1 Timothy
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1 तीमुथियुस का परिचय
भाग 1: सामान्य परिचय
1 तीमुथियुस की पुस्तक की रूप रेखा
इस पत्र में, पौलुस व्यक्तिगत आदेशों के बीच तीमुथियुस के लिए विकल्प देता है जो उसे उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त करता और अपने अधिकार देता है, और ऐसे निर्देशों को कि यीशु के विश्वासियों कैसे सामुदायिक जीवन को जीना है
1.अभिवादन (1:1-2) 1. पौलुस तीमुथियुस को आदेश देता है कि लोगों को चेतावनी दे कि वे भ्रामक शिक्षाएं न दें (1:3-20) 1. कलीसिया में व्यवस्था और शालीनता कैसे स्थापित की जाए (2:1-15) 1. धर्म वृद्धों और सेवकों की यथोचित योग्यताओं को सुनिश्चित करने के निर्देश (3:1-13) 1. पौलुस तीमुथियुस को उसके निजी जीवन-आचरण के बारे में निर्देश देता है (3:14-5:2) 1. \n\nकलीसियाई अनुदान के योग्य विधवाएँ (5:3-16) और धर्म वृद्धों के सम्बन्ध में निर्देश (5:17-20) 1. पौलुस तीमुथियुस को आदेश देता है कि उस को निष्पक्ष होना आवश्यक है (5:21-25) 1. स्वामी-सेवक संबंधों में मधुरता के निर्देश (6:1-2अ) 1. पौलुस तीमुथियुस को आदेश देता है कि वह शिक्षा कैसे दे और स्वयं कैसा आचरण रखे (6:2अ-16) 1. धनवानों की जीवन शैली के निर्देश (6:17-19) 1. पौलुस तीमुथियुस को आदेश देता है कि उसकी रखवाली में जो धरोहर सौंपी गई है उसकी चौकसी करे (6:20-21अ) 1. अंत में सम्पूर्ण कलीसिया के लिए शुभ कामनाएं (6:21ब)
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1 तीमुथियुस की पुस्तक किसने लिखी?
पौलुस नामक एक पुरुष ने 1 तीमुथियुस की पुस्तक लिखी थी। पौलुस तरसुस नगर का निवासी था। आरंभिक जीवन में वह शाऊल के नाम से जाना जाता था। मसीह में विश्वासी होने से पहले, पौलुस एक फरीसी था। वह मसीही विश्वासियों को सताता था। मसीह में विश्वासी हो जाने के बाद, उसने यीशु का प्रचार करने के निमित्त रोमी साम्राज्य की अनेक यात्राएं कीं।\n
संभव है कि पौलुस ने तीमुथियुस को और भी पत्र लिखे हों परन्तु यह पत्र जो हमारे पास है, वह सबसे पहला पत्र है। यही कारण है कि यह पत्र 1 तीमुथियुस या पहला तीमुथियुस के नाम से जाना जाता है। तीमुथियुस उसका शिष्य एवं घनिष्ठ मित्र था। अति संभव है कि पौलुस ने यह पत्र अपने जीवन के अंत समय में लिखा था
1 तीमुथियुस की पुस्तक का विषय क्या है?\n
पौलुस ने तीमुथियुस को इफिसुस में छोड़ दिया था कि वहाँ के विश्वासियों की सहायता करे। पौलुस ने तीमुथियुस को विभिन्न विषयों पर निर्देश देने हेतु यह पत्र लिखा था। जिन विषयों पर उसने चर्चा की उनमें कलीसियाई आराधना, कलीसियाई अगुवों की योग्यता, और झूठे शिक्षकों के विरुद्ध चेतावनी सम्मिलित है। इस पत्र से प्रकट होता है कि पौलुस किस प्रकार तीमुथियुस को प्रशिक्षण दे रहा था कि वह कलीसियाओं में अगुवा हो सके।\n
इस पुस्तक के शीर्षक का अनुवाद किस प्रकार किया जाना चाहिए?
अनुवादक इस पुस्तक को इसके पारंपरिक शीर्षक से पुकारने का चुनाव कर सकते हैं, “1 तीमुथियुस” या “पहला तीमुथियुस।” या कोई और शीर्षक चुन सकते हैं, जैसे कि “तीमुथियुस के नाम पौलुस का प्रथम पत्र” (देखें: नामों का अनुवाद कैसे करें)
भाग 2: महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक धारणाएँ
\nशिष्यता क्या है?
