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Colossians

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कुलुस्सियों: प्रस्तावना

भाग 1: सामान्य प्रस्तावना

कुलुस्सियों की पुस्तक की रूपरेखा
  1. पत्र का आरम्भ (1:1–12)
    • अभिवादन (1:1–2)
    • धन्यवाद की प्रार्थना (1:3-8)
    • अनुनय की प्रार्थना (1:9-12)
  2. शिक्षण अनुभाग (1:13-2:23)

    • मसीह और उसके काम (1:13–20)
    • कुलुस्से के विश्वासियों से अनुप्रासंगिक मसीह के काम (1:21–23)
    • पौलुस के सेवा कार्य(1:24–2:5)
    • मसीह के कामों का प्रभाव (2:6–15)
    • मसीह में स्वतंत्रता (2:16–23)
  3. प्रबोधन अनुभाग
    • अलौकिक बातों की खोज(3:1–4)
    • दुर्गुणों को त्याग कर सद्गुणों को अपनाना(3:5–17)
    • परिवारों के लिए आज्ञाएं(3:18–4:1)
    • प्रार्थना के निवेदन और बाहरी मनुष्यों के साथ व्यवहार(4:2–6)
  4. पत्र समापन (4:7–18)
    • संदेशवाहक  (4:7–9)
    • मित्रों का अभिवादन4:10–14)
    • पौलुस का आशीर्वाद और निर्देश (4:15–17)
    • पौलुस के अपने हाथों से लिखा आशीर्वाद (4:18)
कुलुस्से की कलीसिया को किसने पत्र लिखा?

लेखक अपनी पहचा में कहता है कि वह प्रेरित पौलुस है। पौलुस तरसुस नगर से था। वह अपने प्रारंभिक जीवन में शाऊल के नाम से जाना जाता था। मसीह को ग्रहण करने से पहले पौलुस एक फरीसी था और वह मसीह के अनुयायियों को सताता था। मसीह में विश्वास करने के बाद, उस ने रोमी साम्राज्य की अनेक यात्राएं कीं और यीशु के बारे में मनुष्यों के मध्य प्रचार किया परन्तु उसने कुलुस्से के विश्वासियों से यक्तिगत भेंट कभी नहीं की थी (देखें 2:1).

पौलुस ने यह पत्र रोमी कारावास के समय लिखा था (4:3; 4:18). पौलुस के अनेक बार कारावास में रखा गया था और वह स्पष्ट नहीं करता है कि इस समय वह कहाँ है| अनेक विद्वानों के मतानुसार वह रोम में है|

कुलुस्सियों की पत्री की विषयवस्तु क्या है?

पौलुस ने यह पत्र एशिया माइनर (वर्तमान टर्की) शहर में कुलुस्से नगर के मसीही विश्वासियों को लिखा था। उसने जब इपफ्रास से कुलुस्से के विश्वासियों के बारे में सुना तब उनको प्रोत्साहित करने के लिए और झूठे शिक्षकों से सतर्क रहने के लिए उसने उनको यह पत्र लिखा था| झूठे शिक्षक उनको सिखा रहे थे कि नवजीवन प्राप्ति हेतु उनको कुछ नियमों का पालन करना और कुछ बातों का ज्ञान भी होना आवश्यक है| वे अपने सामर्थ्य और अनुभव पर भी गर्व करते थे। पौलुस इस झूठी शिक्षा का खंडन करते हुए कुलुस्से के विश्वासियों से कहता है कि मसीह के काम ने उनकी हर एक आवश्यकता को पूरा कर दिया है और वह उनको नवजीवन प्रदान करता है| मसीह से जुड़ जाने के बाद उनको अन्य किसी बात की आवश्यकता नहीं है, इन झूठी शिक्षाओं की भी नहीं।

इस पुस्तक के शीर्षक का अनुवादित कैसे किया जाए?

अनुवादक इस पुस्तक को इसके पारंपरिक शीर्षक ""कुलुस्सियों"" कह सकते हैं। या वे एक अधिक स्पष्ट शीर्षक चुन सकते हैं, जैसे """" कुलुस्से की कलीसिया के लिए पौलुस का पत्र"""" या """" कुलुस्से में मसीही विश्वासियों के लिए एक पत्र।"""" (देखें: नामों का अनुवाद कैसे करें)

भाग 2: महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक अवधारणाएं

ये झूठे शिक्षक कौन थे जिनसे सतर्क रहने के ली पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों को चिताता है?

