं तुझे बताऊँगा कि तू ने क्या कहा जो गलत है।

         परमेश्वर मनुष्य से कहीं अधिक महान हैं।

     13 इसलिए, तू परमेश्वर से विवाद क्यों करता है? उन्हें हमें यह बताना आवश्यक नहीं है कि जो वह करते हैं, क्यों करते हैं।

     14 परमेश्वर, वास्तव में, विभिन्न रीतियों से हमसे बात करते हैं,

         परन्तु वह जो कहते हैं उस पर हम कोई ध्यान नहीं देते हैं।

     15 कभी-कभी वह रात में स्वप्नों और दृष्टान्तों में हमसे बात करते हैं

         जब हम अपने बिस्तरों पर, गहरी नींद में होते हैं।

     16 वह उस समय हम पर बातों को प्रकट करते हैं;

         वह बातों के विषय में हमें चेतावनी दे कर हमें डरा देते हैं।

     17 वह हमें उन बातों को बताते हैं कि हम बुरे कार्यों को करने से रुक जाएँ

         और हमें घमण्डी होने से रोकने के लिए।

     18 वह हमें नष्ट होने देना नहीं चाहते;

         जबकि हम अभी युवा ही हैं वह हमें मर जाने से रोक देना चाहते हैं।

     19 परमेश्वर हमें बहुत दर्द से पीड़ित करके अपने बिस्तरों पर लेटने को विवश करके

         और हमारी हड्डियों में बुखार दे कर भी हमें सुधारते हैं।

     20 परिणाम यह होता है कि हम किसी भी भोजन की इच्छा नहीं रखते हैं,

         यहाँ तक कि बहुत ही विशेष भोजन की भी नहीं।

     21 हमारे शरीर बहुत दुबले हो जाते हैं जिससे हम एक कंकाल के समान दिखते हैं,

         और हमारी हड्डियाँ उभर आती हैं कि अन्य उन्हें गिन सकते हैं।

     22 हम जानते हैं कि हम शीघ्र ही मर जाएँगे

         और उस स्थान पर चले जाएँगे जहाँ मरे हुए लोग हैं।

     23 फिर भी कभी-कभी एक स्वर्गदूत हम में से एक के पास आ सकता है,

         हजारों स्वर्गदूतों में से एक जो हमारे और परमेश्वर के बीच हस्तक्षेप करने आता है,

         हमें यह बताने के लिए कि हमारे द्वारा किए जाने के लिए कौन से सही कार्य हैं।

     24 वह स्वर्गदूत हमारे प्रति दयालु है और वह परमेश्वर से कहता है,

         ‘कृपया उस व्यक्ति को छोड़ दीजिए,

     कि वह उस स्थान पर नहीं उतरे जहाँ मरे हुए लोग हैं!

         ऐसा कीजिए क्योंकि मैंने आपके लिए एक उपाय खोजा है जो उसे मरने से बचा सकता है!

     25 कृपया उसके शरीर को फिर से बलवन्त बन जाने दीजिए;

         कृपया उसे वैसे ही बलवन्त होने दें जैसे वह अपनी युवावस्था में था!’

     26 यदि ऐसा होता है, तो वह व्यक्ति परमेश्वर से प्रार्थना करेगा, और परमेश्वर उसे स्वीकार करेंगे;

         वह परमेश्वर की उपस्थिति में आनन्दपूर्वक प्रवेश करेगा,

         और फिर वह दूसरों को बताएगा कि कैसे परमेश्वर ने उसे मरने से बचाया।

     27 वह गाएगा जब वह हर किसी से कहेगा,

     ‘मैंने पाप किया, और मैंने ऐसे कार्य किए जो सही नहीं थे,

         परन्तु परमेश्वर ने मुझे मेरे योग्य दण्ड नहीं दिया है।

     28 उन्होंने मुझे मरने से और उस स्थान पर जाने से बचाया है जहाँ मरे हुए लोग हैं,

         और मैं जीवित होने का आनन्द लेता रहूँगा।’

     29 परमेश्वर इन सब कार्यों को हमारे लिए कई बार करते हैं;

     30 वह हमें मरने से और उस स्थान पर जाने से बचा लेते हैं जहाँ मरे हुए लोग हैं,

         जिससे कि हम जीवित रहने का आनन्द ले सकें।

     31 इसलिए हे अय्यूब, मेरी बात सुन;

         और कुछ भी मत कह; बस मुझे बोलने की अनुमति दे।

     32 मेरे बोलने के बाद, यदि तेरे पास कुछ और है जो तू मुझसे कहना चाहता है,

         उसे कह देना, क्योंकि मैं यह घोषणा करने का उपाय खोजना चाहूँगा कि तू निर्दोष है।

     33 परन्तु यदि तेरे पास कुछ और नहीं है जो तू कहना चाहता है, तो बस मेरी बात सुन,

         और मैं तुझे सिखाऊँगा कि बुद्धिमान कैसे बना जाए।”

Chapter 34

1 तब एलीहू ने यह कहा:

     2 “तुम लोग जो सोचते हो कि तुम बहुत बुद्धिमान हो, मेरी बात सुनो;

         जो मैं कह रहा हूँ उसे सुनो, तुम लोग जो कहते हो कि तुम बहुत अधिक जानते हो।

     3 जब हम लोगों को बात करते हुए सुनते हैं,

         जो वे कहते हैं हम उसके विषय में सावधानी से सोचते हैं यह जानने के लिए कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है,

         जिस प्रकार हम यह जानने के लिए भोजन को चखते हैं कि खाने के लिए अच्छा क्या है।

     4 हमें यह निर्णय लेना होगा कि कौन सही बातें कह रहा है,

         और हमें एक साथ अपने लिए यह पता लगाना है कि क्या अच्छा है।

     5 अय्यूब ने कहा है, ‘मैं निर्दोष हूँ,

         परन्तु परमेश्वर ने निष्पक्षता से मेरा न्याय करने से इन्कार कर दिया है।

     6 भले ही मैंने हमेशा वही किया है जो सही है,

         वह मेरे विषय में झूठ बोल रहे हैं।

     भले ही मैंने वह नहीं किया है जो गलत है,

         उन्होंने मुझे पीड़ित किया है, और इस कारण से मैं निश्चय ही मर जाऊँगा।’

     7 क्या अय्यूब के समान कोई व्यक्ति है, जो दूसरों को इतनी सरलता से अपमानित करता है जैसे लोग पीने का पानी पीते हैं?

     8 वह स्वभाव से ही उन लोगों के साथ मिलता है जो बुरे कार्य करते हैं

         और दुष्ट लोगों के साथ समय बिताता है।

     9 वह निश्चय ही इन कार्यों को करता है, क्योंकि उसने कहा है, ‘परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करना लोगों के लिए व्यर्थ है।’

     10 इसलिए, तुम लोग जो दावा करते हो कि तुम सब कुछ समझते हो, मेरी बात सुनो!

     सर्वशक्तिमान परमेश्वर कभी भी ऐसा कुछ भी करने पर विचार नहीं करेंगे जो बुरा या गलत है!