मनुष्यों को मसीह के शिष्य होने की प्रक्रिया ही शिष्यता कहलाती है। शिष्यता का लक्ष्य है कि अन्य विश्वासियों को अधिकाधिक मसीह के स्वरूप को पाने में प्रोत्साहन प्रदान करें। यह पत्र अनेक निर्देशन देता है कि कैसे एक कम परिपक्व विश्वासी को अगुवा प्रशिक्षण दे। \n(देखें: चेला, चेले)
भाग 3: अनुवाद के महत्वपूर्ण विषय
पौलुस के विचार में, ""मसीह में"" का क्या अर्थ था?
पौलुस का तात्पर्य था कि मसीह और विश्वासियों के साथ अति घनिष्ठ एकता के विचार को व्यक्त किया जाए। इस प्रकार की अभिव्यक्ति के विषय अधिक विवरण हेतु रोमियों की पुस्तक की प्रस्तावना देखें। \n
1 तीमुथियुस की पुस्तक के मूलपाठ में कौन से प्रमुख पाठ्य विषय पाए जाते हैं?
6:5 में, अधिकांश आधुनिक बाइबल संस्करण व्यक्त करते हैं कि “ईश्वर-भक्ति लाभ के साधन स्वरूप है।” एक और पारंपरिक पठ्न है जिसमें इस वाक्यांश के बाद लिखा है, “ऐसी बातों से अलग रहो।” यूएलटी का मूलपाठ आधुनिक पाठ देता है और अधिक पारंपरिक पाठ को पाद टिप्पणी में लिखता है। \nयदि सार्वजनिक क्षेत्र में बाइबल का अनुवाद है तो अनुवादक के लिए आवश्यक है कि वह उन संस्करणों में पाए जाने वाले पठ्न को काम में लेने पर विचार करे। यदि नहीं है तो अनुवादकों को परामर्श दिया जाता है कि वे आधुनिक पाठ का पालन करें। (देखें: लेखों के भेद)
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1 तीमुथियुस 01 सामान्य टिप्पणियाँ
संरचना एवं विन्यास शैली
पौलुस इस पत्र का औपचारिक परिचय पद 1-2 में देता है। प्राचीन मध्य एशिया में लेखक प्राय: पत्रों का आरंभ इसी शैली में करते थे।
इस अध्याय में विशिष्ट धारणाएँ
आत्मिक संतान
इस अध्याय में पौलुस तीमुथियुस को “पुत्र” और अपनी “संतान” कहता है। पौलुस ने तीमुथियुस को एक मसीही विश्वासी और कलीसियाई अगुवा होने हेतु अपने प्रशिक्षण में रखा था। संभव है कि पौलुस ने उसे मसीह में विश्वास के निमित्त मार्ग दर्शन प्रदान किया था। \n\nयही कारण था कि पौलुस ने उसे उसका “विश्वास में पुत्र” कहा था। (देखें:चेला, चेले,विश्वास और आत्मा, हवा, सांस और रूपक)
रूपक
इस अध्याय में पौलुस विश्वास की पूर्ति न करने वालों के लिए अलंकार स्वरूप कहता है कि वे “लक्ष्य से चूक गए” जिसे वे साधे हुए थे, जैसे कि वे अनुचित मार्ग पर “विमुख होकर दूर हो गए” और यदि उनका “जहाज टूट” गया है। निष्ठापूर्वक यीशु के अनुसरण के लिए वह एक अलंकार, ""अच्छी कुश्ती लड़ना"" काम में लेता है।
1 Timothy 1:1
Παῦλος
उस संस्कृति में पत्र के लेखक अपना नाम पहले लिखते थे। आपकी भाषा में पत्र के लेखक का परिचय देने की अपनी ही विशिष्ट विधि होगी और यदि यह आपके पाठकों के लिए सहायक सिद्ध हो तो आप उसे यहाँ काम में ले सकते हैं। लेखक का परिचय देने के तुरंत बाद, आप यह भी दर्शाना चाहेंगे कि पत्र किसको लिखा गया है। वैकल्पिक अनुवाद: “मैं पौलुस ही हूँ जो तुझे यह पत्र लिख रहा हूँ, तीमुथियुस”।
κατ’ ἐπιταγὴν Θεοῦ
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर के अधिकार से”
Θεοῦ Σωτῆρος ἡμῶν
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर, जो हमें बचाता है”
Κυρίου Ἰησοῦ Χριστοῦ τῆς ἐλπίδος ἡμῶν
यहाँ “हमारी आशा” एक अलंकार है जो उस व्यक्ति के सन्दर्भ में है जिसमें हम आशा लगाए हुए हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह यीशु, जिसमें हमें पूर्ण विश्वास है” या “मसीह यीशु जिसमें हम भरोसा रखे हुए हैं” (देखें: लक्षणालंकार)
1 Timothy 1:2
γνησίῳ τέκνῳ