अत्यधिक संभावना है कि ये झूठे शिक्षक किसी एक समूह विशेष के या आस्था तंत्र के सदस्य नहीं थे| संभवतः वे विभिन्न आस्था तंत्रों की बातों में विश्वास करते थे वरन उनको व्यवहार में भी लेते थे| इस कारण, उनकी मान्यताओं और शिक्षाओं का वर्णन करना कठिन है| उनके विषय पौलुस की बातों के आधार पर वे खाने और पीने के निश्चित नियमों का पालन करते थे और विशिष्ठ दिनों और व्यवहारों के अनुष्ठानों को भी करते थे| पौलुस के अनुसार उनका अपना ""तत्वज्ञान"" था और इस संसार के बारे में उनकी अपनी ही विचारधारा थी| संसार को वे अत्यधिक जटिल मानते थे| ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी कुछ मान्यताएं और नियम दर्शनों और अद्भुत अनुभवों पर आधारित थीं| उनका मानना था कि ये सब स्वर्गदूतों के साक्षात्कार का परिणाम है| पौलुस का विवाद था कि ऎसी धारणाओं पर विश्वास करने वाले मनुष्य मसीह के निष्ठावान नहीं हैं| वह चाहता था कि कुलुस्से के विश्वासी उनके लिए किए गए मसीह के काम पर ध्यान केन्द्रित करें क्योंकि उसके द्वारा इन झूठी शिक्षाओं द्वारा दावा की गई बातों का वरन उनसे कहीं अधिक बातों को सिद्ध किया जा चुका है|

पौलुस ""स्वर्ग"" के लिए जिस भाषा का उपयोग करता है तो उससे उसके कहने का अर्थ क्या है?

पौलुस स्वर्ग के विषय कहता है कि वह ऊपर है और उसकी अतिरिक्त व्याख्या में कहता है कि उस स्थान में मसीह परमेश्वर की दाहिनी और विद्यमान है और वहाँ विश्वासियों के लिए आशीषों का भण्डार है| अति संभव है कि आत्मिक शक्तियां भी स्वर्ग में उपस्थित हैं| पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों से कहता है कि वे स्वार्गिक बातों की खोज में रहें 3:1 तो उसके कहने का अर्थ यह नहीं कि स्वर्ग अच्छा है और पृथ्वी बुरी है, अपितु यह कि वहाँ मसीह विद्यमान है जैसा वह इसी पद में कहता है| कुलुस्से के विश्वासियों के लिए आवश्यक है कि वे मसीह और उसके स्थान पर ध्यान लगाए रहें|

पौलुस द्वारा चर्चित आत्मिक शक्तियां क्या हैं?

पौलुस की चर्चा में सिंहासन, प्रभुताएं, प्रधानताएं, अधिकार अदि 1:16 में किया गया हैऔर वह इनमें से कुछ शब्दों का उपयोग 2:10; 2:15में भी करता है| ये शब्द उन वस्तुओं या मनुष्यों के सन्दर्भ में हैं जिनके पास शक्ति और अधिकार हैं और कुलुस्से की कलीसिया को लिखे पत्र में ये शब्द अधिक विशिष्ठता में शक्तिशाली आत्मिक प्राणियों के सन्दर्भ में हैं|2:8; 2:20 में उल्लिखित आदि शिक्षा संभवतः व्यापक भाव में, ऐसे ही प्राणियों के सन्दर्भ में है| पौलुस स्पष्ट नहीं कह रहा है कि ये आत्मिक शक्तियां बुरी हैं अपितु वह कहता है कि मसीह के काम ने कुलुस्से के विश्वासियों को उनसे मुक्त कराता है| इन शक्तियों की आज्ञा मानना और उन पर ध्यान देना मसीह के द्वारा दी गए इस नवजीवन के विरुद्ध है|

इस पत्र में जिन मनुष्यों के नाम लिए गए हैं वे सब कौन हैं?