     11 वह लोगों को उनके द्वारा किए गए कार्यों का फल देते हैं;

         वह उन्हें उनके द्वारा अपने जीवन के संचालन के योग्य ही फल देते हैं।

     12 सचमुच, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कभी भी बुराई नहीं करते हैं;

         वह कभी गलत कार्य को सही नहीं कहते हैं।

     13 किसी ने भी उन्हें पृथ्‍वी पर पाए जाने वाले सब कुछ पर शासन करने का अधिकार नहीं दिया;

         कोई भी उन्हें पूरे संसार का नियंत्रण नहीं देता है।

         वह अधिकार सदा उनका ही है।

     14 यदि उन्होंने कभी अपने ही विषय में सोचा और हमारे विषय में नहीं सोचा, और यदि वह कभी हमें जीवित रहने से रोक दें,

     15 तो हर कोई तुरन्त मर जाएगा,

         और उनके शव शीघ्र ही फिर से मिट्टी बन जाएँगी।

     16 इसलिए, हे अय्यूब, यदि तू कहता है कि तू सब कुछ समझता है,

         तो जो मैं कह रहा हूँ उसे सुन।

     17 परमेश्वर निश्चय ही कभी उससे घृणा नहीं कर सकते जो सही है और अभी भी संसार पर शासन करते हैं।

         इसलिए तू वास्तव में परमेश्वर की निन्दा नहीं कर सकता, जो धर्मी और शक्तिशाली हैं, और तू यह नहीं कह सकता कि उन्होंने जो किया है वह गलत है, क्या तू कह सकता है?

     18 वह कुछ राजाओं को बताते हैं कि वे निकम्मे हैं,

         और वह कुछ अधिकारियों से कहते हैं कि वे दुष्ट हैं।

     19 वह अन्य लोगों का समर्थन करने से बढ़कर शासकों का समर्थन नहीं करते हैं;

         वह गरीब लोगों से बढ़कर समृद्ध लोगों का पक्ष नहीं लेते हैं

         क्योंकि उन सबको उन्होंने बनाया है।

     20 वे प्रायः अकस्मात मर जाते हैं;

         वह मध्यरात्रि में उन पर वार करते हैं और वे मर जाते हैं;

         वह किसी भी मनुष्य की सहायता के बिना ही महत्वपूर्ण लोगों से छुटकारा पा लेते हैं।

     21 वह सब कुछ देखते हैं जो लोग करते हैं;

         जब हम चलते हैं, तो वह हर कदम को देखते हैं जिसे हम लेते हैं।

     22 कोई धुंधलापन या अन्धकार नहीं है

         जिसमें दुष्ट लोग परमेश्वर से छिप सकते हैं।

     23 परमेश्वर को समय निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं हैं

         कि कब हम उसके सामने खड़े होंगे कि वह हमारा न्याय करें।

         वह पहले से ही हमारे विषय में सब कुछ जानते हैं।

     24 वह महत्वपूर्ण लोगों के कार्यों को जाँचे बिना उन को नष्ट कर देते हैं,

         और वह दूसरों को उनका स्थान लेने के लिए नियुक्त करते हैं।

     25 क्योंकि वह पहले ही जानते हैं कि उन्होंने क्या किया है,

         वह उन्हें रात में हटा देते हैं और उनसे छुटकारा पाते हैं।

     26 वह उन दुष्ट कार्यों के कारण उन पर वार करते हैं जो उन्होंने किए हैं;

         कई लोग उन्हें यह करते हुए देखते हैं।

     27 वह उन पर वार करते हैं क्योंकि वे ऐसा करने से दूर हो गए थे जो वह चाहते थे कि वे करें

         और उनके किसी भी आदेश पर ध्यान नहीं दिया।

     28 उन्होंने गरीब लोगों से बुरा व्यवहार किया;

         उन गरीब लोगों ने सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारा,

         और उन्होंने उनकी सुन ली।

     29 फिर भी यदि परमेश्वर दुष्ट लोगों को दण्ड देने के लिए कुछ भी नहीं करने का निर्णय करते हैं,

         तो कोई भी उनकी निन्दा नहीं कर सकता है।

     परमेश्वर सब राष्ट्रों और सब लोगों को नियंत्रित करते हैं।

     30 वह ऐसा इसलिए करते हैं कि जो हमारे ऊपर शासन करते हैं, वे उनका सम्मान कर सकें,

         जिससे कि हमारे शासक हम पर अत्याचार न करें।

     31 हे अय्यूब, क्या तू ने या किसी और ने कभी परमेश्वर से कहा है, ‘मैंने निश्चित रूप से पाप किया है,

         परन्तु अब मैं पाप नहीं करूँगा;

     32 इसलिए मुझे सिखाइए कि मैंने क्या पाप किए हैं;

     यदि मैंने ऐसा कुछ भी किया है जो बुरा है,

         मैं अब इसे और नहीं करूँगा’?

     33 हे अय्यूब, तू इस बात पर आपत्ति करता है जो परमेश्वर ने तेरे साथ किया है,

         परन्तु क्या तुझे लगता है कि वह वही करेंगे जो तू उनसे करवाना चाहता है?

     यह तू ही है जिसे यह चुनना है कि तुझे परमेश्वर से क्या कहना चाहिए, मैं नहीं;

         मुझे बता कि तू इसके विषय में क्या सोच रहा है।

     34 जो लोग अच्छी समझ रखते हैं, वे जो बुद्धिमान हैं और जो मैं कहता हूँ उसे सुनते हैं,

         वे मुझसे कहेंगे,

     35 ‘अय्यूब अज्ञानता से बात कर रहा है;

         जो वह कहता है वह मूर्खता है।’

     36 अय्यूब के मित्रों तुमसे, मैं यह कहता हूँ: मुझे लगता है कि एक अदालत को पूरी तरह से अय्यूब की जाँच करनी चाहिए,

         क्योंकि वह हमें, उसके मित्रों को ऐसे उत्तर देता है, जैसे दुष्ट लोग उत्तर देंगे।

     37 उसने जो अन्य पाप किए हैं, उनमें और अधिक जोड़ने के लिए, वह परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह कर रहा है;

         वह हमें दिखाता है कि वह परमेश्वर का सम्मान नहीं करता है;

         वह यह लम्बे भाषण देता है कि परमेश्वर ने उसे अन्यायपूर्वक दण्ड दिया है।”

Chapter 35

1 तब एलीहू ने यह भी कहा:

     2 “हे अय्यूब, क्या तू वास्तव में सोचता है कि तू ने कुछ भी गलत नहीं किया है?

     तू कहता है, ‘परमेश्वर जानते हैं कि मैं निर्दोष हूँ,’

     3 और तू यह भी कहता है, ‘पाप नहीं करने के कारण मुझे क्या भलाई मिली है?

         मुझे क्या लाभ मिला है जो मुझे नहीं मिला होगा, भले ही मैंने पाप किया हो?’

     4 ठीक है, मैं तुझे उत्तर दूँगा,

         और मैं तेरे तीनों मित्रों को भी उत्तर दूँगा।

     5 हे अय्यूब, ऊपर आकाश की ओर देख;

         उन बादलों को देख जो तेरे बहुत ऊपर हैं

         और जान ले कि परमेश्वर सबसे ऊपर हैं, तुम्हारी पहुँच से पूरी तरह से बाहर।

     6 यदि तू ने पाप किया है, तो वह परमेश्वर को हानि नहीं पहुँचा सकता है।

         भले ही तू सैंकड़ों बार गलत कार्य करता है, निश्चय ही वह उसे चोट नहीं पहुँचाता है।

     7 वैसे ही, यदि तू धर्मी है, तो क्या वह परमेश्वर की सहायता करता है?

         नहीं, जो कुछ भी तू करता है वह उसकी सहायता नहीं कर सकता है।

     8 यह अन्य लोग हैं जो उन बुरे कार्यों के कारण पीड़ित हो सकते हैं जो तुम करते हो;

         वैसे ही, यदि तू उनके लिए भले कार्य करता है तो तू दूसरों की सहायता कर सकता है।

     9 लोग उन बहुत से कार्यों के कारण दुहाई देते हैं जो अन्य लोग उनको पीड़ित करने के लिए करते हैं;

         वे उन कार्यों के कारण सहायता के लिए कहते हैं जो शक्तिशाली लोग उनके साथ करते हैं।

     10 परन्तु कोई भी परमेश्वर को नहीं पुकारता है

         और कहता है, ‘मेरे रचने वाले परमेश्वर मेरी सहायता क्यों नहीं करते?