तीमुथियुस के साथ अपने घनिष्ठ सम्बन्ध को पौलुस इस प्रकार व्यक्त करता है जैसे कि वे पिता और पुत्र हों। इससे तीमुथियुस के प्रति पौलुस का सच्चा प्रेम और अनुमोदन प्रकट होता है। यह भी संभव है कि पौलुस व्यक्तिगत रूप से तीमुथियुस को मसीही विश्वास में लाया था, यह एक और कारण हो सकता है कि पौलुस उसको अपनी संतान के सदृश्य मानता था। वैकल्पिक अनुवाद: ""जो वास्तव में मेरे लिए पुत्र के समान है"" (देखें: रूपक)
χάρις, ἔλεος, εἰρήνη
उस संस्कृति में, पत्र के लेखक पत्र के मुख्य विषय को आरम्भ करने से पूर्व पाठकों को शुभ कामनाएं भेजते थे। वैकल्पिक अनुवाद: “मैं आशा करता हूँ कि तू परमेश्वर की दया, करुणा और शांति प्राप्त कर रहा है”
Θεοῦ Πατρὸς
यहाँ “पिता” शब्द परमेश्वर के लिए एक महत्वपूर्ण उपनाम है। वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर,जो हमारा पिता है” (देखें: पुत्र और पिता का अनुवाद करना)
Χριστοῦ Ἰησοῦ τοῦ Κυρίου ἡμῶν
वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह यीशु, जो हमारा प्रभु है”
1 Timothy 1:3
καθὼς παρεκάλεσά σε
वैकल्पिक अनुवाद: “जैसा मैंने तुझे कहा है”
σε
इस पत्र में एक अपवाद को छोड़ कर तू, तेरा, और तुझे तीमुथियुस के सन्दर्भ में हैं। 6:21 में इस अपवाद पर विवरणात्मक टिप्पणी की गई है। (देखें: तुम के प्रारूप)
προσμεῖναι ἐν Ἐφέσῳ
“मेरे लिए इफिसुस नगर में ही रुके रहना”
Ἐφέσῳ
यह एक नगर का नाम है। (देखें: नामों का अनुवाद कैसे करें)
τισὶν
वैकल्पिक अनुवाद: “निश्चित लोग”
ἑτεροδιδασκαλεῖν
इसका अभिप्राय है कि कुछ लोग भिन्न रूप से शिक्षा नहीं दे रहे थे, अन्य बातें सिखा रहे थे। यदि आपके पाठकों के लिए आसन हो तो आप इसको स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “हम जो सिखाते हैं उससे भिन्न धर्म शिक्षा” (देखें: अनुमानित ज्ञान एवं अंतर्निहित सूचना)
1 Timothy 1:4
μύθοις
ये किसी प्रकार कि लुभाने वाली शिक्षाएँ थीं, संभवत: विभिन्न आत्मिक प्राणियों के कथित कारनामों के बारे में। परन्तु हम नहीं जानते कि ये कहानियाँ वास्तव में क्या थीं, इसलिए यहाँ कोई सामान्य शब्द काम में लेना ही अति उचित होगा। वैकल्पिक अनुवाद: “कपोल कल्पित कहानियाँ”
γενεαλογίαις ἀπεράντοις
पौलुस अंतहीन शब्द को अतिशयोक्ति के रूप में काम में लेता है कि बल दिया जाए कि वे बढ़ा चढ़ा कर बोली गई हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “नामों की सूची जिसका अंत होता प्रतीत न हो” (देखें: अतिशयोक्ति)
γενεαλογίαις
सामान्यत: इस शब्द का सन्दर्भ मनुष्य के वंशजों के आलेख से है। तथापि, इस स्थिति में इसका अर्थ काल्पनिक आत्मिक प्राणियों के वंशजों के आलेख से हो सकता है। वैकल्पिक अनुवाद: “नामों की सूची”
αἵτινες ἐκζητήσεις παρέχουσι
वे लोग इन कहानियों तथा नामों की सूची पर विवाद कर रहे थे, परन्तु कोई भी निश्चित नहीं जानता था कि वे सच था या नहीं। वैकल्पिक अनुवाद: “इनके कारण लोग क्रोधित होकर असहमत थे”
μᾶλλον ἢ οἰκονομίαν Θεοῦ, τὴν ἐν πίστει
यदि आपकी भाषा में अधिक स्पष्ट हो, तो आप इस भाववाचक संज्ञा “भण्डारीपन” के अन्तर्निहित विचार को एक व्यावहारिक संज्ञा शब्द “योजना या “कार्य” द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “हमें बचाने के लिए परमेश्वर की योजना को समझने में हमारी सहयता करने के अपेक्षा, जिसे हम विश्वास से सीखते हैं” या “परमेश्वर के काम को करने में हमारी सहायता करने की अपेक्षा, जिसे हम विश्वास से करते हैं” (देखें: भाववाचक संज्ञा)