पत्र के अंत में चर्चित अधिकाँश जन या तो पौल्लुस के साथी है या कुलुस्से नगर में या कुलुसी के परिवेश में रहने वाले पौलुस के परिचित जन हैं| इपफ्रास का नाम अनेक बार लिया गया है क्योंकि वही था जिसने सबसे पहले कुलुस्से में सुसमाचार सुनाया था और उसी ने पौलुस को उनके बारे में समाचार दिया था| तुखिकुस और उनेसिमुस वे थे जो पौलुस का पत्र लेकर कुलुस्से गए थे और वे पौलुस और उसके साथियों के बारे में अधिक वर्तमान समाचार सूना सकते थे|

पौलुस इस पत्र में अन्य नगरों की चर्चा क्यों करता है?

पौलुस लौदिकिया और हियरापुलिस का उल्लेख करता है क्योंकि वे उसी घाटी में परिवेश के नगर थे| यदि कोई कुलुस्से नगर में खडा हो जाए तो वह घाटी के छोर पर लौदिकिया नगर को देख सकता/सकती है| पौलुस इन तीन नगरों (कुलुस्से, लौदिकिया और हियरापुलिस) का नाम लेता है क्योंकि ये वे नगर थे जहां इपफ्रास ने सुसमाचार सुनाया था और पौलुस ने इन नगरों में किसी भी विश्वासी से भेंट नहीं की थी संभवतः इन समानताओं के कारण और इस कारण भी कि वे आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध रखते थे पौलुस चाहता था कि कुलुस्से के विश्वासी और लौदिकिया के विश्वासी अपने अपने पत्र को परस्पर साझा करें|

भाग 3: अनुवाद की महत्वपूर्ण समस्याएँ

पौलुस यीशु को परमेश्वर की समानता में कैसे दर्शाता है?

पौलुस यीशु को परमेश्वर का ""प्रतिरूप"" कहता है वरन ""सारी सृष्ठी में पहिलौठा"" कहता है (1:15). इनमें से कोई सा भी वर्णन इस अभिप्राय से नहीं है कि यीशु को परमेश्वर द्वारा सृजित पहाली और सर्वोत्तम वस्तु दर्शाए| इनके द्वारा तो यीशु को सृष्टि से प्रथक रखा गया है| इसका स्पष्टीकरण अगले पद में है जहां उसको सृजनहार कहा गया है (1:16). यदि यीशु सृजित प्राणी नहीं है तो वह निश्चय ही परमेश्वर है| ""सारी वस्तों में प्रथम"" औत ""सब वस्तुएं उसी में स्थिर हैं"" आदि ऐसे कथन है जो इसी पुश्तिकारण को प्रकट करते हैं(1:17).

पौलुस दो बार कहता है कि यीशु में परमेश्वर की सारी ""परिपूर्णता"" वास करती है (1:19; 2:9). इसका अर्थ यह नहीं कि यीशु विशिष्टरूपेण परमेश्वर के निकट है या उसमें परमेश्वर का अन्तर्वास है अपितु इसका अर्थ है कि यीशु वह सब कुछ है जो परमेश्वर है (परमेश्वर की सम्पूर्णता) .

अंत में, यीशु स्वर्ग में परमेश्वर की दहीनी ओर बैठा है (3:1). इसका अर्थ यह नहीं कि वह एक सामर्थी प्राणी है जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन करता है| इसका अर्थ है कि वह परमेश्वर के साथ स्वर्गिक सिंहासन पर विराजमान है और वह स्वयं परमेश्वर है|

पौलुस यीशु को मनुष्य की पहचान में कैसे दर्शाता है?

पौलुस कहता है कि यीशु ""शारीरिक देह"" में मर गया था(1:22). इसके अतिरिक्त, जब वह कहता है कि यीशु परमेश्वर की ""परिपूर्णता"" है तो यह उसकी ""शारीरिक"" अवस्था (2:9). की सत्यता है| जब पौलुस कहता है कि यीशु ""देहधारी"" था तो इसका अर्थ है नहीं कि यीशु मात्र शरीर का उपयोग करता था कि मनुष्य दिखाई दे अपितु, उसके कहने का अर्थ है कि यीशु हमारे सदृश्य देहिक मनुष्य था|

पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों से कहता है कि वे मर कर जीवित हुए हैं तो उसके कहने का अर्थ क्या है?