         उन्हें मुझे रात के समय, बहुत दुखी गीतों के बजाए, आनन्ददायक गीतों को गाने में सक्षम करना चाहिए।

     11 उन्हें जंगली जानवरों को सिखाए जाने से बढ़कर हमें सिखाने में सक्षम होना चाहिए;

         उन्हें हमें सब पक्षियों की तुलना में अधिक बुद्धिमान बनने में सक्षम करना चाहिए!’

     12 लोग सहायता के लिए दुहाई देते हैं,

         परन्तु परमेश्वर उन्हें उत्तर नहीं देते हैं

         क्योंकि जो लोग दुहाई देते हैं वे घमण्डी और बुरे लोग हैं।

     13 उनके लिए दुहाई देना व्यर्थ है

         क्योंकि परमेश्वर, एकमात्र सर्वशक्तिमान, जो वे कहते हैं उस पर कोई ध्यान नहीं देता है।

     14 इसलिए जब तुम शिकायत करते हो कि तुम परमेश्वर को नहीं देख सकते हो,

         और तू उन्हें बताता है कि तू उनके द्वारा यह निर्णय के लिए प्रतीक्षा कर रहा है कि तू ने गलत किया है या नहीं,

         वह तेरी सुनेंगे भी नहीं!

     15 इसके अतिरिक्त, तू कहता है कि क्योंकि जब लोग पाप करते हैं तो वह ध्यान नहीं देते हैं,

         इसलिए वह क्रोधित नहीं होते हैं और उन्हें दण्ड नहीं देते हैं।

     16 हे मेरे मित्रों, तुम देखते हो कि अय्यूब ने जिन बातों को कहा है वह पूरी तरह से व्यर्थ हैं,

         कि जो संसार में है उसे बिना जाने वह बहुत सी बातें कहता है जिनके विषय में वह बात कर रहा है।”

Chapter 36

1 एलीहू ने यह कहकर बोलना समाप्त कर दिया:

     2 “हे अय्यूब, मेरे साथ थोड़ा और धीरज रख

         क्योंकि मेरे पास तुझे सिखाने के लिए कुछ और भी है।

         मेरे पास यह सिद्ध करने के लिए कहने को कुछ और है कि परमेश्वर कुछ गलत नहीं करते हैं।

     3 मैं तुझे वह बताऊँगा जिसे मैंने कई स्रोतों से सीखा है,

         यह दिखाने के लिए कि मेरे रचने वाले परमेश्वर न्यायी हैं।

     4 मैं तुझसे ऐसा कुछ भी नहीं कहूँगा जो झूठ है;

         मैं, जो तेरे सामने खड़ा हूँ, ऐसा व्यक्ति हूँ जो बातों को बहुत अच्छी तरह समझता है।

     5 वास्तव में, परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं, और वह किसी को भी तुच्छ नहीं मानते हैं,

         और वह सब कुछ समझते हैं।

     6 वह दुष्ट लोगों को जीवित रहने की अनुमति नहीं देते हैं - जो तू ने दावा किया है उसके विपरीत,

         और वह सदा पीड़ित लोगों के प्रति न्यायपूर्वक व्यवहार करते हैं।

     7 वह सदा उन लोगों पर दृष्टि रखते हैं जो धर्मी हैं;

         वह उन्हें समृद्ध बनाते हैं, जैसे कि वे राजा है,

         और वह दूसरों को सदा उनका सम्मान करने के लिए प्रेरित करते हैं।

     8 परन्तु, यदि अपराध करने वाले लोग पकड़े जाते हैं,

         या यदि वे गलत कार्य करने के कारण बन्दीगृह में पीड़ित होते हैं,

     9 तब परमेश्वर उन्हें दिखाते हैं कि उन्होंने क्या किया है;

         वह उन्हें उन पापों को दिखाते हैं जो उन्होंने किए हैं,

         और वह उन्हें दिखाते हैं कि वे अभिमानी हैं।

     10 वह उन्हें सुनने के लिए प्रेरित करते हैं कि वह उन्हें क्या चेतावनी दे रहे हैं,

         और वह उन्हें बुराई करने से दूर रहने का आदेश देते हैं।

     11 यदि वे उन्हें सुनें और उनकी सेवा करें,

         तो वे समृद्ध होंगे और उन सब वर्षों में आनन्दित रहेंगे जिनमें वे जीते रहते हैं।

     12 परन्तु यदि वे उनकी नहीं सुनते हैं,

         वे हिंसक रूप से मर जाएँगे

         क्योंकि वे परमेश्वर के विषय में और वह उनसे क्या करवाना चाहते हैं इस विषय में कुछ भी नहीं समझते हैं।

     13 जो लोग परमेश्वर का सम्मान करने में असफल रहते हैं, उनका क्रोध बना ही रहता हैं,

         और वे सहायता के लिए दुहाई नहीं देते हैं

         तब भी जब परमेश्वर उन्हें दण्ड दे रहे हैं।

     14 जिस समय वे युवा ही होते हैं,

         वे अपने अनैतिक व्यवहार के कारण से अपमानित होकर मर जाते हैं।

     15 परमेश्वर वास्तव में पीड़ित करने के द्वारा लोगों को बचाते हैं;

         उन्हें पीड़ित करके, वह उन्हें सुनने के लिए प्रेरित करते हैं कि वह उन्हें क्या कह रहे हैं।

     16 हे अय्यूब, मुझे लगता है कि परमेश्वर तुझे तेरी परेशानियों से बाहर निकालना चाहते हैं

         और तुझे संकट के बिना जीने की अनुमति देना चाहते हैं;

         वह चाहते हैं कि तेरी मेज बहुत अच्छे भोजन से भरी हो।

     17 फिर भी अब वह तुझे ऐसे दण्डित कर रहे हैं जैसे वह दुष्टों को दण्ड देंगे;

         परमेश्वर ने तेरा बहुत सही न्याय किया है।

     18 अपने क्रोध को अन्य लोगों का मजाक उड़ाने का बहना न दें,

         या कि घूँस की बड़ी राशी ग्रहण करने से तू नष्ट नहीं होगा जिससे कि

     जिससे कि तू दूसरों के साथ पक्षपात करे।

     19 यदि ऐसा करेगा, तो निश्चय ही यह तेरी परेशानी में दुहाई देने में तेरी सहायता नहीं करेगा;

         तेरी कैसी भी शक्ति इस विषय में तेरी सहायता नहीं करेगी।

     20 ऐसी इच्छा मत रख कि समय रात का हो कि तू बिना किसी के जाने दूसरों के साथ बुरा व्यवहार कर सके;

         रात तो वह समय होता है जब पूरी की पूरी जाति भी नष्ट हो जाति हैं!

     21 बुरे कार्य करना आरम्भ न करने के विषय में सावधान रह,

         क्योंकि परमेश्वर ने तुझे बुराई करने से रोकने के लिए पीड़ित किया है।

     22 वास्तव में, लोग परमेश्वर की स्तुति इसलिए करते हैं कि वह बहुत शक्तिशाली हैं;

         जो वह सिखाते हैं वह निश्चय ही अन्य कोई शिक्षक नहीं सिखा सकता है।

     23 किसी ने उन्हें नहीं बताया है कि उन्हें क्या करना चाहिए,

         और किसी ने उनसे नहीं कहा है, ‘आपने जो किया है वह गलत है!’