इस सम्पूर्ण पत्र में पौलुस अनेक बार कहता है कि वे अर्थात कुलुस्से के विश्वासी मर कर यीशु के साथ पुनः जीवित हो गए है| इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी देहिक मृत्यु हो गई थी और वे मृतकों में से जीवित हो गए हैं|यह भाषा अलंकृत नहीं है कि पौलुस का अर्थ वास्तव में यही है| अपेक्षा इसके कहने का अर्थ है कि परमेश्वर ने विश्वासियों को मसीह की मृत्यु और पुरुत्थान में समाहित किया है| कुलुस्से के विश्वासी अभी तक मरे नहीं थे और न ही उनका पुरुत्थान हुआ था, परन्तु वे इस संसार और इसकी शक्तियों के लिए मृतक होने का और नवजीवन का उसकी आशीषों के साथ अनुभव कर सकते थे जो मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान में उनकी एकता के द्वारा है|

पौलुस जब ज्ञान की चर्चा करता है तो उसका अभिप्राय क्या है?

इस सम्पूर्ण पत्र में पौलुस की भाषा में ज्ञान शब्द और उसके रूपों का उपयोग किया गया है जैसे """"जानना"",""ज्ञान"", ""समझ"" आदि| संभव है कि झूठे शिक्षक अपने श्रोताओं से परमेश्वर और उसकी इच्छा के ""ज्ञान"" की प्रतिज्ञा कर रहे थे| इसके प्रतिवाद में पौलुस की मंशा थी कि कुलुस्से के विश्वासियों को समझाए कि उनको टिटने भी गया की आवश्यकता है वह मसीह में और उसके काम में पाया जाता है| यह चाहे सच हो या नहीं, पौलुस निश्चय ही कुलुस्से के विश्वासियों को समझाना चाहता है कि उनका परमेश्वर के ज्ञान में वृद्धिमान होना ही महत्वपूर्ण है और यह ज्ञान मसीह में ही पाया जाता है| ""ज्ञान"" का अर्थ है, परमेश्वर के बारे में और इस संसार में उसकी इच्छा एवं काम के बारे में  अधिकाधिक शिक्षा ग्रहण करना| इन बातों का ""अभिज्ञान"" होना नवजीवन और परिवर्तित व्यवहार का मूल है|.

कुलुस्से की पत्री के पाठ में प्रमुख विषय क्या हैं?

प्राचीन हस्तलिपियों में निम्नलिखित पदों में अंतर है| ULT में उन पाठों को रखा गया है जिनको अधिकाँश विद्वान मूल लिपि मानते हैं और अन्य पाठों को पाद टिप्पणियों में रखा गया है| यदि आपके क्षेत्र में वृहत प्रसारण का कोई बाईबल अनुवाद है तो अनुवादक उस संस्करण में दी गए अनुवाद का अनुपालन करना चाहेंगे| यदि ऐसा कुछ नहीं है तो हमारा सुझाव है कि आप ULT में दिए गए अनुवाद का अनुपालन करें|

""हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शांति प्राप्त होती रहे"" 1:2 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार लिखा है, ""तुम्हें अनुग्रह, और हमारे पिटा परमेश्वर से शान्ति मिलती रहे|""

  • ""हमारे प्रिय सहकर्मी, इपफ्रास, से पाई जो हमारे लिए मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है"" 1:7 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, ""इपफ्रास, हमारा प्रिय सहकर्मी, जो तुम्हारी ओकर से मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है""
  • ""और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिसने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में सहभागी हों"" 1:12 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, पिता, जिसने हमें ज्योति में पवित्र जनों की मीरास में साझेदार होने योग्य बनाया है""
  • ""जिस में हमें छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा प्राप्त होती है"" 1:14 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, ""जिसमे हमें उसके लहू के द्वारा छुटकारा प्राप्त है पापों की क्षमा""
  • ""और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया"" 2:13 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, ""तुम्हारे सब अपराधों को क्षमा कर देने पर""
  • ""जब मसीह जो हमारा जीवन है प्रगट होगा"" 3:4 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, ""जब मसीह, हमारा जीवन,प्रकट होगा""
  • ""परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न मानने वालों पर पड़ता है"" 3:6 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, ""परमेश्वर का क्रोध अवज्ञाकारियों पर दिरने वाला है""
  • ""कि तुम्हे हमारी दशा मालूम हो जाए"" 4:8 कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इस प्रकार है, ""जिससे कि उसको तुम्हारा हाल ज्ञात हो""