     24 लोगों ने सदा उनकी प्रशंसा करने के लिए गीत गाए हैं,

         इसलिए तुझे भी उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उनकी स्तुति करना नहीं भूलना चाहिए।

     25 सब लोगों ने देखा है कि उन्होंने क्या किया है,

         परन्तु हम उन कार्यों को बहुत कम समझते हैं।

     26 परमेश्वर कितने महान हैं! हम यह जानने में सक्षम नहीं हैं कि वह कितने महान हैं,

         और हम नहीं समझते कि वह कितनी आयु के हैं।

     27 वह पृथ्‍वी से पानी खींचते हैं और बादलों में भरते हैं

         और उसे वर्षा का रूप देते हैं;

     28 वर्षा आकाश से नीचे उण्डेली जाती है

         और प्रचुर मात्रा में बौछारें हर किसी पर गिरती हैं।

     29 कोई भी समझ नहीं सकता कि आकाश में बादल कैसे चलते हैं

         या आकाश में यह कैसे गरजते हैं जहाँ परमेश्वर रहते हैं।

     30 वह अपने चारों ओर बिजली को चमकने देते हैं,

         परन्तु वह महासागरों को अंधियारा रहने देते हैं।

     31 हर किसी के लिए प्रचुर मात्रा में वर्षा प्रदान करके,

         वह उन्हें बहुतायत से भोजन देते हैं।

     32 ऐसा लगता है कि मानों वह अपने हाथों में बिजली को पकड़े हुए थे,

         और फिर जहाँ वह चाहते हैं वहाँ उसे गिरने का आदेश देते हैं।

     33 जब हम उसकी गर्जन सुनते हैं, तो हम जानते हैं कि एक तूफान होगा,

         और मवेशी भी इसे जानते हैं।

Chapter 37

    

1 “जब मैं इसके विषय में सोचता हूँ तो मेरा हृदय धड़कता है।

     2 तुम सब, उस गर्जन को सुनते हो,

         जो परमेश्वर की आवाज़ के समान है।

     3 वह पूरे आकाश में गर्जन भेजते हैं,

         और वह पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों पर बिजली चमकाते हैं।

     4 बिजली चमकने के बाद, हम उसकी गर्जन सुनते हैं,

         जो परमेश्वर की शक्तिशाली आवाज के समान है;

         जब वह बोलते हैं, तब वह बिजली को रोक कर नहीं रखते हैं।

     5 जब परमेश्वर बोलते हैं, तब यह गर्जन के समान हमें उनसे डरने और उनकी स्तुति करने के लिए प्रेरित करता है;

         वह अद्भुत कार्य करते हैं जिसे हम समझ नहीं सकते हैं।

     6 वह भूमि पर गिरने के लिए बर्फ को आदेश देते हैं,

         और कभी-कभी वह घोर वर्षा करते हैं।

     7 जब परमेश्वर ऐसा करते हैं, तब वह लोगों को कार्य करने से रोकता है,

         जिससे कि सब लोग जान सकें कि वही एकमात्र हैं जो इन कार्यों को करते हैं।

     8 वर्षा होने पर, जानवर अपने छिपने के स्थानों में चले जाते हैं,

         और वे वर्षा के रुकने तक वहाँ रहते हैं।

     9 तूफान दक्षिण में उस स्थान, से आते हैं जहाँ वे आरम्भ होते हैं,

         और ठण्डी हवाएँ उत्तर से आती हैं।

     10 जब वह आदेश देते हैं तो सर्दियों में पानी जम जाता है,

         और झीलें बर्फ बन जाती हैं।

     11 परमेश्वर बादलों को नमी से भरते हैं,

         और बादलों से बिजली हर जगह चमकती है।

     12 वह बादलों का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें आगे और पीछे करते हैं

         जिससे कि वे पूरे संसार में उनकी आज्ञा के अनुसार कार्य को पूरा करें।

     13 कभी-कभी परमेश्वर हमें दण्ड देने के लिए वर्षा भेजते हैं, तो कभी-कभी उनकी बनाई गई भूमि को पानी देने के लिए भेजते हैं,

         और कभी-कभी इसलिए कि वह हमारे प्रति बहुत दयालु होना चाहते हैं।

     14 हे अय्यूब, इसे सुन;

         रुक और उन अद्भुत कार्यों के विषय में सोच जो परमेश्वर करते हैं।

     15 क्या तू जानता है कि कैसे परमेश्वर अपने बादलों से बिजली चमकने का आदेश देते हैं?

     16 क्या तू जानता है कि परमेश्वर कैसे निर्णय लेते हैं कि आकाश में बादलों को कहाँ रखें?

         क्या तू उन सब अद्भुत कार्यों को समझ सकता है जो परमेश्वर करते हैं,

     और कैसे वह सब कुछ जानते हैं और पूरी तरह से जानते हैं?

     17 नहीं, तू बस वहाँ अपने गर्म कपड़ों में पसीना निकालता है

         क्योंकि तेरे द्वारा पहनने वाले कपड़े भी बहुत गर्म हो जाते हैं।

     तेरे कपड़े इसलिए गर्म हो जाते हैं कि गर्मी पैदा होती है

         जब दक्षिण से हवा आती है।

     18 क्या तू परमेश्वर के समान आकाश को फैला सकता है और उन्हें धातु के दर्पण समान कठोर बना सकता है?

     19 हे अय्यूब, तू बहुत अधिक जानता है! तो हमें बता कि हमें परमेश्वर से क्या कहना चाहिए;

         हम तो इस विषय में कुछ नहीं जानते कि हमें स्वयं का बचाव कैसे करना चाहिए।

     20 क्या मुझे परमेश्वर से कहने के लिए किसी से बोलना चाहिए कि मैं उनसे बात करना चाहता हूँ?

         नहीं, क्योंकि यदि मैंने ऐसा किया, तो वह मुझे नष्ट कर सकते हैं।

     21 तू जानता है कि लोग सीधे सूर्य की ओर नहीं देख सकते हैं

         जब हवा द्वारा बादलों को उड़ा दिए जाने के बाद वह आकाश में तीव्रता से चमकता है;

         इसी प्रकार हम निश्चित रूप से परमेश्वर की चमक को नहीं देख सकते हैं।

     22 परमेश्वर एक प्रकाश के साथ उत्तर से निकलते हैं जो सोने के समान चमकता है;

         उनकी महिमा हमें डरा देती है।

     23 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास बहुत महान शक्ति है,

         और हम नहीं जानते कि उसके निकट कैसे जाना है।

     वह हमेशा धार्मिकता से कार्य करते हैं,

         और वह हमारे साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं करेंगे।

     24 यही कारण है कि हम उनका अत्यन्त सम्मान करते हैं;

         वह उन लोगों पर ध्यान नहीं देते जो घमण्ड से, वरन् गलत रीति से सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं।”

Chapter 38

1 तब यहोवा ने अय्यूब से एक शक्तिशाली तूफान के अन्दर से बात की। उन्होंने उससे कहा,

     2 “जो मैं करने की योजना बनाता हूँ उसमें भ्रम लाने वाला तू कौन है?

         तू अज्ञानतापूर्वक बोल रहा है!

     3 मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ,

         इसलिए एक पुरुष के समान व्यवहार कर और

         मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हो जाओ।

     4 जब मैंने पृथ्‍वी की रचना करना आरम्भ किया तो तू कहाँ था?

         यदि तू बहुत अधिक जानता है, तो मुझे बता कि तू उस समय कहाँ था।

     5 यदि यह मैं नहीं था जिसने निर्णय लिया कि पृथ्‍वी कितनी बड़ी होगी, तो फिर किसने निर्णय लिया था?

         क्या तू जानता है कि पृथ्‍वी के चारों ओर इसे मापने के लिए एक रेखा किसने फैलाई?

         यदि तुझे लगता है कि तू बहुत अधिक जानता है, निश्चय ही तुझे यह पता होना चाहिए!