(देखें: लेखों के भेद)

Colossians 1

कुलुस्सियों 01: निर्विशेष टिप्पणियाँ

रचना एवं विन्यास शैली

  1. पत्र का आरम्भ (1:1–12)
    • अभिवादन (1:1–2)
    • धन्यवाद की प्रार्थना (1:3–8)
    • अनुनय की प्रार्थना (1:9–12)
  2. शिक्षण अनुभाग (1:13–2:23)
    • मसीह और उसका काम (1:13–20)
    • कुलुस्से के विश्वासियो से प्रासंगिक मसीह का काम (1:21–23)
    • पौलुस के सेवा कार्य (1:24–2:5)

पौलुस इस पत्र के आरम्भ 1:1-2 में तीमुथियुस का और अपना नाम देता है तथा पत्र के प्राप्तिकर्ताओं की पहचान उजागर करता है और उनका अभिवादन करता है| उस समय में पत्र को आरम्भ करने की यह एक विशिष्ट विधि थी।

इस अध्याय में विशेष अवधारणाएं

भेद की बात

पौलुस इस अध्याय में पहली बार ""भेद"" की बात की चर्चा करता है 1:26-27. इसका सन्दर्भ किसी गुप्त सत्य से नहीं है जिसको समझना कठिन है और कुछ सौभाग्यशाली मनुष्य ही उसको अंतर्ग्रहण कर सकते हैं| इसकी अपेक्षा, इसका सन्दर्भ परमेश्वर की योजना से है जो एक समय अज्ञात थी परन्तु अब सब मनुष्यों पर प्रकट हो गई है| इस भेद की विषयवस्तु क्या है? यह मसीह स्वयं है, उसका काम है और विश्वासियों के साथ उसकी एकता है| (देखें: प्रकट करना, प्रकट किया, प्रकाशन)

परिपूर्णता

पौलुस ""परिपूर्ण"" या ""परिपूर्णता"" का सी अध्याय में चार बार सन्दर्भ देता है| पहली बार, जब वह प्रार्थना करता है कि कुलुस्से के विश्वासी परमेश्वर की इच्छा की पहचान में ""परिपूर्ण"" हो जाएं 1:9. दूसरी बार, यीशु में परमेश्वर की सारी ""परिपूर्णता"" वास करती है 1:19. तीसरी बार, पौलुस मसीह के क्लेशों की घटी को अपने शरीर में ""पूरी"" करता है 1:24. चौथी बार, पौलुस परमेश्वर के वचन को ""पूरा पूरा"" प्रचार करता है 1:25 यह संभव है कि पौलुस ""परिपूर्णता"" और ""पूरा"" शब्दों का उपयोग बार बार करता है जिसका कारण है कि झूठे शिक्षक इसकी प्रतिज्ञा करते थे| इसलिए पौलुस चाहता था कि प्रकट करे कि ""परिपूर्णता"" कैसे उनके लिए मसीह के काम के द्वारा और उसके काम के द्वारा भी प्राप्त होती है| मसीह में परमेश्वर की परिपूर्णता समाई हुई थी और पौलुस मसीह की सेवा के निमित्त कुलुस्से के विश्वासियों में इस परिपूर्णता का ज्ञान भरता है जो बदले में परमेश्वर की इच्छा के ज्ञान से परिपूरित हो जाते हैं|

इस अध्याय में महत्वपूर्ण अलंकार

मसीही जीवन के रूपक

पौलुस इस अध्याय में मसीही जीवन के लिए अनेक रूपकों का प्रयोग करता है जैसे ""चलना"", ""फल उत्पन्न करना"" (1:10) आदि| इन रूपकों से प्रकट होता है कि पौलुस चाहता है कि कुलुस्से के विश्वासी अपने मसीही जीवनों को ऐसा जीवन मानें जैसा कि वे वे एक लक्ष्य (यदि चलते है तो गंतव्य की ओर और यदि फल लाते हैं तो परिपक्वता की ओर) की ओर अग्रसर हैं| (देखें: फल, फलों, फलवन्त, निष्फल)

ज्योति बनाम अन्धकार

पौलुस ""ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में"" (1:12)की तुलना ""अन्धकार के वश से छुडाकर"" (1:12) से करता है| ""ज्योति"" द्योतक है, अच्छे, मनोवांछित और परमेश्वर के अनुग्रह से सम्बंधित की| ""अन्धकार"" द्योतक है, परमेश्वर से दूर, और बुराई की

सिर और देह

इस अध्याय में पौलुस एक रूपक का समावेश कराता है जिसको वह अध्याय 2 में पूर्णतः सुव्यक्त करेगा : कि मसीह देह अर्थात कलीसिया का सिर है| यह रूपक मसीह की पहचान जीवन के स्रोत और कलीसिया के लिए दिशा निर्देश के रूप में दर्शाता है, ठीक वैसे ही जैसे शरीर के लिए सिर जीवन का स्रोत और दिशा निर्देश है|

इस अध्याय में अनुवाद सम्बंधित अन्य संभावित कठिनाइयाँ

मसीह के क्लेशों की कमी

124 में पौलुस ""मसीह के क्लेशों की घटी"" के विषय कहता है, ऎसी घटी जिसको वह अपने कष्टों से पूरा करता है| इसका अर्थ यह नहीं कि मसीह किसी प्रकार अपने दौत्य में और सेवा कार्य में चूक गया था और पौलुस को उन कमियों को पूरा करना पड़ रहा था| ""घटी"" का सन्दर्भ उन बातों से है जिनको मसीह ने अपने अनुयायियों के लिए छोड़ दिया था कि वे उसकू पूरा करें| उसने अपने सदृश्य कष्ट वहन के निमित्त उनका आव्हान किया है, कि कलीसिया के दौत्य को आगे बढ़ाते रहें|

""मसीह-भजन""

अनेक विद्वानों के विचार में 1:15–20 एक आरंभिक मसीही भजन है जिसका उद्धरण पौलुस ने कुलुस्से के विश्वासियों को स्मरण कराने के लिए किया है कि वे अन्य विश्वासियों के साथ सर्व निष्ठा में क्या विश्वास करते हैं| यदि आपके पाठकों के लिए सहायक सिद्ध हो सके तो आप इन पदों का विन्यास इस प्रकार कर सकते हैं कि उनका भजन या कविता रूप प्रकट हो|

Colossians 1:1

इस सम्पूर्ण पत्र में ""हम"", ""हमें"", ""हमारा"", ""हमारा"" शब्द कुलुस्से के विश्वासियों को समाहित करते हैं अन्यथा जैसा भी व्यक्त किया जाए| (देखें: विशिष्ट एवं संयुक्त ‘‘हम’’)

""तुम', ""तुम्हारा"", ""तुम्हारे"" कुलुस्से के विश्वासियों के सन्दर्भ में हैं इसलिए बहुवचन में हैं अन्यथा जैसा भी संकेत दिया गया हो| (देखें: ‘तुम’ के रूप - एकवचन)

Παῦλος

इस संस्कृति में पत्र के लेखक अपना नाम पहले देते थे और स्वयं को तृतीय पुरुष में व्यक्त करते थे| यदि आपकी भाषा में यह उलझन उत्पन्न करे तो आप यहाँ प्रथम पुरुष काम में ले सकते हैं| यदि आपकी भाषा में पत्र के लेखक का परिचय देने के लिए कोई विशिष्ट विधि है और आपके पाठकों के लिए सहायक सिद्ध होती है तो आप उसका प्रयोग यहाँ कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""पौलुस की ओर से"" (देखें: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरुष)

Παῦλος

यहाँ वरन सम्पूर्ण पत्र में, एक पुरुष का नाम है| (देखें: नामों का अनुवाद कैसे करें)

καὶ Τιμόθεος ὁ ἀδελφὸς

इस उक्ति का अर्थ यह नहीं है कि तीमुथियुस ने इस पत्र को लिखने में पौलुस की सहायता की थी| पौलुस इस पत्र का लेखक था क्योंकि वह सम्पूर्ण पत्र में प्रथम पुरुष काम में लेता है| इसका वास्तविक अर्थ है कि तीमुथियुस पौलुस के साथ है और पौलुस जो भी लिखता है उससे वह सहमत है| यदि आपकी भाषा में ऐसा प्रकट हो कि तीमुथियुस पौलुस के साथ पत्र लिख रहा है तो आप तीमुथियुस की सहायक भूमिका को और भी अधिक स्पष्ट कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""हमारे साथी विश्वासी, तीमुथियुस की सहायता से"" (देखें: अनुमानित ज्ञान एवं अंतर्निहित सूचना)