     6-7 उन खम्भों को कौन सहारा देता है जिन पर पृथ्‍वी टिकी हुई है?

     जब सुबह भोर को चमकने वाले सितारे एक साथ गाते थे,

         और किसी ने उस पत्थर को उस स्थान पर रखा जो पृथ्‍वी के लिए अपने स्थान पर रहने का कारण है,

         और सब स्वर्गदूत आनन्द से चिल्लाने लगे जब उन्होंने ऐसा होते हुए देखा,

     तो किसने आधारशिला रखी?

     8 जब समुद्र पृथ्‍वी के नीचे से उण्डेला गया था,

         तो किसने पानी को भूमि पर बहने से रोका?

     9 यह तू नहीं, मैं था, जिसने बादलों को समुद्र पर आने दिया था

         और उन बादलों के नीचे बहुत अंधेरा कर दिया था।

     10 मैंने समुद्रों के लिए सीमाएँ निर्धारित की हैं,

         और मैंने बेड़े रखे कि पानी भूमि पर न आए।

     11 मैंने किनारे की ओर संकेत किया और पानी से कहा,

         ‘मैं तुमको यहाँ आने तक अनुमति देता हूँ, परन्तु मैं तुमको इससे आगे आने की अनुमति नहीं देता हूँ।

         तुम्हारी शक्तिशाली तरंगें यहाँ रुकनी चाहिए।’

     12 हे अय्यूब, क्या तू ने कभी सुबह को आरम्भ होने का आदेश दिया है?

         क्या तू ने कभी सूर्य को उदय होने और एक नया दिन आरम्भ करने के लिए कहा है?

     13 क्या तू ने कभी भोर को सारी पृथ्‍वी पर फैलने के लिए कहा है

         जिसके परिणामस्वरूप दुष्ट लोग प्रकाश से भाग जाते हैं?

     14 जब भोर के बाद प्रकाश हो जाता है,

         पहाड़ियाँ और घाटियाँ ऐसी साफ हो जाती हैं, जैसे एक मुहर अपने नीचे की मिट्टी पर एक छवि छापती है, या जैसे एक कपड़े की तह।

     15 जब दिन का प्रकाश हो जाता है, तो दुष्टों के पास वह अन्धकार नहीं होता है जिसे वे पसन्द करते हैं;

         दिन के प्रकाश में वे अब किसी को चोट पहुँचाने में सक्षम नहीं हैं।

     16 हे अय्यूब, क्या तू ने समुद्र के तल में सोतों की यात्रा की है, जिससे समुद्र में पानी आता है?

         क्या तू ने महासागरों के बहुत नीचे की जाँच की है?

     17 क्या किसी ने तुझे उस स्थान के फाटक दिखाए हैं जहाँ मरे हुए लोग हैं,

         उस स्थान के फाटक जहाँ मरे हुओं के बीच बहुत घना अन्धकार है?

     18 क्या तू जानता है कि पृथ्‍वी कितनी बड़ी है?

         मुझे बता यदि तू इन सब बातों को जानते है!

     19 उस स्थान की सड़क कहाँ है जहाँ से प्रकाश आता है?

         क्या तू मुझे बता सकता है कि अन्धकार कहाँ रहता है?

     20 क्या तू प्रकाश और अन्धकार को उन स्थानों पर ले जा सकता है जहाँ उन्हें प्रतिदिन अपना कार्य करना है?

         क्या तू जानता है कि वह सड़क कहाँ है जो उनके घरों को वापस जाती है?

     21 मुझे विश्वास है कि तू इन बातों को जानता है

         क्योंकि तू उस समय से पहले जन्म ले चुका था जब यह सब कुछ बनाया गया था;

         तुझे बहुत आयु का होना चाहिए!

     22 क्या तू ने उस स्थान में प्रवेश किया है जहाँ मैं बर्फ को एकत्र करता हूँ

         और वह स्थान जहाँ मैं ओले रखता हूँ?

     23 मैं बर्फ और ओले को इसलिए एकत्र करता हूँ कि जब लोग पृथ्‍वी पर लड़ रहे हों तो मैं उनका उपयोग कर सकूँ,

         उस समय में जब वे युद्ध कर रहे हों।

     24 उस स्थान की सड़क कहाँ से है जहाँ से मैं बिजली को चमकने देता हूँ?

         वह स्थान कहाँ है जहाँ से पूर्वी हवा सारी पृथ्‍वी पर बहना आरम्भ करती है?

     25 उन नालों को किसने बनाया है जिनसे होकर वर्षा आकाश से नीचे आती है?

         वायु में गर्जन के लिए सड़कों को कौन बनाता है?

     26 रेगिस्तान में कौन वर्षा गिरने देता है,

         उन स्थानों पर जहाँ कोई भी नहीं रहता है?

     27 कौन उस वर्षा को भेजता है जो बंजर क्षेत्रों को नमी देती है, ऐसे क्षेत्र जहाँ कुछ भी नहीं उगता है,

         कि घास फिर से बढ़ने लगे?

     28 क्या वर्षा का कोई पिता है?

         क्या ओस का भी कोई पिता है?

     29 किसके गर्भ से सर्दी में बर्फ आती है?

         आकाश से नीचे आने वाले पाले को कौन जन्म देता है?

     30 सर्दी में, पानी जम जाता है और एक चट्टान के समान कठोर हो जाता है,

         और झीलों की सतह जमी हुई हो जाती है।

     31 हे अय्यूब, क्या तू उन जंजीरों को बाँध सकता है जो कचपचिया सितारों के समूह को एक साथ रखती हैं?

         क्या तू मृगशिरा के सितारों की रस्सियों को खोल सकता है? 32 क्या तू सितारों और ग्रहों को कह सकता है कि कब उन्हें चमकना चाहिए?

         क्या तू सप्तर्षि तारामंडलों में सितारों का मार्गदर्शन कर सकता है?

     33 क्या तू उन नियमों को जानता है जिनका सितारों को पालन करना चाहिए?

         क्या तू उन सब नियमों को यहाँ पृथ्‍वी की सब वस्तुओं पर शासन करने के लिए लागू कर सकता है?

     34 क्या तू बादलों को आज्ञा देने के लिए चिल्ला सकता है और अपने ऊपर वर्षा करवा सकता है?

     35 क्या तू बिजली की चमक को प्रेरित कर सकता है कि नीचे आकर वहाँ वार करे जहाँ तू चाहता है?

         क्या वे चमक तुझसे कहती हैं, ‘तू कहाँ चाहता है कि हम वार करें?’

     36 बादलों को यह जानने में कौन सक्षम बनाता है कि उन्हें वर्षा कब भेजनी चाहिए?

     37 बादलों की गिनती करने में सक्षम होने के लिए किसमें पर्याप्त कौशल है?

         वर्षा गिराने के लिए आकाश में पानी की कुप्पियों को कौन झुकाता है

     38 कि शुष्क भूमि कठोर हो जाए

         जब सूखे ढेले गीले हो जाते हैं और एक दूसरे के साथ चिपक जाते हैं?

     39-40 जब एक शेरनी और उसके शावक उनकी मांद में दुबक कर बैठते हैं या एक झाड़ी में छिपते हैं, किसी जानवर के आने की प्रतीक्षा में जिसे वे मार सकते हैं,

     क्या तू शेरनी द्वारा मार डाले जाने के लिए जानवरों को ढूँढ़ सकता है

         कि वह और उसके शावक माँस खा सकें और भूखे न रहें?

     41 कौवों के लिए मृत जानवरों को कौन उपलब्ध करवाता है,

         जब उसके बच्चे भोजन के लिए मुझे पुकारते हैं,

         जब वे भोजन की कमी के कारण इतने कमजोर हो जाते हैं कि वे अपने घोंसलों के आस-पास लड़खड़ाते फिरते हैं?