Τιμόθεος

यह एक पुरुष का नाम है (देखें: नामों का अनुवाद कैसे करें)

Colossians 1:2

τοῖς ἐν Κολοσσαῖς ἁγίοις, καὶ πιστοῖς ἀδελφοῖς ἐν Χριστῷ

उस संस्कृति में पत्र के लेखक अपना नाम लिकने के बाद पत्र प्राप्तिकर्ताओं के नामों का उल्लेख करते थे और तृतीय पुरुष में उनको संबोधित करते थे| यदि आपकी भाषा में इससे उलझन उत्पन्न हो तो आप द्वितीय पुरुष काम में ले सकते हैं| यदि आपकी भाषा में पत्र प्राप्तिकर्ताओं को संबोधित करने की अपनी ही विशिष्ट विधि हो जो आपके पाठकों के लिए सुलभ हो तो आप उसका प्रयोग कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""तुम जो कुलुस्से नगर के निवासी हो और परमेश्वर के जन हो तथा विश्वासयोग्य विश्वासी हो, मसीह में अविभाज्य एकता रखते हो"" (देखें: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरुष)

τοῖς…ἁγίοις, καὶ πιστοῖς ἀδελφοῖς ἐν Χριστῷ

पवित्र , विश्वासी भाइयों* और मसीह में इन सब उक्तियों द्वारा यीशु के अनुयायियों का वर्णन किया गया है| पौलुस इन सब के द्वारा एक ही मानवीय समुदाय का वर्णन करता है| उदाहरणार्थ, उसका अभिप्राय यह नहीं है कि पवित्र जन और मसीह में विश्वासी भाई* दो भिन्न-भिन्न समुदाय हैं| यदि आपकी भाषा में पवित्र जन और विश्वासी भाइयों मिथ्याबोधक हो तो आप इनको स्पष्ट रूप में संयोजित कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""परमेश्वर के विश्वासयोग्य जनों को जो मसीह में एक परिवार के सदृश्य संगठित हैं"" (देखें: दोहरात्मक)

χάρις ὑμῖν καὶ εἰρήνη ἀπὸ Θεοῦ Πατρὸς ἡμῶν καὶ Κυρίου Ἰησοῦ Χριστοῦ

अपना नाम और पत्र प्राप्तिकर्ताओं के नाम लिखने के बाद पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों को आशीर्वाद देता है| अपनी भाषा में ऎसी रचना शैली काम में लें जिसको आपके पाठक समझ सकें कि वह आशीर्वाद है| वैकल्पिक अनुवाद: ""हमारे पिता परमेश्वर और मसीह, प्रभु यीशु की ओर से तुम अपने में दया और शांती का अनुभव कर पाओ"" या "" मैं प्रार्थना करता हूँ किहमारे पिता परमेश्वर और मसीह, प्रभु यीशु का अनुग्रह और शांति सदा तुम्हारे साथ हो"" (देखें: INVALID translate/translate-blessing)

χάρις ὑμῖν καὶ εἰρήνη ἀπὸ Θεοῦ Πατρὸς ἡμῶν καὶ Κυρίου Ἰησοῦ Χριστοῦ

ये दो शब्द, अनुग्रह और शांति भाववाचक संज्ञा शब्द हैं| आपकी भाषा में इन विचारों को व्यक्त करने की अपनी ही विशिष्ट शैली होगी, जैसे क्रिया शब्दों के द्वारा या विवरणात्मक शब्दों के द्वारा| यदि ऐसा है तो आप इनका यहाँ, अपने अनुवाद में प्रयोग कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""हम प्रार्थना करते हैं कि हमारा पिटा परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह तुम्हारे साथ दया का व्यवहार करे और तुम्हें शांतिपूर्ण सम्बन्ध प्रदान करे""(देखें: भाववाचक संज्ञा)

Θεοῦ Πατρὸς ἡμῶν

यहाँ, वरन सम्पूर्ण अध्याय में, पिता शब्द परमेश्वर के लिए एक महत्वपूर्ण उपनाम है| वैकल्पिक अनुवाद: ""परमेश्वर जो हमारा पिता है"" (देखें: https://git.door43.org/Door43-Catalog/hi_ta/src/branch/master/translate/guidelines-sonofgodprinciples/01.md)

Colossians 1:3

εὐχαριστοῦμεν…ἡμῶν

यहाँ हम शब्द कुलुस्से के विश्वासियों को समाहित नहीं करता है परन्तु अपने शब्द में कुलुस्से के विश्वासी भी समाहित हैं। (देखें: विशिष्ट एवं संयुक्त ‘‘हम’’ )

πάντοτε

यहाँ, सदा शब्द अतिशयोक्ति है परन्तु कुलुस्से के विओश्वासी इस शब्द से समझ लेते थे कि पौलुस और तीमुथियुस उनके लिए प्रार्थना करते रहते थे| यदि आपकी भाषा में इसका उपयोग समझ से परे हो तो आप एक ऐसे शब्द का उपयोग कर सकते हैं जो निरंतरता को दर्शाए| वैकल्पिक अनुवाद: ""अचूक"" या ""लगातार"" (देखें: अतिशयोक्ति)

Colossians 1:4

ἀκούσαντες τὴν πίστιν ὑμῶν

यदि आपकी भाषा में विश्वास शब्द में निहित विचार के लिए भाववाचक संज्ञा शब्द नहीं है तो आप इस भाववाचक संज्ञा शब्द में निहित विचार का अनुवाद किसी और रूप में कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""यह सुनकर कि तुम विश्वास करते हो"" (देखें: भाववाचक संज्ञा)

τὴν ἀγάπην ἣν ἔχετε εἰς πάντας τοὺς ἁγίους,

यदि आपकी भाषा में प्रेम शब्द में निहित विचार के लिए भाववाचक संज्ञा शब्द का प्रयोग नहीं है तो आप इसी विचार को क्रिया शब्द द्वारा व्यक्त कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""सब पवित्र जनों से तुम कैसा प्रेम रखते हो"" (देखें: भाववाचक संज्ञा)

Colossians 1:5

τὴν ἐλπίδα

यहां आशा शब्द का सन्दर्भ केवल आशावान होने से नहीं है| इसका सन्दर्भ विश्वासी की उस आशा से है जो सब विश्वासियों को दी जाने वाली बात के लिए परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है की प्रत्याशा है| यदि आपकी भाषा में आशा शब्द से उलझन उत्पन्न हो तो आप इस विचार का अनुवाद एक सम्बन्धवाचक उपवाक्य से कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""जिसकी तुम आशा करते हो"" (देखें: लक्षणालंकार)

τὴν ἀποκειμένην

यदि आपकी भाषा में यह अधिक व्यावहारिक हो तो आप इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में कर सकते हैं और काम के करने वाले का उल्लेख कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""जिसे परमेश्वर ने सुरक्षित रखा हुआ है"" या ""परमेश्वर ने ...लिए तैयार किया हुआ है"" या "" परमेश्वर ने ... लिए देने को रखा हुआ है"" (देखें: कर्तृवाच्य एवं कर्मवाच्य)

τῷ λόγῳ τῆς ἀληθείας

पौलुस सत्य के गुणकारी वचन का वर्णन करने के लिए सम्बन्धवाचक रूप का प्रयोग करता है| इसका सन्दर्भ हो सकता है: (1) सन्देश जो सत्य है| वैकल्पिक अनुवाद: ""वह सन्देश जो सत्य है"" (2) सत्य से सम्बंधित सन्देश| वैकल्पिक अनुवाद: ""सत्य के बारे में सन्देश"" (देखें: स्वत्वबोधन)

τῷ λόγῳ

यहाँ, वचन लाक्षणिक भाषा में उस सन्देश के लिए प्रयुक्त है जो शब्दोच्चारण से है| यदि आपकी भाषा में वचन शब्द को समझने में मिथ्याबोध हो तो आप एक समानार्थक अभिव्यक्ति काम में ले सकते हैं या सरल भाषा में अनुवाद कर सकते हैं| वैकल्पिक अनुवाद: ""उद्घोषणा"" (देखें: [[rc:/hi/ta/man/translate/figs-metonymy]])