Chapter 39

    

1 “हे अय्यूब, क्या तू जानता है कि वर्ष के किस समय पहाड़ी बकरियाँ बच्चों को जन्म देती हैं?

         क्या तू ने जंगली हिरणियों को देखा है जब उनके बछड़े पैदा होते हैं?

     2 क्या तू जानता है कि जब तक उनके बछड़े पैदा नहीं होते हैं तब तक उनकी गर्भावस्था के कितने महीने बीत जाते हैं?

     3 जब वे जन्म देती हैं, तो वे दुबक कर नीचे बैठ जाती हैं,

         और फिर उनकी प्रसव पीड़ा पूरी हो जाती है।

     4 युवा बछड़े खुले मैदानों में बड़े हो जाते हैं,

         और फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं और उनके पास लौट कर फिर से नहीं आते हैं।

     5 जंगली गधे को कौन अनुमति देता है कि वे शहर से दूर जहाँ चाहें वहाँ जाएँ?

     6 वह मैं ही हूँ जिसने उन्हें मुक्त कर दिया है और उन्हें रेगिस्तानी मैदान में रखा है,

         उन स्थानों में जहाँ घास नहीं उगती है।

     7 उन्हें शहरों का शोर पसन्द नहीं है;

         रेगिस्तान में उन्हें उन लोगों की चिल्लाहट सुनने की आवश्यकता नहीं है जिन्होंने उन्हें कार्य करने के लिए विवश किया था।

     8 वे भोजन खोजने के लिए पहाड़ियों पर जाते हैं;

         वहाँ वे खाने के लिए घास की खोज करते हैं।

     9 क्या एक जंगली बैल तेरे लिए कार्य करने के लिए सहमत होगा?

         क्या वह तुझे रात में उसे उस स्थान पर रखने की अनुमति देगा जहाँ तू ने अपने जानवरों के लिए चारा डाला है?

     10 क्या तू उसे रस्सी से बाँध सकता है

         कि वह तेरे खेतों में हल से जुताई करे, तेरे खेत जो घाटी में हैं?

     11 क्योंकि वह बहुत बलवन्त है, क्या इस कारण तू उस पर कार्य करने के लिए भरोसा कर सकता है?

         क्या तू उसे कोई कार्य बता कर इस विश्वास के साथ दूर जा सकता है कि वह उस कार्य को करेगा?

     12 क्या तू उस पर भरोसा कर सकता है कि वह खेत से वापस आएगा

         और तेरे अनाज को उस स्थान पर लाएगा जहाँ तू उसकी दाँवनी करता है?

     13 शुतुर्मुर्गों के विषय में भी सोच। वे प्रसन्नता से अपने पंख फहराते हैं,

         परन्तु उन्हें अपने बच्चों से प्रेम नहीं होता है।

     14 शुतुर्मुर्ग भूमि पर अपने अंडे देते हैं और फिर,

         रेत में गर्म होने के लिए अंडे छोड़ कर चले जाते हैं।

     15 शुतुर्मुर्ग इस सम्भावना के विषय में कभी नहीं सोचते कि कुछ जंगली जानवर अंडों पर कदम रख सकते हैं और उन्हें कुचल सकते हैं।

     16 शुतुर्मुर्ग अपने बच्चों के साथ क्रूरता का व्यवहार करते हैं;

         वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि मानों वे चूजे किसी अन्य शुतुर्मुर्ग के है।

     उन्हें चिन्ता नहीं कि उनके चूजे मर जाएँगे,

         कि उन्होंने व्यर्थ ही अंडे दिए।

     17 ऐसा इसलिए है कि मैंने शुतुर्मुर्गों को बुद्धिमान होने की अनुमति नहीं दी थी।

         मैंने उन्हें बुद्धिमान होने में सक्षम नहीं किया।

     18 परन्तु, जब वे उठते हैं और दौड़ना आरम्भ करते हैं,

         तो वे तिरस्कार पूर्वक घोड़ों के सवारों पर हँसते हैं

         क्योंकि घोड़े शुतुर्मुर्गों के समान तेजी से नहीं दौड़ सकते हैं!

     19 इसके अतिरिक्त, घोड़ों के विषय में सोच। हे अय्यूब, क्या वह तू ही है जिसने घोड़ों को शक्तिशाली बनाया?

         क्या वह तू ही है जो उनकी गर्दनों पर फहराती हुई अयाल रखता है?

     20 क्या वह तू ही है जिसने उन्हें टिड्डियों के समान आगे छलांग लगाने में सक्षम बनाया?

         जब वे हिनहिनाते हैं, तो वे लोगों को डरा देते हैं।

     21 वे आनन्दित होकर भूमि को पैरों से खुरचते हैं, क्योंकि वे बहुत शक्तिशाली हैं,

         जब वे युद्ध में भागने के लिए तैयार होते हैं तब

     22 ऐसा लगता है कि वे डरने के विचार पर हँस रहे हैं। वे किसी भी बात से नहीं डरते हैं!

         वे भागते नहीं हैं जब युद्ध में सैनिक तलवारों से एक दूसरे से लड़ रहे हैं।

     23 सारथी के तीर रखने वाले तरकश घोड़े की पीठ पर खड़खड़ाते हैं,

         और भाले और सांग सूरज की रोशनी में चमकते हैं।

     24 घोड़े बहुत तेज दौड़ते हैं, और वे तेजी से भूमि को ढाँप लेते हैं;

         जैसे ही तुरही फूँकी जाती है, वे युद्ध में भाग जाते हैं।

     25 जब वे किसी को तुरही फूँकते हुए सुनते हैं तो वे आनन्द से हिनहिनाते हैं।

         वे बहुत दूर होने पर भी युद्ध की गन्ध ले सकते हैं,

         और वे समझते हैं कि इसका अर्थ क्या है जब सरदार अपने आदेशों को अपने सैनिकों को चिल्ला कर सुनाता हैं।

     26 बड़े पक्षियों के विषय में सोच। क्या वह तू ही है जिसने अपने पंखों को फैलाने के लिए

         और सर्दियों के लिए दक्षिण की ओर उड़ जाने को बाज को सक्षम किया है?

     27 क्या उकाब अपने घोंसले बनाने के लिए चट्टानों में ऊपर इसलिए ऊँचे उड़ते हैं

         कि तू ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया है?

     28 वे उन चट्टानों के छेदों में रहते हैं।

         वे उन ऊँची नुकीली चट्टानों में सुरक्षित हैं क्योंकि कोई भी जानवर उनके पास वहाँ तक नहीं पहुँच सकता है।

     29 जब वे वहाँ से ध्यानपूर्वक देखते हैं,

         वे बहुत दूर से उन जानवरों को देखते हैं जिनको वे मार सकते हैं।

     30 उकाब द्वारा एक जानवर को मारने के बाद,

         उकाब के बच्चे उस जानवर के लहू को पीते हैं;

         जहाँ कहीं भी भूमि पर मरे हुए मनुष्य पड़े होते हैं वे वहाँ एकत्र हो जाते हैं।”

Chapter 40

1 तब यहोवा ने अय्यूब से कहा,

     2 “क्या तू अब भी मेरे, एकमात्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ विवाद करना चाहता है?

         क्योंकि तू मेरी निन्दा करता है, इसलिए तुझे मेरे प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम होना चाहिए!”

3 तब अय्यूब ने यहोवा को उत्तर दिया,

     4 “अब मैं जान गया हूँ कि मैं पूरी तरह से निकम्मा हूँ। अतः मैं उन प्रश्नों का उत्तर कैसे दे सकता हूँ?

         मैं अपना हाथ अपने मुँह पर रखूँगा और कुछ भी नहीं कहूँगा।

     5 जितना मुझे कहना चाहिए था उससे अधिक मैं पहले ही कह चुका हूँ,

         इसलिए अब मैं और कुछ नहीं कहूँगा।”

6 तब यहोवा ने फिर से एक शक्तिशाली तूफान में होकर अय्यूब से बात की। उन्होंने कहा,

     7 “मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ,

         इसलिए एक पुरुष के समान व्यवहार कर और

         मेरे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए तैयार हो जा।

     8 क्या तू मुझ पर आरोप लगाने और यह कहने जा रहा है कि मैं अनुचित हूँ?

         क्या तू यह कहने जा रहा है कि मैंने जो किया है वह गलत है, कि तू कह सके कि तू ने जो किया है वह सही है?

     9 क्या तेरे पास उसी मात्रा में शक्ति है जो मेरे पास है?

         क्या तेरी आवाज़ तूफान के समान जोर से आवाज़ कर सकती है, जैसे मेरी कर सकती है?

     10 यदि तू ऐसा कर सकता है, तो उन कपड़ों को पहन ले

         जो दिखाते हैं कि तू गौरवशाली है और बहुत सम्मानित किया गया है!

     11 दिखा कि तू बहुत क्रोध में हैं;

         दिखा कि तुझे उन लोगों को विनम्र करने का अधिकार है जो बहुत घमण्डी हैं!

     12 उन घमण्डी लोगों को केवल क्रोध में देख कर विनम्र कर दे!

         दुष्ट लोगों को शीघ्र ही चकना चूर कर दे!

     13 उन्हें भूमि में दफना दे!

         उन्हें उस स्थान में भेज दे जहाँ मरे हुए लोग हैं,

         जहाँ से वे बाहर निकलने में सक्षम नहीं होंगे!

     14 यदि तू ऐसा करता है, तो मैं तुझे बधाई दूँगा

         और कहूँगा कि वास्तव में तू अपनी शक्ति से स्वयं को बचा सकता है।

     15 दरियाई घोड़े के विषय में भी सोच।

         मैंने तुझे बनाया, और मैंने उसे भी बनाया।

         वे बैल के समान घास खाते हैं।

     16 उनके पैर बहुत शक्तिशाली हैं,

         और उनकी पेट की माँसपेशियाँ बहुत शक्तिशाली हैं।

     17 उनकी पूँछ एक देवदार के पेड़ की शाखाओं के समान कठोर हैं।

         उनकी जाँघों की माँसपेशियाँ एक साथ जुड़ी हुई हैं।

     18 उनकी जाँघ की हड्डियाँ पीतल से बनी सलाखों के समान हैं,

         और उनके पैरों की हड्डियाँ लोहे से बनी सलाखों के समान हैं।

     19 दरियाई घोड़े उन जानवरों में सबसे अधिक शक्तिशाली हैं जिन्हें मैंने बनाया है,

         और केवल मैं ही, जिसने उन्हें बनाया, एकमात्र हूँ जो उन्हें मार सकता है।

     20 पहाड़ियों पर उनके खाने के लिए भोजन उगता है

         जबकि कई अन्य जंगली जानवर पास में खेलते हैं।

     21 वे कमल के पौधों के नीचे पानी में पड़े रहते हैं;

         वे दलदल में लम्बे सरकण्डों में छिप जाते हैं।

     22 दरियाई घोड़े कमल के पौधों के नीचे छाया पाते हैं,

         और वे धाराओं में बढ़ने वाले बेंत के पेड़ों से घिरे हुए हैं।

     23 वे उफनती बाढ़ ग्रस्त नदियों से परेशान नहीं होते हैं;

         जब यरदन नदी जैसी नदियाँ उनके ऊपर से बहती हैं तो वे परेशान नहीं होते हैं।

     24 कोई भी उन्हें अंकुड़ों से

         या जाल के दाँतों से उनकी नाक में छेद करके पकड़ नहीं सकता है!

Chapter 41

    

1 “मगरमच्छ के विषय में भी सोच।

         क्या तू उन्हें मछली फँसाने की बंसी से पकड़ सकता है

         या उनके जबड़े रस्सी से बाँध सकता है?

     2 क्या तू उन्हें नियंत्रित करने के लिए उनकी नाक में रस्सी डाल सकता है

         या उनके जबड़ों में अंकुड़े फँसा सकता है?

     3 क्या वे उनके साथ दया के व्यवहार करने के लिए तुझसे अनुरोध करेंगे

         या मीठी बातें करेंगे कि तू उन्हें हानि नहीं पहुँचाए?

     4 क्या वे तेरे लिए कार्य करने को तेरे साथ समझौता करेंगे,

         जब तक वे जीवित रहते हैं तब तक तेरे दास बनने के लिए?

     5 क्या तू उन्हें पालतू बना सकता है जैसे तू पक्षियों को बनाता है?

         क्या तू उनकी गर्दनों के चारों ओर पट्टा डाल सकता है कि तेरी दासियाँ उनके साथ खेल सकें?

     6 क्या वे लोग जो मछली बेचने में भागीदार हैं उन्हें बाजार में बेचने का प्रयास कर सकते हैं?

         क्या वे एक मगरमच्छ को टुकड़ों में काट कर उसका माँस बेचेंगे?

     7 क्या तू मछली पकड़ने के भाले फेंक कर उनकी खाल के माध्यम से मगरमच्छ को छेद सकता है?

         क्या तू उनके सिरों को एक बर्छी से छेद सकता है?

     8 यदि तू उनमें से एक को अपने हाथों से पकड़े तो भी तुझे ऐसी मार मारेगा जिसे तू कभी नहीं भूलेगा,

         और तू फिर से ऐसा करने का प्रयास कभी नहीं करेगा!

     9 उनको वश में करने की आशा करना भी व्यर्थ है।

         कोई भी जो उनमें से एक को वश में करने का प्रयास करता है वह डर के मारे भूमि पर गिर जाएगा।

     10 कोई भी मगरमच्छ को क्रोधित करने का साहस नहीं करता है।

         इसलिए, क्योंकि मैं उनके तुलना में अधिक शक्तिशाली हूँ, कौन मुझे क्रोधित करने का साहस करेगा?

     11 इसके अतिरिक्त, पृथ्‍वी पर सब कुछ मेरा है।

         इसलिए, कोई भी मुझे कुछ देने में सक्षम नहीं है और मुझे इसके लिए पैसे का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है!

     12 मैं तुझे बताता हूँ कि मगरमच्छ के पैर कितने मजबूत हैं

         और उनके अच्छी तरह से बनाए गए शरीर कितने शक्तिशाली हैं।

     13 क्या कोई उनकी खालें उतार सकता है?

         क्या कोई उनके दो परत वाले कवच के आरपार छेद कर सकता है?

     14 क्या कोई उनके जबड़े खोल सकता है, जिसमें भयानक दाँत हैं?

     15 उनके पास उनकी पीठ पर छिलकों की पंक्तियाँ हैं

         जो चट्टान के समान कठोर हैं।

     16 वे छिलके एक साथ बहुत निकट हैं;

         यहाँ तक कि हवा भी उनके बीच नहीं जा सकती है।

     17 वे छिलके एक दूसरे के साथ बहुत निकटता में जुड़े हुए हैं,

         और उन्हें अलग नहीं किया जा सकता है।

     18 जब मगरमच्छ छींकते हैं, तो पानी की छोटी बूँदें जो उनकी छींक से निकलती हैं सूरज की रोशनी में चमकती हैं।

         उनकी आँखें उगते सूरज के समान लाल हैं।

     19 ऐसा लगता है जैसे मानों आग की चिंगारियाँ उनके मुँह से निकलती हैं।

     20 उनके नथनों से धुआँ ऐसे बाहर निकलता है

         जैसे एक बर्तन से भाप निकलती है जिसे बहुत ही गर्म आग पर रखा जाता है।

     21 उनकी साँस कोयलों को दहका सकती है

         और उनके मुँह से आग की लौ निकलती है।

     22 उनकी गर्दनें बहुत दृढ़ हैं;

         वे जहाँ भी वे जाते हैं, लोगों को बहुत डरा देते हैं।

     23 उनके माँस की तहें एक साथ बहुत निकट हैं

         और बहुत कठोर हैं।

     24 वे निडर हैं

         क्योंकि उनके शरीर के भीतरी भाग एक चट्टान के समान कठोर हैं,

         इतने कठोर जितना चक्की का निचला पाट जिस पर लोग अनाज पीसते हैं।

     25 जब वे उठते हैं, तब वे बहुत शक्तिशाली लोगों को भी भयभीत कर देते हैं।

         जिसके परिणामस्वरूप, लोग पीछे गिर पड़ते हैं।

     26 लोग तलवार से उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते;

         या भाले, तीर, या नोकीले भाग वाले अन्य हथियारों से उन्हें घायल नहीं कर सकते हैं।

     27 निश्चय ही वे भूसे या सड़ी हुई लकड़ी से बने हथियारों से नहीं डरते हैं,

         परन्तु वे लोहे या पीतल से बने हथियारों से भी नहीं डरते हैं!

     28 उन पर तीर मारना उन्हें दूर भागने को प्रेरित नहीं करता है।

         एक गोफन से उन पर पत्थरों को फेंकना उन पर भूसे के कणों को फेंकने जैसा है।

     29 वे डण्डों से बिलकुल भी नहीं डरते हैं, इससे अधिक कि वे उन पर भूसे के टुकड़े फेंकने वाले पुरुषों से डरेंगे,

         और वे हँसते हैं जब वे सुनते हैं कि एक भाला उनकी ओर आ रहा है।

     30 उनके पेट छिलकों से ढके हुए हैं जो बर्तन के टूटे हुए टुकड़ों के समान धारदार हैं।

         जब वे स्वयं को मिट्टी के बीच से खींचते हैं,

         उनके पेट एक हल के समान भूमि को फाड़ते है।

     31 वे पानी में हलचल करते हैं और इसमें झाग बनाते हैं

         जब वे इसमें मंथन करते हैं।

     32 जब वे पानी में तैरते हैं, तब पानी में चलने की उनकी लीक चमकती हैं।

         जो लोग इसे देखते हैं वे सोचते हैं कि झाग सफेद बाल बन गया है।

     33 पृथ्‍वी पर ऐसा कोई प्राणी नहीं है जिसको मैंने मगरमच्छ के समान निडर बनाया है।

     34 वे सभी प्राणियों में सबसे अधिक गौरवशाली हैं;

         वे अन्य सब जंगली जानवरों पर राजाओं के समान हैं।”

Chapter 42

1 तब अय्यूब ने यहोवा को उत्तर दिया। उसने कहा,

     2 “मुझे पता है कि आप सब कुछ कर सकते हैं

         और कोई भी आपको ऐसा करने से रोक नहीं सकता जो आप करना चाहते हैं।

     3 आपने मुझसे पूछा, ‘मैं जो करने की योजना बनाता हूँ उसमें भ्रम लाने वाला तू कौन है? तुम अज्ञानता की बातें कर रहा है!

         यह सच है कि मैंने उन बातों के विषय में बोला जो मुझे समझ में नहीं आई,

         वे बातें जो बहुत ही आश्चर्यजनक हैं,

         वे बातें जिनके विषय में मुझे कुछ नहीं पता है।

     4 आपने मुझसे कहा, ‘सुन जब मैं तुझसे बात करता हूँ।

         मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ,

         इसलिए स्वयं को उत्तर देने के लिए तैयार कर।’

     5 मैंने पहले आपके विषय में अफवाह ही सुनी,

         परन्तु अब ऐसा लगता है कि मानों मैंने आपको अपनी आँखों से देखा है।

     6 इसलिए मैंने जो कहा, उसके लिए मैं लज्जित हूँ,

         और मैं यह दिखाने के लिए धूल और राख में बैठता हूँ कि मैंने जो कहा उसके लिए मैं खेदित हूँ।”

7 जब यहोवा ने अय्यूब से यह सब बातें कह दीं, तब उन्होंने एलीपज से कहा, “मैं तुझे और तेरे दो मित्रों, बिल्दद और सोपर से क्रोधित हूँ, क्योंकि तुमने मेरे विषय में, मेरे दास अय्यूब के समान सच्ची बातें नहीं कही। 8 इसलिए अब तुम्हें अय्यूब के पास सात युवा बैल और सात मेढ़े ले जाना चाहिए और उन्हें मार डालना चाहिए और वेदी पर उन्हें अपने लिए बलि के रूप में जला देना चाहिए। तब अय्यूब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा, और मैं वह करूँगा जो वह मुझसे करने के लिए निवेदन करता है। मैं तुमको मेरे विषय में गलत बोलने के लिए क्षमा कर दूँगा। मैं तुमको दण्ड नहीं दूँगा, जबकि तुम दण्ड के योग्य हों, क्योंकि तुमने मेरे विषय में जो कहा वह सही नहीं था।”

9 तब एलीपज, बिल्दद और सोपर ने वह किया जो यहोवा ने करने का आदेश दिया, और यहोवा ने वह किया जो अय्यूब ने उनसे उन तीनों के लिए करने का अनुरोध किया।

10 अय्यूब के अपने तीन मित्रों के लिए प्रार्थना करने के बाद, यहोवा ने उसे ठीक किया और उसे फिर से धनवान बना दिया। यहोवा ने उसे उससे दोगुनी वस्तुएँ दीं, जितनी पहले उसके पास थीं। 11 तब उसके सब भाई और बहन, और जो लोग उसे पहले जानते थे, उसके घर आए, और उन्होंने एक साथ भोजन किया। उन्होंने उन सब परेशानियों के विषय में उसे सांत्वना दी जिन्हें यहोवा ने उसके साथ होने की अनुमति दी थी। उनमें से प्रत्येक ने अय्यूब को चाँदी का एक टुकड़ा और एक सोने की अंगूठी दी।

12 तब यहोवा ने उसके जीवन की दूसरी बार में अय्यूब को उससे बढ़कर आशीषें दीं, जितनी उन्होंने उसे उसके जीवन के पहली बार में आशीषें दीं थीं। अब उसने चौदह हजार भेड़ें, छः हजार ऊँट, एक हजार बैल, और एक हजार गधियाँ प्राप्त कीं। 13 और उसके सात और पुत्र हुए, तथा तीन और पुत्रियाँ भी हुई थीं। 14 उसने पहली पुत्री को यमीमा नाम दिया, उसने दूसरी पुत्री को कसीआ नाम दिया, और उसने तीसरी पुत्री को केरेन्हप्पूक नाम दिया। 15 ऊज़ के सारे देश में, कोई भी ऐसी युवा स्त्रियाँ नहीं थीं जो अय्यूब की पुत्रियों के समान सुन्दर थीं, और अय्यूब ने घोषणा की कि वे उसकी कुछ-कुछ सम्पत्तियों की वारिस होंगी, जैसे उनके भाई वारिस होंगे।

16 उसके बाद, अय्यूब 140 वर्ष तक और जीवित रहा। उसकी मृत्यु से पहले, उसने अपने परपोतों (चार पीढ़ियों तक) को देखा। 17 जब वह मरा तो वह बहुत बूढ़ा हो गया था।